*समापन सत्र-परम पूजनीय सरसंघचालक जी*
१.डॉ हेडगेवार जी ने प्रारंभ में ही पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य रखा था संपूर्ण स्वतंत्रता की यात्रा पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना है,इसको प्राप्त करने के लिए भारत को खड़ा करना है
२.हम अब हम इतने बड़े हो गए हैं कि संपूर्ण स्वतंत्रता और विश्व पर हमारा प्रभाव दिखने लगा है
३.उपनिषद की कथा- एक वृक्ष पर एक जीव फल खा रहा है दूसरा मित्र देख रहा है, यह धारा चलती रहेगी,केवल आत्मा परमात्मा से सृष्टि नहीं चलती सारी प्रकृति को संभालना है तो हमने जो किया है उसे और शक्ति चाहिए
४.बाहर की चीजों को संभालने के लिए समाज में स्थिति एवं रचना उत्पन्न करना बदनाम करने की प्रवृत्ति से निपटने के लिए समाज को भी तैयार करना
सारे समाज को आत्मीयता चाहिए सेवा आदि के माध्यम से समाज का प्रबोधन करना
५.हम क्या है क्या होना चाहिए चुनौतियां क्या क्या है समाधान में हमारे क्या भूमिका हो इस काम की एक प्रकृति है, दूसरा काम उसका प्रकार ओर पद्धति भी अलग है, यह दोनों जुड़े हैं
६.जीव है इसलिए आत्मा है ये चाहकर भी अलग नहीं हो सकते पूर्ण भिन्न फिर भी दोनों की धाराओं को संभाल कर चलना
७.जिला स्तर तक के कार्यकर्ता के मन में अंतर स्पष्ट होना चाहिए अभी नहीं है
८.हमारी सामूहिक पद्धति है पहले हम सब समझने वाली बातों को ठीक ढंग से सुने समझें,छोटी- छोटी बातें रास्ते से हटा देती है
९.पुरानी एवं शाश्वत बातें स्थाई है कुछ को हटाना पड़ता है कुछ को जोड़ना पड़ता है,नित्यानित्य विवेक हमको समझना पड़ेगा तब समझकर नीचे उतरेगा
१०.अब हम छुप नहीं सकते दुनिया हमको दिखाएगी ,अब समुत्कर्ष महाविद्यालय शिविर नाम देना पड़ता है क्यों ? नए-नए विचित्र नाम क्यों देना, दिखने के लिए होंगे तो दिखे जाएंगे,दिखने से परे जाकर संगठन श्रेणी के काम करने की आवश्यकता
११.समाज के जितने प्रकार हैं उनमें हमको काम खड़ा करना पड़ेगा प्रांत भाषा क्षेत्र सब स्तर पर,सर्वस्पर्शी काम हो
१२.मनुष्य निर्माण- शाखा में १३ सूर्य नमस्कार, वही नहीं रुकना रुक जाएगा तो अच्छा कार्यकर्ता नहीं बन सकता, उंगली से चांद दिखाना उंगली ही नहीं देखते रहना, इन सब में से कार्यकर्ता कैसा बन रहा है,मित्र बनाने की कला होना चाहिए
१३.सब लोगों को साथ जोड़ने की कला अपनी दृष्टि ऐसी बनानी पड़ेगी लेकिन उसकी दृष्टि सब को अपना बनाने की नहीं बन रही है मन की आत्मीयता होते हुए प्रगति को संभालना,मित्र बनाने वाले स्वयंसेवक खड़ा करेंगे करना उसको जानकारी,विवेक होना चाहिए
१४.राम कृष्ण परशुराम बुद्ध देश काल परिस्थिति के अनुसार आचरण,सामने वाला कैसा है उसके आधार पर आचरण इसका विवेक इसलिए स्पीड लिटरेस दोनों का संतुलन,जो दुनिया में से रास्ता निकाल सके ऐसी बातों को समझने और समझकर चलेंगे तो सब ठीक होगा
१५.इसलिए समन्वय का स्वभाव होना चाहिए,२०१४ के पहले का विरोध का स्वभाव, पहले हम प्रभु नहीं थे अब प्रभु हो गए हैं लड़ने की आदत थी अब समन्वय का स्वभाव बनना चाहिए, शिवाजी का उदाहरण,कहीं पर लड़ना नहीं है यह विवेक जागृत करना पड़ेगा, आमने-सामने पड़ेंगे तब समन्वय का स्वभाव ताजा करना पड़ेगा
१६.नए लोग भी आएंगे उनका प्रशिक्षण,बुद्धिमान श्रद्धा ,भक्ति तर्क दोनों को लेकर चलना पड़ेगा श्रद्धा और विश्वास के आधार पर अपनी तैयारी करके सब बातों को लेकर चलेंगे तो सब ठीक होगा
व्यक्ति दोष युक्त हो तब भी छोड़ते नहीं है,समाज भी हमारे जैसा व्यवहार करने की इच्छा कर रहा है नागरिक अनुशासन पांच बातें
१७.विमर्श को अपने पक्ष में करना,उनका विमर्श अंदर से पोला है टिकने वाला नहीं है झूठ पर खड़ा है, हमारा आधार सत्य का है हम भी खड़ा करेंगे तो स्थाई और मजबूत होगा
१८.दो धाराएं उनको संभालना ऐसे स्वयं को एवं परिवार को बनाना
१९.विजय का विश्वास सतत परिश्रम करते चलें ,समूह में कैसे रहना,नियम व्यवस्था पालन
२०.हमारा स्वयं का उदात्त क्या है अब जो कार्य हमारे हाथ में हैं वह आसान नहीं है, अंतिम परीक्षा होती है वह कठिन होती,यहीं से फिसलने का भय रहता है,हमको आगे ही जाना है विजयी होंगे, योग्यता प्राप्त करें और ऐसे लोगों को खड़ा करें
२१.समाज को दूसरी आशा नहीं है इसको चलाने के लिए हमारी तैयारी कितनी है ? एक एक स्वयंसेवक एक एक कुटुंब
२२.जय-विजय की तैयारी करना है,हमने ऐसा बनाना और जिला स्तर के कार्यकर्ताओं को ऐसा बनाना इस काम को ठीक से करना
२३.सत्य संकल्प हमारा है हमारी विजय है दुनिया के लिए दूसरा मार्ग नहीं है थोड़ा परिश्रम है किंतु फल अच्छा होगा......।