* एकादशी व्रत
03 से 80 वर्ष की आयु के प्रत्येक सनातनी को अपनी दसों इन्द्रियों एवं मन का नियमन करते हुए एकादशी व्रत करना चाहिए। धर्मशास्त्रों में उसके अनेक विधान वर्णित हैं, तथापि सर्वथा निराहार रहकर अथवा केवल गंगाजल या गोदुग्ध पीकर या केवल शुद्ध फल खाकर ही इस व्रत को करना चाहिए। अत्यधिक अशक्त होने पर रात्रिभोजन (व्रत फलाहार) ले सकते हैं, किन्तु एकादशी को छोड़ना नहीं चाहिए। प्रमादवश एकादशी के छूट जाने पर द्वादशी को व्रत कर लेना चाहिए; किन्तु प्रमादवश व्रतत्याग नहीं करना चाहिए। दशमी के मध्याहन से ही गरिष्ठ भोजन को त्यागकर एकादशी-प्रात: स्नान नित्यकर्म आदि से निवृत होकर एकादशी व्रत का संकल्प ('ओं विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। अद्य अस्मिन् दिने... गोत्रोत्पन्नः नामाऽहं श्रीपरमेश्वर-प्रीत्यर्थ एकादशी व्रतं करिष्ये) करके पूरे दिन में भगवत्स्मरण एवं राम नाम का न्यूनतम 21,600 जप एवं भगवद्गीता श्रवण करके, द्वादशी-सूर्योदय पर नित्यपूजा आदि के बाद व्रत का पारण करना चाहिए। कुमारी कन्याओं को अपने पिता की तथा विवाहित स्त्रियों को अपने पति की आज्ञा से ही व्रत करना चाहिए। क्षौर, स्त्रीसंग, पापियों से सम्भाषण, चावल का सेवन, मिथ्याभाषण इत्यादि वर्जित है। एकादशी पर श्राद्ध पड़ने पर श्राद्धकर्ता एकादशी का त्याग करे, बल्कि पितरों को निवेदित किए भोजन को सूंघकर गाय को खिला दे तथा स्वयं उपवास करें (स्मृतिकौस्तुभ कात्यायन)। जो लोग किसी वैष्णव सम्प्रदाय में दीक्षित हैं, केवल वे ही वैष्णवों वाली एकादशी करें तथा अपनी गुरुपरम्परागत मर्यादाओं का निर्वाह करें: अन्य सभी के लिए स्मात वाली एकादशी विहित है।
विनयभाव सर्वश्रेष्ठ 'व्रत' है।
* Ekadashi fasting
Every Sanatani in the age group of 03 to 80 years should observe Ekadashi fast by controlling his ten senses and mind. Many of its laws are described in religious scriptures, however, this fast should be observed by remaining completely abstinent or by drinking only Ganges water or cow milk or by eating only pure fruits. If you are extremely weak, you can take dinner (Vrat Falahar), but Ekadashi should not be missed. If Ekadashi is missed by mistake, one should fast on Dwadashi; But fasting should not be done carelessly. Ekadashi fasting from the midday of Dashami, having retired from Ekadashi-morning bath routine etc., resolve to observe Ekadashi fast ('O VishnurvishnurvishnuH. Adya Asmin Dinee... Gotrotpanna: Nama'ham Shriparmeshwar-Priyatharth Ekadashi Vratam Karishye) by remembering Bhagavat and Ram throughout the day. After chanting the name for a minimum of 21,600 times and listening to the Bhagavad Gita, the fast should be broken after daily worship on Dwadashi-Sunrise etc. Unmarried girls should fast only with the permission of their father and married women with the permission of their husband. Kshaur, company of women, conversation with sinners, consumption of rice, false speech etc. are prohibited. When Shradh is performed on Ekadashi, the Shradh performer should give up Ekadashi, rather feed the cow after smelling the food offered to the ancestors and fast himself (Smriti Kaustubh Katyayan). Those who are initiates in any Vaishnava sect, only they should observe Ekadashi of Vaishnavas and follow their Guru's tradition: for all others, Ekadashi of Smaat is prescribed.
Modesty is the best 'fast'.
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