Wednesday, March 29, 2023

प्रारम्भिक सन्ध्योपासना * 30/3/2023

प्रारम्भिक सन्ध्योपासना *

प्रातः स्नान के बाद शुद्धवस्त्रों से अलंकृत होकर शिखाबन्धन एवं भस्म/मृत्तिका/ जल द्वारा को तथा दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली में कुशा पवित्री या सोने चाँदी के छलने को धारण तत्पश्चात् अपने आसन पर पूर्वाभिमूख विराजमान होकर 'ओं पृथिवी त्वया धृता लोका देवि "विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्र कुरु चासनम्' कहते हुए माता पृथिवी को करदनन्तर 1 आ केशवाय नमः 2 ओ नारायणाय नमः 3. आ माधवाय नमः' कहते हुए तीन आचमन करें तथा 'ओं गोविन्दाय नमः' कहकर हाथ को भी लें। फिर 1. पूरक (अर्थात् दाहिने नासिकारन्ध को बन्दकर बाएँ से श्वास को खींचे), 2. कुम्भक (अर्थात् दोनों रन्धों को उरकर श्वास को रोक) और 3. रेचक (बाएँ रन्ध्र को बन्दकर दाहिने से श्वास को छोड़ इन तीनों आयामों को गायत्रीमन्त्र का मानसिक उच्चारण करते हुए सम्पादिक करें। तदुपरान्त दाहिने हाथ में जल लेकर 'ओं विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य अस्मिन् दिने गोत्रोत्पन्नः नामाऽहं श्रीपरमेश्वरप्रीत्पर्थ सन्ध्यावन्दनं करिष्ये' इत्यादि संकल्प द्वारा भूमि पर जल को छोड़ दें। 'मित्राय नमः रवये नमः, सूर्याय नमः, भानवे नमः खगाय नमः, पृष्णे नमः, हिरण्यगर्भाय नमः, मरीचये नमः, आदित्याय नमः सवित्रे नमः, अर्काय नमः, भास्कराय नमः । छाया संज्ञा समेताय श्रीसूर्य नारायण स्वामिने नमः' कहने के बाद तीन बार गायत्रीमन्त्र का मानसिक उच्चारण करते हुए भगवान् सूर्य को तीन अर्घ्य दें। तदनन्तर 'आगच्छ वरदे देवि जपे मे सन्निधौ भव। गायन्तं त्रायसे यस्माद् गायत्री त्वं ततः स्मृता' इत्यादि ब्लोक द्वारा भगवती गायत्री का आवाहनकर गुरुप्रदत्त गायत्रीमन्त्र का न्यूनतम 108 बार जप करें। फिर 'आ ब्रह्मलोकाद आ शेषाद् आ लोकालोकपर्वतात्। ये वसन्ति द्विजा देवास्तेभ्यो नित्यं नमाम्यहम् कहकर प्राणिमात्र को नमस्कार करें तथा निम्नलिखित श्लोकों का उच्चारण करते हुए कातिल मिश्रित जल द्वारा पितरों का तर्पण करें: 'आ ब्रह्म-स्तम्ब पर्यन्तं देवर्षि पितृ-मानवाः । तृप्यन्तु पितरः सर्वे मातृ माता महादयः । अतीत-कुल-कोटीनां सप्तद्वीप-निवासिनाम् आ ब्रह्म-भुवना लोकाद् इदमस्तु तिलोदकम्॥'

तदुपरान्त यस्य स्मृत्या च नामवत्या तपोयज्ञक्रियादिषु न्यूनं सम्पूर्णतां याति सो बन्दे तमच्युतम्' कहकर वेदपुरुष भगवान् श्रीमनारायण को मनसा प्रणाम करें तथा 'अनेन सन्ध्योपासन कर्मणा श्रीपरमेश्वरः प्रीयतां न मम। ॐ तत्सत् ब्रह्मार्पणमस्तु' कहते हुए भूमि पर जल को छोड़कर परमेश्वर के प्रति अपने इस सत्कर्म को समर्पित करें। इसके बाद ही अपने अन्य नित्यपूजा गुरुमन्त्रजप आदि में लगना चाहिए। सभी पूजा आदि कर्मों को सम्पादन कर लेने के बाद अनन्त: तीन बार 'शक्राय नमः' कहकर जल को अपने आसन के नीचे छोड़कर, पूर्वोक्त रोति से तीन बार आचमन करने के बाद, उस भूमिगत जल को अपने मस्तक पर लगाएँ। ध्यान रहे: सामान्यतः गृहस्थों के लिए 108 तथा आपात्काल में 28 बार गायत्री जप ही पर्याप्त है। हमें सूर्योदय से न्यूनतम 48 पूर्व एवं अधिकतम 48 मिनटों बाद अपना सन्ध्यावन्दन कर लेना चाहिए। किन्तु कभी अपरिहार्य कारणों से विलम्ब हो जाने पर प्रायश्चित के रूप में सूर्यदेव को एक अतिरिक्त अध्यं देना चाहिए। स्मरण रहे कि व्यक्तिगत प्रमाद के कारण विलम्ब करने पर निश्चित रूप से दोष लगेगा ही। जिन्हें कुल परम्परा से विधिवत् यज्ञोपवीत प्राप्त नहीं हुआ है, उन्हें गायत्रीमन्त्र के स्थान पर 'यो देवः सविताऽस्माकं थियो धर्मादि-गोचरे प्रेरयेत् तस्य तद् भर्गस्तद् वरेण्यमुपास्महे' इत्यादि पूर्वोक्त श्लोक का ही सर्वत्र प्रयोग करना चाहिए। अनधिकारी (-यज्ञोपवीतरहित द्विज, शुद्र या स्त्री) को गायत्री आदि वैदिक क्रियाएँ विपरीत फल देती हैं। उन्हें उपर्युक्त पौराणिक पद्धति से ईश्वरोपासना करनी चाहिए।

ममता दुःख की जड़ है।

Early Evening Worship *

 After bathing in the morning, adorning with pure clothes, wearing Shikhabandhan and ashes/mritika/water and wearing Kusha Pavitri or gold and silver trick in the ring finger of the right hand, then sitting on his seat facing east, 'O Prithivi Twaya Dhrita Loka Devi "Vishnuna Dhrita". Saying 'Tvan ch dharay maa devi pavitra kuru chasanam' to Mother Earth, 1 Aa Keshavaya Namah 2 O Narayanaya Namah 3. Saying 'Aa Madhwaya Namah', do three aachamans and say 'Om Govindaya Namah', take the hand as well. Puraka (i.e. close the right nostril and inhale from the left), 2. Kumbhaka (i.e. hold the breath by closing both the nostrils) and 3. Rechaka (by closing the left nostril and exhaling from the right) these three dimensions of Gayatri Mantra are chanted mentally. After that, take water in the right hand and leave the water on the ground with the resolution 'O Vishnu Vishnu Vishnu: Adya Asmin Dine Gotrotpanna: Namaaham Shree Parameshwarpreetpartha Sandhyavandanam Karishye' etc. Namah, Marichaye Namah, Adityaya Namah Savitre Namah, Arkay Namah, Bhaskaray Namah. After saying Chhaya Sangya Sametay Shree Surya Narayan Swamine Namah, mentally reciting the Gayatri Mantra three times, offer three Arghyas to Lord Surya. After that, 'Aagchch Varde Devi may be blessed in chanting. Chant the Gurudatta Gayatri Mantra at least 108 times by invoking Bhagwati Gayatri through blocks like 'Gayantam Trayase Yasmad Gayatri Tvan Tatah Smrita' etc. Then 'A Brahmalokad A Sheshad A Lokalok Parvatat. This Vasanti Dwija Devastebhyo Nityam Namamyaham, salutations to the living beings and offering the murderers with the water mixed with water while reciting the following verses: 'आ ब्रह्म-स्टम्ब पर्यंतं देवर्षि पित्र-मानवः। Tripyantu Pitra: Sarve Matri Mata Mahadayah. Past-Kul-Kotinaam Saptadweep-Nivasinam Aa Brahma-Bhuvana Lokad Idamastu TilodaAfter that, by saying Yasya Smritya Cha Namavatya Tapoyagyakriyadishu Nunam Sampurnatam Yati So Bande Tamchyutam, Ved Purush should bow down to Lord Shrimanarayan in his mind and 'Anen Sandhyopasan Karmana Shri Parameshwar: Priyatam na Mam.  Dedicate this good deed of yours to the Supreme Lord, leaving water on the ground saying 'Om Tatsat Brahmarpanamastu'.  Only after this, one should engage in his other daily worship, Guru Mantra chanting etc.  After performing all the worship etc. Karma Anant: Saying 'Shakray Namah' three times, leaving the water under your seat, after doing the aforesaid bread thrice, apply that underground water on your head.  Keep in mind: Generally, 108 times for householders and 28 times in emergency is sufficient to chant Gayatri.  We should do our evening prayer minimum 48 minutes before sunrise and maximum 48 minutes after sunrise.  But if there is a delay due to unavoidable reasons, an additional study should be given to the Sun God as an atonement.  Remember that delay due to personal negligence will definitely be blamed.  Those who have not received Yajnopaveet duly from the whole tradition, instead of Gayatri Mantra, the aforesaid verses like 'Yo Dev: Savita'smakan Theo Dharmadi-Gochare Prerayet Tasya Tad Bhargastad Varenyamaupasmahe' etc. should be used everywhere.  Gayatri etc. Vedic rituals give opposite results to the unauthorized (-dwij, shudra or woman without sacrificial fire).  They should worship God in the above mythological method.

 Affection is the root of sorrow.'

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