Thursday, March 23, 2023

dayanand saraswati

ॐ 
राÕůीय Öवयंसवेक संघ
अिखल भारतीय ÿितिनिध सभा
सवे ा साधना एवंúाम िवकास क¤ þ, पĘीकÐयाणा – पानीपत (हåरयाणा)
चैý कृÕण 5-7 यगु ाÊद 5124 (12-14 माचª2023)
महͪष दयानंद [ सरèवती कȧ 200 वीं जÛम जयंती के अवसर पर 
मा. सरकायवाह [ का वÈतåय
पराधीनता के काल मɅ जब देश अपने सांèकृǓतक व आÚयाि×मक आधार के सàबÛध मɅ ǑदÊħͧमत हो रहा 
था, तब महͪष दयान [ Ûद सरèवती का Ĥाकɪय हुआ। उस काल मɅ उÛहɉने राçĚ के आÚयाि×मक अͬधçठान को सǺुढ़ 
करने हेतु“वेदɉ कȧ ओर लौटने” का उĤोष कर समाज को अपनी जड़ɉ के साथ पनु ः जोड़ने का अɮभुत काय[ ͩकया।
समाज को बल व चेतना Ĥदान करने तथा समय के Ĥवाह मɅ आई कुरȣǓतयɉ को दरू करनेवाले महापǽुषɉ कȧ Įखला ंृ
मɅ महͪष दयानंद [ सरèवती दैदȣÜयमान न¢ğ हɇ। महͪष दयानंद [ सरèवती के Ĥादभु ा[व व उनकȧ Ĥेरणाओं से हुई
सांèकृǓतक ĐांǓत का èपंदन आज भी अनुभव ͩकया जा रहा है। 
स×याथĤ[ काश मɅ èवराज को पǐरभाͪषत करते हुए उÛहɉने ͧलखा ͩक èवदेशी, èवभाषा, èवबोध के ǒबना
èवराज नहȣं हो सकता। भारत के èवतंğता संĒाम मɅमहͪष दयानंद [ कȧ Ĥेरणा और आयसमाज [ कȧ सहभाͬगता अ×यंत 
महǂवपूण[ है। अनेक èवनामधÛय èवतंğता सेनाǓनयɉ ने इनसे Ĥेरणा लȣ। “कृÖवÛतो ͪवæवमायम[ " के ् संकãप के साथ 
Ĥारंभ ͩकये गए आयसमाज [ के माÚयम से भारत को सहȣ अथɟ मɅ आय[ ĭत (Įेçठ भारत) बनाना उनका Ĥथम लêय
था। 
उÛहɉने नारȣ को अĒणी èथान Ǒदलाने के ͧलए युगानुकूल åयवèथाएँ बनाकर कÛया पाठशाला और कÛया
गǽुकुल के माÚयम से उनको न के वल वेदɉ का अÚययन करवाया अͪपतुनारȣ ͧश¢ा का Ĥसार भी ͩकया। आदश[
जीवनशैलȣ अपनाने के ͧलए उÛहɉने आĮम åयवèथा (āĺचयª, गहृ èथ, वानĤèथ, संÛयास) पर न के वल आĒह ͩकया, 
अͪपतुउनके ͧलए åयवèथा भी Ǔनमाण क [ ȧ। उÛहɉने देश कȧ युवा पीढ़ȣ मɅ तजे िèवता, चǐरğ Ǔनमाण[ , åयसनमुिÈत, 
राçĚभिÈत के संचार, समाज व देश के ĤǓत समपण[ Ǔनमा[ण करने के ͧलए गǽुकुल व डीएवी िवīालयŌ का Ĥसार
कर एक ĐांǓत कȧ थी। गौ र¢ा, गोपालन, गौ आधाǐरत कृͪष, गौ संवधन[ के ĤǓत उनका आĒह आज भी आय[समाज
के कायɟ मɅ èपçट Ǻिçटगोचर होता है। उÛहɉने शुिĦ आÆदोलन Ĥारàभ कर धमĤ[ सार का एक नया आयाम खोला, जो 
आज भी अनकु रणीय है। महͪष दयानंद का जीवन उनके [ Ĭारा ĤǓतपाǑदत िसĦांतŌ का साकार èवǾप था। सादगी, 
पǐरĮम, ×याग, समपण[ , Ǔनभयता एवं [ िसĦातं Ō के ĤǓत अͫडगता उनके जीवन के Ĥ×येक ¢ण मɅ पǐरलͯ¢त होती 
है। 
महͪष दयानंद के [ उपदेशɉ और कायɟ कȧ Ĥासंͬगकता आज भी बनी हुई है। उनकȧ िĬशताÊदी के पावन अवसर 
पर राçĚȣय èवयंसेवक संघ उÛहɅ ®Åदापवूªक वंदन करता है। सभी èवयंसेवक इस पावन अवसर पर आयोिजत 
कायĐ[ मɉ मɅ पणू मनोयोग से भाग लेकर उन [ के आदशɟ को अपने जीवन मɅ चǐरताथ कर [ Ʌ। रा. èव. संघ कȧ माÛयता 
है ͩक अèपæृयता, åयसन और अधं ͪवæवासɉ से मÈुत करके एवं ‘èव’ से ओत-Ĥोत संèकारयÈुत ओजèवी समाज का 
Ǔनमा[ण करके हȣ उनके ĤǓत सÍची ®Ħाजं िल दȣ जा सकती है। 
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