पितृतर्पण के सर्वोपयोगी मन्त्र
आ ब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवाः । तृप्यन्तु पितरः सर्वे मातृमातामहादयः 1 अतीत कुलकोटीनां सप्तद्वीपनिवासिनाम्। आ ब्रह्मभुवनाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम् ॥
पितृऋण से मुक्त होने के लिए पितृपक्ष में अपने
ब्राह्मणभोजन करवाना हो समुचित है (देवीभागवत 6.4.15) 1 ध्यान रहे श्राद्धपक्ष-
अभीष्ट दिवंगत व्यक्ति की मृत्युकालिक तिथि (न कि दाहकालिक) पर विधिपूर्वक श्राद्ध पितृतर्पण करना चाहिए। अथवा श्रद्धापूर्वक सामर्थ्य होने पर भी अनेक ब्राह्मणों की अपेक्षा किसी एक सुयोग्य एवं तपस्वी ब्राह्मण को ही श्राद्ध का भोजन करवाएँ (मनु 3.311. भागवत 7.15.3)। ब्राह्मणियों को भोजन करवाना शास्त्रविरुद्ध है (बृहत्पराशरस्मृति 7.71)। श्राद्ध मध्याहकाल में ही करें तथा उसमें चाँदी, कुश, तिल, गाय एवं दौहित्र का विनियोग अवश्य करें (मत्स्यपुराण 22.86)। किसी शान्त, एकान्तिक एवं पवित्र स्थान में काले तिलों को बिखेरकर उक्त कर्म को करें: जहाँ कोई अशुद्ध जीव कुत्ते-आदि) उपस्थित न हो। विकलांग, रोगी, गेरु आधारी महात्माओं, वर्णसंकर, रजस्वला स्वी तथा नीले-काले वस्त्रों वाले लोग उस स्थान पर न जाएँ (कर्मपुराण 2.22.34-35)। केवल गाय के दूध-घी आदि का ही श्राद्धभोज कर्म में प्रयोग करें (स्कन्द 6.221.49) उड़द, मसूर, अरहर, गाजर, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, होंग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिघाड़ा, पीली सरसों, चना इत्यादि वर्जित है (महाभारत 13.91.38-41) श्राद्ध के दिन यजमान अथवा ब्राह्मण कोई भी दातुन (लकड़ी चबाना), क्षौर, तेलमालिश, मैथुन, पान खाना, भार ढोना, पुनभोजन में लोहे (स्टील) या मिट्टी का प्रयोग न करें (कूर्म 2.22.61, दालभ्यस्मृति 39).....
सम्भव हो तो श्राद्धकाल में सर्वत्र चाँदी का प्रयोग करें (पद्मपुराण 1.9.59)। (स्कन्द 7.206.42)। आत्महत्यारों के श्राद्ध का विधान नहीं है (कूर्म 2.23.73)। तीर्थ- वन मन्दिर आदि में अथवा अपने ही घर श्राद्ध करना चाहिए न कि दूसरे की भूमि पर (कर्म 2.22.16-17)1 पितृतर्पण के समय। तर्जनी अंगुली में चाँदी की अथवा अनामिका में सोने की अंगूठी पहननी चाहिए (पद्म 1.51.56-57)। ध्यान रहे कि श्राद्धपक्ष के साथ-साथ वैशाख शु3. कार्तिक शु.3, भाद्रपद कृ. 13. मौनी अमावस्या, सूर्य चन्द ग्रहण तथा मकर एवं तुला संक्रान्तियों पर पवित्रचित्त होकर निम्नोक्त मन्त्र द्वारा अपने पितरों का ध्यानकर उनके निर्मित [ पीपल में रविवार को छोड़कर ], चाँदी के पात्र में कालेतिल मिश्रित जल का अर्घ्य देने से पितृगण एक हजार वर्षों के लिए सन्तुष्ट होकर धन-सम्पत्ति सन्तति का आशीर्वाद देते हैं (पद्म 6.160. 3-4)। 'आ ब्रह्म-स्तम्ब... तिलोदकम्' इत्यादि पितृतर्पण-मन्त्र पृष्ठ 31 पर देखें। पितरों की कृपा चाहने वाले को पीपल वृक्ष की सब प्रकार से सेवा करनी चाहिए।
मन को जीतने वाला ही 'विजेता है।
प्रभुप्राप्ति ही 'लाभ' है।
debt on Pitrupaksha,
All-useful mantras of Pitrartpan
Aa Brahmastamb paryantam Devarshipitrimanavah. Tripyantu Pitar: Survey Mother Mother Mahaday: 1 Past Kulkotinam Saptadweepanivasinam. Aa Brahmabhuvanallokadidamastu Tilodakam ॥
To get rid of special ancestral
It is appropriate to have Brahmin food (Devi Bhagwat 6.4.15)
Shraddha Pitr Tarpan should be performed methodically on the date of death (not the time of death) of the deceased person. Or, even if you have the capacity with devotion, instead of many Brahmins, only one worthy and ascetic Brahmin should be given the food of Shradh (Manu 3.311. Bhagwat 7.15.3). Offering food to Brahmins is against the scriptures (Brihatparasharasmriti 7.71). Shradh should be performed in the middle of the day only and must invest silver, kush, sesame, cow and dauhitra in it (Matsyapuran 22.86). Scatter black sesame seeds in a quiet, secluded and holy place and do the above work: where no impure creatures (dogs etc.) are present. People with disabilities, patients, ocher-based Mahatmas, varnasankar, Rajaswala swi and people with blue-black clothes should not go to that place (Karmapuran 2.22.34-35). Use only cow's milk-ghee etc. in Shraddhbhoj rituals (Skanda 6.221.49) Mustard, gram etc. are prohibited (Mahabharata 13.91.38-41) Host or Brahmin on the day of Shraddha, any Datun (chewing wood), Kshaur, oil massage, sexual intercourse, eating paan, carrying load, use of iron (steel) or soil in re-food Don't (Kurma 2.22.61, Dalabhyasmriti 39).....
If possible, use silver everywhere during Shraddha (Padmapuran 1.9.59). (Skanda 7.206.42). There is no law for Shradh of suicides (Kurm 2.23.73). Shraadh should be performed in Tirtha-forest, temple etc. or at one's own house and not on other's land (Karma 2.22.16-17)1 At the time of Pitrartpan. A silver ring should be worn in the index finger or a gold ring in the ring finger (Padma 1.51.56-57). Keep in mind that along with Shraddha Paksha, Vaishakh Shu3. Kartik Shu.3, Bhadrapada Kri. 13. On the occasion of Mauni Amavasya, Surya Chand Grahan and Capricorn and Libra Sankrantis, offering water mixed with black sesame seeds in a silver vessel made [except on Sundays in Peepal tree] by reciting the following mantra, the ancestors will be blessed for a thousand years. By being satisfied, they bless the children with wealth (Padma 6.160. 3-4). 'Aa Brahma-Stamba... Tilodakam' etc. See Pitratarpan-Mantra on page 31. One who wants the blessings of ancestors should serve the Peepal tree in every way.
The one who conquers the mind is the winner.
Prabhu Prapti is the only 'gain'.
No comments:
Post a Comment