रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जप पार्थिवपूजा, ज्योतिलिंग यात्रा, शिवपूजा अनुष्ठान, सोमवार अथवा प्रदोष व्रत का आरम्भ आदि सकाम कृत्यों में शिववास विचारणीय है; न कि नित्यपूजन अथवा श्रावणमास में अतः प्रत्येक मास के शुक्लपक्ष की 2.5, 6, 9, 12, 13 तथा कृष्णपक्ष की 1, 4, 5, 8, 11, 12. अमावस्या इन तिथियों में ही उपर्युक्त कर्मों को सम्पादित करना चाहिए; अन्यथा भगवान् रुद्र/ शिव सन्तुष्ट नहीं होते। ध्यान रहे केवल श्रद्धा से भगवत्कृपा नहीं मिलती, विधि-विधान का भी अपना महत्त्व है क्योंकि विधि-विधान को छोड़कर भक्तिभाव के नाम पर मनमानी पूजा पद्धति से कभी कोई संकल्प सिद्ध नहीं होता। (देखें शिवपुराण 1.21.44) -
विषयभोग भयंकर 'विष' है।
Shiv Vas
Rudrabhishek, Mahamrityunjaya chanting Parthivapuja, Jyotirlinga Yatra, Shivpuja ritual, beginning of Monday or Pradosh Vrat etc. Shivavas is worth considering; Not in Nitya Pujan or in Shravan month, therefore 2.5, 6, 9, 12, 13 of Shukla Paksha of each month and 1, 4, 5, 8, 11, 12 of Krishna Paksha. The above mentioned deeds should be done on these dates only; Otherwise Lord Rudra/Shiva is not satisfied. Keep in mind that God's grace is not received only by devotion, rules and regulations also have their own importance because except for rules and regulations, arbitrary worship in the name of devotion never proves any resolution. (See Shivpuran 1.21.44) -
Subjective enjoyment is a terrible 'poison'.
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