संघगीत माला 10 गीतों का विशेष संग्रह SANGHGEET MALA COLLECTION OF 10 MOST POPULAR SONG IN RSS &ALL
देश हमें देता है सब कुछ
देश हमें देता है सब कुछ,
हम भी तो कुछ देना सीखें ॥धृ॥
सूरज हमें रौशनी देता,
हवा नया जीवन देती है ।
भूख मिटने को हम सबकी,
धरती पर होती खेती है ।
औरों का भी हित हो जिसमें,
हम ऐसा कुछ करना सीखें ॥१॥
पथिकों को तपती दुपहर में,
पेड़ सदा देते हैं छाया ।
सुमन सुगंध सदा देते हैं,
हम सबको फूलों की माला ।
त्यागी तरुओं के जीवन से,
हम परहित कुछ करना सीखें ॥२॥
जो अनपढ़ हैं उन्हें पढ़ाएँ ,
जो चुप हैं उनको वाणी दें ।
पिछड़ गए जो उन्हें बढ़ाएँ,
प्यासी धरती को पानी दें ।
हम मेहनत के दीप जलाकर,
नया उजाला करना सीखें ॥३॥
2.
संघटन गढे चलो सुपंथ पर बढे चलो ।
भला हो जिसमें देश का वो काम सब कीये चलो ॥धृ॥
युग के साथ मिलके सब कदम बढाना सीख लो ।
एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सीख लो
भूल कर भी मुख में जाती-पंथ की न बात हो
भाषा प्रांत के लिये कभी न रक्त पात हो
फूट का भरा घडा है फोड कर बढे चलो॥१॥
आरही है आज चारों ओर से यही पुकार
हम करेंगे त्याग मातृभूमी के लिये अपार
कष्ट जो मिलेंगे मुस्कुराते सब सहेंगे हम
देश के लिये सद जियेंगे और् मरेंगे हम
देश का हि भग्य अपन भग्य है ये सोच लो ॥२॥
3.
भारत माता तेरा आँचल , हरा – भरा धानी – धानी।
मीठा – मीठा चम् -चम करता , तेरी नदियों का पानी।
मस्त हवा जब लहराती है , दूर – दूर तक पहुंचाती है।
जग को मीत बनाने वाली ,मधुर मधुर तेरी वाणी ।।1।।
भारत माता तेरा आंचल हरा भरा धानी धानी
द्वार खड़े हैं चाहने वाले तेरे घर के हैं रखवाले
ऊंचे ऊंचे तेरे पर्वत, वीर बहादुर सेनानी ।।2।।
भारत माता तेरा आंचल हरा भरा धानी धानी
जीवन पुष्प चढ़ा चरणों में, मांगे मातृभूमि से यह वर
तेरा वैभव अमर रहे मां ,हम दिन चार रहे ना रहे ।।3।।
भारत माता तेरा आंचल हरा भरा धानी धानी
मीठा-मीठा छम छम करता तेरी नदियों का पानी
भारत माता तेरा आंचल हरा भरा धानी धानी
4
अगर हम नही देश के काम आए
धरा क्या कहेगी गगन क्या कहेगा ॥
चलो श्रम करे आज खुद को सँवारें
युगों से चढी जो खुमारी उतारें
अगर वक्त पर हम नहीं जाग पाएं
सुभा क्या कहेगी पवन क्या कहेगा ॥
अधुर गन्ध का अर्थ है खूब महके
पडे संकटों की भले मार सहके
अगर हम नहीं पुष्प सा मुस्कुराएं
लता क्या कहेगी चमन क्या कहेगा ॥
बहुत हो चुका स्वर्ग भू पर उतारें
करें कुछ नया स्वस्थ सोचें विचारें
अगर हम नहीं ज्योति बन झिलमिलाएं
निशा क्या कहेगी भुवन क्या कहेगा ॥
5
चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है
हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है || ध्रु ||
हर शरीर मंदिर सा पावन हर मानव उपकारी है
जहॉं सिंह बन गये खिलौने गाय जहॉं मॉं प्यारी है
जहॉं सवेरा शंख बजाता लोरी गाती शाम है || 1 ||
जहॉं कर्म से भाग्य बदलता श्रम निष्ठा कल्याणी है
त्याग और तप की गाथाऍं गाती कवि की वाणी है
ज्ञान जहॉं का गंगाजल सा निर्मल है अविराम है || 2 ||
जिस के सैनिक समरभूमि मे गाया करते गीता है
जहॉं खेत मे हल के नीचे खेला करती सीता है
जीवन का आदर्श जहॉं पर परमेश्वर का धाम है || 3 ||
6.
राष्ट्र की जय चेतना का गान वंदे मातरम्
राष्ट्रभक्ति प्रेरणा का गान वंदे मातरम्
बंसी के बहते स्वरोंका प्राण वंदे मातरम्
झल्लरि झनकार झनके नाद वंदे मातरम्
शंख के संघोष का संदेश वंदे मातरम् ॥१॥
सृष्टी बीज मंत्र का है मर्म वंदे मातरम्
राम के वनवास का है काव्य वंदे मातरम्
दिव्य गीता ज्ञान का संगीत वंदे मातरम् ॥२॥
हल्दिघाटी के कणोमे व्याप्त वंदे मातरम्
दिव्य जौहर ज्वाल का है तेज वंदे मातरम्
वीरोंके बलिदान का हूंकार वंदे मातरम् ॥३॥
जनजन के हर कंठ का हो गान वंदे मातरम्
अरिदल थरथर कांपे सुनकर नाद वंदे मातरम्
वीर पुत्रोकी अमर ललकार वंदे मातरम् ॥४॥
7
हम सभी का जन्म तव प्रतिबिम्ब सा बन जाय॥
और अधुरी साधना चिर पूर्ण बस हो जाय।
बाल्य जीवन से लगाकर अन्त तक की दिव्य झांकी
मूक आजीवन तपस्या जा सके किस भाँति आँकी
क्षीर सिंधु अथाह विधि से भी न नापा जाय
चाह है उस सिंधु की हम बूँद ही बन जायँ ॥१॥
एक भी क्षण जन्म में नही आपने विश्राम पाया
रक्त के प्रत्येक कण को हाय पानी सा सुखाया।
आत्म-आहुती दे बताया राष्ट्र-मुक्ति उपाय
एक चिनगारी हमें उस यज्ञ की छू जाय ॥२॥
थे अकेले आप लेकिन बीज का था भाव पाया
बो दिया निज को अमर वट संघ भारत में उगाया।
राष्ट्र ही क्या अखिल जग का आसरा हो जाय
और उसकी हम टहनियाँ-पत्तियाँ बन जायँ॥३॥
आपके दिल की कसक हो वेदना जागृत हमारी
याचि देही याचि डोला मन्त्र रटते हैं पुजारी।
बढ़ रहे हम आपक आशीष स्वग्रिक पाय
जो सिखया आपने प्रत्यक्ष हम कर पायँ ॥४॥
साधना की पूर्ति फिर लवमात्र में हो जाय॥
8
व्यक्ती व्यक्ती मे जगाये
जनमन संस्कार करे यही साधना ।
साधना नित्य साधना
साधना अखंड साधना ॥ध्रु॥
नित्य शाखा जान्हवी पुनीत जलधरा
साधना की पुण्यभूमी शक्ती पीठीका
रजः कणों में प्रकटें दिव्य दीप मालीका
हो तपस्वी के समान संघ साधना ॥१॥
हे प्रभो तू विश्व की अजेय शक्ती दे
जगत हो विनम्र ऐसा शील हमको दे
कष्ट से भरा हुआ ये पंथ काटने
ज्ञान दे की हो सरल हमारी साधना ॥२॥
विजयशाली संघबद्ध कार्यशक्ती दे
तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा हमको दे
हिंदु धर्म रक्षणार्थ वीर व्रत स्फ़ुरे
तव कृपा से हो सरल हमारी साधना ॥३॥
व्यक्ती व्यक्ती मे जगाये
जनमन संस्कार करे यही साधना ।
साधना नित्य साधना
साधना अखंड साधना ॥ध्रु॥
9
मातृभूमि गान से गूँजता रहे गगन
स्नेह नीर से सदा फूलते रहें सुमन।
जन्म सिध्द भावना स्वदेश का विचार हो
रोम -रोम में रमा स्वधर्म संस्कार हो
आरती उतारते प्राण दीप हो मगन
स्नेह नीर...
हार के सुसूत्र में मोतियों की पंक्तियाँ
ग्राम नगर प्रान्त से संग्रहीत शक्तियाँ
लक्ष-लक्ष रुप से राष्ट्र हो विराट तन॥
स्नेह नीर...
ऐक्य शक्ति देश की प्रगति में समर्थ हो
धर्म आसरा लिये मोक्ष काम अर्थ हो
पुण्य भूमि आज फिर ज्ञान का बने सदन
स्नेह नीर...
10
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ।
इसके वास्ते ये तन है मन है और प्राण है ॥
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ॥ध्रु॥
इसके कण-कण पे लिखा राम-कृष्ण नाम है ।
हुतात्माओं के रुधिर से भूमि शस्य-श्याम है ।
धर्म का ये धाम है, सदा इसे प्रणाम है ।
स्वतंत्र है यह धरा, स्वतंत्र आसमान है ॥१॥
इसके आन पे अगर जो बात कोई आ पड़े ।
इसके सामने जो ज़ुल्म के पहाड़ हों खड़े ।
शत्रु सब जहान हो, विरुद्ध आसमान हो ।
मुकाबला करेंगे जब तक जान में ये जान है ॥२॥
इसकी गोद में हज़ारों गंगा-यमुना झूमती ।
इसके पर्वतों की चोटियाँ गगन को चूमती ।
भूमि ये महान है, निराली इसकी शान है ।
इसके जय-पताके पे लिखा विजय-निशान ॥३॥
इसके वास्ते ये तन है, मन है और प्राण है ।
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ॥