Monday, July 20, 2020

बाबरी ढांचा ध्वंस : राम और शरद

बाबरी ढांचा ध्वंस : राम और शरद 

यह नब्बे के दशक की एक हृदय विदारक घटना प्रतीत होती है। मैं जगतसिंहपुर में था। राम की उम्र लगभग 22 वर्ष और शरद 20 वर्ष के। मेरी आयु उस समय यही होगी। पहली बार, कारसेवक अयोध्या में राम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए अयोध्या जा रहे थे। संघ के कार्यकर्ता कारसेवकों को भेजने में सहायता कर रहे थे। हमारे नहीं जाने का कारण यही था की हमें संघ ने अनुमति नहीं दी थी। हम केवल कार्यकर्ताओं को भेजने में सहयोग कर रहे थे।

बात लगभग अक्टूबर के अंतिम सप्ताह की होगी। कारसेवा के लिए देश भर से कारसेवक अयोध्या जा रहे थे। उसी क्रम में कोलकाता के बड़ा बाजार की एक शाखा से दो भाई उस दिन कारसेवक के रूप में अयोध्या जाने के लिए निकले। उस समय दक्षिण बंगाल के प्रांत प्रचारक माननीय सुनील पद गोस्वामी जी ने रेलवे स्टेशन पर आकर  कारसेवकों को विदा किया। जैसे ही उन्होंने बड़ा बाजार के उन दोनों भाइयों को देखा उन्होंने उनके पिता से पूछा- "क्या आप उन दोनों को जाने की अनुमति दे दी है?" उन्होंने कहा कि मैंने बड़े को अनुमति दी है, परन्तु छोटा भी जाना चाहता है और मेरा छोटे भाई का दो बेटे भी आ गये हैं, जाने दो..

उस समय इक्का दुक्का टीवी था। न के बराबर। समाचार प्राप्त करने का एकमात्र माध्यम रेडियो ही था। अन्यथा दूरभाष से घटना की जानकारी लेना पड़ता था। जिस दिन कारसेवकों  पर अंधाधुंध गोली चलाकर हत्या की गई थी उस समय राम कोठारी और शरद कोठारी दोनो भाई सबसे आगे थे। क्योंकि दोनों भाइयों ने गुम्बज पर चढ़कर भगवा पताका फहरा दिया था। आश्चर्य कि बात है  मुख्यमंत्री ने कहा था कि "कोई परिंदा भी जन्मभूमि की परिसर में घुस नहीं पायेगा।" इसलिए उन्होंने जन्मभूमि परिसर में 30, 000 जवान तैनात किए थे। उस में  घुसना आसान नहीं था, फिर भी 5, 000 कारसेवकों ने पुलिस और अर्ध सैन्य बल के आँखों में धूल झोंक कर जय श्रीराम के नारे लगते हुए  जन्मस्थान में प्रवेश कर गए। 

यह समाचार कोलकाता कार्यालय पहुंचा। प्रारंभ में आधा अधूरी सूचना मिली। फिर बाद में मृत होने का सूचना आयी। अब उनके परिवार को खबर देना था। कौन जाएगा? कौन घर जाकर उनके माता पिता को इस खबर को पहुंचाएगा?

कोई भी प्रस्तुत हुए नहीं, क्योंकि यह इतना  सरल नहीं था। अंततोगत्वा सुनील दा स्वयं गये। बड़ा बाजार में विनय रस्तोगी जी के घर में संघ कार्यालय था। सुनील दा कोठारी परिवार को सीधे न जाते हुए उनके घर के पास स्थित कार्यालय गए और वहां हीरालाल कोठारी जी को बुलाये। इसके अतिरिक्त उन्होंने पाँच या सात अनुभवी स्वयंसेवकों को भी बुला लिया। सुनील दा ने बुलाया सुनते ही हीरालाल जी कार्यालय आ गए। अब बातचीत प्रारंभ हुई। विषय लड़कों की बारे में थी। क्या अयोध्या से कोई नई खबर आई? क्या सब अच्छा है? 

हीरालाल जी इस खबर जानने की काफी इक्छुक थे। उन्होंने देखा कि सभी गंभीर थे। किसी के मुख से कोई बात नहीं थी। "सुनील दा भी बोलने की स्थिति में नहीं थे, फिर भी वे बोले "मुलायम सिंह यादव सरकार ने कारसेवकों के उपर गोली चलाई है। मैंने सुना है कि राम और शरद को भी गोली लगी है, दोनों घायल हैं।" इतने सुनते ही हीरालाल जी अपनी स्थान से उठे, सुनीलदा के पास आ गए और सुनील दा का हाथ पकड़ लिये और रो पड़े ..फिर थोड़े देर में अपने को संभालते हुए बोले "सुनील दा! मेरे दोनों बेटा चला गया...."

यह दुःखद प्रसंग आज भी सुनील दा को हिला देता है।
तब हीरालाल जी रोते हुए  कहते हैं-"सुनील दा! मेरे दो बेटों की बलिदान हो गई। क्या राम मंदिर बनेगा?" अन्यथा यह बलिदान व्यर्थ हो जाएगा।

इस कहानी को बताना बहुत लंबा होगा।

माँ को कैसे बताये...उनकी एकमात्र बहन पूर्णिमा दिसंबर के पहले सप्ताह में विवाह  होनी थी। (अब माता पिता का निधन हो गया है। उनके एकमात्र बहन पूर्णिमा जीवित है। राम और शरत के चित्र पकड़ने वाली महिला पूर्णिमा ही है।) उस समय केंद्रापड़ा के एक अन्य स्वयंसेवक (संग्राम केशरी महापात्र) को भी पेट में गोली लगी थी। यह मैंने राष्ट्रदीप से पढ़ा था।

एक दूसरे विषय अपनी बात रखकर मैं इस बात को पूरा करूँगा। ठीक दो वर्ष उपरान्त अयोध्या में दोबारा कारसेवा हुई। विवादास्पद ढांचे को कारसेवकों ने तोड़ दिया। संघ पर प्रतिबंध लगाया गया। प्रतिबंध हटने के पश्चात् उत्तर प्रदेश में प्रांत प्रचारकों की एक बैठक हुई। बैठक के पश्चात् सभी प्रांत प्रचारकों ने राम जन्मभूमि देखने गए। गाइड उन्हें सम्पूर्ण विवरण बता रहे थे। जब गाइड ने कहा कि राम कोठारी और शरद कोठारी को यहां गोली मारी गई है, तो हरिहर दा ने मिट्टी पकड़ ली और बैठ गये, बच्चे जैसे रोने लगे। उन्हे देखते हुए अन्य प्रांत प्रचारकों के आँख भी नम गयी। यह शोक स्वाभाविक था...क्योंकि राम और शरद केवल हीरालाल जी के ही नहीं हैं...संघ के लिए स्वयंसेवक पुत्रों से अधिक अनमोल हैं...।
Babri structure demolition: Ram and Sharad

 This seems to be a heart-rending event of the nineties.  I was in Jagatsinghpur.  Ram is around 22 years old and Sharad is 20 years old.  I will be the same at that time.  For the first time, Karsevak was going to Ayodhya to liberate the Ram Janmabhoomi in Ayodhya.  Union workers were assisting in sending the kar sevaks.  The reason we did not leave was that the Sangh had not given us permission.  We were only cooperating in sending workers.

 It will be about the last week of October.  Karsevaks were going to Ayodhya from across the country for Karseva.  In the same sequence, two brothers from a branch of Kolkata's Bada Bazaar left that day to go to Ayodhya as Karsevaks.  At that time, the Honorable Sunil Pad Goswami, the preacher of the province of South Bengal, came to the railway station and sent the kar sevaks away.  As soon as he saw those two brothers of Bada Bazaar, he asked his father- "Have you allowed them both to go?"  He said that I have allowed the elder, but the younger one also wants to go and my younger brother's two sons have also come, let go ..

 At that time it was aka dukka tv.  Non-existent.  Radio was the only medium to receive news.  Otherwise, one had to get information about the incident by telephone.  Ram Kothari and Sharad Kothari were the two brothers on the day when the kar sevaks were shot and killed indiscriminately.  Because both the brothers had climbed the dome and hoisted the saffron flag.  Surprisingly, the Chief Minister said that "no Parinda will enter the premises of Janmabhoomi".  Therefore, he had deployed 30,000 soldiers in the birthplace complex.  It was not easy to get into it, yet 5,000 kar sevaks entered the birthplace shouting Jai Shri Ram's slogans in the eyes of the police and paramilitary forces.

 This news reached the Kolkata office.  Initially, half the incomplete information was received.  Then later came the information of being dead.  Now his family had to give news.  who will go?  Who will go home and convey this news to their parents?

 No one appeared, because it was not so simple.  Ultimately Sunil Da himself went.  Vinaya Rastogi ji had a Sangh office in Bada Bazaar.  Sunil da Kothari did not go directly to the family and went to the office near his house and called Hiralal Kothari ji there.  In addition, he also called five or seven experienced volunteers.  Sunil Da called Hiralal ji on hearing the call.  Now the conversation started.  The topic was about boys.  Did any new news come from Ayodhya?  Is everything good?

 Hiralal ji was very keen to know this news.  They saw that all were serious.  There was no talk with anyone's face.  "Even Sunil Da was not in a position to speak, yet he said" Mulayam Singh Yadav government has fired on the kar sevaks.  I have heard that Ram and Sharad have also been shot, both are injured. "On hearing this, Hiralal ji got up from his place, came near Sunilada and grabbed Sunil da's hand and wept .. Then in a while  He said, “Sunil da!  Both of my sons are gone .... "

 This sad incident still shakes Sunil Da.
 Then Hiralal ji cries out, "Sunil da! My two sons were sacrificed. Will Ram temple be built?"  Otherwise this sacrifice will be in vain.

 It would be too long to tell this story.

 How to tell mother ... her only sister Purnima was to be married in the first week of December.  (Now the parents have passed away. Their only sister Purnima is alive. Purnima is the only woman to capture pictures of Rama and Sharat.) Another volunteer from Kendrapara (Sangram Keshari Mahapatra) was also shot in the stomach at the time.  I had read this from Rashtradeep.

 I will fulfill this point by putting my point on another topic.  Exactly two years later, there was another car service in Ayodhya.  The controversial structure was broken by the kar sevaks.  The union was banned.  After the ban was lifted, there was a meeting of province campaigners in Uttar Pradesh.  After the meeting, all the province preachers went to see the Ram Janmabhoomi.  The guides were telling them all the details.  When the guide said that Ram Kothari and Sharad Kothari were shot here, Harihar Da grabbed the mud and sat down, crying like a child.  Seeing them, the eyes of other province preachers also became saluted.  This mourning was natural… because Ram and Sharad are not only Hiralal ji… Volunteers for the Sangh are more precious than sons….

 

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