Friday, July 17, 2020

समाचार - समीक्षा 7 जुलाई 2020 News - Review

समाचार - समीक्षा 

7 जुलाई 2020

पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर की शासन व्यवस्था में  जो परिवर्तन किया गया उसके सुखदाई परिणाम सामने आने लगे हैं।  जैसा कि इसी स्तंभ में पहले भी लिखा जा चुका है कि असंवैधानिक धारा 35A  के कारण वहां समाज का एक बड़ा वर्ग नागरिक अधिकारों से वंचित था और वह लंबे समय तक उस राज्य के निवासी होने के बावजूद ना सरकारी सुविधाओं का उपयोग कर सकता था और  सरकारी नौकरी, स्कॉलरशिप, शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश आदि सभी चीजों से वंचित था,  यहां तक की वह स्थानीय निकायों और विधानसभा चुनाव में भी मतदान नहीं कर सकता था।  इनमें पश्चिमी पंजाब से आए हुए विस्थापित, पंजाब से आग्रह पूर्वक लाए गए वाल्मीकि समाज के लोग तथा राज्य की अस्मिता के लिए लड़ने वाले गोरखा सैनिक और उनके वंशज भी थे। वहां की प्रशासनिक व्यवस्था में बदल के साथ ही धारा 35A स्वतः निरस्त हो गयी। अभी दिनांक 27 जून को जम्मू कश्मीर के कमिश्नर के ऑफिस में एक विशेष कार्यक्रम आयोजन कर 1957 से संघर्षरत वाल्मीकि समाज के लोगों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने प्रारंभ हुए तो लोगों की आंखों में खुशी के आंसू उमड़ पड़े। वाल्मीकि समाज से संबंधित राधिका 2018 में राज्य की श्रेष्ठ एथलीट घोषित की गई, पर उस काले कानून के चलते वह सफाई कर्मचारी के अलावा किसी भी नौकरी के लिए अयोग्य ही थी। अन्य भी अनेक उच्च शिक्षा प्राप्त युवक किन्तु परमानेंट  रेजिडेंट्स सर्टिफिकेट ना होने के कारण किसी भी नौकरी के योग्य नहीं माने जाते थे। इस भेदभाव पूर्ण और समाज को त्रस्त करने वाले कानून को निरस्त होने का हमें अति आनंद है। हम केंद्र सरकार और उसके कर्ताधर्ताओं को धन्यवाद देते हैं और समाज से अपेक्षा करते हैं कि वह इस प्रकार के सभी विषयों पर ठीक से जागृत होकर जो आवश्यक है वह करें।

देश के पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने देश को कई गहरे जख्म दिए। वे बीच-बीच में हरे होते जाते हैं और उनसे खून और बदबूदार मवाद रिसने लगता है। वे स्वप्न दृष्टा थे। ऐसे ही लोगों को सनकी कहते हैं। कभी-कभी यह सनक पागलपन बन जाती है। जख्म पककर नासूर बन जाते हैं और शल्य क्रिया द्वारा भी उनका इलाज कठिन हो जाता है। कश्मीर का मामला ऐसा ही है। अभी उसके विस्तार में जाना ठीक नहीं है, पर 5 अगस्त 2019 को धारा 370, 35A आदि निरस्त कर जो शल्य क्रिया की गई, दो अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए, उससे समस्या का कुछ तो हल हुआ पर वह पूरी तरह काबू में आ गई, ऐसा कहना कठिन होगा। अभी भी वहां बीच-बीच में आतंकवादी घटनाएं होती रहती हैं। हम वहां सुरक्षा बलों की संख्या कम करने की भी स्थिति में नहीं आ पाए। बहुत बड़ा भूभाग चीन और पाकिस्तान के कब्जे में है। वर्तमान में लद्दाख के कुछ क्षेत्रों में चीनी अतिक्रमण और आक्रमण हो रहा है, वह भी नेहरू जी की अदूरदृष्टि का ही परिणाम है। भारत और चीन के बीच तिब्बत  स्वतंत्र और सार्वभौम राज्य था। वह भारत के अति निकट था। यहां तक की 29 अप्रैल 1954 को बीजिंग में भारत तिब्बत संबंधों को लेकर जो समझौता हुआ उसमें कुल 6 अनुच्छेदों में से 5 में कहा गया है कि भारत तिब्बत संबंध लगभग पूर्ववत चलते रहेंगे।

 नेहरू जी कम्युनिज्म से बहुत प्रभावित थे और अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि और उदारता को लेकर आत्ममुग्ध रहते थे। इसी के चलते चीन द्वारा चालाकी से धीरे-धीरे तिब्बत को कबजाने की प्रक्रिया वह  चुपचाप देखते रहे। 1952 - 53 में चीन में भारतीय राजदूत ने कम्युनिस्ट चीन की मंशा के  विषय में चेतावनी दे दी थी। मुझे स्मरण आता है कि संघ में एक गीत है, "है देह विश्व,  आत्मा है भारत माता"। पहले इस गीत में चीन बंधुवर शब्द आता था। श्री गुरु जी के बौद्धिक के पहले एक स्वयंसेवक जब वह गीत गा रहा था तो गुरु जी ने उसे बीच में ही रुकवा दिया और कहा जो चीन हमारा बंधु था वह अब अस्तित्व में नहीं है। यह चीन तो कभी हमारे शत्रु रूप में खड़ा होगा।  तिब्बत पर चीन के आधिपत्य को मान्यता देने वाले पहले देशों में भारत था। इसी प्रकार चीन को संयुक्त राष्ट्र  महासभा की सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाने में भी भारत की भूमिका अग्रगण्य थी। 

गांव में एक कहावत है जब जागो तभी सवेरा। अब भी समय है। भारत में दलाई लामा की अगुवाई में तिब्बत की निर्वासित सरकार है। तिब्बत की जनता चीन के चंगुल से निकलने के लिए व्यग्र है। वह किसी भी बलिदान से हिचकेगी नहीं। अंतरराष्ट्रीय बिरादरीं में हमें तिब्बत का पक्ष जोर शोर से रखना होगा। तिब्बत जैसे क्षेत्रों की सहायता किस प्रकार कूटनीति स्तर पर और अन्य अनेक प्रकार से की जा सकती है, यह हमारे राजनेता और डिप्लोमेट अच्छी तरह जानते हैं। 

भारत में भी व्यापक जन जागरण करना होगा ताकि राजीव गांधी फाऊंडेशन जैसे संदिग्ध निष्ठा के लोग और संस्थाएं अलग-थलग पड़ जाए। 

अपेक्षा है कि इस विषय के सभी पक्षों को लेकर विस्तृत चर्चा व बातचीत हो। 


News - Review

 7 July 2020

 On August 5, 2019, the changes made in the governance of Jammu and Kashmir have started to bring good results.  As has been written earlier in the same column that a large section of the society was deprived of civil rights due to unconstitutional section 35A and could not use government facilities and government despite being a resident of that state for a long time.  Jobs, scholarships, admission in educational institutions, etc. were deprived of everything, even it could not vote in local bodies and assembly elections.  Among them were the displaced from western Punjab, the people of Valmiki society who were brought in from Punjab, and the Gorkha soldiers and their descendants who fought for the identity of the state.  With the change in the administrative system, Section 35A was automatically repealed.  On 27th June, by organizing a special program in the office of the Commissioner of Jammu and Kashmir, from 1957, when people started giving domicile certificates to the people of the struggling Valmiki society, tears of joy arose in the eyes of the people.  Radhika, who belongs to Valmiki Samaj, was declared the best athlete in the state in 2018, but due to that black law she was ineligible for any job other than as a sweeper.  Many other highly educated youths, but were not eligible for any job due to lack of permanent resident certificate.  We have great pleasure in repealing this discriminatory and law-destroying society.  We thank the Central Government and its personnel and expect the society to do what is necessary by awakening properly on all such topics.

 The country's first Prime Minister, Jawaharlal Nehru, gave many deep wounds to the country.  They become green from time to time, and blood and smelly pus begins to seep from them.  He was a dreamer.  Such people are called eccentric.  Sometimes this craze becomes madness.  Wounds become canker sores and they are difficult to treat even by surgery.  Such is the case of Kashmir.  It is not right to go into its detail right now, but on 5 August 2019, the operation done by repealing Section 370, 35A etc., two separate union territories were created, it solved some of the problem but it was completely under control.  , It would be difficult to say so.  Still there are frequent terrorist incidents.  We have not been able to reduce the number of security forces there.  A large area is under the occupation of China and Pakistan.  At present, Chinese encroachment and invasion is taking place in some areas of Ladakh, that too is the result of Nehru's short-sightedness.  Tibet was an independent and sovereign state between India and China.  He was very close to India.  Even in the agreement reached in Beijing on 29 April 1954 on Indo-Tibetan relations, 5 out of a total of 6 paragraphs have been stated that Indo-Tibetan relations will continue to go almost the same way.

  Nehru was very much influenced by communism and was self-conscious about his international image and generosity.  Because of this, he kept watching silently the process of gradually ceding Tibet to China.  In 1952 - 53, the Indian Ambassador to China warned about the intention of Communist China.  I remember that there is a song in the Sangh, "Hai Deh Vishwa, Atma Hai Bharat Mata".  Earlier this song used to contain the word China Bandhuvar.  Before Shri Guru Ji's intellectual, a volunteer was singing the song while Guruji stopped him in the middle and said that China which was our brother is no longer in existence.  This China will sometimes stand as our enemy.  India was among the first countries to recognize China's suzerainty over Tibet.  Likewise, India's role in making China a permanent member of the Security Council of the United Nations General Assembly was pioneering.

 There is a saying in the village when wake up then morning.  There is still time  India has an exile government in Tibet headed by the Dalai Lama.  The people of Tibet are anxious to get out of the clutches of China.  She will not hesitate from any sacrifice.  In the international fraternity, we have to loudly favor Tibet.  Our politicians and diplomats are well aware of how diplomatic areas like Tibet can be helped and in many other ways.

 Massive public awareness has to be done in India too so that people and institutions of dubious loyalty like the Rajiv Gandhi Foundation are isolated.

 It is expected that there should be a detailed discussion and discussion on all aspects of this subject.

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