*पाँच अगस्त बस पांच नहीं,*
*यह पंचामृत कहलायेगा !*
*एक रामायण फिरसे अब,*
*राम मंदिर का लिखा जाएगा!!*
*जितना समझ रहे हो उतना,*
*भूमिपूजन आसान न था!*
*इसके खातिर जाने कितने,*
*माताओं का दीप बुझा !*
*गुम्बज पर चढ़कर कोठारी,*
*बन्धुओं ने गोली खाई थी!*
*नाम सैकड़ो गुमनाम हैं,*
*जिन्होंने जान गवाई थी!!*
*इसी पांच अगस्त के खातिर,*
*पांचसौ वर्षो तक संघर्ष किया!*
*कई पीढ़ियाँ खपि तो खपि,*
*आगे भी जीवन उत्सर्ग किया!!*
*राम हमारे ही लिए नहीं बस,*
*उतने ही राम तुम्हारे हैं!*
*जो राम न समझ सके वो,*
*सचमुच किस्मत के मारे हैं!!*
*एक गुजारिस हैं सबसे बस,*
*दीपक एक जला देना!*
*पाँच अगस्त के भूमिपूजन में,*
*अपना प्रकाश पहुँचा देना!!*
*नहीं जरूरत आने की कुछ,*
*इतनी ही हाजरी काफी है!*
*राम नाम का दीप जला तो,*
*कुछ चूक भी हो तो माफी है!!*
*कविता नहीं यह सीधे सीधे,*
*रामभक्तो को निमन्त्रण है!*
*असल सनातनी कहलाने का,*
*समझो कविता आमंत्रण है!!*
*जय श्रीराम, जय जय श्रीराम*
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