Monday, June 29, 2020

1/7/2020 Devshayani Ekadashi: Mythological Fast Story Padma (Ashadh Shukla) Ekadashi fast story Padma Ekadashi destroys all sinsदेवशयनी एकादशी : पौराणिक व्रत कथापद्मा (आषाढ़ शुक्ल) एकादशी व्रत कथासमस्त पापों का नाश करती है पद्मा एकादशी

देवशयनी एकादशी : पौराणिक व्रत कथा
https://youtu.be/d3wsBrK6Kes
पद्मा (आषाढ़ शुक्ल) एकादशी व्रत कथा
समस्त पापों का नाश करती है पद्मा एकादशी 


धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूं। एक समय नारजी ने ब्रह्माजी से यही प्रश्न किया था।

 

तब ब्रह्माजी ने उत्तर दिया कि हे नारद तुमने कलियुगी जीवों के उद्धार के लिए बहुत उत्तम प्रश्न किया है। क्योंकि देवशयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है। इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वे नरकगामी होते हैं।
 



 

इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। इस एकादशी का नाम पद्मा है। अब मैं तुमसे एक पौराणिक कथा कहता हूं। तुम मन लगाकर सुनो। सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी सारी प्रजा धनधान्य से भरपूर और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था।

 

एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुखी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञादि भी बंद हो गए। एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजा! सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है, क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है।

 

वर्षा के अभाव से अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है। इसलिए हे राजन! कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो। राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दुखी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दुखों को समझता हूं। ऐसा कहकर राजा कुछ सेना साथ लेकर वन की तरफ चल दिया। वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वहां राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया।

 

 






 



मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशलक्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवन! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है। इससे प्रजा अत्यंत दुखी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा है। जब मैं धर्मानुसार राज्य करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका।

 

अब मैं आपके पास इसी संदेह को निवृत्त कराने के लिए आया हूं। कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए। इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इसमें धर्म को चारों चरण सम्मिलित हैं अर्थात इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है। ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं, परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है।

 

इसलिए यदि आप प्रजा का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो। इस पर राजा कहने लगा कि महाराज मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो।

 

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो।

 

मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा। अत: इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है। इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। 



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Devshayani Ekadashi: Mythological Fast Story





 Padma (Ashadh Shukla) Ekadashi fast story



 Padma Ekadashi destroys all sins






 Dharmaraja Yudhishthira said- O Keshav!  What is the name of Ashadh Shukla Ekadashi?  What is the method of observing this fast and which deity is worshiped?  Sri Krishna said that O Yudhishthira!  The story that Brahma Ji told Naradji is what I tell you.  At one time Naraji asked this question to Brahma.



 Then Brahmaji replied that, O Narada, you have asked a very good question for the salvation of the living beings.  Because the fast of Devshayani Ekadashi is the best among all the fasts.  All the sins are destroyed by this fast and those who do not observe this fast are hellish.






 Lord Vishnu is pleased by observing this fast.  The name of this Ekadashi is Padma.  Now let me tell you a legend.  Listen diligently.  In the Suryavansha, there was a Chakravarti king named Mandhata, who was truthful and great majesty.  He followed his subjects like a son.  All his subjects were rich and happy.  There was never a famine in his kingdom.



 At one time there was no rain and famine in the king's kingdom for three years.  The people became very sad due to lack of food grains.  Yagnadis were also stopped in the state due to non-availability of food.  One day the people went to the king and said, "O king!"  The whole people are calling out, because the rain is the cause of all the world's creation.



 There is a famine due to lack of rain and people are dying due to famine.  That's why, Rajan!  Suggest some such solution that can alleviate the suffering of the subjects.  King Mandhata said that you are right, food is produced by the rain and you have become very sad due to the lack of rain.  I understand your sufferings.  Having said this, the king took some army and went towards the forest.  He visited the ashram of many sages and finally reached the ashram of Angira Rishi, son of Brahma.  The king got down from his horse and bowed to the sage Angira.








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 The sage blessed the king and asked him the reason for coming to the ashram after Kushalakshme.  The king folded his hands and graciously said, "O God!  There has been a famine in my state even after practicing religion in all respects.  The people are very unhappy with this.  It is said in the scriptures that the subjects suffer because of the king's sins.  When I rule in righteousness, how did there be a famine in my state?  I could not find out the reason for this yet.



 Now I have come to you to retire this doubt.  Please clear my doubts.  Also, suggest a solution to remove the suffering of the subjects.  Hearing this, the sage started saying that, O Rajan!  This golden age is the best in all ages.  This includes all four stages of religion, that is, the most advanced religion in this era.  People worship Brahma and only Brahmins have the right to read Vedas.  Only Brahmins can have the right to do penance, but a Shudra is doing penance in your state.  Due to this defect, there is no rain in your state.



 Therefore, if you want the good of the people, then kill that Shudra.  On this, the king said, "How can I kill that Shudra who is doing penance?"  Give me some other way to get rid of this defect.  Then the sage started saying that, O Rajan!  If you want to know other ways, then listen.



 Legitiously observe the Ekadashi named Padma of the bright half of Ashadha month.  Due to the effect of the fast, there will be rain in your state and people will get happiness because this Ekadashi fast is going to give all the siddhis and destroy all the disturbances.  Fast this Ekadashi with you subjects, servants and ministers.



 The king returned to his city after hearing this word of Muni and he lawfully observed Padma Ekadashi.  Due to the effect of that fast, there was rain and the people got happiness.  Therefore, all humans should observe fast on Ekadashi of this month.  This fast is supposed to give liberation in this world and enjoyment.  By reading and listening to this story, all the sins of human beings are destroyed.

Sunday, June 28, 2020

28/6/2020 प्रकाण्ड विद्वान अष्टावक्र Reality Scholar Ashtavakra

***** प्रकाण्ड विद्वान  #अष्टावक्र *****

#अष्टावक्र  इतने प्रकाण्ड विद्वान थे  कि  माँ के गर्भ से ही अपने पिताजी  "कहोड़" को अशुद्ध वेद पाठ करने के लिये टोंक दिए जिससे क्रुद्ध होकर पिताजी ने आठ जगह से टेड़ें हो जाने का श्राप दे दिया था ।

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#इस_रोचक__पौराणिक_कथा_को__जरूर__पढ़ें ......
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अष्टावक्र अद्वैत वेदान्त के महत्वपूर्ण ग्रन्थ अष्टावक्र गीता के ऋषि हैं। अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। 

'अष्टावक्र' का अर्थ 'आठ जगह से टेढा' होता है। 
कहते हैं कि अष्टावक्र का शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था।

उद्दालक ऋषि के पुत्र का नाम श्‍वेतकेतु था। उद्दालक ऋषि के एक शिष्य का नाम कहोड़ था। कहोड़ को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान देने के पश्‍चात् उद्दालक ऋषि ने उसके साथ अपनी रूपवती एवं गुणवती कन्या सुजाता का विवाह कर दिया। कुछ दिनों के बाद सुजाता गर्भवती हो गई। एक दिन कहोड़ वेदपाठ कर रहे थे तो गर्भ के भीतर से बालक ने कहा कि पिताजी! आप वेद का गलत पाठ कर रहे हैं। यह सुनते ही कहोड़ क्रोधित होकर बोले कि तू गर्भ से ही मेरा अपमान कर रहा है इसलिये तू आठ स्थानों से वक्र (टेढ़ा) हो जायेगा।

हठात् एक दिन कहोड़ राजा जनक के दरबार में जा पहुँचे। वहाँ बंदी से शास्त्रार्थ में उनकी हार हो गई। हार हो जाने के फलस्वरूप उन्हें जल में डुबा दिया गया। इस घटना के बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ। पिता के न होने के कारण वह अपने नाना उद्दालक को अपना पिता और अपने मामा श्‍वेतकेतु को अपना भाई समझता था। एक दिन जब वह उद्दालक की गोद में बैठा था तो श्‍वेतकेतु ने उसे अपने पिता की गोद से खींचते हुये कहा कि हट जा तू यहाँ से, यह तेरे पिता का गोद नहीं है। अष्टावक्र को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने तत्काल अपनी माता के पास आकर अपने पिता के विषय में पूछताछ की। माता ने अष्टावक्र को सारी बातें सच-सच बता दीं।

अपनी माता की बातें सुनने के पश्‍चात् अष्टावक्र अपने मामा श्‍वेतकेतु के साथ बंदी से शास्त्रार्थ करने के लिये राजा जनक के यज्ञशाला में पहुँचे। वहाँ द्वारपालों ने उन्हें रोकते हुये कहा कि यज्ञशाला में बच्चों को जाने की आज्ञा नहीं है। इस पर अष्टावक्र बोले कि अरे द्वारपाल! केवल बाल श्वेत हो जाने या अवस्था अधिक हो जाने से कोई बड़ा व्यक्ति नहीं बन जाता। जिसे वेदों का ज्ञान हो और जो बुद्धि में तेज हो वही वास्तव में बड़ा होता है। इतना कहकर वे राजा जनक की सभा में जा पहुँचे और बंदी को शास्त्रार्थ के लिये ललकारा।

राजा जनक ने अष्टावक्र की परीक्षा लेने के लिये पूछा कि वह पुरुष कौन है जो तीस अवयव, बारह अंश, चौबीस पर्व और तीन सौ साठ अक्षरों वाली वस्तु का ज्ञानी है? राजा जनक के प्रश्‍न को सुनते ही अष्टावक्र बोले कि राजन्! चौबीस पक्षों वाला, छः ऋतुओं वाला, बारह महीनों वाला तथा तीन सौ साठ दिनों वाला संवत्सर आपकी रक्षा करे। अष्टावक्र का सही उत्तर सुनकर राजा जनक ने फिर प्रश्‍न किया कि वह कौन है जो सुप्तावस्था में भी अपनी आँख बन्द नहीं रखता? जन्म लेने के उपरान्त भी चलने में कौन असमर्थ रहता है? कौन हृदय विहीन है? और शीघ्रता से बढ़ने वाला कौन है? अष्टावक्र ने उत्तर दिया कि हे जनक! सुप्तावस्था में मछली अपनी आँखें बन्द नहीं रखती। जन्म लेने के उपरान्त भी अंडा चल नहीं सकता। पत्थर हृदयहीन होता है और वेग से बढ़ने वाली नदी होती है।

अष्टावक्र के उत्तरों को सुकर राजा जनक प्रसन्न हो गये और उन्हें बंदी के साथ शास्त्रार्थ की अनुमति प्रदान कर दी। बंदी ने अष्टावक्र से कहा कि एक सूर्य सारे संसार को प्रकाशित करता है, देवराज इन्द्र एक ही वीर हैं तथा यमराज भी एक है। अष्टावक्र बोले कि इन्द्र और अग्निदेव दो देवता हैं। नारद  तथा पर्वत दो देवर्षि हैं, अश्‍वनीकुमार भी दो ही हैं। रथ के दो पहिये होते हैं और पति-पत्नी दो सहचर होते हैं। बंदी ने कहा कि संसार तीन प्रकार से जन्म धारण करता है। कर्मों का प्रतिपादन तीन वेद करते हैं। तीनों काल में यज्ञ होता है तथा तीन लोक और तीन ज्योतियाँ हैं। अष्टावक्र बोले कि आश्रम  चार हैं, वर्ण चार हैं, दिशायें चार हैं और ओंकार, आकार, उकार तथा मकार ये वाणी के प्रकार भी चार हैं। बंदी ने कहा कि यज्ञ पाँच प्रकार के होते हैं, यज्ञ की अग्नि पाँच हैं, ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच हैं, पंच दिशाओं की अप्सरायें पाँच हैं, पवित्र नदियाँ पाँच हैं तथा पंक्‍ति छंद में पाँच पद होते हैं। अष्टावक्र बोले कि दक्षिणा में छः गौएँ देना उत्तम है, ऋतुएँ छः होती हैं, मन सहित इन्द्रयाँ छः हैं, कृतिकाएँ छः होती हैं और साधस्क भी छः ही होते हैं। बंदी ने कहा कि पालतू पशु सात उत्तम होते हैं और वन्य पशु भी सात ही, सात उत्तम छंद हैं, सप्तर्षि  सात हैं और वीणा में तार भी सात ही होते हैं। अष्टावक्र बोले कि आठ वसु हैं तथा यज्ञ के स्तम्भक कोण भी आठ होते हैं। बंदी ने कहा किपितृ यज्ञ में समिधा नौ छोड़ी जाती है, प्रकृति नौ प्रकार की होती है तथा वृहती छंद में अक्षर भी नौ ही होते हैं। अष्टावक्र बोले कि दिशाएँ दस हैं, तत्वज्ञ दस होते हैं, बच्चा दस माह में होता है और दहाई में भी दस ही होता है।  बंदी ने कहा कि ग्यारह रुद्र हैं, यज्ञ में ग्यारह स्तम्भ होते हैं और पशुओं की ग्यारह इन्द्रियाँ होती हैं। अष्टावक्र बोले कि बारह आदित्य होते हैं बारह दिन का प्रकृति यज्ञ होता है, जगती छंद में बारह अक्षर होते हैं और वर्ष भी बारह मास का ही होता है। बंदी ने कहा कि त्रयोदशी उत्तम होती है, पृथ्वी पर तेरह द्वीप हैं।...... इतना कहते कहते बंदी श्‍लोक की अगली पंक्ति भूल गये और चुप हो गये। इस पर अष्टावक्र ने श्‍लोक को पूरा करते हुये कहा कि वेदों में तेरह अक्षर वाले छंद अति छंद कहलाते हैं और अग्नि, वायु तथा सूर्य तीनों तेरह दिन वाले यज्ञ में व्याप्त होते हैं।

इस प्रकार शास्त्रार्थ में बंदी की हार हो जाने पर अष्टावक्र ने कहा कि राजन्! यह हार गया है, अतएव इसे भी जल में डुबो दिया जाये। तब बंदी बोला कि हे महाराज! मैं वरुण का पुत्र हूँ और मैंने सारे हारे हुये ब्राह्मणों को अपने पिता के पास भेज दिया है। मैं अभी उन सबको आपके समक्ष उपस्थित करता हूँ। बंदी के इतना कहते ही बंदी से शास्त्रार्थ में हार जाने के पश्चात जल में डुबोये गये सार ब्राह्मण जनक की सभा में आ गये जिनमें अष्टावक्र के पिता कहोड़ भी थे।

अष्टावक्र ने अपने पिता के चरणस्पर्श किये। तब कहोड़ ने प्रसन्न होकर कहा कि पुत्र! तुम जाकर समंगा नदी में स्नान करो, उसके प्रभाव से तुम मेरे शाप से मुक्त हो जाओगे। तब अष्टावक्र ने इस स्थान में आकर समंगा नदी में स्नान किया और उसके सारे वक्र अंग सीधे हो गये।
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***** Reality Scholar # Ashtavakra *****

 #Ashtavakra was such a learned scholar that from his mother's womb he gave his father "Kahod" to recite impure Vedas, which caused the father to become angry and curse him from eight places.

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 # Read this_reader__political_fiction_co__Roor__ ……
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 Ashtavakra is the sage of Ashtavakra Gita, the important text of Advaita Vedanta.  Ashtavakra Gita is an important text of Advaita Vedanta.

 Ashtavakra means 'twisted from eight places'.
 It is said that Ashtavakra's body was crooked from eight places.

 The name of the son of Uddālaka sage was तvetaketu.  Uddālaka was the name of a disciple of the sage.  After imparting knowledge of the entire Vedas to Kahod, Uddālaka sage married Sujātā, his beautiful and quality girl with him.  Sujata became pregnant after a few days.  One day when he was doing Vedas, the child said from inside the womb that father!  You are misreading the Veda.  On hearing this, he got angry and said that you are insulting me from the womb, so you will be curved from eight places.

 After a day Kahod reached the court of King Janak.  He was defeated by the captive in the debate.  As a result of defeat, they were immersed in water.  Ashtavakra was born after this incident.  Due to the absence of a father, he considered his grandfather Uddālaka as his father and his maternal uncle तvetaketu as his brother.  One day when he was sitting on Uddālaka's lap, Shvetketu pulled him from his father's lap and said, "Get away from here, this is not your father's lap."  Ashtavakra did not like this and immediately came to his mother and inquired about her father.  Mother told the truth to Ashtavakra.

 After listening to his mother's words, Ashtavakra, along with his maternal uncle Shvetketu, arrived at the yagyashala of King Janaka to debate the prisoner.  The gatekeepers stopped them there and said that children are not allowed to go to the Yagyashala.  On this Ashtavakra said that hey gatekeeper!  A person does not become a big person only because the hair turns white or gets more.  The one who has knowledge of the Vedas and who is sharp in intellect, is really big.  Having said this, he went to the meeting of King Janak and challenged the captive for debate.

 In order to test Ashtavakra, King Janaka asked, who is the man who is knowledgeable of thirty elements, twelve parts, twenty-four festivals and three hundred and sixty characters?  On hearing King Janak's question, Ashtavakra said that Rajan!  Twenty-four sides, six seasons, twelve months and three hundred and sixty days of protection will protect you.  Hearing the correct answer of Ashtavakra, King Janak again asked that who is he who does not keep his eyes closed even in dormancy?  Who is unable to walk even after taking birth?  Who is heartless?  And who is going to grow fast?  Ashtavakra replied, O father!  Fish do not keep their eyes closed during sleep.  The egg cannot move even after birth.  The stone is heartless and is a fast growing river.

 After listening to Ashtavakra's answer, King Janaka was pleased and gave him permission to debate with the captive.  The captive told Ashtavakra that one sun illuminates the whole world, Devraj Indra is the same hero and Yamraj is also one.  Ashtavakra said that Indra and Agnidev are two gods.  Narada and Parvat are two devarshi, Ashwanyakumar is also two.  The chariot has two wheels and the husband and wife have two companions.  Bandi said that the world bears birth in three ways.  The Karma renders three Vedas.  Yajna takes place in all three periods and there are three worlds and three lights.  Ashtavakra said that the ashram is four, the varna is four, the directions are four and the types of speech are also four, onkar, shape, ukar and macar.  Bandi said that there are five types of Yajna, five types of fire of Yajna, five are Gyanendrias, five are Apsaras of directions, five are sacred rivers and five verses in line verses.  Ashtavakra said that it is best to give six cows in Dakshina, the seasons are six, the senses with the mind are six, the creations are six and the seekers are also six.  The prisoner said that domestic animals are seven best and wild animals are also seven, seven are good verses, seven are seven and the strings are only seven in Veena.  Ashtavakra said that there are eight Vasus and the pillar angles of the Yajna are also eight.  Captive saidIn Pitru Yajna, samidha is omitted nine, nature is of nine types and in the verses verses there are only nine.  Ashtavakra said that the directions are ten, the metaphysics is ten, the child is in ten months and ten is also ten.  The captive said that there are eleven Rudras, there are eleven pillars in the Yajna and eleven senses of animals.  Ashtavakra said that there are twelve Adityas, there is a twelve-day Prakriti Yajna, Jagati verses have twelve letters and the year is also of twelve months.  The captive said that Trayodashi is good, there are thirteen islands on earth.…. Saying this, the captives forgot the front line of the verse and fell silent.  On this, Ashtavakra completed the verse, saying that the thirteen-letter verses in the Vedas are called extreme verses and that fire, air and sun permeate all three thirteen-day yagyas.

 In this way, Ashtavakra said that the prisoner was defeated in the debate.  It is lost, so it should also be immersed in water.  Then the captives said that, O Maharaj!  I am the son of Varuna and I have sent all the lost Brahmins to my father.  I present them all to you right now.  As soon as the captive had said so, after losing the confinement to the prisoner, the sarvats immersed in water came to the meeting of the Brahmin Janak, which included Ashtavakra's father Kahod.

 Ashtavakra touched the feet of her father.  Then Kahod was pleased and said that son!  You go and bathe in the Samanga River, because of that you will be freed from my curse.  Then Ashtavakra came to this place and bathed in the Samanga River and all its curved limbs became straight.

Friday, June 26, 2020

26/6/2020 चीन की ऐशी की तैसीं

*राफेल✈️ का मामला असली में है क्या ? लास्ट लाईन तक जरूर पढ़ें, तभी समझ में आ पायेगा ...!*

*बात शुरू होती है वाजपेयी जी की सरकार से ! तब अटल जी के विशेष अनुरोध पर, भारतीय वैज्ञानिकों ने ब्रम्होस 🚀मिसाइल तैयार की थी !*

*ब्रम्होस 🚀की काट आज तक दुनिया का कोई देश तैयार नहीं कर सका है !*

*विश्व के किसी देश के पास अब तक ऐसी कोई टेक्नोलॉजी विकसित नहीं हुई जो ब्रम्होस को अपने निशाने पर पहुँचने से पहले रडार पर ले सके !*

*अपने आप में अद्भुत क्षमताओं को लिये ब्रम्होस ऐसी परमाणु मिसाइल है जो ८,००० किलोमीटर के लक्ष्य को मात्र १४० सेकेंड में भेद सकती है।*

*और चीन के लिये ब्रम्होस की यह लक्ष्य भेदन क्षमता ही सिरदर्द बनी हुई है।*

*न चीन आज तक ब्रम्होस की काट बना सका है, न ऐसा रडार सिस्टम जो ब्रम्होस को पकड़ सके !*

*अटल जी की सरकार गिरने के बाद, सोनिया के कहने पर, कांग्रेस सरकार ने ब्रम्होस को तहखाने में रखवा कर आगे का प्रोजेक्ट बन्द करवा दिया !*

*जिसमें ब्रम्होस को लेकर उड़ने वाले फाइटर जेट विमान तैयार करने की योजना थी जो अधूरी रह गयी।*
*ब्रम्होस का विकास रोकने के लिए चीन ने ना जाने कितने करोड़ रुपये-पैसे सोनिया को दिए होंगे !*

*दस वर्षों बाद, जब मोदी सरकार आई, तब तहखाने में धूल-गर्द में पड़ी ब्रम्होस को सँभाला गया ! वह भी तब, जब मोदी खुद भारतीय सेना से सीधा मिले, तो सेना ने तब व्यथा बताई !*

*वर्तमान में ब्रम्होस को लेकर उड़ सके ऐसा सिर्फ एक ही विमान है और वह है राफेल !*

*जी हाँ दुनिया भर में सिर्फ राफेल ही वो खूबियाँ लिये हुए है, जो ब्रम्होस को सफलता पूर्वक निशाने के लिये छोड़ कर वापस लैंड करके मात्र ४ मिनट में फिर अगली ब्रह्मोस को लेकर दूसरे ब्लास्ट को तैयार हो जाये !*

*मोदी ने फ्रांस से डील करके, राफेल को भारतीय सेना तक पहुँचाने का काम कर दिया, और यहीं से असली मरोड़ चीन और उसके पिट्ठू वामपंथियों को हुई।*

*इसमें देशद्रोही पीछे कैसे रहते! जो विदेशी टुकड़ों पर पलने वाले गद्दार अपने आका चीन के नमक का हक अदा करने मैदान में उतर आये !*

*खैर .. शायद भारतीय सेना और मोदी दोनों इस तरह की आशंका को भाँप गये ! तो राफेल के भारत पहुँचते ही उसका ब्लैक बॉक्स सहित पूरा सिस्टम निकाला गया।*

*राफेल के कोड चेंज कर के उस में भारतीय कम्प्यूटर सिस्टम डाला गया जो राफेल को पूरी तरह बदलने के साथ उसकी गोपनीयता बनाये रखने में सक्षम था।*

*लेकिन बात यहीं नहीं रुकी ! राफेल को सेना को सुपुर्द करने के बाद सरकार ने सेना को उसे अपने हिसाब से कम्प्यूटर ब्लैक बॉक्स और जो तकनीक सेना की है, उसे अपने हिसाब से चेंज करने की छूट दे दी।*

*जिससे सेना ने छूट मिलते ही मात्र ४८ घण्टों में राफेल को बदलकर रख दिया ! जिससे चीन, जो राफेल के कोड और सिस्टम को हैक करने की फिराक में था, वह हाथ मलते रह गया !*

*फिर चीन द्वारा अपने पाले वामपंथी कुत्तों को राफेल की जानकारी लीक करके उस तक पहुँचाने काम सौंपा गया।*

*भारत भर की मीडिया में भरे वामपंथी दलालों ने राफेल सौदे को घोटाले की शक्ल देने की नाकाम कोशिश की, ताकि सरकार या सेना, विवश होकर, सफाई देने के चक्कर मे इस डील को सार्वजनिक करे।*

*जिससे चीन अपने मतलब की जानकारी जुटा सके पर सरकार और सेना की सजगता के चलते दलाल मीडिया का मुँह काला होकर रह गया !*

*तब फिर अपने राहुल गांधी मैदान में उतरे ! चीनी दूतावास में गुपचूप राहुल गांधी ने मीटिंग की ! उसके बाद राहुल गांधी ने चीन की यात्रा की और आते ही राफेल ✈️ सौदे पर सवाल उठाकर राफेल ✈️ की जानकारी सार्वजनिक करने की माँग जोरशोर से उठने लगी।*

*पूरी मीडिया, सारी कोंग्रेस की दिलचस्पी सिर्फ, और सिर्फ, राफेल की जानकारी सार्वजनिक कराने में है, ताकि चीन ब्रम्होस का तोड़ बना सके ! पर ये अबतक सम्भव नहीं हो पाया, जिसका श्रेय सिर्फ कर्तव्यनिष्ठ भारतीय सेना और मोदी जी को जाता है।*

*चीन ब्रम्होस की जानकारी जुटाने के चक्कर में, सीमा पर तनाव पैदा करके युद्ध के हालात बनाकर देख चुका है ! पर भारतीय सेना की चीन सीमा पर ब्रम्होस की तैनाती देखकर अपने पाँव वापस खींचने को मजबूर हुआ था !*

*डोकलाम विवाद चीन ने इसीलिये पैदा किया था कि वह ब्रम्होस 🚀 और राफेल✈️ की तैयारी देख सके ...।*

*इधर कुछ भटके हुए लोग राहुल गांधी को प्रधान मंत्री पद के योग्य समझ रहे हैं, जो खुद भारत की गोपनीयता और सुरक्षा को शत्रु देश के हाथों उचित कीमत पर बेचने को तैयार बैठा है !*

*नेहरू ने भी लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन चीन को बेची थी! और जनता समझती है भारत युद्ध में हार गया !*

*आज ये राफेल ✈️ और ब्रम्होस 🚀 ही भारत के पास वो अस्त्र हैं जिसके आगे चीन बेबस है !*

*मेरा बस चले, तो मैं इस पोस्ट को ४० सेकंड में १०० लोगों तक पहुँचा दूँ...।*

*किंतु आप सभी शेयर करके, अन्य मित्रों तक पहुचायें।*

  *🙏🏻एक सच्चा राष्ट्रभक्त!🙏🏻*


*राफेल✈️ का मामला असली में है क्या ? लास्ट लाईन तक जरूर पढ़ें, तभी समझ में आ पायेगा ...!*

*बात शुरू होती है वाजपेयी जी की सरकार से ! तब अटल जी के विशेष अनुरोध पर, भारतीय वैज्ञानिकों ने ब्रम्होस 🚀मिसाइल तैयार की थी !*

*ब्रम्होस 🚀की काट आज तक दुनिया का कोई देश तैयार नहीं कर सका है !*

*विश्व के किसी देश के पास अब तक ऐसी कोई टेक्नोलॉजी विकसित नहीं हुई जो ब्रम्होस को अपने निशाने पर पहुँचने से पहले रडार पर ले सके !*

*अपने आप में अद्भुत क्षमताओं को लिये ब्रम्होस ऐसी परमाणु मिसाइल है जो ८,००० किलोमीटर के लक्ष्य को मात्र १४० सेकेंड में भेद सकती है।*

*और चीन के लिये ब्रम्होस की यह लक्ष्य भेदन क्षमता ही सिरदर्द बनी हुई है।*

*न चीन आज तक ब्रम्होस की काट बना सका है, न ऐसा रडार सिस्टम जो ब्रम्होस को पकड़ सके !*

*अटल जी की सरकार गिरने के बाद, सोनिया के कहने पर, कांग्रेस सरकार ने ब्रम्होस को तहखाने में रखवा कर आगे का प्रोजेक्ट बन्द करवा दिया !*

*जिसमें ब्रम्होस को लेकर उड़ने वाले फाइटर जेट विमान तैयार करने की योजना थी जो अधूरी रह गयी।*
*ब्रम्होस का विकास रोकने के लिए चीन ने ना जाने कितने करोड़ रुपये-पैसे सोनिया को दिए होंगे !*

*दस वर्षों बाद, जब मोदी सरकार आई, तब तहखाने में धूल-गर्द में पड़ी ब्रम्होस को सँभाला गया ! वह भी तब, जब मोदी खुद भारतीय सेना से सीधा मिले, तो सेना ने तब व्यथा बताई !*

*वर्तमान में ब्रम्होस को लेकर उड़ सके ऐसा सिर्फ एक ही विमान है और वह है राफेल !*

*जी हाँ दुनिया भर में सिर्फ राफेल ही वो खूबियाँ लिये हुए है, जो ब्रम्होस को सफलता पूर्वक निशाने के लिये छोड़ कर वापस लैंड करके मात्र ४ मिनट में फिर अगली ब्रह्मोस को लेकर दूसरे ब्लास्ट को तैयार हो जाये !*

*मोदी ने फ्रांस से डील करके, राफेल को भारतीय सेना तक पहुँचाने का काम कर दिया, और यहीं से असली मरोड़ चीन और उसके पिट्ठू वामपंथियों को हुई।*

*इसमें देशद्रोही पीछे कैसे रहते! जो विदेशी टुकड़ों पर पलने वाले गद्दार अपने आका चीन के नमक का हक अदा करने मैदान में उतर आये !*

*खैर .. शायद भारतीय सेना और मोदी दोनों इस तरह की आशंका को भाँप गये ! तो राफेल के भारत पहुँचते ही उसका ब्लैक बॉक्स सहित पूरा सिस्टम निकाला गया।*

*राफेल के कोड चेंज कर के उस में भारतीय कम्प्यूटर सिस्टम डाला गया जो राफेल को पूरी तरह बदलने के साथ उसकी गोपनीयता बनाये रखने में सक्षम था।*

*लेकिन बात यहीं नहीं रुकी ! राफेल को सेना को सुपुर्द करने के बाद सरकार ने सेना को उसे अपने हिसाब से कम्प्यूटर ब्लैक बॉक्स और जो तकनीक सेना की है, उसे अपने हिसाब से चेंज करने की छूट दे दी।*

*जिससे सेना ने छूट मिलते ही मात्र ४८ घण्टों में राफेल को बदलकर रख दिया ! जिससे चीन, जो राफेल के कोड और सिस्टम को हैक करने की फिराक में था, वह हाथ मलते रह गया !*

*फिर चीन द्वारा अपने पाले वामपंथी कुत्तों को राफेल की जानकारी लीक करके उस तक पहुँचाने काम सौंपा गया।*

*भारत भर की मीडिया में भरे वामपंथी दलालों ने राफेल सौदे को घोटाले की शक्ल देने की नाकाम कोशिश की, ताकि सरकार या सेना, विवश होकर, सफाई देने के चक्कर मे इस डील को सार्वजनिक करे।*

*जिससे चीन अपने मतलब की जानकारी जुटा सके पर सरकार और सेना की सजगता के चलते दलाल मीडिया का मुँह काला होकर रह गया !*

*तब फिर अपने राहुल गांधी मैदान में उतरे ! चीनी दूतावास में गुपचूप राहुल गांधी ने मीटिंग की ! उसके बाद राहुल गांधी ने चीन की यात्रा की और आते ही राफेल ✈️ सौदे पर सवाल उठाकर राफेल ✈️ की जानकारी सार्वजनिक करने की माँग जोरशोर से उठने लगी।*

*पूरी मीडिया, सारी कोंग्रेस की दिलचस्पी सिर्फ, और सिर्फ, राफेल की जानकारी सार्वजनिक कराने में है, ताकि चीन ब्रम्होस का तोड़ बना सके ! पर ये अबतक सम्भव नहीं हो पाया, जिसका श्रेय सिर्फ कर्तव्यनिष्ठ भारतीय सेना और मोदी जी को जाता है।*

*चीन ब्रम्होस की जानकारी जुटाने के चक्कर में, सीमा पर तनाव पैदा करके युद्ध के हालात बनाकर देख चुका है ! पर भारतीय सेना की चीन सीमा पर ब्रम्होस की तैनाती देखकर अपने पाँव वापस खींचने को मजबूर हुआ था !*

*डोकलाम विवाद चीन ने इसीलिये पैदा किया था कि वह ब्रम्होस 🚀 और राफेल✈️ की तैयारी देख सके ...।*

*इधर कुछ भटके हुए लोग राहुल गांधी को प्रधान मंत्री पद के योग्य समझ रहे हैं, जो खुद भारत की गोपनीयता और सुरक्षा को शत्रु देश के हाथों उचित कीमत पर बेचने को तैयार बैठा है !*

*नेहरू ने भी लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन चीन को बेची थी! और जनता समझती है भारत युद्ध में हार गया !*

*आज ये राफेल ✈️ और ब्रम्होस 🚀 ही भारत के पास वो अस्त्र हैं जिसके आगे चीन बेबस है !*

*मेरा बस चले, तो मैं इस पोस्ट को ४० सेकंड में १०० लोगों तक पहुँचा दूँ...।*

*किंतु आप सभी शेयर करके, अन्य मित्रों तक पहुचायें।*

  *🙏🏻एक सच्चा राष्ट्रभक्त!🙏🏻** Is Rafael's case in real?  Must read till the last line, then you will understand ...! *

 * Talk begins with Vajpayee ji's government!  Then at the special request of Atal ji, Indian scientists had prepared Bramhose amicile! *

 * No one in the world has prepared a cut of Bromhose! *

 * No country in the world has yet developed any technology that can take Bramhos on radar before reaching its target! *

 * Bramhose is a nuclear missile with amazing capabilities in itself, which can hit the target of 8000 km in just 180 seconds. *

 * And this goal of Brahmos for China remains a headache only.

 * Neither China has been able to make a bite of the Brahmos till date, nor a radar system that can catch the Brahmos! *

 * After Atalji's government fell, at the behest of Sonia, the Congress government put the Brahmos in the basement and closed the project! *

 * In which there was a plan to prepare fighter jet aircraft flying to Brahmos which remained incomplete. *
 * How many crores of rupees-money China would have given to Sonia to stop the development of Brahmos! *

 * Ten years later, when the Modi government came, the basement of the Bramhos lying in the dust!  That too when Modi himself met the Indian Army directly, then the army told the agony! *

 * Currently there is only one aircraft that can fly with Brahmos and that is Rafael! *

 * Yes, only Rafael around the world has been carrying the same qualities, leaving the Brahmos successfully and landing the land and readying the next blast with the next BrahMos in just 7 minutes! *

 * Modi made a deal with France, taking Rafael to the Indian Army, and it was from here that the real twist occurred to China and its puppet leftists. *

 * How did traitors stay behind in this!  The traitors who made foreign pieces came to the ground to pay their right to the salt of China! *

 * Well .. Perhaps both the Indian Army and Modi are aware of such apprehension!  So as soon as Rafale reached India, the entire system including his black box was removed. *

 * Changed the code of Rafael and put Indian Computer System in it which was able to completely change Rafale and maintain his privacy. *

 * But the matter did not stop here!  After surrendering the army to Rafael, the government allowed the army to change it according to their own computer black box and the technology that the army has. *

 * Due to which the army changed Rafael in just 4 hours as soon as he got exemption!  Due to which China, who was trying to hack Rafael's code and system, was left to shake hands! *

 * Then China was tasked with leaking information of Rafael to its nursed dogs.

 * Left-touted brokers in media across India tried unsuccessfully to make the Rafale deal a scam, so that the government or the military, forced, would make the deal public in the context of cleaning up.

 * So that China can gather information about its meaning, but due to the alertness of the government and the army, the broker media's face became black! *

 * Then Rahul Gandhi landed in the ground again!  Secret meeting Rahul Gandhi at Chinese Embassy!  After that Rahul Gandhi traveled to China and soon after the questioning of the Rafale deal, the demand to make the information of Rafael public was arising loudly. *

 * The entire media, all the Congress are only interested, and only, to make Rafael's information public so that China can break the Brahmos!  But this has not been possible till now, whose credit only goes to the dutiful Indian Army and Modi ji. *

 * China has seen the situation of war by creating tension on the border, in the process of gathering information about the Brahmos!  But the Indian Army was forced to drag its feet back after seeing the deployment of Bramhos on the China border! *

 * China created Doklam controversy because it could see the preparations for Bramhos and Rafael…. *

 * Some wandering people here are considering Rahul Gandhi as the Prime Minister, who himself is ready to sell India's privacy and security to the enemy country at a reasonable price! *

 * Nehru also sold millions of square kilometers of land to China!  And the public understands that India lost in the war! *

 * Today, only Rafale 4 and Bramhos India have the weapons beyond which China is helpless! *

 * If I just go, then I should reach this post in 100 seconds to 100 people…. *

 * But by sharing all of you, reach out to other friends. *

   * 🙏🏻A true patriot! 🙏🏻 *

20/6/2020अहंकार को छोड़कर ,नम्रतापूर्वक व्यवहार अपनाओ

*धैर्य सें पढना मेरे दोस्त, एक वाक्य भी दिल में बैठ गया तो जीवन सार्थक हो जायेगा .....*
🙏

 *मैं रूठा,*
      *तुम भी रुठ गए,*
फिर मनाएगा कौन? 

 *आज दरार है,*
      *कल खाई होगी,*
फिर भरेगा कौन? 

 *मैं चुप,*
      *तुम भी चुप,*
 इस चुप्पी को फिर तोडेगा कौन? 

 *छोटी बात को लगा लोगे दिल सें,*
तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन? 
 
 *दु:खी मैं भी*
*और तुम भी, बिछडकर,*
सोचो हाथ फिर बढाएगा कौन? 

 *न मैं राजी,*
      *न तुम राजी,*
फिर माफ करनें का बडप्पन 
दिखाएगा कौन? 

 *डूब जाएगा यादों में*
*दिल कभी,*
 तो फिर धैर्य बंधाएगा कौन? 

 *एक अहम् मेरे,*
      *एक तेरे भीतर भी,*
इस अहम् को फिर हराएगा कौन? 

 *जिंदगी किसको*
*मिली है सदा के लिए,*
फिर इन लम्हों में अकेला
रह जाएगा कौन? 

 *मूंद ली दोनों में से*
*गर किसी दिन,एक ने आँखे ....*
तो कल इस बात पर फिर 
पछतायेगा कौन? 

 *अहंकार को छोड़कर ,नम्रतापूर्वक व्यवहार अपनाओ।*😊

23/6/2020se 26/6/2020amar shahid

22 जून/बलिदान-दिवस
*नगर सेठ अमरचन्द बांठिया को फांसी*

स्वाधीनता समर के अमर सेनानी सेठ अमरचन्द मूलतः बीकानेर (राजस्थान) के निवासी थे। वे अपने पिता श्री अबीर चन्द बाँठिया के साथ व्यापार के लिए ग्वालियर आकर बस गये थे। जैन मत के अनुयायी अमरचन्द जी ने अपने व्यापार में परिश्रम, ईमानदारी एवं सज्जनता के कारण इतनी प्रतिष्ठा पायी कि ग्वालियर राजघराने ने उन्हें नगर सेठ की उपाधि देकर राजघराने के सदस्यों की भाँति पैर में सोने के कड़े पहनने का अधिकार दिया। आगे चलकर उन्हें ग्वालियर के राजकोष का प्रभारी नियुक्त किया।

अमरचन्द जी बड़े धर्मप्रेमी व्यक्ति थे। 1855 में उन्होंने चातुर्मास के दौरान ग्वालियर पधारे सन्त बुद्धि विजय जी के प्रवचन सुने। इससे पूर्व वे 1854 में अजमेर में भी उनके प्रवचन सुन चुके थे। उनसे प्रभावित होकर वे विदेशी और विधर्मी राज्य के विरुद्ध हो गये। 1857 में जब अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीय सेना और क्रान्तिकारी ग्वालियर में सक्रिय हुए, तो सेठ जी ने राजकोष के समस्त धन के साथ अपनी पैतृक सम्पत्ति भी उन्हें सौंप दी।

उनका मत था कि राजकोष जनता से ही एकत्र किया गया है। इसे जनहित में स्वाधीनता सेनानियों को देना अपराध नहीं है और निजी सम्पत्ति वे चाहे जिसे दें; पर अंग्रेजों ने राजद्रोही घोषित कर उनके विरुद्ध वारण्ट जारी कर दिया। ग्वालियर राजघराना भी उस समय अंग्रेजों के साथ था।

अमरचन्द जी भूमिगत होकर क्रान्तिकारियों का सहयोग करते रहे; पर एक दिन वे शासन के हत्थे चढ़ गये और मुकदमा चलाकर उन्हें जेल में ठूँस दिया गया। सुख-सुविधाओं में पले सेठ जी को वहाँ भीषण यातनाएँ दी गयीं। मुर्गा बनाना, पेड़ से उल्टा लटका कर चाबुकों से मारना, हाथ पैर बाँधकर चारों ओर से खींचना, लोहे के जूतों से मारना, अण्डकोषों पर वजन बाँधकर दौड़ाना, मूत्र पिलाना आदि अमानवीय अत्याचार उन पर किये गये। अंग्रेज चाहते थे कि वे क्षमा माँग लें; पर सेठ जी तैयार नहीं हुए। इस पर अंग्रेजों ने उनके आठ वर्षीय निरपराध पुत्र को भी पकड़ लिया।

अब अंग्रेजों ने धमकी दी कि यदि तुमने क्षमा नहीं माँगी, तो तुम्हारे पुत्र की हत्या कर दी जाएगी। यह बहुत कठिन घड़ी थी; पर सेठ जी विचलित नहीं हुए। इस पर उनके पुत्र को तोप के मुँह पर बाँधकर गोला दाग दिया गया। बच्चे का शरीर चिथड़े-चिथड़े हो गया। इसके बाद सेठ जी के लिए 22 जून, 1858 को फाँसी की तिथि निश्चित कर दी गयी। इतना ही नहीं, नगर और ग्रामीण क्षेत्र की जनता में आतंक फैलाने के लिए अंग्रेजों ने यह भी तय किया गया कि सेठ जी को 'सर्राफा बाजार' में ही फाँसी दी जाएगी।

अन्ततः 22 जून भी आ गया। सेठ जी तो अपने शरीर का मोह छोड़ चुके थे। अन्तिम इच्छा पूछने पर उन्होंने नवकार मन्त्र जपने की इच्छा व्यक्त की। उन्हें इसकी अनुमति दी गयी; पर धर्मप्रेमी सेठ जी को फाँसी देते समय दो बार ईश्वरीय व्यवधान आ गया। एक बार तो रस्सी और दूसरी बार पेड़ की वह डाल ही टूट गयी, जिस पर उन्हें फाँसी दी जा रही थी। तीसरी बार उन्हें एक मजबूत नीम के पेड़ पर लटकाकर फाँसी दी गयी और शव को तीन दिन वहीं लटके रहने दिया गया।

सर्राफा बाजार स्थित जिस नीम के पेड़ पर सेठ अमरचन्द बाँठिया को फाँसी दी गयी थी, उसके निकट ही सेठ जी की प्रतिमा स्थापित है। हर साल 22 जून को वहाँ बड़ी संख्या में लोग आकर देश की स्वतन्त्रता के लिए प्राण देने वाले उस अमर हुतात्मा को श्रद्धा॰जलि अर्पित करते हैं।

#हरदिनपावन
23 जून/बलिदान-दिवस
डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बलिदान

छह जुलाई, 1901 को कोलकाता में श्री आशुतोष मुखर्जी एवं योगमाया देवी के घर में जन्मे डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को दो कारणों से सदा याद किया जाता है। पहला तो यह कि वे योग्य पिता के योग्य पुत्र थे। श्री आशुतोष मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के संस्थापक उपकुलपति थे।1924 में उनके देहान्त के बाद केवल 23 वर्ष की अवस्था में ही श्यामाप्रसाद को विश्वविद्यालय की प्रबन्ध समिति में ले लिया गया। 33 वर्ष की छोटी अवस्था में ही उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति की उस कुर्सी पर बैठने का गौरव मिला, जिसे किसी समय उनके पिता ने विभूषित किया था। चार वर्ष के अपने कार्यकाल में उन्होंने विश्वविद्यालय को चहुँमुखी प्रगति के पथ पर अग्रसर किया।

दूसरे जिस कारण से डा. मुखर्जी को याद किया जाता है, वह है जम्मू कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय की माँग को लेकर उनके द्वारा किया गया सत्याग्रह एवं बलिदान। 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के बाद गृहमन्त्री सरदार पटेल के प्रयास से सभी देसी रियासतों का भारत में पूर्ण विलय हो गया; पर प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तिगत हस्तक्षेप के कारण जम्मू कश्मीर का विलय पूर्ण नहीं हो पाया। उन्होंने वहाँ के शासक राजा हरिसिंह को हटाकर शेख अब्दुल्ला को सत्ता सौंप दी। शेख जम्मू कश्मीर को स्वतन्त्र बनाये रखने या पाकिस्तान में मिलाने के षड्यन्त्र में लगा था।

शेख ने जम्मू कश्मीर में आने वाले हर भारतीय को अनुमति पत्र लेना अनिवार्य कर दिया। 1953 में प्रजा परिषद तथा भारतीय जनसंघ ने इसके विरोध में सत्याग्रह किया। नेहरू तथा शेख ने पूरी ताकत से इस आन्दोलन को कुचलना चाहा; पर वे विफल रहे। पूरे देश में यह नारा गूँज उठा - एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान: नहीं चलेंगे।

डा. मुखर्जी जनसंघ के अध्यक्ष थे। वे सत्याग्रह करते हुए बिना अनुमति जम्मू कश्मीर में गये। इस पर शेख अब्दुल्ला ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 20 जून को उनकी तबियत खराब होने पर उन्हें कुछ ऐसी दवाएँ दी गयीं, जिससे उनका स्वास्थ्य और बिगड़ गया। 22 जून को उन्हें अस्पताल में भरती किया गया। उनके साथ जो लोग थे, उन्हें भी साथ नहीं जाने दिया गया। रात में ही अस्पताल में ढाई बजे रहस्यमयी परिस्थिति में उनका देहान्त हुआ।

मृत्यु के बाद भी शासन ने उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया। उनके शव को वायुसेना के विमान से दिल्ली ले जाने की योजना बनी; पर दिल्ली का वातावरण गरम देखकर शासन ने विमान को अम्बाला और जालन्धर होते हुए कोलकाता भेज दिया। कोलकाता में दमदम हवाई अड्डे से रात्रि 9.30 बजे चलकर पन्द्रह कि.मी दूर उनके घर तक पहुँचने में सुबह के पाँच बज गये। 24 जून को दिन में ग्यारह बजे शुरू हुई शवयात्रा तीन बजे शमशान पहुँची। हजारों लोगों ने उनके अन्तिम दर्शन किये।

आश्चर्य की बात तो यह है कि डा. मुखर्जी तथा उनके साथी शिक्षित तथा अनुभवी लोग थे; पर पूछने पर भी उन्हें दवाओं के बारे में नहीं बताया गया। उनकी मृत्यु जिन सन्देहास्पद स्थितियों में हुई तथा बाद में उसकी जाँच न करते हुए मामले पर लीपापोती की गयी, उससे इस आशंका की पुष्टि होती है कि यह नेहरू और शेख अब्दुल्ला द्वारा करायी गयी चिकित्सकीय हत्या थी।

डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अपने बलिदान से जम्मू-कश्मीर को बचा लिया। अन्यथा शेख अब्दुल्ला उसे पाकिस्तान में मिला देता।

#हरदिनपावन

24 जून/बलिदान-दिवस
महारानी दुर्गावती का बलिदान

महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। महोबा के राठ गांव में 1524 ई. की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस और शौर्य के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी।

उनका विवाह गढ़ मंडला के प्रतापी राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपतशाह से हुआ। 52 गढ़ तथा 35,000 गांवों वाले गोंड साम्राज्य का क्षेत्रफल 67,500 वर्गमील था। यद्यपि दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी। फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर राजा संग्राम शाह ने उसे अपनी पुत्रवधू बना लिया।

पर दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।

रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य उनके देवर सहित कई लोगों की आंखों में चुभ रहा था। मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया; पर हर बार वह पराजित हुआ। मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में सेनाएं भेज दीं। आसफ खां गोंडवाना के उत्तर में कड़ा मानकपुर का सूबेदार था।

एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ; पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये। रानी की भी अपार क्षति हुई। रानी उसी दिन अंतिम निर्णय कर लेना चाहती थीं। अतः भागती हुई मुगल सेना का पीछा करते हुए वे उस दुर्गम क्षेत्र से बाहर निकल गयीं। तब तक रात घिर आयी। वर्षा होने से नाले में पानी भी भर गया।

अगले दिन 24 जून, 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था। अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा। रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया। रानी ने इसे भी निकाला; पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।

रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे; पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। गढ़मंडला की इस जीत से अकबर को प्रचुर धन की प्राप्ति हुई। उसका ढहता हुआ साम्राज्य फिर से जम गया। इस धन से उसने सेना एकत्र कर अगले तीन वर्ष में चित्तौड़ को भी जीता।

जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, वहां रानी की समाधि बनी है। देशप्रेमी वहां जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

(संदर्भ : दैनिक स्वदेश 24.6.2011)

#हरदिनपावन

25 जून/इतिहास-स्मृति
*अंग्रेज सेना का समर्पण*

जिन अंग्रेजों के अत्याचार की पूरी दुनिया में चर्चा होती है, भारतीय वीरों ने कई बार उनके छक्के छुड़ाए हैं। ऐसे कई प्रसंग इतिहास के पृष्ठों पर सुरक्षित हैं। ऐसा ही एक स्वर्णिम पृष्ठ कानपुर (उ.प्र.) से सम्बन्धित है।

1857 में जब देश के अनेक भागों में भारतीय वीरों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा दिया, तो इसकी आँच से कानपुर भी सुलग उठा। यहाँ अंग्रेज इतने भयभीत थे कि 24 मई, 1857 को रानी विक्टोरिया की वर्षगाँठ के अवसर पर हर साल की तरह तोपें नहीं दागी गयीं। अंग्रेजों को भय था कि इससे भारतीय सैनिक कहीं भड़क न उठें। फिर भी चार जून को पुराने कानपुर में क्रान्तिवीर उठ खड़े हुए। मेरठ के बाद सर्वाधिक तीव्र प्रतिकिया यहाँ ही हुई थी। इससे अंग्रेज अधिकारी घबरा गये। वे अपने और अपने परिवारों के लिए सुरक्षित स्थान ढूँढने लगे। उस समय कानपुर का सैन्य प्रशासक मेजर जनरल व्हीलर था। वह स्वयं भी बहुत भयभीत था।

पुराने कानपुर को जीतने के बाद सैनिक दिल्ली की ओर चल दिये। जब ये सैनिक रात्रि में कल्याणपुर में ठहरे थे, तो नाना साहब पेशवा, तात्या टोपे और अजीमुल्ला खान भी इनसे आकर मिले। इन्होंने उन विद्रोही सैनिकों को समझाया कि कानपुर को इस प्रकार भगवान भरोसे छोड़कर आधी तैयारी के साथ दिल्ली जाने की बजाय पूरे कानपुर पर ही नियन्त्रण करना उचित है।

जब नेतृत्व का प्रश्न आया, तो इसके लिए सबने नाना साहब को अपना नेता बनाया। नाना साहब ने टीका सिंह को मुख्य सेनापति बनाया और यह सेना कानपुर की ओर बढ़ने लगी। व्हीलर को जब यह पता लगा, तो वह सब अंग्रेज परिवारों के साथ प्रयाग होते हुए कोलकाता जाने की तैयारी करने लगा; पर भारतीय सैनिकों ने इस प्रयास को विफल कर दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने गलियों और सड़कों पर ढूँढ-ढूँढकर अंग्रेजों को मारना प्रारम्भ कर दिया।

यह देखकर व्हीलर ने एक बैरक को किले का रूप दे दिया। यहाँ 210 अंग्रेज और 44 बाजा बजाने वाले भारतीय सैनिक, 100 सैन्य अधिकारी, 101 अंग्रेज नागरिक, 546 स्त्री व बच्चे अपने 25-30 भारतीय नौकरों के साथ एकत्र हो गये। नाना साहब ने व्हीलर को कानपुर छोड़ने की चेतावनी के साथ एक पत्र भेजा; पर जब इसका उत्तर नहीं मिला, तो उन्होंने इस बैरक पर हमला बोल दिया। 18 दिन तक लगातार यह संघर्ष चला।

14 जून को व्हीलर ने लखनऊ के जज गोवेन को एक पत्र लिखा। इसमें उसने कहा कि हम कानपुर के अंग्रेज मिट्टी के कच्चे घेरे में फँसे हैं। अभी तक तो हम सुरक्षित हैं; पर आश्चर्य तो इस बात का है कि हम अब तक कैसे बचे हुए हैं। हमारी एक ही याचना है सहायता, सहायता, सहायता। यदि हमें निष्ठावान 200 अंग्रेज सैनिक मिल जायें, तो हम शत्रुओं को मार गिरायेंगे।

पर उस समय लखनऊ में भी इतनी सेना नहीं थी कि कानपुर भेजी जा सके। अन्ततः व्हीलर का किला ध्वस्त हो गया। इस संघर्ष में बड़ी संख्या में अंग्रेज सैनिक हताहत हुए। देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष कर रहे अनेक भारतीय सैनिक भी बलिदान हुए। 25 जून को व्हीलर ने बैरक पर आत्मसमर्पण का प्रतीक सफेद झण्डा लहरा दिया। 1857 के संग्राम के बाद अंग्रेजों ने इस स्थान पर एक स्मृति चिन्ह (मैमोरियल क्रास) बना दिया, जो अब कानपुर छावनी स्थित राजपूत रेजिमेण्ट के परिसर में स्थित है।

#हरदिनपावन

26 जून/जन्म-दिवस
वन्देमातरम् के गायक : बंकिमचन्द्र चटर्जी

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में वन्देमातरम् नामक जिस महामन्त्र ने उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक जन-जन को उद्वेलित किया, उसके रचियता बंकिमचन्द्र चटर्जी का जन्म ग्राम काँतलपाड़ा, जिला हुगली,पश्चिम बंगाल में 26 जून, 1838 को हुआ था। प्राथमिक शिक्षा हुगली में पूर्ण कर उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कालिज से उच्च शिक्षा प्राप्त की। पढ़ाई के साथ-साथ छात्र जीवन से ही उनकी रुचि साहित्य के प्रति भी थी।

शिक्षा पूर्ण कर उन्होंने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी और उसमें उत्तीर्ण होकर वे डिप्टी कलेक्टर बन गये। इस सेवा में आने वाले वे प्रथम भारतीय थे। नौकरी के दौरान ही उन्होंने लिखना प्रारम्भ किया। पहले वे अंग्रेजी में लिखते थे। उनका अंग्रेजी उपन्यास ‘राजमोहन्स वाइफ’ भी खूब लोकप्रिय हुआ; पर आगे चलकर वे अपनी मातृभाषा बंगला में लिखने लगे।

1864 में उनका पहला बंगला उपन्यास ‘दुर्गेश नन्दिनी’ प्रकाशित हुआ। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि इसके पात्रों के नाम पर बंगाल में लोग अपने बच्चों के नाम रखने लगे। इसके बाद 1866 में ‘कपाल कुण्डला’ और 1869 में ‘मृणालिनी’ उपन्यास प्रकाशित हुए। 1872 में उन्होंने ‘बंग दर्शन’ नामक पत्र का सम्पादन भी किया; पर उन्हें अमर स्थान दिलाया ‘आनन्द मठ’ नामक उपन्यास ने, जो 1882 में प्रकाशित हुआ।

आनन्द मठ में देश को मातृभूमि मानकर उसकी पूजा करने और उसके लिए तन-मन और धन समर्पित करने वाले युवकों की कथा थी, जो स्वयं को ‘सन्तान’ कहते थे। इसी उपन्यास में वन्देमातरम् गीत भी समाहित था। इसे गाते हुए वे युवक मातृभूमि के लिए मर मिटते थे। जब यह उपन्यास बाजार में आया, तो वह जन-जन का कण्ठहार बन गया। इसने लोगों के मन में देश के लिए मर मिटने की भावना भर दी। वन्देमातरम् सबकी जिह्ना पर चढ़ गया।

1906 में अंग्रेजों ने बंगाल को हिन्दू तथा मुस्लिम आधार पर दो भागों में बाँटने का षड्यन्त्र रचा। इसकी भनक मिलते ही लोगों में क्रोध की लहर दौड़ गयी। 7 अगस्त, 1906 को कोलकाता के टाउन हाल में एक विशाल सभा हुई, जिसमें पहली बार यह गीत गाया गया। इसके एक माह बाद 7 सितम्बर को वाराणसी के कांग्रेस अधिवेशन में भी इसे गाया गया। इससे इसकी गूँज पूरे देश में फैल गयी। फिर क्या था, स्वतन्त्रता के लिए होने वाली हर सभा, गोष्ठी और आन्दोलन में वन्देमातरम् का नाद होने लगा।

यह देखकर शासन के कान खड़े हो गये। उसने आनन्द मठ और वन्देमातरम् गान पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इसे गाने वालों को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाते थे; लेकिन प्रतिबन्धों से भला भावनाओं का ज्वार कभी रुक सका है ? अब इसकी गूँज भारत की सीमा पारकर विदेशों में पहुँच गयी। क्रान्तिवीरों के लिए यह उपन्यास गीता तथा वन्देमातरम् महामन्त्र बन गया। वे फाँसी पर चढ़ते समय यही गीत गाते थे। इस प्रकार इस गीत ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में अतुलनीय योगदान दिया।

बंकिम के प्रायः सभी उपन्यासों में देश और धर्म के संरक्षण पर बल रहता था। उन्होंने विभिन्न विषयों पर लेख, निबन्ध और व्यंग्य भी लिखे। इससे बंगला साहित्य की शैली में आमूल चूल परिवर्तन हुआ। 8 अपै्रल, 1894 को उनका देहान्त हो गया। स्वतन्त्रता मिलने पर वन्देमातरम् को राष्ट्रगान के समतुल्य मानकर राष्ट्रगीत का सम्मान दिया गया।

#हरदिनपावन

Thursday, June 25, 2020

25/6/2020आभा क्या है? What is Aura?

आभा क्या है?  

आभा किसी भी वस्तु या व्यक्ति के आसपास का ऊर्जा क्षेत्र है।  यह ऊर्जा क्षेत्र शरीर के ऊर्जा केंद्रों द्वारा बनाया जाता है जिसे चक्र के रूप में जाना जाता है।  यह ऊर्जा क्षेत्र तब मजबूत होता है जब हम खुद को या दूसरों को रेकी देते हैं।  जब कोई बीमार होता है तो यह ऊर्जा क्षेत्र कमजोर होता है।  हमारे विचारों और भावनाओं के साथ-साथ हमारे आसपास के अन्य लोगों की आभा इस ऊर्जा क्षेत्र को प्रभावित करती है।  आभा सफाई क्या है?  आभा सफाई लोगों की आभा से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने का तरीका है।  व्यक्ति की आभा बड़ी दूरी तक फैली हुई है लेकिन यह आपके शरीर से 4 इंच तक बहुत सोचती है।  कुछ लोग इस आभा को नग्न आंखों से देख सकते हैं और इस क्षमता को प्रशिक्षण और अभ्यास के साथ विकसित किया जा सकता है।  लेकिन अधिक महत्वपूर्ण यह है कि आभा को देखने से यह नकारात्मक विचारों और भावनाओं के प्रभाव से साफ हो रहा है। 

 आभा सफाई क्यों करते हैं?

  मुझे लगता है कि आप इसे आगे बढ़ा सकते हैं।  यह कुछ मामलों में 25 मीटर और उससे भी अधिक तक जा सकता है।  इसके कारण हमारी आभा हमारे भौतिक शरीर से बहुत आगे तक फैली हुई है। 

What is Aura?

 Aura is the energy field surrounding any object or person. This energy field is created by the energy centers of the body known as the Chakras. This energy field is strengthened when we give Reiki to ourselves or others. When someone is sick this energy field is weak. Our thoughts and emotions as well as the Aura of other people around us effect this energy field. 


What is Aura Cleansing?

 Aura cleaning is way of removing the negative energy from ones Aura. The aura of person extends till great distance but it is very think up to 4 inches from your body. Some people can see this aura with naked eye and this ability can be developed with training and practice. But more important that seeing the aura is cleaning it from the effects of negative thoughts and emotions. Why do Aura Cleansing? I our healthier you are the further it can extend. It can go upto 25 meters and even more in some cases. Due to this it Our aura extends far beyond our physical body. The

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩25/6/2020 गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राणअर्पित कोटी कोटी प्रणाम guru vandy mahaan bhagava ekahee jeevan praan arpit kotee kotee pranaam

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राण
अर्पित कोटी कोटी प्रणाम ॥ध्रु॥

शोणित वर्णो में अंकित है सारे उज्ज्वल त्याग
व्याप्त किया है दिव्य दृष्टि से ×2 अखंड भारतभाग
लखकर तड़पन देशभक्ति की भड़के भीतर आग
कटिबद्ध खड़े तव छाया में हम भारतभूसंतान ॥१॥
गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राण
अर्पित कोटी कोटी प्रणाम


शौर्य वीर्य के जग में गूंजा स्फूर्तिप्रद इतिहास
देखे निज नेत्रो से भीषण×2 असंख्य रणसंग्राम
देहदंड और कष्ट हुए पर करते निज बलिदान
बलिदान नही वह पूजन केवल रखने को सम्मान ॥२॥
गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राण
अर्पित कोटी कोटी प्रणाम

ऋषी तपस्वी महामुनी का संतो का अभिमान
आदिकाल से तुमने पाया ×2 अग्रपुजा का मान
महा सुभागी देखोगे अब भावी वैभवकाल
बने यशस्वी यही सुमंगल दे दो शुभ वरदान ॥३॥
गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राण
अर्पित कोटी कोटी प्रणाम

शुद्धशीलता चरित्रता की पावित्रता की खान
अभय वीरता शौर्य धीरता ×2 संयम शांतिनिधान
सद्भावो से माना हमने पूज्य गुरु भगवान
अतीव पावन तब प्रति अर्पण स्वदेशहित यह प्राण ॥४॥
गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राण
अर्पित कोटी कोटी प्रणाम


🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

guru vandy mahaan bhagava ekahee jeevan praan arpit kotee kotee pranaam .dhru.  

shonit varno mein ankit hai saare ujjval tyaag vyaapt kiya hai divy drshti se ×2 akhand bhaaratabhaag lakhakar tadapan deshabhakti kee bhadake bheetar aag katibaddh khade tav chhaaya mein ham bhaaratabhoosantaan .1. 

guru vandy mahaan bhagava ekahee jeevan praan arpit kotee kotee pranaam  

 shaury veery ke jag mein goonja sphoortiprad itihaas dekhe nij netro se bheeshan×2 asankhy ranasangraam dehadand aur kasht hue par karate nij balidaan balidaan nahee vah poojan keval rakhane ko sammaan .2.

 guru vandy mahaan bhagava ekahee jeevan praan arpit kotee kotee pranaam 


 rshee tapasvee mahaamunee ka santo ka abhimaan aaadikaal se tumane paaya ×2 agrapuja ka maan maha subhaagee dekhoge ab bhaavee vaibhavakaal bane yashasvee yahee sumangal de do shubh varadaan .3. guru vandy mahaan bhagava ekahee jeevan praan arpit kotee kotee pranaam  


shuddhasheel ka chaaritrata kee paavitrata kee khaan abhay veerata shaury dheerata ×2 sanyam shaantinidhaan sadbhaavee se maana hamane poojy guru bhagavaan ateev paavan tab prati arpan svadeshahit ye praan .4. 


guru vandy mahaan bhagava ekahee jeevan praan arpit kotee kotee pranaam


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Guru vandya great saffron
 Arrived Koti Koti Pranam

 All the bright sacrifices are written in the charred characters
 Has spread the divine vision × 2 united India
 Fire within the agitation of patriotism
 In the shadow of the standing stand, we are India
 Guru vandya great saffron
 Bowed down


 A thrilling history reverberates in the jug of valor
 See the horrific × 2 innumerable ransom from my own eyes
 Performing personal sacrifices in case of death and suffering
 It is not a sacrifice but an honor to keep that worship only.
 Guru Vandya great saffron is the only life
 Bowed down

 Sage pride of sage ascetic mahamuni
 From time immemorial, you got the value of × 2 agarpuja
 Now you will see great fortune
 Bless yashvi, give this sumangal auspicious boon.
 Guru vandya great saffron
 Bowed down

 Purity of merit
 Abhay Bravery Shaurya Dheerata × 2 Sobriety Shantidhanan
 With goodwill, we believed that the revered Guru God
 Ativ pious then this life without surrender
 Guru vandya great saffron
 Bowed down

Monday, June 22, 2020

23/6/2020चिर विजय की कामना है चिर विजयCHir vijaya kī kāmanā ha vijaya kī

चिर विजय की कामना ही
चिर विजय की कामना ही राष्ट्र का आधार है
CHir vijaya kī kāmanā ha

vijaya kī विजय की कामना ही
चिर विजय की कामना ही राष्ट्र का आधार है॥

जागते यह भाव ले जब सुप्त मानव
भागते हैं हारकर तब दुष्ट-दानव
विजय इच्छा चिर सनातन नित्य-अभिनव
आज की शत व्याधियों का श्रेष्ठतम उपचार है॥

शान्त-चिर-गम्भीर और जयिष्णु राघव
क्रान्तिकारी सर्वगुण सम्पन्न माधव
कर सके जिस तत्व से अरि का पराभव
वह विजय की कामना ही राष्ट्र का आधार है॥

दिया हमने छोड़ जब-जब चिर-विजय-व्रत
हुए तब पददलित पीड़ित और श्रीहत
छोड़ सम्भ्रम उसी पथ पर फिर बढ़े रथ
जहाँ बढ़ते जीत होती और रुकते हार है ॥

हो यही दृढ़ भाव अपना श्रेष्ठतम धन
आत्म गरिमायुक्त होवे राष्ट्र-जीवन
संगठन कि शक्ति का हो संघ दर्पण
निहित जिसमें राष्ट्र-पोषक भावना साकार है॥

English Transliteration;
cira vijaya kī kāmanā hī
cira vijaya kī kāmanā hī rāṣṭra kā ādhāra hai ||

jāgate yaha bhāva le jaba supta mānava
bhāgate haiṁ hārakara taba duṣṭa-dānava
vijaya icchā cira sanātana nitya-abhinava
āja kī śata vyādhiyoṁ kā śreṣṭhatama upacāra hai ||

śānta-cira-gambhīra aura jayiṣṇu rāghava
krāntikārī sarvaguṇa sampanna mādhava
kara sake jisa tatva se ari kā parābhava
vaha vijaya kī kāmanā hī rāṣṭra kā ādhāra hai ||

diyā hamane choṛa jaba-jaba cira-vijaya-vrata
hue taba padadalita pīṛita aura śrīhata
choṛa sambhrama usī patha para phira baṛhe ratha
jahā baṛhate jīta hotī aura rukate hāra hai ||

ho yahī dṛṛha bhāva apanā śreṣṭhatama dhana
ātma garimāyukta hove rāṣṭra-jīvana
saṁgaṭhana ki śakti kā ho saṁgha darpaṇa
nihita jisameṁ rāṣṭra-poṣaka bhāvanā sākāra hai ||

22ल/6/2020 कालिदासजयन्त्याः हार्दिक- शुभकामनाः।

कालिदासजयन्त्याः हार्दिक- शुभकामनाः। समाजस्य सामान्यवर्गे जातः कालिदासः स्वस्य कृतिभिः महान् कविः कविकुलगुरुः अभवत्। सः अजपालः आसीत् इति प्रसिद्धा लोककथा। त्यागः तपस्या प्रजासेवा भारतीयदर्शनं राष्ट्रिय-जीवनमूल्यानि इत्यादीनां श्रेष्ठगुणानाम् अभिव्यक्तिः तस्य काव्येषु दृश्यते।

Sunday, June 21, 2020

21/6/2020हम सभी का जन्म तव प्रतिबिम्ब सा बन जाय॥और अधुरी साधना चिर पूर्ण बस हो जाय।

हम सभी का जन्म तव प्रतिबिम्ब सा बन जाय॥
और अधुरी साधना चिर पूर्ण बस हो जाय।

बाल्य जीवन से लगाकर अन्त तक की दिव्य झांकी
मूक आजीवन तपस्या जा सके किस भाँति आँकी
क्षीर सिंधु अथाह विधि से भी न नापा जाय
चाह है उस सिंधु की हम बूँद ही बन जायँ ॥१॥

एक भी क्षण जन्म में नही आपने विश्राम पाया
रक्त के प्रत्येक कण को हाय पानी सा सुखाया।
आत्म-आहुती दे बताया राष्ट्र-मुक्ति उपाय
एक चिनगारी हमें उस यज्ञ की छू जाय ॥२॥

थे अकेले आप लेकिन बीज का था भाव पाया
बो दिया निज को अमर वट संघ भारत में उगाया।
राष्ट्र ही क्या अखिल जग का आसरा हो जाय
और उसकी हम टहनियाँ-पत्तियाँ बन जायँ॥३॥

आपके दिल की कसक हो वेदना जागृत हमारी
याचि देही याचि डोला मन्त्र रटते हैं पुजारी।
बढ़ रहे हम आपक आशीष स्वग्रिक पाय
जो सिखया आपने प्रत्यक्ष हम कर पायँ ॥४॥
साधना की पूर्ति फिर लवमात्र में हो जाय॥

English Transliteration:
hama sabhī kā janma tava pratibimba sā bana jāya||
aura adhurī sādhanā cira pūrṇa basa ho jāaya |

bālya jīvana se lagākara anta taka kī divya jhāṁkī
mūka ājīvana tapasyā jā sake kisa bhāti ākī
kṣīra siṁdhu athāha vidhi se bhī na nāpā jāya
cāha hai usa siṁdhu kī hama būda hī bana jāya ||1 ||

eka bhī kṣhaṇa janma meṁ nahī āpane viśrāma pāyā
rakta ke pratyeka kaṇa ko hāya pānī sā sukhāyā |
ātma-āhutī de batāyā rāṣṭra-mukti upāya
eaka cinagārī hameṁ usa yajña kī chū jāya ||2||

the akele āpa lekina bīja kā thā bhāva pāyā
bo diyā nija ko amara vaṭa saṁgha bhārata meṁ ugāyā |
rāṣṭra hī kyā akhila jaga kā āsarā ho jāya
aura usakī hama ṭahaniyā-pattiyā bana jāya ||3||

āpake dila kī kasaka ho vedanā jāgṛta hamārī
yāci dehī yāci ḍolā mantra raṭate haiṁ pujārī |
baṛha rahe hama āpaka āśīṣa svagrika pāya
jo sikhayā āpane pratyakṣa hama kara pāya ||4||
sādhanā kī pūrti phira lavamātra meṁ ho jāya||




The birth of all of us should become like a reflection.
 And incomplete cultivation may be settled forever.

 Divine tableau from childhood to the end
 What kind of penance can be done for a lifetime of silent penance
 Ksheer Indus should not be measured even by bottomless method
 Want to become the drop of that Indus

 Not a single moment in your birth you rested
 He dried each particle of blood like water.
 Giving self-sacrifice said that national liberation measures
 A spark should touch that sacrifice 729

 Were you alone but found a sense of seed
 The Bo Dya Nija was grown in the Amar Vat Sangha of India.
 Should the nation become the hope of the whole world
 And we should become twigs and leaves.

 Your heart's pain be awakened
 Yachti dehi yachti dola mantra rites the priest.
 Your blessings are increasing, we welcome you
 What you have taught, we can do directly ॥४॥
 Then spiritual practice can be fulfilled in love.

 English Transliteration:
 hama sabhī kā janma tava pratibimba sā bana jāya ||
 aura adhurī sādhanā cira pūrṇa basa ho jāaya |

 bālya jīvana se lagākara anta taka kī divya jhāṁkī
 mūka ājīvana tapasyā jā Transl kisa bhāti ākī
 kṣīra siṁdhu athāha vidhi se bhī na nāpā jāya
 cāha hai usa siṁdhu kī hama būda hī bana jāya || 1 ||

 eka bhī kṣhaṇa janma meṁ nahī āpane viśrāma pāyā
 rakta ke pratyeka kaṇa ko hāya pānī sā sukhāyā |
 ātma-āhutī de batāyā rāṣṭra-mukti upāya
 eaka cinagārī hameṁ usa yajña kī chū jāya || 2 ||

 the akele āpa lekina bīja kā thā bhāva pāyā
 bo diyā nija ko amara vaṭa saṁgha bhārata meṁ ugāyā |
 rāṣṭra hī kyā akhila jaga kā āsarā ho jāya
 aura usakī hama ṭahaniyā-pattiyā bana jāya || 3 ||

 āpake dila kī kasaka ho vedanā jāgṛta hamārī
 yāci dehī yāci ḍolā mantra raṭate haiṁ pujārī |
 baṛha rahe hama āpaka āśīṣa svagrika pāya
 jo sikhayā āpane pratyakṣa hama kara pāya || 4 ||
 sādhanā kī pūrti phira lavamātra meṁ ho jāya ||

21/6/2020 SANGEETMALA RSSव्यक्ति - व्यक्ति में जगायें राष्ट्र चेतना vyakti - vyakti mein jagaayen raashtr chetana

व्यक्ति - व्यक्ति में जगायें राष्ट्र चेतना 

https://youtu.be/5fWqzl7iIJY

व्यक्ति - व्यक्ति में जगायें राष्ट्र चेतना । जन मन संस्कार करें यही साधना ।। साधना ऽ नित्य साधना । साधना ऽ अखण्ड साधना ॥ध्रु .॥
नित्य शाखा जाह्नवी पुनीत जल धरा , साधना की पुण्य भूमि शक्ति पीठ का रजकणों में प्रकट दिव्य दीपमालिका , हो तपस्वी के समान संघ साधना ॥ १ ॥ साधना ..

हे प्रभु तू विश्व की अजेय शक्ति दे ,
जगत हो विनम्र ऐसा शील हमको दे ।
कष्ट से भरा हुआ यह पंथ काटने ,
ज्ञान दे कि हो सरल हमारी साधना ॥ २ ॥ साधना ..

विजय शालिनी संघ बद्ध कार्य शक्ति दे ,
दिव्य और अखण्ड ध्येय निष्ठा हमको दे ।
राष्ट्र धर्म रक्षणार्थ वीरवत स्फूरे
तब कृपा से हो सफल हमारी साधना ॥ ३ ॥ साधना ....
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vyakti - vyakti mein jagaayen raashtr chetana


vyakti - vyakti mein jagaayen raashtr chetana .
jan man sanskaar karen yahee saadhana ..
saadhana nity saadhana . saadhana akhand saadhana .dhru ..

nity shaakha jaahnavee puneet jal dhara , saadhana kee puny bhoomi shakti peeth ka rajakanon mein prakat divy deepamaalika , ho tapasvee ke samaan sangh saadhana . 1 . saadhana ..

he prabhu too vishv kee ajey shakti de ,
jagat ho vinamr aisa sheel hamako de .
kasht se bhara hua yah panth kaatane ,
gyaan de ki ho saral hamaaree saadhana . 2 . saadhana ..

vijay shaalinee sangh baddh kaary shakti de ,
divy aur akhand dhyey nishtha hamako de .
raashtr dharm rakshanaarth veeravat sphoore
tab krpa se ho saphal hamaaree saadhana . 3 .
saadhana ....
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Person - awaken the nation consciousness

the person -

awaken the nation consciousness in the person. This practice should be done in public mind. Spiritual practice. Sadhana Akhanda Sadhana॥ Dhru.

Continuous branch Jahnavi Punit Jal Dhara, the divine land of Shakti Peeth, the holy land of meditation Sadhna ..

Lord, give me the unstoppable power of the world, give me such humble humility to the world. Cut this cult full of trouble and give knowledge that our practice should be simple. 2 Sadhana ..

Vijay Shalini Sangha, give us working power, give us divine and unquestionable loyalty. For the protection of the nation, Veerwat Sphure will then be successful in our practice. 3 Sadhana ... 

21june 2020 हमें वीर केशव मिले आप जब सेनई साधना की डगर मिल गई है॥hameṁ vīra keśava mile āpa jaba senaī sādhanā kī ḍagara mila gaī hai

https://youtu.be/r87H3WtIcns


हमें वीर केशव मिले आप जब से
नई साधना की डगर मिल गई है॥

भटकते रहे ध्येय-पथ के बिना हम
न सोचा कभी देश क्या धर्म क्या है
न जाना कभी पा मनुज-तन जगत में
हमारे लिये श्रेष्ठतम कर्म क्या है
दिया ज्ञान जबसे मगर आपने है
निरंतर प्रगति की डगर मिल गई है ॥१॥

समाया हुआ घोर तम सर्वदिक् था
सुपथ है किधर कुछ नहीं सूझता था
सभी सुप्त थे घोर तम में अकेला
ह्रदय आपका हे तपी जूझता था
जलाकर स्वयं को किया मार्ग जगमग
हमें प्रेरणा की डगर मिल गई ॥२॥

बहुत थे दुःखी हिन्दु निज देश में ही
युगों से सदा घोर अपमान पाया
द्रवित हो गये आप यह दृश्य देखा
नहीं एक पल को कभी चैन पाया
ह्रदय की व्यथा संघ बनकर फुट निकली
हमें संगठन की डगर मिल गई है॥३॥

करेंगे पुनः हम सुखी मातृ भू को
यही आपने शब्द मुख से कहे थे
पुनः हिन्दु का हो सुयश गान जग में
संजोये यही स्वप्न पथ पर बढ़े थे
जला दीप ज्योतित किया मातृ मन्दिर
हमें अर्चना की डगर मिल गई है ॥४॥

hameṁ vīra keśava mile āpa jaba se
naī sādhanā kī ḍagara mila gaī hai ||

bhaṭakate rahe dhyeya-patha ke binā hama
na socā kabhī deśa kyā dharma kyā hai
na jānā kabhī pā manuja-tana jagata meṁ
hamāre liye śreṣṭhatama karma kyā haia
diyā jñāna jabase magara āpane hai
niraṁtara pragati kī ḍagara mila gaī hai ||1||

samāyā huā ghora tama sarvadik thā
supatha hai kidhara kucha nahīṁ sūjhatā thā
sabhī supta the ghora tama meṁ akelā
hradaya āpakā he tapī jūjhatā thā
jalākara svayaṁ ko kiyā mārga jagamaga
hameṁ preraṇā kī ḍagara mila gaī ||2||

bahuta the duaḥkhī hindu nija deśa meṁ hī
yugoṁ se sadā ghora apamāna pāyā
dravita ho gaye āpa yaha dṛśya dekhā
nahīṁ eka pala ko kabhī caina pāyā
hradaya kī vyathā saṁgha banakara phuṭa nikalī
hameṁ saṁgaṭhana kī ḍagara mila gaī hai||3||

kareṁge punaḥ hama sukhī mātṛ bhū ko
yahī āpane śabda mukha se kahe the
punaḥ hindu kā ho suyaśa gāna jaga meṁ
saṁjoye yahī svapna patha para baṛhe the
jalā dīpa jyotita kiyā mātṛ mandira

hameṁ arcanā kī ḍagara mila gaī hai ||4||हमें वीर केशव मिले आप जब से
नई साधना की डगर मिल गई है॥

भटकते रहे ध्येय-पथ के बिना हम
न सोचा कभी देश क्या धर्म क्या है
न जाना कभी पा मनुज-तन जगत में
हमारे लिये श्रेष्ठतम कर्म क्या है
दिया ज्ञान जबसे मगर आपने है
निरंतर प्रगति की डगर मिल गई है ॥१॥

समाया हुआ घोर तम सर्वदिक् था
सुपथ है किधर कुछ नहीं सूझता था
सभी सुप्त थे घोर तम में अकेला
ह्रदय आपका हे तपी जूझता था
जलाकर स्वयं को किया मार्ग जगमग
हमें प्रेरणा की डगर मिल गई ॥२॥

बहुत थे दुःखी हिन्दु निज देश में ही
युगों से सदा घोर अपमान पाया
द्रवित हो गये आप यह दृश्य देखा
नहीं एक पल को कभी चैन पाया
ह्रदय की व्यथा संघ बनकर फुट निकली
हमें संगठन की डगर मिल गई है॥३॥

करेंगे पुनः हम सुखी मातृ भू को
यही आपने शब्द मुख से कहे थे
पुनः हिन्दु का हो सुयश गान जग में
संजोये यही स्वप्न पथ पर बढ़े थे
जला दीप ज्योतित किया मातृ मन्दिर
हमें अर्चना की डगर मिल गई है ॥४॥

hameṁ vīra keśava mile āpa jaba se
naī sādhanā kī ḍagara mila gaī hai ||

bhaṭakate rahe dhyeya-patha ke binā hama
na socā kabhī deśa kyā dharma kyā hai
na jānā kabhī pā manuja-tana jagata meṁ
hamāre liye śreṣṭhatama karma kyā haia
diyā jñāna jabase magara āpane hai
niraṁtara pragati kī ḍagara mila gaī hai ||1||

samāyā huā ghora tama sarvadik thā
supatha hai kidhara kucha nahīṁ sūjhatā thā
sabhī supta the ghora tama meṁ akelā
hradaya āpakā he tapī jūjhatā thā
jalākara svayaṁ ko kiyā mārga jagamaga
hameṁ preraṇā kī ḍagara mila gaī ||2||

bahuta the duaḥkhī hindu nija deśa meṁ hī
yugoṁ se sadā ghora apamāna pāyā
dravita ho gaye āpa yaha dṛśya dekhā
nahīṁ eka pala ko kabhī caina pāyā
hradaya kī vyathā saṁgha banakara phuṭa nikalī
hameṁ saṁgaṭhana kī ḍagara mila gaī hai||3||

kareṁge punaḥ hama sukhī mātṛ bhū ko
yahī āpane śabda mukha se kahe the
punaḥ hindu kā ho suyaśa gāna jaga meṁ
saṁjoye yahī svapna patha para baṛhe the
jalā dīpa jyotita kiyā mātṛ mandira
hameṁ arcanā kī ḍagara mila gaī hai ||4||

21 June 2020 yoga for stomach ho to do VAJRASHAN VAJYA NADI

वज्र सूर्य के साथ और ऊर्जा और महत्वाकांक्षा के साथ जुड़ा हुआ है। वज्र के भीतर स्थित चैत्र नाड़ी है, और चित्रा के भीतर ब्रह्मा नाड़ी है, जो सूक्ष्म नाड़ी है और माना जाता है कि इसमें जीवन चक्र ऊर्जा के मुख्य चक्र, या कताई चक्र शामिल हैं। वज्र नाडी को प्रत्येक चक्र की शक्तियों को कुंडलिनी के रूप में सक्रिय करने के लिए कहा जाता है, या प्राण ऊर्जा, नाड़ियों के माध्यम से जागती है और उठती है।

Vajra is associated with the sun and with energy and ambition. Located within vajra is the chitra nadi, and within chitra is the brahma nadi, which is the subtlest nadi and is believed to contain the main chakras, or spinning circles of life force energy. The vajra nadi is said to activate the powers of each of the chakras as the kundalini, or primal energy, awakens and rises through the nadis.

21 June special yoga songs lyrical uthakar subah savere ham yog karen yog karen. saare vishv ko yog gyaan se bodh karen

uthakar subah savere ham yog karen yog karen. saare vishv ko yog gyaan se bodh karen
https://youtu.be/p2VW8s9Rv-c
उठकर सुबह सवेरे हम योग करें योग करें।
सारे विश्व को योग ज्ञान से बोध करें बोध करें।
उठकर सुबह सवेरे हम.....

भारत की ये अमूल्य धरोहर विश्व को स्वस्थ बनाएगी।
 सूर्य नमस्कार और प्राणायाम तन मन सुखद बनाएंगे।
मानव जीवन को प्रभावित रोज करें रोज करें।
उठकर सुबह सवेरे हम..


रोग निवारण योग से होते स्वास्थ्य भी उन्नत होता।
 विश्व स्वास्थ्य को उन्नत करके मानव का निर्वाण हो।
 पातंजलि की इस विद्या का जीवन में संयोग करें।
 उठकर सुबह सवेरे हम योग करें योग करें।


उठकर सुबह सवेरे हम योग करें योग करें।
सारे विश्व को योग ज्ञान से बोध करें बोध करें।
उठकर सुबह सवेरे हम.....

uthakar subah savere ham yog karen yog karen. saare vishv ko yog gyaan se bodh karen bodh karen. uthakar subah savere ham.....  bhaarat kee ye amooly dharohar vishv ko svasth banaegee.  soory namaskaar aur praanaayaam tan man sukhad banaenge. maanav jeevan ko prabhaavit roj karen roj karen. uthakar subah savere ham..   rog nivaaran yog se hote svaasthy bhee unnat hota.  vishv svaasthy ko unnat karake maanav ka nirvaan ho.  paatanjali kee is vidya ka jeevan mein sanyog karen.  uthakar subah savere ham yog karen yog karen.   uthakar subah savere ham yog karen yog karen. saare vishv ko yog gyaan se bodh karen bodh karen. uthakar subah savere ham.....



Wake up in the morning and do yoga.
 Realize the whole world with yoga knowledge.
 I wake up in the morning…

 This invaluable heritage of India will make the world healthy.
  Surya Namaskar and Pranayama will make the body happy.
 Influence human life, do it everyday.
 I woke up in the morning


 Health would also improve with the help of disease prevention yoga.
  Upgradation of world health leads to human nirvana.
  Add Patanjali's knowledge to life.
  Wake up in the morning and do yoga.


 Wake up in the morning and do yoga.
 Realize the whole world with yoga knowledge.
 I wake up in the morning…

Friday, June 19, 2020

20/6/2020 today's special

सर्वौषधीनामममृतं प्रधानं सर्वेषु सौख्येष्वशनं प्रधानम्। सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानं सर्वेषु गात्रेषु शिरः प्रधानम्॥

Among all medicines 'Giloy' ( Tinospora Cardifolia) is pivotal/ vital because of its various medicinal properties. Among all the pleasures 'Food' is more indispensable. Among all the organs ( Indriya) 'Eyes' are premier and among all body parts ( Ang) 'Head' is most important

सभी औषधियों में अमृत (गिलोय) प्रधान है । सभी सुखों में भोजन प्रधान है । सभी इंद्रियों में आँखे मुख्य हैं । सभी अंगों में सर महत्वपूर्ण है ।

🌹🌹  

🇮🇳  घर मे रहे स्वस्थ रहे सुरक्षित रहे 🇮🇳
 आश्वासयेच्चापि परं सान्त्वधर्माथवृत्तिभिः। 
अथास्य प्रहरेत् काले यदा विचलिते पथि।। 

अर्थ - शत्रु को समझा-बुझाकर, धर्म बताकर, धन देकर और सद्व्यवहार करके आश्वासन दे--- अपने प्रति उसके मनमे विश्वास उत्पन्न करे, फिर समय आने पर ज्योंही वह मार्ग से विचलित हो त्योंही उस पर प्रहार करे। 

महाभारतम् आदिपर्व १३९-५७

Thursday, June 18, 2020

21 जून 2020 विश्व योग दिवस WORLD YOGA DAY

हरि:ॐ , 

नमस्कार । 

अपने भारत के माननीय प्रधानमंत्री 
श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयास से
 जून 21 
" विश्व योग दिवस " के रूप में  सारे विश्व में अतीव उत्साह, आनंद एवं प्रेमपूर्वक मनाया जाता है । 

 "  यम - नियम  "  विषयपर 

     चर्चा-संवाद 


विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी की उपाध्यक्षा पद्मश्री निवेदिता ( दीदी ) भिड़े जी द्वारा प्राप्त साहित्य के आधार पर

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योग के जो यम नियमादि आठ अंग है उनका अनुष्ठान करने से चित्त की अशुद्धि का क्षय होते होते ज्ञानशक्ति प्रदीप्त होती जाती है। 
यह ध्यान में लेने की बात है कि पतंजलि 
" अंग " शब्द का उपयोग करते हैं। अंग याने अवयव । अंग का अनुवाद सीढियां ऐसा नहीं होना चाहिए। क्योंकि सीढियां हमेशा एक के बाद एक ऐसी आती है जबकि अंग का अर्थ है एक साथ । योग के सारे ही अंगों की साधना करनी है। आठों अंगों की साधना साथ -साथ चलनी चाहिए। अर्थात कोई यह नहीं कह सकता कि , मैं अभी ध्यान अधिक समय करता हूं , इसलिए मुझे " यम-नियम " के अभ्यास की जरूरत नहीं है। जब केवल कुछ ही अंगों का अभ्यास होता है और बाकी अंगों की साधना नहीं होती है तब वह " योगाभ्यास " नहीं हो सकता। 


यम  ::: 

अहिंसासत्यास्तेयब्रहचर्यापरिग्रहा: यमा : । 

( पातंजल योग सूत्रे , " साधन पाद" 
सूत्र -30)

अहिंसा , सत्य , अस्तेय-चोरी न करना , ब्रम्हचर्य , अपरिग्रह -- ये पाँच  " यम "  है। 


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दूसरों के साथ का व्यवहार ( सृष्टि के साथ भी) कैसा हो यह " यम " परिभाषित करते हैं। इसीलिये " यम " का अभ्यास सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है । 

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योग यह एकात्म जीवन दर्शन पर आधारित जीवन पद्धति है । इसलिए हमारा दूसरों के साथ जो व्यवहार है, 
 वह एकात्मता पर आधारित होना चाहिए। 


अहिंसा :: अपने विचार , शब्द और कृति से किसी को भी पीड़ा न देना , अस्तित्व की पूर्णता को हानि न पहुँचाना ।

सत्य :: एक आत्मा ही अनेक रूप से प्रकट हुई है, अतः इस सारी विविधता के परे आत्मा ही है । 

अपने दैनंदिन जीवन में शब्द और कृति में दिखावा नहीं , स्वयं के बारे में बढ़ चढ़कर बोलना नहीं। सरल और पारदर्शी व्यवहार होना चाहिए। प्रामाणिकता से जीवन व्यवहार करना सत्य की साधना है। 

ब्रह्मचर्य ::: स्त्री ने पुरुषों के और पुरुषों ने स्त्री के अथवा " काम " के विचारों की पकड़ में न आना ब्रह्मचर्य पालन का महत्व का आयाम है । क्योंकि मन को विचलित करने वाला यह सबसे बलवान विचार है । 

जिससे हम समदर्शित्व प्राप्त करने के अपने ध्येय से च्युत होते हैं । 

व्यक्ति के योग विकास के लिए जो  निर्मल वातावरण परिवार और समाज में चाहिए वह ब्रह्मचर्य पालन से सम्भव होता है। 

अस्तेय ::: चोरी न करना :::: 

इसमें जो दूसरों के स्वामित्व वाली वस्तु बिना अनुमति नहीं लेना इतनाही अपेक्षित नहीं है । गीता में भगवान कृष्ण बताते हैं, सबको योगदान देने के बाद जो शेष रहता है , उसका ही उपभोग लेना । जब समाज में ऐसा व्यवहार चलता है तब समाज वैभवशाली, संवेदनशील होता है।

अपरिग्रह :::: अपने शरीर , मन , बुद्धि के
रक्षण , विकास और संवर्धन हेतु जितने साधनों की आवश्यकता है , उतना ही लेना - अपरिग्रह है। 
स्वयं के पास जरूरत से अधिक रखने से , समाज एवं सृष्टि उससे वंचित रहते हैं। 

अपरिग्रह की साधना का अर्थ है ----

अनावश्यक अथवा अधिक वस्तुओं का संग्रह नहीं करना । 

महर्षि पतंजलि व्यक्ति के जीवन में 
" यम " के महत्व को समझाकर आगे बताते हैं कि, 

एते जाति देशकालसमयानवच्छिन्ना : 
सार्वभौमा महाव्रतम्  । 

( पातंजल योग सूत्रे -- 
साधन पाद , सूत्र -31 ) 

यह पाँच  " यम " 
समय , स्थान , आयु , जाति , राष्ट्र , पद , प्रतिष्ठा  आदि का कारण न बताते हुए प्रत्येक स्त्री - पुरूष ,  बच्चों ने पालन करना चाहिए। यह सर्वत्र लागू होने वाला महाव्रत है । 

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नियम ::: 
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शौच संतोषतप स्वाध्यायेश्वर प्रणिधानानि 
नियमा : 

( पातंजल योग सूत्रे , 
साधन पाद , सूत्र - 32 ) 

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नियम यह स्वयं को योगसाधना के लिये 
तैयार करने के लिये , आत्मविकास के लिये हैं। अतः ये स्वयं से संबंधित है। 
स्वयं का दृष्टिकोण ठीक करने के लिये है ।
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शौच ::: अंतर्बाह्य शुद्धि , शुचिता । शरीर और मन को शुध्द और निर्मल रखना । 
गंदा - अव्यवस्थित व्यक्ति योग साधक नहीं हो सकता। 

संतोष :::: उपलब्ध साधनों में समाधान और उनका संतोष । मुझे ये नहीं मिला , वो नहीं मिला । ऐसा सोचने में ही मनुष्य अपना जीवन व्यर्थ गंवा देता है। ऐसी मानसिकता से जो प्राप्त है उसका भी ठीक उपयोग नहीं कर सकता । 

तप ::: तप के तीन प्रकार है । 
( गीता अध्याय -- 17 श्लोक 14 से 16 ) 

शारिरिक तप :: देवपूजा, बड़ों और ज्ञानियों का सम्मान , शरीर की स्वच्छता , सरलता, अहिंसा और ब्रह्मचर्य ।

वाणी का तप ::: जो किसीको भी उद्विग्न न करनेवाला , सत्य और प्रिय तथा हितकारक भाषण है , वह तथा स्वाध्याय और अभ्यास ( नामजप आदि ) । 

मन का तप ::: मन की प्रसन्नता , सौम्य भाव , मननशीलता , मन का निग्रह और भावों की भलीभांति शुद्धि , सकारात्मक सोच। 


स्वाध्याय ::: स्व - अध्ययन , स्व का अध्ययन । योगशास्त्र में नियमित इष्ट देवता का मंत्र जप यह भी अर्थ है। 
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ऐसे ग्रंथो का अध्ययन जो हमारा विवेक जागरूक रखें । हम अपने भारत  के उन्नति के  लिए जिन महिलाओं-महापुरुषों ने योगदान दिया है ऐसे जीवन चरित्र पढ़ने की आदत विकसित कर सकते हैं। 
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ईश्वर प्रणिधान ::: ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है -- शरणागति । अपने कर्मों का फल , कर्तृत्व , और कर्तापन ईश्वर को समर्पित करना । इससे अहंकार , कर्ताभाव से मन मुक्त होता है। शरीर - तनाव से मुक्त होता है , चित्त शुद्धि होती है। 

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सर्वे भवन्तु सुखिनः 
सर्वे सन्तु निरामयाः 
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु 
मा कश्चित् दु:खभाग् भवेत् 

ॐ शान्ति: शान्ति : शान्ति : 
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Hari: 4,


 Hi .


 Your Honorable Prime Minister of India

 With the efforts of Shri Narendra Modi

 June 21

 "World Yoga Day" is celebrated with great enthusiasm, joy and love all over the world.


 On the topic of "Yama - Rule"


 Discussion



 On the basis of literature received by Padma Shri Nivedita (Didi) Bhide Ji, Vice President of Vivekananda Center, Kanyakumari.


 Yama - sending primary information related to the rule.  It will be suitable for your discussion




 

 By performing the rituals of the Yama Niyamadi eight parts of yoga, the impurity of the mind becomes enlightened and the power of knowledge becomes enlightened.

 It is a matter of keeping in mind that Patanjali

 Use the word "organ".  Organ means.  The translation of the organ should not be like this.  Because the stairs always come one after the other while Anga means together.  All the parts of yoga have to be cultivated.  The cultivation of the eight limbs must go together.  That is, no one can say that, I meditate more time now, so I do not need to practice "Yama-Niyam".  When only a few organs are practiced and other organs are not cultivated, then they cannot be "practicing yoga".



 Yama :::


 Ahinsasatyastayabrahacharyaprigraha: yama:.


 (Patanjal Yoga Sutras, "Instrument Foot"

 Sutra-30)


 Ahimsa, truth, asthe-stealing, brahmacharya, aparigraha - these are the five "Yams".



 4


 "Yama" defines how to treat others (even with the universe).  That is why the practice of "Yama" is considered most important.


 4




 Yoga is a way of life based on the philosophy of integrated life.  That's why our dealings with others,

 It should be based on unity.



 Ahimsa :: Do not torment anyone with your thoughts, words and actions, do not harm the wholeness of existence.


 Truth :: One soul has appeared in many forms, so beyond all this diversity, it is the soul.


 In your day-to-day life, do not show in words and deeds, do not over-speak about yourself.  There should be simple and transparent behavior.  Practicing life with authenticity is the practice of truth.


 Brahmacharya ::: Women and men have not caught hold of the idea of ​​woman or "work" is a dimension of the importance of celibacy.  Because this is the most powerful thought that distracts the mind.


 With which we are distinguished by our goal of achieving equality.


 The clean environment that is needed in the family and society for yoga development of a person is possible through celibacy.


 Asthe ::: Do not steal ::::


 It does not require that the goods owned by others do not get permission without permission.  Lord Krishna says in the Gita, consume only what remains after contributing everyone.  When such behavior prevails in the society, then the society is luxurious, sensitive.


 Aparigraha :::: of your body, mind, intellect

 Taking as many means as is necessary for protection, development and promotion - it is irreconcilable.

 By keeping more with themselves, society and creation are deprived of it.


 The practice of aparigraha means ----


 Do not collect unnecessary or excessive items.


 In the life of Maharishi Patanjali

 Explaining the importance of "Yama", he further states that,


 This country

 Sovereign Mahavratham.


 (Patanjal Yoga Sutras -

 Instrument Footer, Sutra-31)


 This five "Yama"

 Every woman - men and children, should not follow the reason of time, place, age, caste, nation, position, prestige etc.  This is the applicable Mahavrata.


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 Rule :::

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 Shouk Santoshtap Swadhyayeshwar Pranidhanani

 Rules:


 (Patanjal Yoga Sutras,

 Instrument Footer, Sutra - 32)


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 Rules for self-cultivation

 To prepare, are for self-development.  Hence it is related to itself.

 The view is to correct oneself.

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 Poop ::: Intermediate purification, purity.  Keep body and mind pure and clean.

 Dirty - disorganized person cannot be a yoga practitioner.


 Contentment :::: Solutions and their satisfaction in available resources.  I did not get it, did not get it.  In thinking like this, a man loses his life in vain.  One cannot use what is gained from such a mindset.


 Tenacity ::: There are three types of tenacity.

 (Gita Adhyay - 17 verses 14 to 16)


 Shariic asceticism: Devapuja, respect for elders and knowledgeers, cleanliness of body, simplicity, non-violence and celibacy.


 Tenacity of speech ::: which is a speech that is not stirring to anyone, is true and dear and beneficial, and self-study and practice (chanting etc.).


 Tenacity of the mind ::: Pleasure of mind, gentle feeling, contemplation, grace of mind and thorough purification of emotions, positive thinking.



 Swadhyaya ::: Self-study, self-study.  It is also the meaning of regular mantra chanting of the presiding deity in Yoga.

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 Study such texts that keep our conscience aware.  We can develop the habit of reading such life characters of women and great men who have contributed to the progress of our India.

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 Ishwar Pranidhan ::: Ishwar Pranidhan means - Sharanagati.  To dedicate the fruits of your actions, to curiosity, and to God.  This frees the mind from ego and subjectivity.  Body - is free from stress, mind purification.


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 May all live happily

 Survey Santu Niramaya:

 Survey Bhadrani Pushya

 My sad sorrow


 ॐ Peace: Peace: Peace:

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