Monday, June 29, 2020
1/7/2020 Devshayani Ekadashi: Mythological Fast Story Padma (Ashadh Shukla) Ekadashi fast story Padma Ekadashi destroys all sinsदेवशयनी एकादशी : पौराणिक व्रत कथापद्मा (आषाढ़ शुक्ल) एकादशी व्रत कथासमस्त पापों का नाश करती है पद्मा एकादशी
Sunday, June 28, 2020
28/6/2020 प्रकाण्ड विद्वान अष्टावक्र Reality Scholar Ashtavakra
Friday, June 26, 2020
26/6/2020 चीन की ऐशी की तैसीं
20/6/2020अहंकार को छोड़कर ,नम्रतापूर्वक व्यवहार अपनाओ
23/6/2020se 26/6/2020amar shahid
डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बलिदान
छह जुलाई, 1901 को कोलकाता में श्री आशुतोष मुखर्जी एवं योगमाया देवी के घर में जन्मे डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को दो कारणों से सदा याद किया जाता है। पहला तो यह कि वे योग्य पिता के योग्य पुत्र थे। श्री आशुतोष मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के संस्थापक उपकुलपति थे।1924 में उनके देहान्त के बाद केवल 23 वर्ष की अवस्था में ही श्यामाप्रसाद को विश्वविद्यालय की प्रबन्ध समिति में ले लिया गया। 33 वर्ष की छोटी अवस्था में ही उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति की उस कुर्सी पर बैठने का गौरव मिला, जिसे किसी समय उनके पिता ने विभूषित किया था। चार वर्ष के अपने कार्यकाल में उन्होंने विश्वविद्यालय को चहुँमुखी प्रगति के पथ पर अग्रसर किया।
दूसरे जिस कारण से डा. मुखर्जी को याद किया जाता है, वह है जम्मू कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय की माँग को लेकर उनके द्वारा किया गया सत्याग्रह एवं बलिदान। 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के बाद गृहमन्त्री सरदार पटेल के प्रयास से सभी देसी रियासतों का भारत में पूर्ण विलय हो गया; पर प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तिगत हस्तक्षेप के कारण जम्मू कश्मीर का विलय पूर्ण नहीं हो पाया। उन्होंने वहाँ के शासक राजा हरिसिंह को हटाकर शेख अब्दुल्ला को सत्ता सौंप दी। शेख जम्मू कश्मीर को स्वतन्त्र बनाये रखने या पाकिस्तान में मिलाने के षड्यन्त्र में लगा था।
शेख ने जम्मू कश्मीर में आने वाले हर भारतीय को अनुमति पत्र लेना अनिवार्य कर दिया। 1953 में प्रजा परिषद तथा भारतीय जनसंघ ने इसके विरोध में सत्याग्रह किया। नेहरू तथा शेख ने पूरी ताकत से इस आन्दोलन को कुचलना चाहा; पर वे विफल रहे। पूरे देश में यह नारा गूँज उठा - एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान: नहीं चलेंगे।
डा. मुखर्जी जनसंघ के अध्यक्ष थे। वे सत्याग्रह करते हुए बिना अनुमति जम्मू कश्मीर में गये। इस पर शेख अब्दुल्ला ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 20 जून को उनकी तबियत खराब होने पर उन्हें कुछ ऐसी दवाएँ दी गयीं, जिससे उनका स्वास्थ्य और बिगड़ गया। 22 जून को उन्हें अस्पताल में भरती किया गया। उनके साथ जो लोग थे, उन्हें भी साथ नहीं जाने दिया गया। रात में ही अस्पताल में ढाई बजे रहस्यमयी परिस्थिति में उनका देहान्त हुआ।
मृत्यु के बाद भी शासन ने उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया। उनके शव को वायुसेना के विमान से दिल्ली ले जाने की योजना बनी; पर दिल्ली का वातावरण गरम देखकर शासन ने विमान को अम्बाला और जालन्धर होते हुए कोलकाता भेज दिया। कोलकाता में दमदम हवाई अड्डे से रात्रि 9.30 बजे चलकर पन्द्रह कि.मी दूर उनके घर तक पहुँचने में सुबह के पाँच बज गये। 24 जून को दिन में ग्यारह बजे शुरू हुई शवयात्रा तीन बजे शमशान पहुँची। हजारों लोगों ने उनके अन्तिम दर्शन किये।
आश्चर्य की बात तो यह है कि डा. मुखर्जी तथा उनके साथी शिक्षित तथा अनुभवी लोग थे; पर पूछने पर भी उन्हें दवाओं के बारे में नहीं बताया गया। उनकी मृत्यु जिन सन्देहास्पद स्थितियों में हुई तथा बाद में उसकी जाँच न करते हुए मामले पर लीपापोती की गयी, उससे इस आशंका की पुष्टि होती है कि यह नेहरू और शेख अब्दुल्ला द्वारा करायी गयी चिकित्सकीय हत्या थी।
डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अपने बलिदान से जम्मू-कश्मीर को बचा लिया। अन्यथा शेख अब्दुल्ला उसे पाकिस्तान में मिला देता।
#हरदिनपावन
24 जून/बलिदान-दिवस
महारानी दुर्गावती का बलिदान
महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। महोबा के राठ गांव में 1524 ई. की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस और शौर्य के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी।
उनका विवाह गढ़ मंडला के प्रतापी राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपतशाह से हुआ। 52 गढ़ तथा 35,000 गांवों वाले गोंड साम्राज्य का क्षेत्रफल 67,500 वर्गमील था। यद्यपि दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी। फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर राजा संग्राम शाह ने उसे अपनी पुत्रवधू बना लिया।
पर दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।
रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य उनके देवर सहित कई लोगों की आंखों में चुभ रहा था। मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया; पर हर बार वह पराजित हुआ। मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में सेनाएं भेज दीं। आसफ खां गोंडवाना के उत्तर में कड़ा मानकपुर का सूबेदार था।
एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ; पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये। रानी की भी अपार क्षति हुई। रानी उसी दिन अंतिम निर्णय कर लेना चाहती थीं। अतः भागती हुई मुगल सेना का पीछा करते हुए वे उस दुर्गम क्षेत्र से बाहर निकल गयीं। तब तक रात घिर आयी। वर्षा होने से नाले में पानी भी भर गया।
अगले दिन 24 जून, 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था। अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा। रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया। रानी ने इसे भी निकाला; पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।
रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे; पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। गढ़मंडला की इस जीत से अकबर को प्रचुर धन की प्राप्ति हुई। उसका ढहता हुआ साम्राज्य फिर से जम गया। इस धन से उसने सेना एकत्र कर अगले तीन वर्ष में चित्तौड़ को भी जीता।
जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, वहां रानी की समाधि बनी है। देशप्रेमी वहां जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
(संदर्भ : दैनिक स्वदेश 24.6.2011)
#हरदिनपावन
25 जून/इतिहास-स्मृति
*अंग्रेज सेना का समर्पण*
जिन अंग्रेजों के अत्याचार की पूरी दुनिया में चर्चा होती है, भारतीय वीरों ने कई बार उनके छक्के छुड़ाए हैं। ऐसे कई प्रसंग इतिहास के पृष्ठों पर सुरक्षित हैं। ऐसा ही एक स्वर्णिम पृष्ठ कानपुर (उ.प्र.) से सम्बन्धित है।
1857 में जब देश के अनेक भागों में भारतीय वीरों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा दिया, तो इसकी आँच से कानपुर भी सुलग उठा। यहाँ अंग्रेज इतने भयभीत थे कि 24 मई, 1857 को रानी विक्टोरिया की वर्षगाँठ के अवसर पर हर साल की तरह तोपें नहीं दागी गयीं। अंग्रेजों को भय था कि इससे भारतीय सैनिक कहीं भड़क न उठें। फिर भी चार जून को पुराने कानपुर में क्रान्तिवीर उठ खड़े हुए। मेरठ के बाद सर्वाधिक तीव्र प्रतिकिया यहाँ ही हुई थी। इससे अंग्रेज अधिकारी घबरा गये। वे अपने और अपने परिवारों के लिए सुरक्षित स्थान ढूँढने लगे। उस समय कानपुर का सैन्य प्रशासक मेजर जनरल व्हीलर था। वह स्वयं भी बहुत भयभीत था।
पुराने कानपुर को जीतने के बाद सैनिक दिल्ली की ओर चल दिये। जब ये सैनिक रात्रि में कल्याणपुर में ठहरे थे, तो नाना साहब पेशवा, तात्या टोपे और अजीमुल्ला खान भी इनसे आकर मिले। इन्होंने उन विद्रोही सैनिकों को समझाया कि कानपुर को इस प्रकार भगवान भरोसे छोड़कर आधी तैयारी के साथ दिल्ली जाने की बजाय पूरे कानपुर पर ही नियन्त्रण करना उचित है।
जब नेतृत्व का प्रश्न आया, तो इसके लिए सबने नाना साहब को अपना नेता बनाया। नाना साहब ने टीका सिंह को मुख्य सेनापति बनाया और यह सेना कानपुर की ओर बढ़ने लगी। व्हीलर को जब यह पता लगा, तो वह सब अंग्रेज परिवारों के साथ प्रयाग होते हुए कोलकाता जाने की तैयारी करने लगा; पर भारतीय सैनिकों ने इस प्रयास को विफल कर दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने गलियों और सड़कों पर ढूँढ-ढूँढकर अंग्रेजों को मारना प्रारम्भ कर दिया।
यह देखकर व्हीलर ने एक बैरक को किले का रूप दे दिया। यहाँ 210 अंग्रेज और 44 बाजा बजाने वाले भारतीय सैनिक, 100 सैन्य अधिकारी, 101 अंग्रेज नागरिक, 546 स्त्री व बच्चे अपने 25-30 भारतीय नौकरों के साथ एकत्र हो गये। नाना साहब ने व्हीलर को कानपुर छोड़ने की चेतावनी के साथ एक पत्र भेजा; पर जब इसका उत्तर नहीं मिला, तो उन्होंने इस बैरक पर हमला बोल दिया। 18 दिन तक लगातार यह संघर्ष चला।
14 जून को व्हीलर ने लखनऊ के जज गोवेन को एक पत्र लिखा। इसमें उसने कहा कि हम कानपुर के अंग्रेज मिट्टी के कच्चे घेरे में फँसे हैं। अभी तक तो हम सुरक्षित हैं; पर आश्चर्य तो इस बात का है कि हम अब तक कैसे बचे हुए हैं। हमारी एक ही याचना है सहायता, सहायता, सहायता। यदि हमें निष्ठावान 200 अंग्रेज सैनिक मिल जायें, तो हम शत्रुओं को मार गिरायेंगे।
पर उस समय लखनऊ में भी इतनी सेना नहीं थी कि कानपुर भेजी जा सके। अन्ततः व्हीलर का किला ध्वस्त हो गया। इस संघर्ष में बड़ी संख्या में अंग्रेज सैनिक हताहत हुए। देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष कर रहे अनेक भारतीय सैनिक भी बलिदान हुए। 25 जून को व्हीलर ने बैरक पर आत्मसमर्पण का प्रतीक सफेद झण्डा लहरा दिया। 1857 के संग्राम के बाद अंग्रेजों ने इस स्थान पर एक स्मृति चिन्ह (मैमोरियल क्रास) बना दिया, जो अब कानपुर छावनी स्थित राजपूत रेजिमेण्ट के परिसर में स्थित है।
#हरदिनपावन
26 जून/जन्म-दिवस
वन्देमातरम् के गायक : बंकिमचन्द्र चटर्जी
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में वन्देमातरम् नामक जिस महामन्त्र ने उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक जन-जन को उद्वेलित किया, उसके रचियता बंकिमचन्द्र चटर्जी का जन्म ग्राम काँतलपाड़ा, जिला हुगली,पश्चिम बंगाल में 26 जून, 1838 को हुआ था। प्राथमिक शिक्षा हुगली में पूर्ण कर उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कालिज से उच्च शिक्षा प्राप्त की। पढ़ाई के साथ-साथ छात्र जीवन से ही उनकी रुचि साहित्य के प्रति भी थी।
शिक्षा पूर्ण कर उन्होंने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी और उसमें उत्तीर्ण होकर वे डिप्टी कलेक्टर बन गये। इस सेवा में आने वाले वे प्रथम भारतीय थे। नौकरी के दौरान ही उन्होंने लिखना प्रारम्भ किया। पहले वे अंग्रेजी में लिखते थे। उनका अंग्रेजी उपन्यास ‘राजमोहन्स वाइफ’ भी खूब लोकप्रिय हुआ; पर आगे चलकर वे अपनी मातृभाषा बंगला में लिखने लगे।
1864 में उनका पहला बंगला उपन्यास ‘दुर्गेश नन्दिनी’ प्रकाशित हुआ। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि इसके पात्रों के नाम पर बंगाल में लोग अपने बच्चों के नाम रखने लगे। इसके बाद 1866 में ‘कपाल कुण्डला’ और 1869 में ‘मृणालिनी’ उपन्यास प्रकाशित हुए। 1872 में उन्होंने ‘बंग दर्शन’ नामक पत्र का सम्पादन भी किया; पर उन्हें अमर स्थान दिलाया ‘आनन्द मठ’ नामक उपन्यास ने, जो 1882 में प्रकाशित हुआ।
आनन्द मठ में देश को मातृभूमि मानकर उसकी पूजा करने और उसके लिए तन-मन और धन समर्पित करने वाले युवकों की कथा थी, जो स्वयं को ‘सन्तान’ कहते थे। इसी उपन्यास में वन्देमातरम् गीत भी समाहित था। इसे गाते हुए वे युवक मातृभूमि के लिए मर मिटते थे। जब यह उपन्यास बाजार में आया, तो वह जन-जन का कण्ठहार बन गया। इसने लोगों के मन में देश के लिए मर मिटने की भावना भर दी। वन्देमातरम् सबकी जिह्ना पर चढ़ गया।
1906 में अंग्रेजों ने बंगाल को हिन्दू तथा मुस्लिम आधार पर दो भागों में बाँटने का षड्यन्त्र रचा। इसकी भनक मिलते ही लोगों में क्रोध की लहर दौड़ गयी। 7 अगस्त, 1906 को कोलकाता के टाउन हाल में एक विशाल सभा हुई, जिसमें पहली बार यह गीत गाया गया। इसके एक माह बाद 7 सितम्बर को वाराणसी के कांग्रेस अधिवेशन में भी इसे गाया गया। इससे इसकी गूँज पूरे देश में फैल गयी। फिर क्या था, स्वतन्त्रता के लिए होने वाली हर सभा, गोष्ठी और आन्दोलन में वन्देमातरम् का नाद होने लगा।
यह देखकर शासन के कान खड़े हो गये। उसने आनन्द मठ और वन्देमातरम् गान पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इसे गाने वालों को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाते थे; लेकिन प्रतिबन्धों से भला भावनाओं का ज्वार कभी रुक सका है ? अब इसकी गूँज भारत की सीमा पारकर विदेशों में पहुँच गयी। क्रान्तिवीरों के लिए यह उपन्यास गीता तथा वन्देमातरम् महामन्त्र बन गया। वे फाँसी पर चढ़ते समय यही गीत गाते थे। इस प्रकार इस गीत ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में अतुलनीय योगदान दिया।
बंकिम के प्रायः सभी उपन्यासों में देश और धर्म के संरक्षण पर बल रहता था। उन्होंने विभिन्न विषयों पर लेख, निबन्ध और व्यंग्य भी लिखे। इससे बंगला साहित्य की शैली में आमूल चूल परिवर्तन हुआ। 8 अपै्रल, 1894 को उनका देहान्त हो गया। स्वतन्त्रता मिलने पर वन्देमातरम् को राष्ट्रगान के समतुल्य मानकर राष्ट्रगीत का सम्मान दिया गया।
#हरदिनपावन
Thursday, June 25, 2020
25/6/2020आभा क्या है? What is Aura?
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩25/6/2020 गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राणअर्पित कोटी कोटी प्रणाम guru vandy mahaan bhagava ekahee jeevan praan arpit kotee kotee pranaam
अर्पित कोटी कोटी प्रणाम ॥ध्रु॥
शोणित वर्णो में अंकित है सारे उज्ज्वल त्याग
व्याप्त किया है दिव्य दृष्टि से ×2 अखंड भारतभाग
लखकर तड़पन देशभक्ति की भड़के भीतर आग
कटिबद्ध खड़े तव छाया में हम भारतभूसंतान ॥१॥
गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राण
अर्पित कोटी कोटी प्रणाम
शौर्य वीर्य के जग में गूंजा स्फूर्तिप्रद इतिहास
देखे निज नेत्रो से भीषण×2 असंख्य रणसंग्राम
देहदंड और कष्ट हुए पर करते निज बलिदान
बलिदान नही वह पूजन केवल रखने को सम्मान ॥२॥
गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राण
अर्पित कोटी कोटी प्रणाम
ऋषी तपस्वी महामुनी का संतो का अभिमान
आदिकाल से तुमने पाया ×2 अग्रपुजा का मान
महा सुभागी देखोगे अब भावी वैभवकाल
बने यशस्वी यही सुमंगल दे दो शुभ वरदान ॥३॥
गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राण
अर्पित कोटी कोटी प्रणाम
शुद्धशीलता चरित्रता की पावित्रता की खान
अभय वीरता शौर्य धीरता ×2 संयम शांतिनिधान
सद्भावो से माना हमने पूज्य गुरु भगवान
अतीव पावन तब प्रति अर्पण स्वदेशहित यह प्राण ॥४॥
गुरु वंद्य महान भगवा एकही जीवन प्राण
अर्पित कोटी कोटी प्रणाम
Monday, June 22, 2020
23/6/2020चिर विजय की कामना है चिर विजयCHir vijaya kī kāmanā ha vijaya kī
चिर विजय की कामना ही
चिर विजय की कामना ही राष्ट्र का आधार है
CHir vijaya kī kāmanā ha
vijaya kī विजय की कामना ही
चिर विजय की कामना ही राष्ट्र का आधार है॥
जागते यह भाव ले जब सुप्त मानव
भागते हैं हारकर तब दुष्ट-दानव
विजय इच्छा चिर सनातन नित्य-अभिनव
आज की शत व्याधियों का श्रेष्ठतम उपचार है॥
शान्त-चिर-गम्भीर और जयिष्णु राघव
क्रान्तिकारी सर्वगुण सम्पन्न माधव
कर सके जिस तत्व से अरि का पराभव
वह विजय की कामना ही राष्ट्र का आधार है॥
दिया हमने छोड़ जब-जब चिर-विजय-व्रत
हुए तब पददलित पीड़ित और श्रीहत
छोड़ सम्भ्रम उसी पथ पर फिर बढ़े रथ
जहाँ बढ़ते जीत होती और रुकते हार है ॥
हो यही दृढ़ भाव अपना श्रेष्ठतम धन
आत्म गरिमायुक्त होवे राष्ट्र-जीवन
संगठन कि शक्ति का हो संघ दर्पण
निहित जिसमें राष्ट्र-पोषक भावना साकार है॥
English Transliteration;
cira vijaya kī kāmanā hī
cira vijaya kī kāmanā hī rāṣṭra kā ādhāra hai ||
jāgate yaha bhāva le jaba supta mānava
bhāgate haiṁ hārakara taba duṣṭa-dānava
vijaya icchā cira sanātana nitya-abhinava
āja kī śata vyādhiyoṁ kā śreṣṭhatama upacāra hai ||
śānta-cira-gambhīra aura jayiṣṇu rāghava
krāntikārī sarvaguṇa sampanna mādhava
kara sake jisa tatva se ari kā parābhava
vaha vijaya kī kāmanā hī rāṣṭra kā ādhāra hai ||
diyā hamane choṛa jaba-jaba cira-vijaya-vrata
hue taba padadalita pīṛita aura śrīhata
choṛa sambhrama usī patha para phira baṛhe ratha
jahā baṛhate jīta hotī aura rukate hāra hai ||
ho yahī dṛṛha bhāva apanā śreṣṭhatama dhana
ātma garimāyukta hove rāṣṭra-jīvana
saṁgaṭhana ki śakti kā ho saṁgha darpaṇa
nihita jisameṁ rāṣṭra-poṣaka bhāvanā sākāra hai ||
22ल/6/2020 कालिदासजयन्त्याः हार्दिक- शुभकामनाः।
Sunday, June 21, 2020
21/6/2020हम सभी का जन्म तव प्रतिबिम्ब सा बन जाय॥और अधुरी साधना चिर पूर्ण बस हो जाय।
और अधुरी साधना चिर पूर्ण बस हो जाय।
बाल्य जीवन से लगाकर अन्त तक की दिव्य झांकी
मूक आजीवन तपस्या जा सके किस भाँति आँकी
क्षीर सिंधु अथाह विधि से भी न नापा जाय
चाह है उस सिंधु की हम बूँद ही बन जायँ ॥१॥
एक भी क्षण जन्म में नही आपने विश्राम पाया
रक्त के प्रत्येक कण को हाय पानी सा सुखाया।
आत्म-आहुती दे बताया राष्ट्र-मुक्ति उपाय
एक चिनगारी हमें उस यज्ञ की छू जाय ॥२॥
थे अकेले आप लेकिन बीज का था भाव पाया
बो दिया निज को अमर वट संघ भारत में उगाया।
राष्ट्र ही क्या अखिल जग का आसरा हो जाय
और उसकी हम टहनियाँ-पत्तियाँ बन जायँ॥३॥
आपके दिल की कसक हो वेदना जागृत हमारी
याचि देही याचि डोला मन्त्र रटते हैं पुजारी।
बढ़ रहे हम आपक आशीष स्वग्रिक पाय
जो सिखया आपने प्रत्यक्ष हम कर पायँ ॥४॥
साधना की पूर्ति फिर लवमात्र में हो जाय॥
English Transliteration:
hama sabhī kā janma tava pratibimba sā bana jāya||
aura adhurī sādhanā cira pūrṇa basa ho jāaya |
bālya jīvana se lagākara anta taka kī divya jhāṁkī
mūka ājīvana tapasyā jā sake kisa bhāti ākī
kṣīra siṁdhu athāha vidhi se bhī na nāpā jāya
cāha hai usa siṁdhu kī hama būda hī bana jāya ||1 ||
eka bhī kṣhaṇa janma meṁ nahī āpane viśrāma pāyā
rakta ke pratyeka kaṇa ko hāya pānī sā sukhāyā |
ātma-āhutī de batāyā rāṣṭra-mukti upāya
eaka cinagārī hameṁ usa yajña kī chū jāya ||2||
the akele āpa lekina bīja kā thā bhāva pāyā
bo diyā nija ko amara vaṭa saṁgha bhārata meṁ ugāyā |
rāṣṭra hī kyā akhila jaga kā āsarā ho jāya
aura usakī hama ṭahaniyā-pattiyā bana jāya ||3||
āpake dila kī kasaka ho vedanā jāgṛta hamārī
yāci dehī yāci ḍolā mantra raṭate haiṁ pujārī |
baṛha rahe hama āpaka āśīṣa svagrika pāya
jo sikhayā āpane pratyakṣa hama kara pāya ||4||
sādhanā kī pūrti phira lavamātra meṁ ho jāya||
21/6/2020 SANGEETMALA RSSव्यक्ति - व्यक्ति में जगायें राष्ट्र चेतना vyakti - vyakti mein jagaayen raashtr chetana
नित्य शाखा जाह्नवी पुनीत जल धरा , साधना की पुण्य भूमि शक्ति पीठ का रजकणों में प्रकट दिव्य दीपमालिका , हो तपस्वी के समान संघ साधना ॥ १ ॥ साधना ..
हे प्रभु तू विश्व की अजेय शक्ति दे ,
जगत हो विनम्र ऐसा शील हमको दे ।
कष्ट से भरा हुआ यह पंथ काटने ,
ज्ञान दे कि हो सरल हमारी साधना ॥ २ ॥ साधना ..
विजय शालिनी संघ बद्ध कार्य शक्ति दे ,
दिव्य और अखण्ड ध्येय निष्ठा हमको दे ।
राष्ट्र धर्म रक्षणार्थ वीरवत स्फूरे
तब कृपा से हो सफल हमारी साधना ॥ ३ ॥ साधना ....
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vyakti - vyakti mein jagaayen raashtr chetana
vyakti - vyakti mein jagaayen raashtr chetana .
jan man sanskaar karen yahee saadhana ..
saadhana nity saadhana . saadhana akhand saadhana .dhru ..
nity shaakha jaahnavee puneet jal dhara , saadhana kee puny bhoomi shakti peeth ka rajakanon mein prakat divy deepamaalika , ho tapasvee ke samaan sangh saadhana . 1 . saadhana ..
he prabhu too vishv kee ajey shakti de ,
jagat ho vinamr aisa sheel hamako de .
kasht se bhara hua yah panth kaatane ,
gyaan de ki ho saral hamaaree saadhana . 2 . saadhana ..
vijay shaalinee sangh baddh kaary shakti de ,
divy aur akhand dhyey nishtha hamako de .
raashtr dharm rakshanaarth veeravat sphoore
tab krpa se ho saphal hamaaree saadhana . 3 .
saadhana ....
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Person - awaken the nation consciousness
the person -
awaken the nation consciousness in the person. This practice should be done in public mind. Spiritual practice. Sadhana Akhanda Sadhana॥ Dhru.
Continuous branch Jahnavi Punit Jal Dhara, the divine land of Shakti Peeth, the holy land of meditation Sadhna ..
Lord, give me the unstoppable power of the world, give me such humble humility to the world. Cut this cult full of trouble and give knowledge that our practice should be simple. 2 Sadhana ..
Vijay Shalini Sangha, give us working power, give us divine and unquestionable loyalty. For the protection of the nation, Veerwat Sphure will then be successful in our practice. 3 Sadhana ...
21june 2020 हमें वीर केशव मिले आप जब सेनई साधना की डगर मिल गई है॥hameṁ vīra keśava mile āpa jaba senaī sādhanā kī ḍagara mila gaī hai
https://youtu.be/r87H3WtIcns
हमें वीर केशव मिले आप जब से
नई साधना की डगर मिल गई है॥
भटकते रहे ध्येय-पथ के बिना हम
न सोचा कभी देश क्या धर्म क्या है
न जाना कभी पा मनुज-तन जगत में
हमारे लिये श्रेष्ठतम कर्म क्या है
दिया ज्ञान जबसे मगर आपने है
निरंतर प्रगति की डगर मिल गई है ॥१॥
समाया हुआ घोर तम सर्वदिक् था
सुपथ है किधर कुछ नहीं सूझता था
सभी सुप्त थे घोर तम में अकेला
ह्रदय आपका हे तपी जूझता था
जलाकर स्वयं को किया मार्ग जगमग
हमें प्रेरणा की डगर मिल गई ॥२॥
बहुत थे दुःखी हिन्दु निज देश में ही
युगों से सदा घोर अपमान पाया
द्रवित हो गये आप यह दृश्य देखा
नहीं एक पल को कभी चैन पाया
ह्रदय की व्यथा संघ बनकर फुट निकली
हमें संगठन की डगर मिल गई है॥३॥
करेंगे पुनः हम सुखी मातृ भू को
यही आपने शब्द मुख से कहे थे
पुनः हिन्दु का हो सुयश गान जग में
संजोये यही स्वप्न पथ पर बढ़े थे
जला दीप ज्योतित किया मातृ मन्दिर
हमें अर्चना की डगर मिल गई है ॥४॥
hameṁ vīra keśava mile āpa jaba se
naī sādhanā kī ḍagara mila gaī hai ||
bhaṭakate rahe dhyeya-patha ke binā hama
na socā kabhī deśa kyā dharma kyā hai
na jānā kabhī pā manuja-tana jagata meṁ
hamāre liye śreṣṭhatama karma kyā haia
diyā jñāna jabase magara āpane hai
niraṁtara pragati kī ḍagara mila gaī hai ||1||
samāyā huā ghora tama sarvadik thā
supatha hai kidhara kucha nahīṁ sūjhatā thā
sabhī supta the ghora tama meṁ akelā
hradaya āpakā he tapī jūjhatā thā
jalākara svayaṁ ko kiyā mārga jagamaga
hameṁ preraṇā kī ḍagara mila gaī ||2||
bahuta the duaḥkhī hindu nija deśa meṁ hī
yugoṁ se sadā ghora apamāna pāyā
dravita ho gaye āpa yaha dṛśya dekhā
nahīṁ eka pala ko kabhī caina pāyā
hradaya kī vyathā saṁgha banakara phuṭa nikalī
hameṁ saṁgaṭhana kī ḍagara mila gaī hai||3||
kareṁge punaḥ hama sukhī mātṛ bhū ko
yahī āpane śabda mukha se kahe the
punaḥ hindu kā ho suyaśa gāna jaga meṁ
saṁjoye yahī svapna patha para baṛhe the
jalā dīpa jyotita kiyā mātṛ mandira
hameṁ arcanā kī ḍagara mila gaī hai ||4||हमें वीर केशव मिले आप जब से
नई साधना की डगर मिल गई है॥
भटकते रहे ध्येय-पथ के बिना हम
न सोचा कभी देश क्या धर्म क्या है
न जाना कभी पा मनुज-तन जगत में
हमारे लिये श्रेष्ठतम कर्म क्या है
दिया ज्ञान जबसे मगर आपने है
निरंतर प्रगति की डगर मिल गई है ॥१॥
समाया हुआ घोर तम सर्वदिक् था
सुपथ है किधर कुछ नहीं सूझता था
सभी सुप्त थे घोर तम में अकेला
ह्रदय आपका हे तपी जूझता था
जलाकर स्वयं को किया मार्ग जगमग
हमें प्रेरणा की डगर मिल गई ॥२॥
बहुत थे दुःखी हिन्दु निज देश में ही
युगों से सदा घोर अपमान पाया
द्रवित हो गये आप यह दृश्य देखा
नहीं एक पल को कभी चैन पाया
ह्रदय की व्यथा संघ बनकर फुट निकली
हमें संगठन की डगर मिल गई है॥३॥
करेंगे पुनः हम सुखी मातृ भू को
यही आपने शब्द मुख से कहे थे
पुनः हिन्दु का हो सुयश गान जग में
संजोये यही स्वप्न पथ पर बढ़े थे
जला दीप ज्योतित किया मातृ मन्दिर
हमें अर्चना की डगर मिल गई है ॥४॥
hameṁ vīra keśava mile āpa jaba se
naī sādhanā kī ḍagara mila gaī hai ||
bhaṭakate rahe dhyeya-patha ke binā hama
na socā kabhī deśa kyā dharma kyā hai
na jānā kabhī pā manuja-tana jagata meṁ
hamāre liye śreṣṭhatama karma kyā haia
diyā jñāna jabase magara āpane hai
niraṁtara pragati kī ḍagara mila gaī hai ||1||
samāyā huā ghora tama sarvadik thā
supatha hai kidhara kucha nahīṁ sūjhatā thā
sabhī supta the ghora tama meṁ akelā
hradaya āpakā he tapī jūjhatā thā
jalākara svayaṁ ko kiyā mārga jagamaga
hameṁ preraṇā kī ḍagara mila gaī ||2||
bahuta the duaḥkhī hindu nija deśa meṁ hī
yugoṁ se sadā ghora apamāna pāyā
dravita ho gaye āpa yaha dṛśya dekhā
nahīṁ eka pala ko kabhī caina pāyā
hradaya kī vyathā saṁgha banakara phuṭa nikalī
hameṁ saṁgaṭhana kī ḍagara mila gaī hai||3||
kareṁge punaḥ hama sukhī mātṛ bhū ko
yahī āpane śabda mukha se kahe the
punaḥ hindu kā ho suyaśa gāna jaga meṁ
saṁjoye yahī svapna patha para baṛhe the
jalā dīpa jyotita kiyā mātṛ mandira
hameṁ arcanā kī ḍagara mila gaī hai ||4||
21 June 2020 yoga for stomach ho to do VAJRASHAN VAJYA NADI
Vajra is associated with the sun and with energy and ambition. Located within vajra is the chitra nadi, and within chitra is the brahma nadi, which is the subtlest nadi and is believed to contain the main chakras, or spinning circles of life force energy. The vajra nadi is said to activate the powers of each of the chakras as the kundalini, or primal energy, awakens and rises through the nadis.
21 June special yoga songs lyrical uthakar subah savere ham yog karen yog karen. saare vishv ko yog gyaan se bodh karen
Friday, June 19, 2020
20/6/2020 today's special
Thursday, June 18, 2020
21 जून 2020 विश्व योग दिवस WORLD YOGA DAY
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navayug kee nav gati navalay ham navayug kee nav gati nav lay ham saadh rahe hokar nirbhay https://youtu.be/J8jRXrYrKbk गीत ( हि...
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Kavita वो घोड़े समर भवानी के, लक्ष्मी बाई मर्दानी के। तू चूक गया लिखते- लिखते कुछ पन्ने अमर कहानी के।। तू एक उछाल हुमक भरता, ना...
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राष्ट्र सेविका समिति की प्रार्थना नमामो वयं मातृभूः पुण्यभूस्त्वाम् त्वया वर्धिताः संस्कृतास्त्वत्सुताः अये वत्सले मग्डले हिन्दुभूमे स्वयं...