Sunday, June 28, 2020

28/6/2020 प्रकाण्ड विद्वान अष्टावक्र Reality Scholar Ashtavakra

***** प्रकाण्ड विद्वान  #अष्टावक्र *****

#अष्टावक्र  इतने प्रकाण्ड विद्वान थे  कि  माँ के गर्भ से ही अपने पिताजी  "कहोड़" को अशुद्ध वेद पाठ करने के लिये टोंक दिए जिससे क्रुद्ध होकर पिताजी ने आठ जगह से टेड़ें हो जाने का श्राप दे दिया था ।

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#इस_रोचक__पौराणिक_कथा_को__जरूर__पढ़ें ......
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अष्टावक्र अद्वैत वेदान्त के महत्वपूर्ण ग्रन्थ अष्टावक्र गीता के ऋषि हैं। अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। 

'अष्टावक्र' का अर्थ 'आठ जगह से टेढा' होता है। 
कहते हैं कि अष्टावक्र का शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था।

उद्दालक ऋषि के पुत्र का नाम श्‍वेतकेतु था। उद्दालक ऋषि के एक शिष्य का नाम कहोड़ था। कहोड़ को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान देने के पश्‍चात् उद्दालक ऋषि ने उसके साथ अपनी रूपवती एवं गुणवती कन्या सुजाता का विवाह कर दिया। कुछ दिनों के बाद सुजाता गर्भवती हो गई। एक दिन कहोड़ वेदपाठ कर रहे थे तो गर्भ के भीतर से बालक ने कहा कि पिताजी! आप वेद का गलत पाठ कर रहे हैं। यह सुनते ही कहोड़ क्रोधित होकर बोले कि तू गर्भ से ही मेरा अपमान कर रहा है इसलिये तू आठ स्थानों से वक्र (टेढ़ा) हो जायेगा।

हठात् एक दिन कहोड़ राजा जनक के दरबार में जा पहुँचे। वहाँ बंदी से शास्त्रार्थ में उनकी हार हो गई। हार हो जाने के फलस्वरूप उन्हें जल में डुबा दिया गया। इस घटना के बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ। पिता के न होने के कारण वह अपने नाना उद्दालक को अपना पिता और अपने मामा श्‍वेतकेतु को अपना भाई समझता था। एक दिन जब वह उद्दालक की गोद में बैठा था तो श्‍वेतकेतु ने उसे अपने पिता की गोद से खींचते हुये कहा कि हट जा तू यहाँ से, यह तेरे पिता का गोद नहीं है। अष्टावक्र को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने तत्काल अपनी माता के पास आकर अपने पिता के विषय में पूछताछ की। माता ने अष्टावक्र को सारी बातें सच-सच बता दीं।

अपनी माता की बातें सुनने के पश्‍चात् अष्टावक्र अपने मामा श्‍वेतकेतु के साथ बंदी से शास्त्रार्थ करने के लिये राजा जनक के यज्ञशाला में पहुँचे। वहाँ द्वारपालों ने उन्हें रोकते हुये कहा कि यज्ञशाला में बच्चों को जाने की आज्ञा नहीं है। इस पर अष्टावक्र बोले कि अरे द्वारपाल! केवल बाल श्वेत हो जाने या अवस्था अधिक हो जाने से कोई बड़ा व्यक्ति नहीं बन जाता। जिसे वेदों का ज्ञान हो और जो बुद्धि में तेज हो वही वास्तव में बड़ा होता है। इतना कहकर वे राजा जनक की सभा में जा पहुँचे और बंदी को शास्त्रार्थ के लिये ललकारा।

राजा जनक ने अष्टावक्र की परीक्षा लेने के लिये पूछा कि वह पुरुष कौन है जो तीस अवयव, बारह अंश, चौबीस पर्व और तीन सौ साठ अक्षरों वाली वस्तु का ज्ञानी है? राजा जनक के प्रश्‍न को सुनते ही अष्टावक्र बोले कि राजन्! चौबीस पक्षों वाला, छः ऋतुओं वाला, बारह महीनों वाला तथा तीन सौ साठ दिनों वाला संवत्सर आपकी रक्षा करे। अष्टावक्र का सही उत्तर सुनकर राजा जनक ने फिर प्रश्‍न किया कि वह कौन है जो सुप्तावस्था में भी अपनी आँख बन्द नहीं रखता? जन्म लेने के उपरान्त भी चलने में कौन असमर्थ रहता है? कौन हृदय विहीन है? और शीघ्रता से बढ़ने वाला कौन है? अष्टावक्र ने उत्तर दिया कि हे जनक! सुप्तावस्था में मछली अपनी आँखें बन्द नहीं रखती। जन्म लेने के उपरान्त भी अंडा चल नहीं सकता। पत्थर हृदयहीन होता है और वेग से बढ़ने वाली नदी होती है।

अष्टावक्र के उत्तरों को सुकर राजा जनक प्रसन्न हो गये और उन्हें बंदी के साथ शास्त्रार्थ की अनुमति प्रदान कर दी। बंदी ने अष्टावक्र से कहा कि एक सूर्य सारे संसार को प्रकाशित करता है, देवराज इन्द्र एक ही वीर हैं तथा यमराज भी एक है। अष्टावक्र बोले कि इन्द्र और अग्निदेव दो देवता हैं। नारद  तथा पर्वत दो देवर्षि हैं, अश्‍वनीकुमार भी दो ही हैं। रथ के दो पहिये होते हैं और पति-पत्नी दो सहचर होते हैं। बंदी ने कहा कि संसार तीन प्रकार से जन्म धारण करता है। कर्मों का प्रतिपादन तीन वेद करते हैं। तीनों काल में यज्ञ होता है तथा तीन लोक और तीन ज्योतियाँ हैं। अष्टावक्र बोले कि आश्रम  चार हैं, वर्ण चार हैं, दिशायें चार हैं और ओंकार, आकार, उकार तथा मकार ये वाणी के प्रकार भी चार हैं। बंदी ने कहा कि यज्ञ पाँच प्रकार के होते हैं, यज्ञ की अग्नि पाँच हैं, ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच हैं, पंच दिशाओं की अप्सरायें पाँच हैं, पवित्र नदियाँ पाँच हैं तथा पंक्‍ति छंद में पाँच पद होते हैं। अष्टावक्र बोले कि दक्षिणा में छः गौएँ देना उत्तम है, ऋतुएँ छः होती हैं, मन सहित इन्द्रयाँ छः हैं, कृतिकाएँ छः होती हैं और साधस्क भी छः ही होते हैं। बंदी ने कहा कि पालतू पशु सात उत्तम होते हैं और वन्य पशु भी सात ही, सात उत्तम छंद हैं, सप्तर्षि  सात हैं और वीणा में तार भी सात ही होते हैं। अष्टावक्र बोले कि आठ वसु हैं तथा यज्ञ के स्तम्भक कोण भी आठ होते हैं। बंदी ने कहा किपितृ यज्ञ में समिधा नौ छोड़ी जाती है, प्रकृति नौ प्रकार की होती है तथा वृहती छंद में अक्षर भी नौ ही होते हैं। अष्टावक्र बोले कि दिशाएँ दस हैं, तत्वज्ञ दस होते हैं, बच्चा दस माह में होता है और दहाई में भी दस ही होता है।  बंदी ने कहा कि ग्यारह रुद्र हैं, यज्ञ में ग्यारह स्तम्भ होते हैं और पशुओं की ग्यारह इन्द्रियाँ होती हैं। अष्टावक्र बोले कि बारह आदित्य होते हैं बारह दिन का प्रकृति यज्ञ होता है, जगती छंद में बारह अक्षर होते हैं और वर्ष भी बारह मास का ही होता है। बंदी ने कहा कि त्रयोदशी उत्तम होती है, पृथ्वी पर तेरह द्वीप हैं।...... इतना कहते कहते बंदी श्‍लोक की अगली पंक्ति भूल गये और चुप हो गये। इस पर अष्टावक्र ने श्‍लोक को पूरा करते हुये कहा कि वेदों में तेरह अक्षर वाले छंद अति छंद कहलाते हैं और अग्नि, वायु तथा सूर्य तीनों तेरह दिन वाले यज्ञ में व्याप्त होते हैं।

इस प्रकार शास्त्रार्थ में बंदी की हार हो जाने पर अष्टावक्र ने कहा कि राजन्! यह हार गया है, अतएव इसे भी जल में डुबो दिया जाये। तब बंदी बोला कि हे महाराज! मैं वरुण का पुत्र हूँ और मैंने सारे हारे हुये ब्राह्मणों को अपने पिता के पास भेज दिया है। मैं अभी उन सबको आपके समक्ष उपस्थित करता हूँ। बंदी के इतना कहते ही बंदी से शास्त्रार्थ में हार जाने के पश्चात जल में डुबोये गये सार ब्राह्मण जनक की सभा में आ गये जिनमें अष्टावक्र के पिता कहोड़ भी थे।

अष्टावक्र ने अपने पिता के चरणस्पर्श किये। तब कहोड़ ने प्रसन्न होकर कहा कि पुत्र! तुम जाकर समंगा नदी में स्नान करो, उसके प्रभाव से तुम मेरे शाप से मुक्त हो जाओगे। तब अष्टावक्र ने इस स्थान में आकर समंगा नदी में स्नान किया और उसके सारे वक्र अंग सीधे हो गये।
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***** Reality Scholar # Ashtavakra *****

 #Ashtavakra was such a learned scholar that from his mother's womb he gave his father "Kahod" to recite impure Vedas, which caused the father to become angry and curse him from eight places.

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 # Read this_reader__political_fiction_co__Roor__ ……
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 Ashtavakra is the sage of Ashtavakra Gita, the important text of Advaita Vedanta.  Ashtavakra Gita is an important text of Advaita Vedanta.

 Ashtavakra means 'twisted from eight places'.
 It is said that Ashtavakra's body was crooked from eight places.

 The name of the son of Uddālaka sage was तvetaketu.  Uddālaka was the name of a disciple of the sage.  After imparting knowledge of the entire Vedas to Kahod, Uddālaka sage married Sujātā, his beautiful and quality girl with him.  Sujata became pregnant after a few days.  One day when he was doing Vedas, the child said from inside the womb that father!  You are misreading the Veda.  On hearing this, he got angry and said that you are insulting me from the womb, so you will be curved from eight places.

 After a day Kahod reached the court of King Janak.  He was defeated by the captive in the debate.  As a result of defeat, they were immersed in water.  Ashtavakra was born after this incident.  Due to the absence of a father, he considered his grandfather Uddālaka as his father and his maternal uncle तvetaketu as his brother.  One day when he was sitting on Uddālaka's lap, Shvetketu pulled him from his father's lap and said, "Get away from here, this is not your father's lap."  Ashtavakra did not like this and immediately came to his mother and inquired about her father.  Mother told the truth to Ashtavakra.

 After listening to his mother's words, Ashtavakra, along with his maternal uncle Shvetketu, arrived at the yagyashala of King Janaka to debate the prisoner.  The gatekeepers stopped them there and said that children are not allowed to go to the Yagyashala.  On this Ashtavakra said that hey gatekeeper!  A person does not become a big person only because the hair turns white or gets more.  The one who has knowledge of the Vedas and who is sharp in intellect, is really big.  Having said this, he went to the meeting of King Janak and challenged the captive for debate.

 In order to test Ashtavakra, King Janaka asked, who is the man who is knowledgeable of thirty elements, twelve parts, twenty-four festivals and three hundred and sixty characters?  On hearing King Janak's question, Ashtavakra said that Rajan!  Twenty-four sides, six seasons, twelve months and three hundred and sixty days of protection will protect you.  Hearing the correct answer of Ashtavakra, King Janak again asked that who is he who does not keep his eyes closed even in dormancy?  Who is unable to walk even after taking birth?  Who is heartless?  And who is going to grow fast?  Ashtavakra replied, O father!  Fish do not keep their eyes closed during sleep.  The egg cannot move even after birth.  The stone is heartless and is a fast growing river.

 After listening to Ashtavakra's answer, King Janaka was pleased and gave him permission to debate with the captive.  The captive told Ashtavakra that one sun illuminates the whole world, Devraj Indra is the same hero and Yamraj is also one.  Ashtavakra said that Indra and Agnidev are two gods.  Narada and Parvat are two devarshi, Ashwanyakumar is also two.  The chariot has two wheels and the husband and wife have two companions.  Bandi said that the world bears birth in three ways.  The Karma renders three Vedas.  Yajna takes place in all three periods and there are three worlds and three lights.  Ashtavakra said that the ashram is four, the varna is four, the directions are four and the types of speech are also four, onkar, shape, ukar and macar.  Bandi said that there are five types of Yajna, five types of fire of Yajna, five are Gyanendrias, five are Apsaras of directions, five are sacred rivers and five verses in line verses.  Ashtavakra said that it is best to give six cows in Dakshina, the seasons are six, the senses with the mind are six, the creations are six and the seekers are also six.  The prisoner said that domestic animals are seven best and wild animals are also seven, seven are good verses, seven are seven and the strings are only seven in Veena.  Ashtavakra said that there are eight Vasus and the pillar angles of the Yajna are also eight.  Captive saidIn Pitru Yajna, samidha is omitted nine, nature is of nine types and in the verses verses there are only nine.  Ashtavakra said that the directions are ten, the metaphysics is ten, the child is in ten months and ten is also ten.  The captive said that there are eleven Rudras, there are eleven pillars in the Yajna and eleven senses of animals.  Ashtavakra said that there are twelve Adityas, there is a twelve-day Prakriti Yajna, Jagati verses have twelve letters and the year is also of twelve months.  The captive said that Trayodashi is good, there are thirteen islands on earth.…. Saying this, the captives forgot the front line of the verse and fell silent.  On this, Ashtavakra completed the verse, saying that the thirteen-letter verses in the Vedas are called extreme verses and that fire, air and sun permeate all three thirteen-day yagyas.

 In this way, Ashtavakra said that the prisoner was defeated in the debate.  It is lost, so it should also be immersed in water.  Then the captives said that, O Maharaj!  I am the son of Varuna and I have sent all the lost Brahmins to my father.  I present them all to you right now.  As soon as the captive had said so, after losing the confinement to the prisoner, the sarvats immersed in water came to the meeting of the Brahmin Janak, which included Ashtavakra's father Kahod.

 Ashtavakra touched the feet of her father.  Then Kahod was pleased and said that son!  You go and bathe in the Samanga River, because of that you will be freed from my curse.  Then Ashtavakra came to this place and bathed in the Samanga River and all its curved limbs became straight.

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