हरि:ॐ ,
नमस्कार ।
अपने भारत के माननीय प्रधानमंत्री
श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयास से
जून 21
" विश्व योग दिवस " के रूप में सारे विश्व में अतीव उत्साह, आनंद एवं प्रेमपूर्वक मनाया जाता है ।
" यम - नियम " विषयपर
चर्चा-संवाद
विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी की उपाध्यक्षा पद्मश्री निवेदिता ( दीदी ) भिड़े जी द्वारा प्राप्त साहित्य के आधार पर
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योग के जो यम नियमादि आठ अंग है उनका अनुष्ठान करने से चित्त की अशुद्धि का क्षय होते होते ज्ञानशक्ति प्रदीप्त होती जाती है।
यह ध्यान में लेने की बात है कि पतंजलि
" अंग " शब्द का उपयोग करते हैं। अंग याने अवयव । अंग का अनुवाद सीढियां ऐसा नहीं होना चाहिए। क्योंकि सीढियां हमेशा एक के बाद एक ऐसी आती है जबकि अंग का अर्थ है एक साथ । योग के सारे ही अंगों की साधना करनी है। आठों अंगों की साधना साथ -साथ चलनी चाहिए। अर्थात कोई यह नहीं कह सकता कि , मैं अभी ध्यान अधिक समय करता हूं , इसलिए मुझे " यम-नियम " के अभ्यास की जरूरत नहीं है। जब केवल कुछ ही अंगों का अभ्यास होता है और बाकी अंगों की साधना नहीं होती है तब वह " योगाभ्यास " नहीं हो सकता।
यम :::
अहिंसासत्यास्तेयब्रहचर्यापरिग्रहा: यमा : ।
( पातंजल योग सूत्रे , " साधन पाद"
सूत्र -30)
अहिंसा , सत्य , अस्तेय-चोरी न करना , ब्रम्हचर्य , अपरिग्रह -- ये पाँच " यम " है।
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दूसरों के साथ का व्यवहार ( सृष्टि के साथ भी) कैसा हो यह " यम " परिभाषित करते हैं। इसीलिये " यम " का अभ्यास सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है ।
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योग यह एकात्म जीवन दर्शन पर आधारित जीवन पद्धति है । इसलिए हमारा दूसरों के साथ जो व्यवहार है,
वह एकात्मता पर आधारित होना चाहिए।
अहिंसा :: अपने विचार , शब्द और कृति से किसी को भी पीड़ा न देना , अस्तित्व की पूर्णता को हानि न पहुँचाना ।
सत्य :: एक आत्मा ही अनेक रूप से प्रकट हुई है, अतः इस सारी विविधता के परे आत्मा ही है ।
अपने दैनंदिन जीवन में शब्द और कृति में दिखावा नहीं , स्वयं के बारे में बढ़ चढ़कर बोलना नहीं। सरल और पारदर्शी व्यवहार होना चाहिए। प्रामाणिकता से जीवन व्यवहार करना सत्य की साधना है।
ब्रह्मचर्य ::: स्त्री ने पुरुषों के और पुरुषों ने स्त्री के अथवा " काम " के विचारों की पकड़ में न आना ब्रह्मचर्य पालन का महत्व का आयाम है । क्योंकि मन को विचलित करने वाला यह सबसे बलवान विचार है ।
जिससे हम समदर्शित्व प्राप्त करने के अपने ध्येय से च्युत होते हैं ।
व्यक्ति के योग विकास के लिए जो निर्मल वातावरण परिवार और समाज में चाहिए वह ब्रह्मचर्य पालन से सम्भव होता है।
अस्तेय ::: चोरी न करना ::::
इसमें जो दूसरों के स्वामित्व वाली वस्तु बिना अनुमति नहीं लेना इतनाही अपेक्षित नहीं है । गीता में भगवान कृष्ण बताते हैं, सबको योगदान देने के बाद जो शेष रहता है , उसका ही उपभोग लेना । जब समाज में ऐसा व्यवहार चलता है तब समाज वैभवशाली, संवेदनशील होता है।
अपरिग्रह :::: अपने शरीर , मन , बुद्धि के
रक्षण , विकास और संवर्धन हेतु जितने साधनों की आवश्यकता है , उतना ही लेना - अपरिग्रह है।
स्वयं के पास जरूरत से अधिक रखने से , समाज एवं सृष्टि उससे वंचित रहते हैं।
अपरिग्रह की साधना का अर्थ है ----
अनावश्यक अथवा अधिक वस्तुओं का संग्रह नहीं करना ।
महर्षि पतंजलि व्यक्ति के जीवन में
" यम " के महत्व को समझाकर आगे बताते हैं कि,
एते जाति देशकालसमयानवच्छिन्ना :
सार्वभौमा महाव्रतम् ।
( पातंजल योग सूत्रे --
साधन पाद , सूत्र -31 )
यह पाँच " यम "
समय , स्थान , आयु , जाति , राष्ट्र , पद , प्रतिष्ठा आदि का कारण न बताते हुए प्रत्येक स्त्री - पुरूष , बच्चों ने पालन करना चाहिए। यह सर्वत्र लागू होने वाला महाव्रत है ।
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नियम :::
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शौच संतोषतप स्वाध्यायेश्वर प्रणिधानानि
नियमा :
( पातंजल योग सूत्रे ,
साधन पाद , सूत्र - 32 )
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नियम यह स्वयं को योगसाधना के लिये
तैयार करने के लिये , आत्मविकास के लिये हैं। अतः ये स्वयं से संबंधित है।
स्वयं का दृष्टिकोण ठीक करने के लिये है ।
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शौच ::: अंतर्बाह्य शुद्धि , शुचिता । शरीर और मन को शुध्द और निर्मल रखना ।
गंदा - अव्यवस्थित व्यक्ति योग साधक नहीं हो सकता।
संतोष :::: उपलब्ध साधनों में समाधान और उनका संतोष । मुझे ये नहीं मिला , वो नहीं मिला । ऐसा सोचने में ही मनुष्य अपना जीवन व्यर्थ गंवा देता है। ऐसी मानसिकता से जो प्राप्त है उसका भी ठीक उपयोग नहीं कर सकता ।
तप ::: तप के तीन प्रकार है ।
( गीता अध्याय -- 17 श्लोक 14 से 16 )
शारिरिक तप :: देवपूजा, बड़ों और ज्ञानियों का सम्मान , शरीर की स्वच्छता , सरलता, अहिंसा और ब्रह्मचर्य ।
वाणी का तप ::: जो किसीको भी उद्विग्न न करनेवाला , सत्य और प्रिय तथा हितकारक भाषण है , वह तथा स्वाध्याय और अभ्यास ( नामजप आदि ) ।
मन का तप ::: मन की प्रसन्नता , सौम्य भाव , मननशीलता , मन का निग्रह और भावों की भलीभांति शुद्धि , सकारात्मक सोच।
स्वाध्याय ::: स्व - अध्ययन , स्व का अध्ययन । योगशास्त्र में नियमित इष्ट देवता का मंत्र जप यह भी अर्थ है।
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ऐसे ग्रंथो का अध्ययन जो हमारा विवेक जागरूक रखें । हम अपने भारत के उन्नति के लिए जिन महिलाओं-महापुरुषों ने योगदान दिया है ऐसे जीवन चरित्र पढ़ने की आदत विकसित कर सकते हैं।
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ईश्वर प्रणिधान ::: ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है -- शरणागति । अपने कर्मों का फल , कर्तृत्व , और कर्तापन ईश्वर को समर्पित करना । इससे अहंकार , कर्ताभाव से मन मुक्त होता है। शरीर - तनाव से मुक्त होता है , चित्त शुद्धि होती है।
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सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चित् दु:खभाग् भवेत्
ॐ शान्ति: शान्ति : शान्ति :
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Hari: 4,
Hi .
Your Honorable Prime Minister of India
With the efforts of Shri Narendra Modi
June 21
"World Yoga Day" is celebrated with great enthusiasm, joy and love all over the world.
On the topic of "Yama - Rule"
Discussion
On the basis of literature received by Padma Shri Nivedita (Didi) Bhide Ji, Vice President of Vivekananda Center, Kanyakumari.
Yama - sending primary information related to the rule. It will be suitable for your discussion
By performing the rituals of the Yama Niyamadi eight parts of yoga, the impurity of the mind becomes enlightened and the power of knowledge becomes enlightened.
It is a matter of keeping in mind that Patanjali
Use the word "organ". Organ means. The translation of the organ should not be like this. Because the stairs always come one after the other while Anga means together. All the parts of yoga have to be cultivated. The cultivation of the eight limbs must go together. That is, no one can say that, I meditate more time now, so I do not need to practice "Yama-Niyam". When only a few organs are practiced and other organs are not cultivated, then they cannot be "practicing yoga".
Yama :::
Ahinsasatyastayabrahacharyaprigraha: yama:.
(Patanjal Yoga Sutras, "Instrument Foot"
Sutra-30)
Ahimsa, truth, asthe-stealing, brahmacharya, aparigraha - these are the five "Yams".
4
"Yama" defines how to treat others (even with the universe). That is why the practice of "Yama" is considered most important.
4
Yoga is a way of life based on the philosophy of integrated life. That's why our dealings with others,
It should be based on unity.
Ahimsa :: Do not torment anyone with your thoughts, words and actions, do not harm the wholeness of existence.
Truth :: One soul has appeared in many forms, so beyond all this diversity, it is the soul.
In your day-to-day life, do not show in words and deeds, do not over-speak about yourself. There should be simple and transparent behavior. Practicing life with authenticity is the practice of truth.
Brahmacharya ::: Women and men have not caught hold of the idea of woman or "work" is a dimension of the importance of celibacy. Because this is the most powerful thought that distracts the mind.
With which we are distinguished by our goal of achieving equality.
The clean environment that is needed in the family and society for yoga development of a person is possible through celibacy.
Asthe ::: Do not steal ::::
It does not require that the goods owned by others do not get permission without permission. Lord Krishna says in the Gita, consume only what remains after contributing everyone. When such behavior prevails in the society, then the society is luxurious, sensitive.
Aparigraha :::: of your body, mind, intellect
Taking as many means as is necessary for protection, development and promotion - it is irreconcilable.
By keeping more with themselves, society and creation are deprived of it.
The practice of aparigraha means ----
Do not collect unnecessary or excessive items.
In the life of Maharishi Patanjali
Explaining the importance of "Yama", he further states that,
This country
Sovereign Mahavratham.
(Patanjal Yoga Sutras -
Instrument Footer, Sutra-31)
This five "Yama"
Every woman - men and children, should not follow the reason of time, place, age, caste, nation, position, prestige etc. This is the applicable Mahavrata.
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Rule :::
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Shouk Santoshtap Swadhyayeshwar Pranidhanani
Rules:
(Patanjal Yoga Sutras,
Instrument Footer, Sutra - 32)
4
Rules for self-cultivation
To prepare, are for self-development. Hence it is related to itself.
The view is to correct oneself.
4
Poop ::: Intermediate purification, purity. Keep body and mind pure and clean.
Dirty - disorganized person cannot be a yoga practitioner.
Contentment :::: Solutions and their satisfaction in available resources. I did not get it, did not get it. In thinking like this, a man loses his life in vain. One cannot use what is gained from such a mindset.
Tenacity ::: There are three types of tenacity.
(Gita Adhyay - 17 verses 14 to 16)
Shariic asceticism: Devapuja, respect for elders and knowledgeers, cleanliness of body, simplicity, non-violence and celibacy.
Tenacity of speech ::: which is a speech that is not stirring to anyone, is true and dear and beneficial, and self-study and practice (chanting etc.).
Tenacity of the mind ::: Pleasure of mind, gentle feeling, contemplation, grace of mind and thorough purification of emotions, positive thinking.
Swadhyaya ::: Self-study, self-study. It is also the meaning of regular mantra chanting of the presiding deity in Yoga.
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Study such texts that keep our conscience aware. We can develop the habit of reading such life characters of women and great men who have contributed to the progress of our India.
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Ishwar Pranidhan ::: Ishwar Pranidhan means - Sharanagati. To dedicate the fruits of your actions, to curiosity, and to God. This frees the mind from ego and subjectivity. Body - is free from stress, mind purification.
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May all live happily
Survey Santu Niramaya:
Survey Bhadrani Pushya
My sad sorrow
ॐ Peace: Peace: Peace:
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