Thursday, November 17, 2022

17/11/2022 panchang

🌞आज का हिन्दु पंचाग 🌞
*⛅दिनांक - 17 नवम्बर 2022*
*⛅दिन - गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् 02 मार्गशीर्ष- 2079*
*⛅शक संवत् - 1944*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - हेमंत*
*⛅मास - मार्गशीर्ष ( गुजरात एवं महाराष्ट्र में कार्तिक मास )*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - अष्टमी सुबह 07:57 तक तत्पश्चात नवमी*
*⛅नक्षत्र - मघा रात्रि 09:21 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
*⛅योग - इन्द्र रात्रि 01:24 तक तत्पश्चात वैधृति*
*⛅राहु काल - दोपहर 01:47 से 03:10 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:54*
*⛅सूर्यास्त - 05:55*
*⛅दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:10 से 06:02 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 11:59 से 12:51 तक पंचक नहीं है*
*⛅व्रत पर्व विवरण -*
*⛅विशेष - अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है । नवमी को लौकी खाना त्याज्य है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड : 27.29-34)*
*🔹दरिद्रता दूर, रोजी-रोटी में बरकत भरपूर🔹*
*🔹दरिद्रता भगानी हो तो व्यर्थ खर्च न करो । ब्याज पर कर्ज ले के गाड़ियाँ न खरीदो एवं मकान न बनाओ । आवक बढ़ानी हो अथवा बरकत लानी हो तो मंत्र है : 'ॐ अच्युताय नमः' जिसका पद कभी च्युत नहीं होता... इन्द्रपद भी च्युत हो जाता है, ब्रह्माजी का पद भी च्युत हो जाता है फिर भी जो च्युत नहीं होते अपने स्वभाव से, अपने-आपसे, उन परमेश्वर 'अच्युत' को हम नमस्कार करते हैं । अच्युतं केशवं रामनारायणं... ।*
*🔹'ॐ अच्युताय नमः' मंत्र की गुरुवार से गुरुवार २ सप्ताह या ४ सप्ताह तक ११ मालाएँ रोज जप करे । कुछ ही दिनों में यह मंत्र सिद्ध ह जायेगा। फिर जो काम-धंधा या नौकरी करता है वह जल में देखते हुए २१ बार जप करे और दायाँ नथुना बंद करके बायाँ स्वर चलाकर वह जल पिये । इससे रोजी-रोटी में बरकत होती है और दरिद्रता मिटती है ।*
*👉🏻 श्रद्धा से करके देख लें । आजमायेगा तो श्रद्धा नहीं रहेगी । श्रद्धा से करेगा तो दरिद्रता नहीं रहेगी ।*
*🔹नारी कल्याण पाक🔹* 
*🔹यह पाक युवतियों, गर्भिणी, नवप्रसूता माताएँ तथा महिलाएँ – सभी के लिए लाभदायी है ।*
*🔹लाभ : यह बल व रक्तवर्धक, प्रजनन – अंगों को सशक्त बनानेवाला, गर्भपोषक, गर्भस्थापक (गर्भ को स्थिर – पुष्ट करनेवाला), श्रमहारक (श्रम से होनेवाली थकावट को मिटानेवाला) व उत्तम पित्तनाशक है । एक – दो माह तक इसका सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया, अत्यधिक मासिक रक्तस्राव व उसके कारण होनेवाले कमरदर्द, रक्त की कमी, कमजोरी, निस्तेजता आदि दूर होकर शक्ति व स्फूर्ति आती है । जिन माताओं को बार-बार गर्भपात होता हो उनके लिए यह विशेष हितकर है । सगर्भावस्था में छठे महिने से पाक का सेवन शुरू करने से बालक हृष्ट-पुष्ट होता है, दूध भी खुलकर आता है ।*
*🔹धातु की दुर्बलता में पुरुष भी इसका उपयोग कर सकते हैं ।*
*🔹सामग्री : सिंघाड़े का आटा, गेंहू का आटा व देशी घी प्रत्येक २५० ग्राम, खजूर १०० ग्राम, बबूल का पिसा हुआ गोंद १०० ग्राम, पिसी मिश्री ५०० ग्राम ।*
*🔹विधि : घी को गर्म कर गोंद को घी में भून लें । फिर उसमें सिंघाड़े व गेंहू का आटा मिलाकर धीमी आँच पर सेंकें । जब मंद सुगंध आने लगे तब पिसा हुआ खजूर व मिश्री मिला दें । पाक बनने पर थाली में फैलाकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर रखें ।*
*🔹सेवन-विधि : २ टुकड़े ( लगभग २० ग्राम ) सुबह शाम खायें । ऊपर से दूध पी सकते हैं ।*
*🔹सावधानी : खट्टे, मिर्च-मसालेदार व तेल में तले हुए तथा ब्रेड-बिस्कुट आदि बासी पदार्थ न खायें ।*
*🌹 शनिवार के दिन विशेष प्रयोग 🌹*
*🌹 शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है । (ब्रह्म पुराण)*
*🌹 हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है । (पद्म पुराण)*
*🔹आर्थिक कष्ट निवारण हेतु🔹*
*🔹एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिलाकर हर शनिवार को पीपल के मूल में चढ़ाने तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र जपते हुए पीपल की ७ बार परिक्रमा करने से आर्थिक कष्ट दूर होता है
*🌞🚩🕉️🌹🌲🌲🌹🕉️🚩🌞*

Sunday, November 13, 2022

Apekshante na cha sneham na patram na dashaantaram.Sadaa lokahitaasaktaa ratnadeepa

अपेक्षन्ते न च स्नेहं न  पात्रं  न दशान्तरं |
सदा लोकहितासक्ता रत्नदीप इवोत्तमा ||

अर्थ -      जिस प्रकार एक रत्नदीप को किसी स्थान को प्रकाशित  करने के लिये  न तो तेल ,
 न तेलपात्र (दिया) और न बाती की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार सदैव लोकहित के कार्यों
 को संपन्न करने में समर्पित  श्रेष्ठ व्यक्ति भी इन कार्यों के प्रतिफल के रूप में  न आदर की
अपेक्षा करते  है और न  सहायता करने में  कोई भेद भाव करते हैं और न  अपनी (आर्थिक)
स्थिति का विचार करते हैं  और समाज को लाभान्वित करते हैं |

( इस सुभाषित में स्नेह, पात्र, दशान्त इस शब्दों के दो अर्थों  (क्रमशः तेल/आदर, दिया/व्यक्ति,
बाती/ आर्थिक साधन )को चतुरता पूर्वक प्रयुक्त कर एक रत्नदीप की उपमा एक श्रेष्ठ समाजसेवी
व्यक्ति से की गयी है | जिस प्रकार एक रत्नदीप को प्रकाश देने के लिये तेल, पात्र और बाती की
 आवश्यकता नहीं होती उसी  प्रकार एक समाजसेवी भी अपने ही संसाधनों से बिना किसी प्रतिफल
के समाजसेवा के कार्य में सदैव तत्पर रहता है |

 Apekshante na cha sneham na patram na dashaantaram.
Sadaa lokahitaasaktaa ratnadeepa ivottamaa.

Apekshante =  expect, require.     Na = not.    Sneham = (i) love, respect.
(ii) oil.      Paatram = (i) a pot  (ii) a deserving person.    Dashantaram =
(i)  end of a wick of an oil lamp  (ii) supply line of funds for charity.
Sadaa = always.    Lokahitaasaktaa = lokahita +aasaktaa.   Likahit = welfare
of common people.    Aasaktaa = involved, devoted to.    Ratnadeepaa = self
illuminating jeweled lamp.    Ivottamaa = iva +uttamaa.    Iva = like, similar to.
Uttamaa = honourable and righteous persons.

i. e.    Just as a self illuminating jeweled lamp does not require oil, a lamp and a wick
to brighten a place, in the same manner honourable and righteous persons devoted to
the welfare of the society do their philanthropic work without expecting any respect
in return of such work and  do not differentiate between the deserving persons, as
also do not depend upon others to finance their such activities.

(  The author of this Subhashita has skillfully used the two meanings of the words 'sneha',
 'patra' and 'dashantar' and used a simile of a jewel lamp for a philanthropic person, who
uses his wealth for such work without expecting anything in return.) 

Thursday, November 10, 2022

VAKTA


*💕अनमोल सीख💕*

*जब मैं छोटा था, तो मेरी मां एक प्रौढ़ सब्ज़ीवाली से हमेशा घर के लिए सब्जियां लिया करती थीं।*

*जो लगभग रोज ही हमारे घर एक बड़े टोकरे में ढेर सारी सब्जियां लेकर आया करती थी,इस रविवार को वह पालक के बंडल भी लेकर आयी, और दरवाज़े पर बैठ गई।*
 
*मां ने पालक के दो चार बंडल हाथ में लेकर सब्ज़ीवाली से पूछा:-पालक कैसे दी?"*
 
 *"सस्ता है दीदी, एक रुपया बंडल।" सब्ज़ीवाली ने कहा:*
 
  *माँ ने कहा "ठीक है, दो रुपये में चार बंडल दे दे।"*

*इसके बाद कुछ देर तक दोनों अपने-अपने ऑफर पर झिकझिक खिटपिट करते रहे।*
 
*सब्ज़ीवाली कुछ नाराज़गी जताते हुए बोली-इतनी तो मेरी खरीदी भी नहीं है, दीदी, फिर उसने एक झटके के साथ अपना टोकरा उठाया और उठ कर जाने लगी।*

*लेकिन चार कदम आगे बढ़ने के साथ ही पीछे मुड़ी और चिल्लायी*

*चलो चार बंडल के 3 रु दे देना दीदी, आप से ज़्यादा क्या कमाऊंगी ,मेरी माँ ने अपना सिर "नहीं" में हिलाया।*

*2 रु में 4 बंडल मैं बिल्कुल ठीक बोल रही हूं, क्योंकि तू हमेशा की पुरानी सब्जीवाली है। चल अब दे भी दे,परंतु सब्जीवाली रुकी नहीं आगे बढ़ गई।*

 *शायद वे दोनों एक-दूसरे की रणनीतियों को भली-भांति जानते थे। और यह खरीदने और बेचने वालों के बीच रोज ही होता होगा ।*
 
 *8-10 कदम जाकर सब्ज़ीवाली मुड़ी और हमारे दरवाजे पर वापस आ गई,माँ दरवाजे पर ही इंतज़ार कर रही थी ।*

*सब्ज़ीवाली अपना टोकरा सामने रख कर कुछ ऐसे बैठ गयी, जैसे कि वह किसी सम्मोहन की समाधि में हो।*

 *मेरी माँ ने अपने दाहिने हाथ से प्रत्येक बंडल को टोकरे से निकाल-निकाल कर कर दूसरे हाथ की खुली हथेली पर हल्के से मारा।*
 
 *और इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी के सीखे हुए मात्रात्मक, गुणात्मक और आलोचनात्मक मानदंडों से प्रत्येक बंडल की जाँच करके अपनी संतुष्टि से चार बंडलों का चयन किया।*

*सब्जी वाली ने पालक के बाकी बंडलों को फिर से अपने टोकरे में सजाया और भुगतान लेकर अपने बटुए में डाल लिए ।*

*सब्जीवाली ने बैठे ही बैठे टोकरा अपने सर पर रखा और उठने लगी, लेकिन टोकरा सिर पर रखकर जैसे ही वह उठने लगी, वह उठ न सकी और धप से नीचे बैठ गई।*

 *मेरी माँ ने उसका हाथ थाम लिया और पूछा -क्या हुआ? चक्कर आ गया क्या? क्या सुबह कुछ नहीं खाया था?"*
 
*सब्जी-वाली ने कहा, "नहीं दीदी। चावल कल खत्म हो गया था। आज की कमाई से ही मुझे कुछ चावल खरीदना है, घर जाकर पकाना है। उसके बाद ही हम सब खाना खाएंगे।*

*मेरी माँ ने उसे बैठने के लिए कहा। फिर फुर्ती से अंदर चली गई,चपाती व सब्ज़ी के साथ तेजी से वापस आई,और सब्ज़ीवाली को दी।*
 
*एक गिलास में पानी उसके सामने रखा। और सब्जीवाली से कहा "धीरे-धीरे खाना, मैं तेरे लिए चाय बना रही हूं।*

 *सब्जी वाली भूखी थी। उसने कृतज्ञतापूर्वक रोटी खायी, पानी पिया और चाय समाप्त की।* 
   
*मेरी माँ को बार-बार दुआएं देने लगी। मां ने टोकरा उनके सिर पर रखने में उसकी सहायता की। फिर वह सब्ज़ीवाली चली गई।*

 *मैं हैरान था,मैंने माँ से कहा:*

 *मां, आप ने दो रुपये की पालक की भाजी के लिए मोलभाव करने में इतनी कठोरता दिखाई, लेकिन उस सब्जीवाली को इतने अधिक मूल्य का भोजन देने में कई गुना अधिक उदार बन गयीं। यह मेरे समझ में नहीं आया!*

 *मेरी माँ मुस्कुराई और बोली:*

     *बेटा ध्यान रखना व्यापार में कोई दया नहीं होती और दया में कोई व्यापार नही होता।"*

*मंगलमय प्रभात*
       *प्रणाम*

kavita

*💕अनमोल सीख💕*

*जब मैं छोटा था, तो मेरी मां एक प्रौढ़ सब्ज़ीवाली से हमेशा घर के लिए सब्जियां लिया करती थीं।*

*जो लगभग रोज ही हमारे घर एक बड़े टोकरे में ढेर सारी सब्जियां लेकर आया करती थी,इस रविवार को वह पालक के बंडल भी लेकर आयी, और दरवाज़े पर बैठ गई।*
 
*मां ने पालक के दो चार बंडल हाथ में लेकर सब्ज़ीवाली से पूछा:-पालक कैसे दी?"*
 
 *"सस्ता है दीदी, एक रुपया बंडल।" सब्ज़ीवाली ने कहा:*
 
  *माँ ने कहा "ठीक है, दो रुपये में चार बंडल दे दे।"*

*इसके बाद कुछ देर तक दोनों अपने-अपने ऑफर पर झिकझिक खिटपिट करते रहे।*
 
*सब्ज़ीवाली कुछ नाराज़गी जताते हुए बोली-इतनी तो मेरी खरीदी भी नहीं है, दीदी, फिर उसने एक झटके के साथ अपना टोकरा उठाया और उठ कर जाने लगी।*

*लेकिन चार कदम आगे बढ़ने के साथ ही पीछे मुड़ी और चिल्लायी*

*चलो चार बंडल के 3 रु दे देना दीदी, आप से ज़्यादा क्या कमाऊंगी ,मेरी माँ ने अपना सिर "नहीं" में हिलाया।*

*2 रु में 4 बंडल मैं बिल्कुल ठीक बोल रही हूं, क्योंकि तू हमेशा की पुरानी सब्जीवाली है। चल अब दे भी दे,परंतु सब्जीवाली रुकी नहीं आगे बढ़ गई।*

 *शायद वे दोनों एक-दूसरे की रणनीतियों को भली-भांति जानते थे। और यह खरीदने और बेचने वालों के बीच रोज ही होता होगा ।*
 
 *8-10 कदम जाकर सब्ज़ीवाली मुड़ी और हमारे दरवाजे पर वापस आ गई,माँ दरवाजे पर ही इंतज़ार कर रही थी ।*

*सब्ज़ीवाली अपना टोकरा सामने रख कर कुछ ऐसे बैठ गयी, जैसे कि वह किसी सम्मोहन की समाधि में हो।*

 *मेरी माँ ने अपने दाहिने हाथ से प्रत्येक बंडल को टोकरे से निकाल-निकाल कर कर दूसरे हाथ की खुली हथेली पर हल्के से मारा।*
 
 *और इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी के सीखे हुए मात्रात्मक, गुणात्मक और आलोचनात्मक मानदंडों से प्रत्येक बंडल की जाँच करके अपनी संतुष्टि से चार बंडलों का चयन किया।*

*सब्जी वाली ने पालक के बाकी बंडलों को फिर से अपने टोकरे में सजाया और भुगतान लेकर अपने बटुए में डाल लिए ।*

*सब्जीवाली ने बैठे ही बैठे टोकरा अपने सर पर रखा और उठने लगी, लेकिन टोकरा सिर पर रखकर जैसे ही वह उठने लगी, वह उठ न सकी और धप से नीचे बैठ गई।*

 *मेरी माँ ने उसका हाथ थाम लिया और पूछा -क्या हुआ? चक्कर आ गया क्या? क्या सुबह कुछ नहीं खाया था?"*
 
*सब्जी-वाली ने कहा, "नहीं दीदी। चावल कल खत्म हो गया था। आज की कमाई से ही मुझे कुछ चावल खरीदना है, घर जाकर पकाना है। उसके बाद ही हम सब खाना खाएंगे।*

*मेरी माँ ने उसे बैठने के लिए कहा। फिर फुर्ती से अंदर चली गई,चपाती व सब्ज़ी के साथ तेजी से वापस आई,और सब्ज़ीवाली को दी।*
 
*एक गिलास में पानी उसके सामने रखा। और सब्जीवाली से कहा "धीरे-धीरे खाना, मैं तेरे लिए चाय बना रही हूं।*

 *सब्जी वाली भूखी थी। उसने कृतज्ञतापूर्वक रोटी खायी, पानी पिया और चाय समाप्त की।* 
   
*मेरी माँ को बार-बार दुआएं देने लगी। मां ने टोकरा उनके सिर पर रखने में उसकी सहायता की। फिर वह सब्ज़ीवाली चली गई।*

 *मैं हैरान था,मैंने माँ से कहा:*

 *मां, आप ने दो रुपये की पालक की भाजी के लिए मोलभाव करने में इतनी कठोरता दिखाई, लेकिन उस सब्जीवाली को इतने अधिक मूल्य का भोजन देने में कई गुना अधिक उदार बन गयीं। यह मेरे समझ में नहीं आया!*

 *मेरी माँ मुस्कुराई और बोली:*

     *बेटा ध्यान रखना व्यापार में कोई दया नहीं होती और दया में कोई व्यापार नही होता।"*

*मंगलमय प्रभात*
       *प्रणाम*

bharat

वक्त और इंसान

चापलूसों की दुनियां में,
ईमान धूल चाटता है |
जी हजूरी जिसने की ,
वो आकाश नापता है |

कलयुग की है ये माया,
इंसान रोज रंग बदलता है |
जहां देखा स्वार्थ अपना ,
वहीं पर डेरा जमता है |

बदल जाती शारीरिक भाषा,
मुख से न बोलना पड़ता है |
अपमान करता अपनों का,
जब उसे अवसर मिलता है |

अपनी वाहवाही के चक्कर में,
वो नीचे से नीचे धसता है |
अपने संस्कारों के विपरित,
वो अपनी चाले चलता है |

 सामने जब आती है सच्चाई,
लोगों की नज़रों से गिरता है |
करले फिर कितनी भी कोशिश,
वक्त फिर कहाँ माफ करता है |
©
डाॕ.ममता सूद,कुरुक्षेत्र,
(हरियाणा)

तृतीय वर्ष वर्ग

roti ke prakar types of chappati

*रोटी के प्रकार......(पढ़ना जरूर)*

कुछ बुजुर्ग दोस्त एक पार्क में बैठे हुऐ थे, वहाँ बातों -बातों में रोटी की बात निकल गई।

तभी एक दोस्त बोला - जानते हो कि रोटी कितने प्रकार की होती है?

किसी ने मोटी, पतली तो किसी ने कुछ और हीं प्रकार की रोटी के बारे में बतलाया। 

तब एक दोस्त ने कहा कि नहीं दोस्त...भावना और कर्म के आधार से रोटी चार प्रकार की होती है।"

पहली "सबसे स्वादिष्ट" रोटी "#माँ की "ममता" और "वात्सल्य" से भरी हुई। जिससे पेट तो भर जाता है, पर मन कभी नहीं भरता।

एक दोस्त ने कहा, सोलह आने सच, पर शादी के बाद माँ की रोटी कम ही मिलती है।" 
उन्होंने आगे कहा  "हाँ, वही तो बात है।

दूसरी रोटी #पत्नी की होती है जिसमें अपनापन और "समर्पण" भाव होता है जिससे "पेट" और "मन" दोनों भर जाते हैं।",

क्या बात कही है यार ?" ऐसा तो हमने कभी सोचा ही नहीं। 
फिर तीसरी रोटी किस की होती है?" एक दोस्त ने सवाल किया।

"तीसरी रोटी #बहू की होती है जिसमें सिर्फ "कर्तव्य" का भाव होता है जो कुछ कुछ स्वाद भी देती है और पेट भी भर देती है और वृद्धाश्रम की परेशानियों से भी बचाती है",
थोड़ी देर के लिए वहाँ चुप्पी छा गई।

"लेकिन ये चौथी रोटी कौन सी होती है ?" मौन तोड़ते हुए एक दोस्त ने पूछा- 

"चौथी रोटी #नौकरानी की होती है। जिससे ना तो इन्सान का "पेट" भरता है न ही "मन" तृप्त होता है और "स्वाद" की तो कोई गारँटी ही नहीं है", तो फिर हमें क्या करना चाहिये।

माँ की हमेशा इज्ज़त करो, पत्नी को सबसे अच्छा दोस्त बना कर जीवन जिओ, बहू को अपनी बेटी समझो और छोटी मोटी ग़लतियाँ नज़रन्दाज़ कर दो । बहू खुश रहेगी तो बेटा भी आपका ध्यान रखेगा।

यदि हालात चौथी रोटी तक ले ही आयें तो ईश्वर का शुक्रिया करो कि उसने हमें ज़िन्दा रखा हुआ है, अब स्वाद पर ध्यान मत दो केवल जीने के लिये बहुत कम खाओ ताकि आराम से बुढ़ापा कट जाये, और सोचो कि वाकई, हम úकितने खुशकिस्मत हैं।    
*🙏जय श्री राम 🙏*

Tuesday, November 8, 2022

भारत
















 

तृतीय वर्ष वर्ग गीत 2022


तृतीय वर्ष वर्ग गीत 2022
Abhishek Om:
यह पोस्ट देखें… "तृतीय वर्ष वर्ग गीत 2022".
http://rssyear.blogspot.com/2022/11/2022.html

https://youtu.be/j63ruR_d2G4

युगों युगों से दुनिया चलती जिनके दिव्य प्रकाश में 
पुरखों की वह पौरुष गाथा अजर अमर इतिहास में
भारत के इतिहास में , भारत के इतिहास में !! धु!!

अपना बल ही अपना वैभव कुरुक्षेत्र मैदानों में 
विजय लिखी थी खड़ग गणों से शक हुनी तूफानों में 
हार नहीं जय विजय पराक्रम पुरखों के पुरुषार्थ में!!१!!
भारत के इतिहास में, भारत के इतिहास में 

राज्य सैकड़ों रहा विदेशी ,पर अखंड ये परिपाटी
मिटा मिटाने वाला इसको तेजोमय इसकी माटी
अमर अमित हिंदूमय संस्कृति है जल थल आकाश में!!२!!
भारत के इतिहास में ,भारत के इतिहास में 

भौतिकता से त्रस्त विश्व की एकमात्र भारत आशा
प्रमाणंद शांति की जननी पूर्ण करेंगी अभिलाषा
यत्र संगठित बने मिल के पत्थर विश्व विकास में !!३!!
भारत के इतिहास में, भारत के इतिहास में 

वृष्टि समिष्ठि सृष्टि जीवन में कलिमय आहत मर्यादा
हिंदू संस्कृति संस्कारों से दूर करेगी हर बाधा
पतित पावनी संस्कृति गंगा जनमन हृदय आकाश में
भारत के इतिहास में , भारत के इतिहास में 











third year class song 2022

 From ages to ages the world runs in whose divine light
 That masculine saga of the forefathers in immortal history
 In the history of India, in the history of India !! Smoke!!

 Your strength is your glory in the Kurukshetra plains
 Victory was written in the storms suspected of Khadag
 Do not give up, jai vijay valor in the efforts of the ancestors!!!1!!
 History of India History of India

 The state has been hundreds of foreigners, but this practice is unbroken
 The one who erases it's glory, its soil
 The immortal Amit Hindu culture is in the water, land, sky!!2!!
 History of India History of India

 India's only hope of a materialistic world
 Pramanand will fulfill the mother of peace
 Millstones made here organized in world development !!3!!
 History of India History of India

 Kalimay hurt limit in the life of the rain samishthi
 Hindu culture will remove every obstacle from rituals
 Purifier Culture Ganga Janman Heart in the sky
 History of India History of India

मेरे भैया राजकुमार तू शक क्यों नहीं आयो

 मेरे भैया राजकुमार तू शाखा क्यों नहीं आयो।
तेरो गटनायक परेशान तू शाखा क्यों नहीं आया॥ 

तूने पेन्ट मांगी लादी, तन्ने टोपी भी दिलवादी,
तने दण्ड दियो दिलवाय, तु शाखा क्यू नहीं आयो॥१॥ 

जद प्राथमिक में जाणो, तू ढूंड्यो नयो बहानो।
तेरो कठे है ठौड ठिकाणो रे, तू शाखा क्यूं नहीं आयो॥२॥ 

तने तरणताल ले आया, तने मल मल जल नहलाया।
तने गा गा गीत सुनाया रे, तू शाखा क्यूं नहीं आयो॥३॥ 

तन्ने नियुद्ध भी सिखलाया, तन्ने खेल घणा खिलवाया। 
तन्ने वन भ्रमण करवाया रे, तू शाखा क्यूं नहीं आयो॥४॥ 

अरे सात सुरा सुर धारी, तन्ने वंशी लागी प्यारी। 
तन्ने घोष दियो सिखलाय, तू शाखा क्यूँ ना आयो॥५॥ 

तने मीठी बोली पूछे, तेरी शाखा टोली पूछे।
तने पूछे संघस्थान, तू शाखा क्यूं नहीं आयो॥६॥ 

तने तेरा भाई पूछे, तन्ने तरुणाई पूछे।
तने पूछे भारत मात, तू शाखा क्यूं नहीं आयो॥७॥ 

केशव जी संघ बनायो, माधव जी घणो चढ़ायो।
अब हुया बरस सो पार, तू शाखा क्याें नहीं आयो॥८॥ 

कितरा मनोरञ्जन त्यागी, कितरा होया अनुरागी।
कितरा छोड्या घर बार, तू शाखा क्यूं ना आयो॥९॥
[8/11, 12:49] 
मेरे भैया राजकुमार तू शाखा क्यों नहीं आयो।
तेरो गटनायक परेशान तू शाखा क्यों नहीं आया॥ 

तूने पेन्ट मांगी लादी, तन्ने टोपी भी दिलवादी,
तने दण्ड दियो दिलवाय, तु शाखा क्यू नहीं आयो॥१॥ 

जद प्राथमिक में जाणो, तू ढूंड्यो नयो बहानो।
तेरो कठे है ठौड ठिकाणो रे, तू शाखा क्यूं नहीं आयो॥२॥ 

तने तरणताल ले आया, तने मल मल जल नहलाया।
तने गा गा गीत सुनाया रे, तू शाखा क्यूं नहीं आयो॥३॥ 

तन्ने नियुद्ध भी सिखलाया, तन्ने खेल घणा खिलवाया। 
तन्ने वन भ्रमण करवाया रे, तू शाखा क्यूं नहीं आयो॥४॥ 

अरे सात सुरा सुर धारी, तन्ने वंशी लागी प्यारी। 
तन्ने घोष दियो सिखलाय, तू शाखा क्यूँ ना आयो॥५॥ 

तने मीठी बोली पूछे, तेरी शाखा टोली पूछे।
तने पूछे संघस्थान, तू शाखा क्यूं नहीं आयो॥६॥ 

तने तेरा भाई पूछे, तन्ने तरुणाई पूछे।
तने पूछे भारत मात, तू शाखा क्यूं नहीं आयो॥७॥ 

केशव जी संघ बनायो, माधव जी घणो चढ़ायो।
अब हुया बरस सो पार, तू शाखा क्याें नहीं आयो॥८॥ 

कितरा मनोरञ्जन त्यागी, कितरा होया अनुरागी।
कितरा छोड्या घर बार, तू शाखा क्यूं ना आयो॥९॥

Sunday, November 6, 2022

panchang 7th NOVEMBER 2022

*🌞~ आज का हिन्दू पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक - 07 नवम्बर 2022*
*⛅दिन - सोमवार*
*⛅विक्रम संवत् 22 कार्तिक - 2079*
*⛅शक संवत् - 1944*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - हेमंत*
*⛅मास - कार्तिक*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - चतुर्दशी शाम 04:15 तक तत्पश्चात पूर्णिमा*
*⛅नक्षत्र - अश्विनी रात्रि 12:37 तक तत्पश्चात भरणी*
*⛅योग - सिद्धि रात्रि 10:37 तक तत्पश्चात व्यतिपात*
*⛅राहु काल - सुबह 08:12 से 09:36 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:48*
*⛅सूर्यास्त - 05:58*
*⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:05 से 05:57 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 11:58 से 12:49 तक पंचक रात 12.34 वजे तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - व्यतिपात योग, त्रिपुरारि पूर्णिमा*
*⛅विशेष - चतुर्दशी और पूर्णिमा के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
🌹 *व्यतिपात योग* 🌹
*🌹 व्यतिपात योग 07 नवम्बर रात्रि 10:37 से 08 नवम्बर रात्रि 09:46 तक ।*
*🌹 व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप, पाठ, प्राणायम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान सूर्यनारायण की प्रसन्नता प्राप्त होती है । जप करने वालों को उसका १ लाख गुना फल मिलता है ।    -वराह पुराण*
 *🌑 खग्रास चन्द्रग्रहण - 8 नवम्बर 2022 🌑*
*🌹 दिनांक 8 नवम्बर 2022, कार्तिक पूर्णिमा को खग्रास चन्द्रग्रहण है ।*
*🌹 ग्रहण पूरे भारत में दिखेगा । भारत के अलावा एशिया, आस्ट्रेलिया, पैसेफिक क्षेत्र, उत्तरी और मध्य अमेरिका में भी ग्रहण दिखेगा ।*
*🌹 जहाँ ग्रहण दिखायी देगा, वहाँ पर नियम पालनीय हैं ।*
*🌹 देश और विदेशों में कुछ प्रमुख शहरों के ग्रहण के प्रारम्भ और समाप्त होने का समय नीचे दिया गया है ।*
🌑 *भारत में ग्रहण समय -*
👉🏻 *शहर का नाम - प्रारम्भ (शाम) - समाप्त (शाम)*

*ईटानगर -   4:28 से 6:18 तक*
*गुवाहटी -   4:37 से 6:18 तक*
*गंगटोक -    4:48 से 6:18 तक*
*कोलकाता - 4:56 से 6:18 तक*
*पटना -      5:05 से 6:18 तक*
*राँची -       5:07 से 6:18 तक*
*भुवनेश्वर -  5:10 से 6:18 तक*
*ब्रह्मपुर -    5:15 से 6:18 तक*
*प्रयागराज - 5:18 से 6:18 तक*
*लखनऊ -  5:20 से 06:18 तक*
*कानपुर -    5:23 से 6:18 तक*
*विशाखापट्टनम - 5:24 से 6:18 तक*
*रायपुर (छ.ग.) - 5:25 से 6:18 तक*
*हरिद्वार -      5:26 से 6:18 तक*
*धर्मशाला -    5:30 से 6:18 तक*
*चंडीगढ़ -      5:31 से 6:18 तक*
*नई दिल्ली -   5:32 से 6:18 तक*
*जम्मू -       5:35 से 6:18 तक*
*नागपुर -   5:36 से 6:18 तक*
*भोपाल -   5:40 से 6:18 तक*
*जयपुर -    5:41 से 6:18 तक*
*चेन्नई -      5:42 से 6:18 तक*
*हैदराबाद -  5:44 से 6:18 तक*
*उज्जैन -    5:47 से 6:18 तक*
*जोधपुर -   5:53 से 6:18 तक*
*बेंगलुरु -    5-53 से 6:18 तक*
*नासिक -   5:55 से 6:18 तक*
*अहमदाबाद - 6:00 से 6:18 तक*
*वडोदरा -  05:59 से 06:18 तक*
*पुणे -          6:01 से 6:18 तक*
*सूरत -       6:02 से 6:18 तक*
*तिरुवनन्तपुरम् - 6:02 से 6:18 तक*
*मुंबई -           6:05 से 6:18 तक*
*पणजी (गोवा) -   6:06 से 6:18 तक*
*जामनगर -     6:11 से 6:18 तक*
*🌹 भारत के जिन शहरों के नाम ऊपर सूची में नहीं दिये गये हैं, वहाँ के लिए अपने नजदीकी शहर के ग्रहण का समय देखें ।*
🌑 *विदेशों में ग्रहण समय -*
*अफगानिस्तान (काबुल) - शाम 4:55 से शाम 5:18 तक*
*ताईवान (ताईपे) - शाम 5:10 से रात्रि 8:48 तक*
*पाकिस्तान (इस्लामाबाद) - शाम 5:11 से शाम 5:48 तक*
*भूटान (थिम्पू) - शाम 5:13 से शाम 6:48 तक*
*नेपाल (काठमांडू) - शाम 5:16 से शाम 6:33 तक*
*बांग्लादेश (ढाका) - शाम 5:16 से शाम 6:48 तक*
*बर्मा (नेपीडॉ) - शाम 5:28 से रात्रि 7:18 तक*
*हाँगकाँग (हाँगकाँग) - शाम 5:40 से रात्रि 8:48 तक*
*इंडोनेशिया (जकार्ता) - शाम 5:47 से रात्रि 7:48 तक*
*थाईलैंड (बैंकॉक) - शाम 5:48 से रात्रि 7:48 तक*
*श्रीलंका (कोलंबो) - शाम 5:52 से शाम 6:18 तक*
*सिंगापुर (सिंगापुर) - शाम 6:50 से रात्रि 8:48 तक*
*ऑस्ट्रेलिया (कैनबरा) - रात्रि 8:10 से रात्रि 11:48 तक*
*🌹 अमेरिका तथा कनाडा के लिए नीचे लिखा गया ग्रहण समय स्थानीय समयानुसार 7 नवम्बर मध्यरात्रि के बाद का है अर्थात 8 नवम्बर 00-00 ए. एम के बाद से ।*
*अमेरिका (सैनजोस, कैलिफोर्निया) - सुबह 1:10 ए.एम से सुबह 4-48 ए.एम तक*
*अमेरिका (शिकागो) - सुबह 3:10 से सुबह 6:36 तक*
*अमेरिका (बोस्टन) - सुबह 4:10 से सुबह 6:28 तक*
*अमेरिका (न्यूयॉर्क) - सुबह 4:10 से सुबह 6:36 तक*
*अमेरिका (न्यूजर्सी) - सुबह 4:10 से सुबह 6:36 तक*
*अमेरिका (वाशिंगटन डी.सी.) - सुबह 4:10 से सुबह 6:45 तक*
*कनाडा (टोरंटो, ओंटारियो) - सुबह 4:10 से सुबह 7:06 तक*
*🔹ग्रहण सूतक🔹*
🌹 *चंद्रग्रहण प्रारम्भ होने से तीन प्रहर (9 घंटे) पूर्व सूतक (ग्रहण-वेध) प्रारम्भ हो जाता है ।*
*🔹उदाहरण 🔹*
*👉 अहमदाबाद में ग्रहण समय - शाम 6:00 से 6:18 तक*
*
*🌞🚩🕉️🌹🌲🌲🌹🕉️🚩🌞*

sangh song rss bassi mandir 2022 x October nobel

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔
शुभम करोति कल्याणम, 
अरोग्यम धन संपदा, 
शत्रु-बुद्धि विनाशायः, 
दीपःज्योति नमोस्तुते ! 

*आपको सपरिवार दीपावली की अनन्त हार्दिक शुभकामनाएं....*
*दीपोत्सव सपरिवार आपके जीवन को सुख, समृद्धि, सुख-शांति, सौहार्द एवं अपार खुशियों की रोशनी से जग-मग करे...।*


🙏🙏🌷🌷🌻🌻🌺🌸🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔
सब समाज में जाकर हमको, 
सब में समरस होना है। 
संगठन की धारा बनकर, 
सभी दिशा में बहना है।। सभी दिशा में बहना है ॥ 



शाखा ही वो साधन अपना, 
व्यक्ति व्यक्ति को गढ़ने को। 
अपनाएं यह कार्यपद्धति, 
विश्वबंधुता बढ़ने को 
विजय समय में शील - विनय को, 
नित्य स्मरण में रखना है ॥ 1॥ 
सभी दिशा में बहना है , सभी दिशा में बहना है || धृ 
सम्पर्कित हो अपनी बस्ती , 
रुक ना पाए कदम हमारे। 
हिन्दु जीवन को पहुंचाने, 
साथ मिले सब हाथ हमारे। 
नियमपूर्ण वर्तन से हमको घर घर सबके जाना है।।2 सभी दिशा में बहना है , सभी दिशा में बहना है ॥धृ 

सज्जनता का दीप बनेंगे , 
सजग देशहित में जन-जन 
दीर्घकाल का काज संवरने, 
संयममय हो अपना मन। 
मंदिर में श्री रामलला हैं, उनको कृति में लाना है।।3 



सभी दिशा में बहना है , सभी दिशा में बहना है ॥ धृ 


अविरत चलते हुए कार्य को, 
चिंतन का भी जोड़ लगाएं 
ऋषि-मुनियों की इस भूमि को, 
विश्व पटल पर गुरु बनाएं। 
छोटे-छोटे उपक्रमों से, 
राष्ट्र विराट जगाना है ॥4॥ 
सभी दिशा में बहना है, सभी दिशा में बहना है ॥ धृ सब समाज में जाकर हमको , 
सब में समरस होना है। 
संगठन की धारा बनकर, सभी दिशा में बहना है | सभी दिशा में बहना है॥ धृ ॥
मां भारती की स्वर्णिम, माटी हमें है चन्दन।
माटी हमारी पूजा, माटी हमारा वन्दन॥ 
        वे धन्य हैं जो जन्मे, इस पावनी धरा पर 
        सुखदायिनी धरा पर, वरदायिनी धरा पर
        कभी राम इसमें खेले, कभी खेले नंद नंदन ॥1॥ मां भारती ....
मेरे अवध की सरयू, श्रीराम को बुलाती
मथुरा में मातु यमुना, कान्हा के गीत गाती
रुद्राभिषेक करती, काशी में गंगा पावन ॥2॥ मां भारती ....         

         संकट में भारती मां, गो रूप धारती है
         गोपाल की शरण में, जाकर पुकारती है
         गोवंश हित करेगा, गोभक्त हर समर्पण ॥3॥ मां भारती ....
मां भारती के सुत हैं, सारे समाज बन्धु 
सब वर्ग बिन्दु-बिन्दु, हिन्दू समाज सिन्धु
एकात्मता के बल पर, समरस यहाँ है जीवन ॥4॥ मां भारती ....



त्याग और प्रेम के पथ पर, चलकर मूल न कोई हारा। 
हिम्मत से पतवार सम्भालो, फिर क्या दूर किनारा॥
          हो जो नहीं अनुकूल हवा तो , परवाह उसकी मत कर। 
          मौजों से टकराता बढ़ चल, उठ माँझी साहस कर। 
          धुन्ध पड़े या आँधी आए, उमड़ पड़े जल धारा ॥1॥
          हिम्मत से..........
 हाथ बढ़ा पतवार को पकड़ो, खोल खेवइया लंगर। 
मदद मल्लाहों की करता है, बाबा भोले शंकर। 
जान हथेली पर रखकर, लाखों को तूने तारा ॥2॥ 
हिम्मत से..........
         दरियाओं की छाती पर था, तूने होश संभाला। 
         लहरों की थपकी से सोया, तूफानों ने पाला। 
         जी भर खेला खेल भंवर से, जीवन मस्त गुजारा ॥3॥
         हिम्मत से..........
आँधी क्या है तूफान मिलें, चाहे जितने व्यवधान मिलें।
बढ़ना ही अपना काम है, बढ़ना ही अपना काम है।। 
     हम नई चेतना की धारा, हम अंधियारे में उजियारा, 
     हम उस बयार के झोंके हैं, जो हर ले जग का दुःख सारा। 
     चलना है शूल मिलें तो क्या, पथ में अंगार जलें तो क्या, 
     जीवन में कहाँ विराम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥1॥
     आँधी क्या है.... 
हम अनुगामी उन पाँवों के, आदर्श लिए जो बढ़े चले, 
बाधाएँ जिन्हें डिगा न सकीं, जो संघर्षों में अड़े रहे। 
सिर पर मंडरता काल रहे, करवट लेता भूचाल रहे, 
पर अमिट हमारा नाम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥2॥
आँधी क्या है.... 
     वह देखो पास खड़ी मंजिल, इंगित से हमें बुलाती है, 
     साहस से बढ़ने वालों के, माथे पर तिलक लगाती है। 
     साधना न व्यर्थ कभी जाती, चलकर ही मंजिल मिल पाती,
     फिर क्या बदली क्या घाम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥3॥
     आँधी क्या है....


शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं।
मां का वंदन सांझ-सवेरे, श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं ।।ध्रु.।।
     संघ-साधना अर्चन-पूजन, प्रतिदिन शीश झुकाते हैं।
     भारत मां के भव्य भाल पर, भगवा ध्वज लहराते हैं।
     संघस्थान मंदिर सा पावन, मन दर्पण हो जाते हैं ।।1।।
     मां का वंदन....
इसकी रज में खेल-खेल कर, तन चन्दन बन जाते हैं।
योग, खेल, रवि-नमस्कार से, स्वस्थ शरीर बनाते हैं।
स्नेह भाव से मिलते-जुलते, मद-मत्सर मिट जाते हैं ।।2।।
मां का वंदन....
     लोक-संगठन के संवाहक, गटनायक बन जाते हैं। 
     कुंभकार की रचना करके, गणशिक्षक कहलाते हैं।
     देशभक्ति का गीत ह्रदय में, मातृशक्ति पनपाते हैं ।।3।।
     मां का वंदन....
मधुकर की यह तपः साधना, वज्र शक्ति बन जाएगी। 
मां बैठेगी सिंहासन पर, यश वैभव को पाएगी । 
केशव-माधव का यह दर्शन, मोह-जाल कट जाते हैं ।।4।।
मां का वंदन....

23 October 2022 jalandhar

उद्घाटन सत्र

 23/10/22

 श्रीमान रामेश्वर जी, क्षेत्र प्रचारक प्रमुख उत्तर क्षेत्र

 डॉजी ने संघ कार्य विजयदशमी के दिन बैठक में एक संघटन की नींव रखने की बात रखी
 आरएसएस की प्रतिदिन शाखा - मोहित बाडा में पहली फिर अलग अलग क्षेत्रों में लगी- 

 डॉ जी सर्वव्यापी कार्य योजना पूरे राष्ट्र में हो ऐसी सोच व विषय को स्वयंसेवकों के बीच रखी 
शाखा में आने वाले स्वयंसेवक परिपक्व हो गये, उन्होंने विद्यार्थी जीवन में पढ़ाई करते हुए संघ कार्य को अलग अलग प्रांतो में पहुंचाया 
 अन्य अन्य प्रांत भेजे गए :

 बालासाहब जी को कलकत्ता, यादवराव  जी कर्नाटक ,यादवराव परमार्थ को महाराष्ट्र, मुरा यक्षराज जी - राजस्थान, राजाभाई पातुरकर- लाहौर, मुंजे जी रावलपिंडी   संघ कार्य करने गए थे 

विद्यार्थी स्वयंसेवक प्रचारक जीवन में कार्य करने में सदा आगे आए

 प्रथम प्रचारक - बाबा साहब आप्टे(उमाकांत केशव आप्टे' = पूर्ण नाम;), पोस्ट ऑफिस में कार्य करते थे; कार्यकर्ता थे
 " घर में शादी निमित बात कही जाने लगी तो नौकरी से त्यागपत्र दिया : डॉ जी के पूछने पर कहा: सदा संघ का कार्य ही करूंगा शादी नहीं करूँगा। 
प्रचारक परंपरा की शुरुआत, अधिकतम महाराष्ट्र से निकलने लगे

 अपना दायित्व जिला प्रचारक- महत्वपूर्ण - अपनी कल्पना व संकल्पना कैसी चाहिए ?

 मान्यताएँ प्रचारक हेतु शर्ते : 
1) संघटन की योजना से संघ कार्य करने वाला - पूर्ण समय देकर अपना व्यक्तिगत कुछ नहीं - नौकरी, व्यवसाय, पढ़ाई खेती आदि नहीं 
2> जहाँ संघटन भेजे वहाँ जाने वाला
 Personal Liking disliking नहीं
 1946 में माधव राव मूले- पंजाब आ गये, जहाँ भी भेजा उन सब ने अपना जीवन वही खपा दिया ,वहाँ की भाषा, भेदभूष, खाना पान रहन सहन सब कुछ अपना लिया।

 • श्रीरामजी से गुरुजी ने पूछा: क्या खाना पसंद है सब कुछ,
 मद्रास (तमिलनाडु) भेजे गए अपना"पूरा जीवन तमिलनाडु में लगा दिया परांगती भी वही हुई 

माधवराव मुले' का पूरा जीवन प्रेरणादायी 

 केशवराव दिक्षित - बंगाल भेजे गये - 72 वर्षो तक अखण्ड प्रवास बंगाल में ही, अंतिम सांस भी बंगाल की धरती पर रहे।

डा. राम सिंहनी (हमीरपुर के, लाहौर में पढ़ाई 1942-43 में - MBA Gold Medalist
प्रचारक- अमृतसर में; विभाजन के कालखण्ड में अद्भूत कार्य किया; असम में भेजे गए यानि असम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपर  अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा - 7 राज्यों के अकेले प्रांत प्रचारक 1971 तक रहे ,बाद मे पंजाब प्रांत प्रचारक, क्षेत्र प्रचारक रहे।

 • जहाँ भेज दिया वहाँ झोला उठाकर चल पड़े

3) जो काम मिल वे कार्य  करने में हम सिद्ध हो -

 चमनलाल जी प्रचारक रहते  30 वर्ष तक दिल्ली कार्यालय झंडेवाला कार्यालय प्रमुख रहे संघटक के कहने पर, कार्यालय की व्यवस्था देखी

 बाद में, विश्व विभाग का काम देखे - आज पूरी दुनिया में कार्य बढ़ाया।

 4) दपोपंत ठेंगडी - श्रीगुरुजी ने मजदूर क्षेत्र कम्युनिष्ट के प्रभाव को कम कर भारतीय मजदूर संघ, किसानों  हेतु  - भारतीय किसान संघ राष्ट्रव्यापी संघटन खड़ा किया

एकनाथजी रानाडे अपने सरकार्यवाह रहे
 श्रीगुरुजी ने  कन्याकुमारी में विवेकानंद का स्मारक का कार्य का कार्य दिया अनथक परिश्रम से 'शून्य से सृष्टि' किया - अंतर्राष्ट्रीय स्तर का स्मारक, विवेकानंद साधनास्थली।


 •जो जिम्मेदारी मिल गयी इसे पूरा करूंगा, नहीं आता तो सिखूंगा, मन में कोई संशय नहीं
 दीनदयाल जी,प्रांतप्रचारक  थे श्रीगुरुजी ने कहा- राजनीति में जाना है वही कार्य राष्ट्र हित में बढ़ाना।

 1) Unconditional सरेंडर
2) जहाँ भेजा , वहाँ जाना
 3) जो काम वही करना 

 प्रचारक के गुण: प्रचारक की संकल्पना
○  लोकसंग्रही, मिलनसार (आत्मीयता पूर्वक संबंध बनाने वाले), सब  हिंदू अपने की भावना  : हिंदवा सोदरा सर्वे न हिंदू .....

सभी से  प्रेमपूर्वक आत्मीयता का संबंध प्रचारक रखे  ,चुम्बन की तरह जहाँ भी जाये...

○ परिश्रमी  - कबेर परिश्रमी हो, सुस्त नहीं ढीला ढाला नही, शहर गाँव पहाड़, स्कूल को कर्मचारी दुकानदार खेत में किसानों आदि से मिलने वाला हो 

○ सुबह प्रात: उठने वाला, अमृत वेले उठने वाला ,दिनभर परिश्रम करने वाला

○ जीवन में सादगी होनी चाहिए simple living high thinking
○Loves Midle class जैसा  रहन सहन, पहनावा सामान्य, विशेष न हो, पेन भी सामान्य हो, Mobile कैसा है, कपड़े Branded नहीं सभी सामान्य हो 

6 विषय 
1. पूरा समय देकर संघटन कार्य करने वाला 
2 जहां संघटन भेजे वहां जाकर काम करने वाला
3 जो काम मिले करना
4 लोकसंग्रही हमारा स्वभाव हो
5. परिश्रमी
4. सादगी पूर्ण जीवन

सामर्थन बन कर संघ कार्य करे यही परत पिता परमेश्वर से
प्रार्थना है।

Saturday, November 5, 2022

24 October 2022 jalandhar

24-अक्टूबर 2022

श्रीमान सुरेश भारती जी 

आ. भा. प्रचारक प्रमुख 

• अपना संघ कार्य दैविक कार्य, प्रचारकदेश हित में कार्य करेगा। जब भी आहवाहन किया, शक्ति प्रकट हो गई पवित्र शक्ति का पवित्र स्वरूप है RSS..

• युवक जो आगे आए,जब तक यह ताकत रहेगी। तब तक यह शक्ति ऐसा ही चलेगा।

• महात्मा तपस्वी राजा कल्पतरू वृतांत

● 'आत्मीयता' के कारण देश पर जीवन न्योछावर करने वाले युवक खड़े होते गए। प्रचारक को देकर देखकर ही प्रचारक निकलते हैं।

जब श्रद्धा होती है, तो अपना पूरा जीवन पढ़ा लिखा, गरीब घर के , तेजस्वी बालक प्रचारक निकलते गए।                         100 युवक मिल जाए तो देश का नक्शा बदल दूँ - विवेकानंद जी।                          डॉ जी ने 1935-36 से प्रचारक निकालना शुरू कर दिया और भेजा रावलपीडी, लाहौर, देश के प्रति डॉक्टर जी का चिंतन भविष्यशाली था।

10 वर्षो में ही छोटे सामान्य युवकों को डाक्टर जी  ने अलग अलग क्षेत्र में भेजा।

डॉ. जी के स्नेह व धैर्य से प्रेरित होकर निकले।                                             स्कूल गायक  विद्यार्थीयों से मिलकर स्वयंसेवक बनाया यादव राव जी ।    भीमराव जोशी - यादवराव जोशी को बड़ा माना, डॉ की ने युवावस्था में स्नेह से प्रचारक निकलें 

भास्कर राव कुलकर्णी, महाराष्ट्र के थे, केरल में रह कर काम किया। वनवासी कल्याण आश्रम का कार्य किया खड़ा

तमिल भी बोलने लगे 'हिन्दुत्व' पहले - यह युवकों द्वारा हुआ।

डॉ जी का जीवन प्रेरणादायी - गरीबी पर भी विजय प्राप्त की

श्रीगुरुजी - 9 भाई बहन में एक बचे और अपना जीवन राष्ट्र में लगा दिया। • अपने सभी संघचालक ने देश हित में जीवन लगा दिया 

बालासाहब देवरस ने- चित्र डॉक्टर जी व गुरुजी का ही लगे का निर्णय-संपूर्ण समर्पण की कल्पना - का फोटो न लगे मेरा भी नहीं या कोई अन्य सरसंघचालक 

दाह संस्कार भी 'रेशम बाग' में भी समाधि व अंतिम संस्कार अब किसी की नहीं, मेरा भी सामान्य रूप से हो।

रज्जु भैया जी  के पिता  उत्तर प्रदेश के पहले  chief Engineer थे, जहाँ संघ भेजेगा -' पुना में 'भेजा गया कहा मेरा शरीर अंतिम संस्कार 'पुना' में ही करना

* विद्वता का अंहकार नहीं . सुदर्शन जी".प्रचंड विद्वान शुरू से अंत तक ज्ञाता ' सभी सरसंघचालक ऐसे ही रहे -

● अपना पूरा जीवन देश के लिए, प्रचारक निकालने से नहीं, स्वयं की प्रेरणा से निकलते हैं।
• धर्मनारायण के धर्मसंकट का निवारण: विभाग प्रचारक के उपदेश से  विवाह मंडप से भाग गए।

 मथुराजी व्यास ने  श्रीगुरुजी के आह्वान पर (1948-52) - वाकील थे, तो उपाय निकला- ज्योतिष घर में रहेगा तो पूरा घर बर्बाद हो जाएगा, मैं संघ के काम में लगूंगा।  राजस्थान आए 

दादाभाई वृक्षराज जी 4 वर्ष तक गृहस्थ रहे ,कई युवक गृहस्थ प्रचारक निकाले।

 योगश्री पाबा, मोरखपुर के नाना साहब (जिला प्रचारक) के साथ संपर्क - बीमार पड़ गए पीठ पर बैठा 1.5किलोमीटर तक ले जाकर  डॉक्टर को दिखाया ।आजीवन प्रचारक रहे ,संस्कार भारती उत्कृष्ट कार्य शुरू किया।


 साम्यवाद 1920 रूस की क्रांति भारत में 1924 में आई, साम्यवाद का संकट श्री गुरु की ने भाप लिया था  इस विषय  दंतोपंथ ठेगड़ी जी श्री गुरुजी ने बात की: भारतीय मजदूर संघ, एबीवीपी, स्वदेशी जागरण मंच, जैसे हजारों संगठन शुरू किया

चीन आमंत्रण द्वारा आमंत्रित किए गए - एक युवक ने देश की स्थिति बदल दी  
 भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की, जिसने कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं, छात्रों, किसानों के तीनों अंगों पर बढ़ रहें लालसलाम जैसे प्रभाव को हटा दिया

 • राजनीति का काम दीनदयाल जी को सोपा।  प्रभाव कांग्रेस की दूसरी नई दिशा है।  राजनीति से दीनदयाल ने नियम तोड़कर बात नहीं की, बंजायद का कोई फायदा नहीं उठाया।  राष्ट्र मन की स्थिति संघ के दृष्टिकोण से उसके सभी समर्थकों के लिए भिन्न नहीं होती है।

 एकनाथ रानाडे सरकार्यवाह ,श्री गुरुजी के कहने पर ने कन्याकुमारी तमिलनाडु में विवेकानंद केंद्र स्थापित के रूप में सेवा की।

असम व अन्य सात राज्यों में प्रवेश  विवेकानंद केंद्र द्वारा हो पाया 

 संघर्ष • आपका तरीका है अच्छे लोगों का सम्मान करना

 'लक्ष्मण जी शेखावत'- महाराणा भागवत सिंह (इंदिरा गांधी के नजदीकी)को भी संघ में ले आए पुस्तक दी बंच ऑफ थॉट फिर गुरुजी से मिले भी व विश्व हिन्दू परिषद का कार्य संभाला।
 

 अप्पाजी जोशी , संघ स्वयंसेवक की संख्या ज्यादा है, संख्या के हिसाब से सभी लोगों के काम बढ़ेंगे.  52 संस्था को त्यागपत्र दे दिया दूसरे ही दिन डॉक्टर जी के पास आ गए

 

 विष्णुदास, गोपालदास जी अद्भुत दिव्य दृष्टि संघ कार्य के प्रति
 बवेजा जी एमएससी पीएचडी मैथ्स को पढ़ाते थे परिवार विपन्तता थी फिर भी संघ कार्य किया।,

JALANDHAR JILA PRACHARAK 2022 NORTH ZONE

ज़िन्दगी बहुत हसीन है,
कभी हंसाती है, तो कभी रुलाती है,
लेकिन जो ज़िन्दगी की भीड़ में खुश रहता है,
ज़िन्दगी उसी के आगे सिर झुकाती है।


SANGH GEET NOVEMBER 2022 REASI

मां भारती की स्वर्णिम, माटी हमें है चन्दन।
माटी हमारी पूजा, माटी हमारा वन्दन॥ 
        वे धन्य हैं जो जन्मे, इस पावनी धरा पर 
        सुखदायिनी धरा पर, वरदायिनी धरा पर
        कभी राम इसमें खेले, कभी खेले नंद नंदन ॥1॥ मां भारती ....
मेरे अवध की सरयू, श्रीराम को बुलाती
मथुरा में मातु यमुना, कान्हा के गीत गाती
रुद्राभिषेक करती, काशी में गंगा पावन ॥2॥ मां भारती ....         
         संकट में भारती मां, गो रूप धारती है
         गोपाल की शरण में, जाकर पुकारती है
         गोवंश हित करेगा, गोभक्त हर समर्पण ॥3॥ मां भारती ....
मां भारती के सुत हैं, सारे समाज बन्धु 
सब वर्ग बिन्दु-बिन्दु, हिन्दू समाज सिन्धु
एकात्मता के बल पर, समरस यहाँ है जीवन ॥4॥ मां भारती ....



त्याग और प्रेम के पथ पर, चलकर मूल न कोई हारा। 
हिम्मत से पतवार सम्भालो, फिर क्या दूर किनारा॥
          हो जो नहीं अनुकूल हवा तो , परवाह उसकी मत कर। 
          मौजों से टकराता बढ़ चल, उठ माँझी साहस कर। 
          धुन्ध पड़े या आँधी आए, उमड़ पड़े जल धारा ॥1॥
          हिम्मत से..........
 हाथ बढ़ा पतवार को पकड़ो, खोल खेवइया लंगर। 
मदद मल्लाहों की करता है, बाबा भोले शंकर। 
जान हथेली पर रखकर, लाखों को तूने तारा ॥2॥ 
हिम्मत से..........
         दरियाओं की छाती पर था, तूने होश संभाला। 
         लहरों की थपकी से सोया, तूफानों ने पाला। 
         जी भर खेला खेल भंवर से, जीवन मस्त गुजारा ॥3॥
         हिम्मत से..........




आँधी क्या है तूफान मिलें, चाहे जितने व्यवधान मिलें।
बढ़ना ही अपना काम है, बढ़ना ही अपना काम है।। 
     हम नई चेतना की धारा, हम अंधियारे में उजियारा, 
     हम उस बयार के झोंके हैं, जो हर ले जग का दुःख सारा। 
     चलना है शूल मिलें तो क्या, पथ में अंगार जलें तो क्या, 
     जीवन में कहाँ विराम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥1॥
     आँधी क्या है.... 
हम अनुगामी उन पाँवों के, आदर्श लिए जो बढ़े चले, 
बाधाएँ जिन्हें डिगा न सकीं, जो संघर्षों में अड़े रहे। 
सिर पर मंडरता काल रहे, करवट लेता भूचाल रहे, 
पर अमिट हमारा नाम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥2॥
आँधी क्या है.... 
     वह देखो पास खड़ी मंजिल, इंगित से हमें बुलाती है, 
     साहस से बढ़ने वालों के, माथे पर तिलक लगाती है। 
     साधना न व्यर्थ कभी जाती, चलकर ही मंजिल मिल पाती,
     फिर क्या बदली क्या घाम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥3॥
     आँधी क्या है....




शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं।
मां का वंदन सांझ-सवेरे, श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं ।।ध्रु.।।
     संघ-साधना अर्चन-पूजन, प्रतिदिन शीश झुकाते हैं।
     भारत मां के भव्य भाल पर, भगवा ध्वज लहराते हैं।
     संघस्थान मंदिर सा पावन, मन दर्पण हो जाते हैं ।।1।।
     मां का वंदन....
इसकी रज में खेल-खेल कर, तन चन्दन बन जाते हैं।
योग, खेल, रवि-नमस्कार से, स्वस्थ शरीर बनाते हैं।
स्नेह भाव से मिलते-जुलते, मद-मत्सर मिट जाते हैं ।।2।।
मां का वंदन....
     लोक-संगठन के संवाहक, गटनायक बन जाते हैं। 
     कुंभकार की रचना करके, गणशिक्षक कहलाते हैं।
     देशभक्ति का गीत ह्रदय में, मातृशक्ति पनपाते हैं ।।3।।
     मां का वंदन....
मधुकर की यह तपः साधना, वज्र शक्ति बन जाएगी। 
मां बैठेगी सिंहासन पर, यश वैभव को पाएगी । 
केशव-माधव का यह दर्शन, मोह-जाल कट जाते हैं ।।4।।
मां का वंदन....

manast phakiri v sachha vir song

मन मस्त फकीरी धारी है, मन मस्त फकीरी धारी है 
मन मस्त फकीरी धारी है, अब एक ही धुन जय जय भारत
जय जय भारत.....
         हम धन्य हैं इस जग जननी की, सेवा का अवसर है पाया
         इसकी माटी वायु जल से, दुर्लभ जीवन है विकसाया
         यह पुष्प इसी के चरणों में,
         यह पुष्प इसी के चरणों में, माँ प्राणों से भी प्यारी है। मन मस्त....
सुन्दर सपने नव आकर्षण, सब छोड़ चले मुख मोड़ चले
वैभव महलों का क्या करना, सोते सुख से आकाश तले
साधन की ओर न ताकेंगे,
साधन की ओर न ताकेंगे, काँटों की राह हमारी है । 
मन मस्त फकीरी धारी है, मन मस्त फकीरी धारी है ॥



सच्चा वीर बना दे माँ, सच्चा वीर बना दे माँ
सच्चा वीर बना दे माँ, सच्चा वीर बना दे माँ॥
          ध्रुव जैसी मुझे भक्ति दे दे, अर्जुन जैसी शक्ति दे दे 
          गीता ज्ञान सुना दे माँ, सच्चा वीर बना दे माँ
          सच्चा वीर बना दे माँ, सच्चा वीर बना दे माँ॥
वीर हकीकत मैं बन जाऊँ, धर्म पे अपना शीश कटाऊँ 
ऐसी लगन लगा दे माँ, सच्चा वीर बना दे माँ। 
सच्चा वीर बना दे माँ, सच्चा वीर बना दे माँ॥
         गुरु गोबिन्द सा त्यागी बना दे, वीर शिवा सी आग लगा दे 
         जीवन देश पे हो बलि माँ, सच्चा वीर बना दे माँ
          सच्चा वीर बना दे माँ, सच्चा वीर बना दे माँ॥