Saturday, November 5, 2022

SANGH GEET NOVEMBER 2022 REASI

मां भारती की स्वर्णिम, माटी हमें है चन्दन।
माटी हमारी पूजा, माटी हमारा वन्दन॥ 
        वे धन्य हैं जो जन्मे, इस पावनी धरा पर 
        सुखदायिनी धरा पर, वरदायिनी धरा पर
        कभी राम इसमें खेले, कभी खेले नंद नंदन ॥1॥ मां भारती ....
मेरे अवध की सरयू, श्रीराम को बुलाती
मथुरा में मातु यमुना, कान्हा के गीत गाती
रुद्राभिषेक करती, काशी में गंगा पावन ॥2॥ मां भारती ....         
         संकट में भारती मां, गो रूप धारती है
         गोपाल की शरण में, जाकर पुकारती है
         गोवंश हित करेगा, गोभक्त हर समर्पण ॥3॥ मां भारती ....
मां भारती के सुत हैं, सारे समाज बन्धु 
सब वर्ग बिन्दु-बिन्दु, हिन्दू समाज सिन्धु
एकात्मता के बल पर, समरस यहाँ है जीवन ॥4॥ मां भारती ....



त्याग और प्रेम के पथ पर, चलकर मूल न कोई हारा। 
हिम्मत से पतवार सम्भालो, फिर क्या दूर किनारा॥
          हो जो नहीं अनुकूल हवा तो , परवाह उसकी मत कर। 
          मौजों से टकराता बढ़ चल, उठ माँझी साहस कर। 
          धुन्ध पड़े या आँधी आए, उमड़ पड़े जल धारा ॥1॥
          हिम्मत से..........
 हाथ बढ़ा पतवार को पकड़ो, खोल खेवइया लंगर। 
मदद मल्लाहों की करता है, बाबा भोले शंकर। 
जान हथेली पर रखकर, लाखों को तूने तारा ॥2॥ 
हिम्मत से..........
         दरियाओं की छाती पर था, तूने होश संभाला। 
         लहरों की थपकी से सोया, तूफानों ने पाला। 
         जी भर खेला खेल भंवर से, जीवन मस्त गुजारा ॥3॥
         हिम्मत से..........




आँधी क्या है तूफान मिलें, चाहे जितने व्यवधान मिलें।
बढ़ना ही अपना काम है, बढ़ना ही अपना काम है।। 
     हम नई चेतना की धारा, हम अंधियारे में उजियारा, 
     हम उस बयार के झोंके हैं, जो हर ले जग का दुःख सारा। 
     चलना है शूल मिलें तो क्या, पथ में अंगार जलें तो क्या, 
     जीवन में कहाँ विराम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥1॥
     आँधी क्या है.... 
हम अनुगामी उन पाँवों के, आदर्श लिए जो बढ़े चले, 
बाधाएँ जिन्हें डिगा न सकीं, जो संघर्षों में अड़े रहे। 
सिर पर मंडरता काल रहे, करवट लेता भूचाल रहे, 
पर अमिट हमारा नाम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥2॥
आँधी क्या है.... 
     वह देखो पास खड़ी मंजिल, इंगित से हमें बुलाती है, 
     साहस से बढ़ने वालों के, माथे पर तिलक लगाती है। 
     साधना न व्यर्थ कभी जाती, चलकर ही मंजिल मिल पाती,
     फिर क्या बदली क्या घाम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥3॥
     आँधी क्या है....




शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं।
मां का वंदन सांझ-सवेरे, श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं ।।ध्रु.।।
     संघ-साधना अर्चन-पूजन, प्रतिदिन शीश झुकाते हैं।
     भारत मां के भव्य भाल पर, भगवा ध्वज लहराते हैं।
     संघस्थान मंदिर सा पावन, मन दर्पण हो जाते हैं ।।1।।
     मां का वंदन....
इसकी रज में खेल-खेल कर, तन चन्दन बन जाते हैं।
योग, खेल, रवि-नमस्कार से, स्वस्थ शरीर बनाते हैं।
स्नेह भाव से मिलते-जुलते, मद-मत्सर मिट जाते हैं ।।2।।
मां का वंदन....
     लोक-संगठन के संवाहक, गटनायक बन जाते हैं। 
     कुंभकार की रचना करके, गणशिक्षक कहलाते हैं।
     देशभक्ति का गीत ह्रदय में, मातृशक्ति पनपाते हैं ।।3।।
     मां का वंदन....
मधुकर की यह तपः साधना, वज्र शक्ति बन जाएगी। 
मां बैठेगी सिंहासन पर, यश वैभव को पाएगी । 
केशव-माधव का यह दर्शन, मोह-जाल कट जाते हैं ।।4।।
मां का वंदन....

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