परिवार संरचना प्रकृति प्रदत्त है, इसलिये इसको सुरक्षित रखना व उसका सरंक्षण करना हमारा दायित्व है।परिवार असेंबल की गयी इकाई नहीं है, यह संरचना प्रकृति प्रदत्त है इसलिये हमारी जिम्मेदारी उनकी देखभाल करने की भी है।।आज हम इसी के चिंतन के लिए यहां बैठे है।।हमारे समाज की इकाई कुटुम्ब है,व्यक्ति नही।।पश्चात देशों में व्यक्ति को इकाई मानते है,जबकि हमारे वहां हम व्यक्ति तो है लेकिन एक अकेले नही है।।
भाषा,भोजन, भजन,भ्रमण,भूषा और भवन के जरिये अपनी जड़ों से जुड़े रहने का संदेश दिया।मेरा परिवार स्वस्थ रहे,सुखी रहे इसके साथ साथ हमे समाज के भी स्वस्थ व सुखी रखने की चिंता करनी होगी।।
यहां पर कुटुम्ब प्रबोधन हो रहा है, उसी तरह सप्ताह में सभी परिवार कुटुंब प्रबोधन करें। इसमें एक दिन परिवार के सभी लोग एक साथ भोजन ग्रहण करें, इसमें अपनी परंपराओं, रीति रिवाजों की जानकारी दें। फिर आपस में चर्चा करें और एक मत बनाएं और उस पर कार्य करें।।
हम सब लोग संघ के कार्यकर्ता के घर से है,इसलिए हम लोग व्रतस्थ है।।यह व्रत परिवार के किसी अकेले व्यक्ति का नही पूरे परिवार का है।।संघ अपनी कुलरीति है,संघ समाज को बनाने का कार्य है इसलिए धर्म भी है।।धर्म हमे मिलकर जीने का तरीका सिखाता है।।परस्पर संघर्ष न हो इसके लिए हम अपना हित साधे, लेकिन दूसरे का अहित न हो इसकी चिंता करनी चाहिए।।यही सनातन धर्म है,यही मानव धर्म है और यही आज हिन्दू धर्म है।।सम्पूर्ण विश्व को तारण देने वाला धर्म है जिसके लिए कमाई भी देनी पड़ती है।।
हमे अपना परम्परागत वेश-भूषा पहनना चाहिए,कम से कम मंगल प्रसंग व अवसरों पर तो पहनना ही चाहिए।।हम क्या है,हमारे माता-पिता कहा से आए इसकी जानकारी रखनी चाहिए। हमको इसकी भी चिंता करनी चाहिए कि हम अपने पूर्वजों की रीति का हम पालन कर रहे या नही..??
हमे पूरे परिवार के साथ बैठकर विचार करना चाहिए साथ ही बच्चो संग खुले दिल से बात करना चाहिए।।साथ ही मैं समाज के लिए क्या करता हु ये हमे सोचना पड़ेगा।।
संघ पर 2 बार प्रतिबंध लगा, पर किसी स्वयसेवक ने माफी नही मांगी क्योंकि स्वयंसेवको के साथ परिवार खड़ा रहा, परिवार सदा अड़ा रहा इसलिए संघ का काम निरन्तर चल रहा है।
हम स्वयंसेवको के परिजनों को संघ जानना चाहिए और संघ का काम कितना गम्भीर है इसको भी सोचना चाहिए।।हम इतने सौभाग्यशाली है जो इस कार्य मे लगे है,हमे इस बात को समझना चाहिए।।
- सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत
Family structure is given by nature, so it is our responsibility to protect it and preserve it. Family is not an assembled unit, this structure is given by nature, so we have the responsibility to take care of them. Today we are here to reflect on this. Sitting.. The unit of our society is the family, not the individual. In the later countries, the individual is considered as a unit, whereas in our country we are a person but not a single person.
Gave the message of staying connected to our roots through language, food, bhajans, tours, food and buildings. May my family be healthy, happy and at the same time we have to worry about keeping the society healthy and happy.
Family Prabodhan is taking place here, in the same way all the families should do family Prabodhan in the same way. In this, one day all the members of the family should take food together, give information about their traditions and customs in it. Then discuss amongst themselves and form an opinion and act on it.
We all are from the house of the workers of the Sangh, that's why we are fasting. This fast is not for any single person in the family, but for the whole family. .Religion teaches us the way to live together..We should serve our own interests so that there is no conflict between ourselves, but we should worry about not harming others. This is Sanatan Dharma, this is Manav Dharma and this is Hinduism today. There is a religion that gives salvation to the whole world, for which income has to be given.
We should wear our traditional dress, at least on auspicious occasions and occasions. We should be aware of what we are, where our parents came from. We should also worry about whether we are following the customs of our ancestors or not..??
We should sit and think with the whole family as well as talk with the children with an open heart. Also we have to think about what I do for the society.
Sangh was banned twice, but no swayamsevak apologized because the family stood with the volunteers, the family was always adamant, so the work of the Sangh is going on continuously.
We swayamsevaks' families should know the Sangh and think about how serious the work of the Sangh is. We are so fortunate that those who are engaged in this work, we should understand this.
- Sarsanghchalak Dr. Mohan Bhagwat
No comments:
Post a Comment