Thursday, June 18, 2020

June 16 / Sacrifice Day" * Sacrifice of Nalinikant Bagchi *

"16 जून/बलिदान-दिवस"
*नलिनीकान्त बागची का बलिदान*

भारतीय स्वतन्त्रता के इतिहास में यद्यपि क्रान्तिकारियों की चर्चा कम ही हुई है; पर सच यह है कि उनका योगदान अहिंसक आन्दोलन से बहुत अधिक था। बंगाल क्रान्तिकारियों का गढ़ था। इसी से घबराकर अंग्रेजों ने राजधानी कोलकाता से हटाकर दिल्ली में स्थापित की थी। इन्हीं क्रान्तिकारियों में एक थे नलिनीकान्त बागची, जो सदा अपनी जान हथेली पर लिये रहते थे।

एक बार बागची अपने साथियों के साथ गुवाहाटी के एक मकान में रह रहे थे। सब लोग सारी रात बारी-बारी जागते थे; क्योंकि पुलिस उनके पीछे पड़ी थी। एक बार रात में पुलिस ने मकान को घेर लिया। जो क्रान्तिकारी जाग रहा था, उसने सबको जगाकर सावधान कर दिया। सबने निश्चय किया कि पुलिस के मोर्चा सँभालने से पहले ही उन पर हमला कर दिया जाये।

निश्चय करते ही सब गोलीवर्षा करते हुए पुलिस पर टूट पड़े। इससे पुलिस वाले हक्के बक्के रह गये। वे अपनी जान बचाने के लिए छिपने लगे। इसका लाभ उठाकर क्रान्तिकारी वहाँ से भाग गये और जंगल में जा पहुँचे। वहाँ भूखे प्यासे कई दिन तक वे छिपे रहे; पर पुलिस उनके पीछा करती रही। जैसे तैसे तीन दिन बाद उन्होंने भोजन का प्रबन्ध किया। वे भोजन करने बैठे ही थे कि पहले से बहुत अधिक संख्या में पुलिस बल ने उन्हें घेर लिया।

वे समझ गये कि भोजन आज भी उनके भाग्य में नहीं है। अतः सब भोजन को छोड़कर फिर भागे; पर पुलिस इस बार अधिक तैयारी से थी। अतः मुठभेड़ चालू हो गयी। तीन क्रान्तिकारी वहीं मारे गये। तीन बच कर भाग निकले। उनमें नलिनीकान्त बागची भी थे। भूख के मारे उनकी हालत खराब थी। फिर भी वे तीन दिन तक जंगल में ही भागते रहे। इस दौरान एक जंगली कीड़ा उनके शरीर से चिपक गया। उसका जहर भी उनके शरीर में फैलने लगा। फिर भी वे किसी तरह हावड़ा पहुँच गये।

हावड़ा स्टेशन के बाहर एक पेड़ के नीचे वे बेहोश होकर गिर पड़े। सौभाग्यवश नलिनीकान्त का एक पुराना मित्र उधर से निकल रहा था। वह उन्हें उठाकर अपने घर ले गया। उसने मट्ठे में हल्दी मिलाकर पूरे शरीर पर लेप किया और कई दिन तक भरपूर मात्रा में मट्ठा उसे पिलाया। इससे कुछ दिन में नलिनी ठीक हो गये। ठीक होने पर नलिनी मित्र से विदा लेकर कुछ समय अपना हुलिया बदलकर बिहार में छिपे रहे; पर चुप बैठना उनके स्वभाव में नहीं थी। अतः वे अपने साथी तारिणी प्रसन्न मजूमदार के पास ढाका आ गये।

लेकिन पुलिस तो उनके पीछे पड़ी ही थी। 15 जून को पुलिस ने उस मकान को भी घेर लिया, जहाँ से वे अपनी गतिविधियाँ चला रहे थे। उस समय तीन क्रान्तिकारी वहाँ थे। दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो गयी। पास के मकान से दो पुलिस वालों ने इधर घुसने का प्रयास किया; पर क्रान्तिवीरों की गोली से दोनों घायल हो गये। क्रान्तिकारियों के पास सामग्री बहुत कम थी, अतः तीनों दरवाजा खोलकर गोली चलाते हुए बाहर भागे। नलिनी की गोली से पुलिस अधिकारी का टोप उड़ गया; पर उनकी संख्या बहुत अधिक थी। अन्ततः नलिनी गोली से घायल होकर गिर पड़े।

पुलिस वाले उन्हें बग्घी में डालकर अस्पताल ले गये, जहाँ अगले दिन 16 जून, 1918 को नलिनीकान्त बागची ने भारत माँ को स्वतन्त्र कराने की अधूरी कामना मन में लिये ही शरीर त्याग दिया।

#हरदिनपावन


"June 16 / Sacrifice Day"
 * Sacrifice of Nalinikant Bagchi *

 Although there has been little discussion of revolutionaries in the history of Indian independence;  But the truth is that his contribution was much more than the non-violent movement.  Bengal was a stronghold of revolutionaries.  Fearing this, the British removed the capital from Kolkata and established it in Delhi.  Nalinikant Bagchi was one of these revolutionaries, who always lived on the palm of his life.

 Once Bagchi was living in a house in Guwahati with his companions.  Everybody used to stay awake all night;  Because the police were after them.  Once in the night, the police surrounded the house.  The revolutionary who was awake woke everyone up and alerted him.  Everyone decided that they should be attacked before the police could take over.

 As soon as they decided, everyone cracked down on the police while firing.  This left the police shocked.  They started hiding to save their lives.  Taking advantage of this, the revolutionaries fled from there and reached the forest.  They hid there for many days, hungry and thirsty;  But the police kept chasing him.  For example, after three days, they managed food.  They were sitting down to eat that a much larger number of police forces surrounded them.

 They understood that food is not in their fate even today.  So everyone, except food, ran again;  But the police was more prepared this time.  So the encounter started.  Three revolutionaries died there.  Three escaped.  Nalinikant Bagchi was also among them.  His condition was bad due to hunger.  Still, he continued to run in the forest for three days.  During this time a wild worm stuck to their body.  His poison also started spreading in his body.  Yet somehow they reached Howrah.

 They fainted under a tree outside Howrah station.  Fortunately, an old friend of Nalinikanth was leaving from there.  He took them to his house.  He mixed turmeric in whey and applied it on the whole body and fed it in plenty of whey for several days.  Nalini was cured in a few days.  After getting well, Nalini took a leave from a friend and changed her hulia for some time and remained hidden in Bihar;  But it was not in his nature to sit silent.  So they came to Dhaka near their partner Tarini Prasanna Majumdar.

 But the police was after them.  On 15 June, the police also surrounded the house from where they were carrying out their activities.  At that time, three revolutionaries were there.  Firing began on both sides.  Two policemen tried to sneak in from a nearby house;  But both were injured by the bullet of the revolutionaries.  The revolutionaries had very little material, so the three opened the door and ran out while shooting.  Nalini's bullet blew up the top of a police officer;  But their number was very high.  Finally, Nalini fell from a bullet wound.

 The policemen took him to the hospital and took him to the hospital, where on the next day on 16 June 1918, Nalinikant Bagchi gave up the unfulfilled desire to free the mother of India.

 #Hardinpavan

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