माघ

संस्कृतकवि माघजन्म७ वीं शताब्दी
श्रीमल (वर्त्तमान भीनमाल, राजस्थान)व्यवसायकवि
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माघ को संस्कृत आलोचकों व विद्वानों द्वारा प्रायः एक प्रकाण्ड सर्वशास्त्रतत्त्वज्ञ विद्वान् माना जाता है। दर्शनशास्त्र, संगीतशास्त्र तथा व्याकरणशास्त्र में उनकी विद्वत्ता थी। उनका पाण्डित्य एकांगी नही, प्रत्युत सर्वगामी था। अतएव उन्हें 'पण्डित-कवि' भी कहा गया है। महाकवि भारवि द्वारा प्रवर्तित "अलंकृत शैली" का पूर्ण विकसित स्वरुप माघ के महाकाव्य 'शिशुपालवध' में प्राप्त होता है, जिसका प्रभाव बाद के कवियों पर बहुत ही अधिक पड़ा। उनके 'शिशुपालवध' के प्रत्येक पक्ष की विशेषता का बहुत गहरा साहित्यिक अध्ययन संस्कृत विद्वानों व शिक्षाविदों द्वारा किया गया है।
उनके बारे में पं० बलदेव उपाध्याय ने कहा है -अलंकृत महाकाव्य की यह आदर्श कल्पना महाकवि माघ का संस्कृतसाहित्य को अविस्मरणीय योगदान है, जिसका अनुसरण तथा परिबृहण कर हमारा काव्य साहित्य समृद्ध, सम्पन्न तथा सुसंस्कृत हुआ है।
माघ की प्रशंशा में कहा गया है-
उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्।दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः ॥(कालिदास उपमा में, भारवि अर्थगौरव में, और दण्डी पदलालित्य में बेजोड़ हैं। लेकिन माघ में ये तीनों गुण हैं।)घंटा माघ- शिशुपालवध मे रेवतक पर्वत की हाथी से और हाथी के बंधे घंटे की तुलना नही बल्कि रेवतक पर्वत के दोनो ओर जो सूर्य और चन्द्रमा है उसकी उपमा स्वर्ण और रजत से निर्मित घंटे से की गई है! अतः माघ को घंटा माघ कहा जाता है।
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