Saturday, June 17, 2023

bhartiya shiksha manovigyan ke aadhar



 संस्कृत साहित्य एवं भारतीय इतिहास से अनभिज्ञ लोगों का मत है कि भारत में विज्ञान था ही नहीं। विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित विज्ञान के सभी आविष्कार पाश्चात्य देशों में हुए। विश्व को विज्ञान इन्हीं देशों की देन है। यह मान्यता पूर्णतः सत्य नहीं है। यूरोपीय देश तो सत्रहवीं शताब्दी में विज्ञान से परिचित हुए। जबकि भारत में विज्ञान ईसा से हजारों वर्ष पूर्व से ही फल फूल रहा था। भारत ने सहस्रों वर्षों तक न केवल विश्व का सांस्कृतिक नेतृत्व किया अपितु उद्योग-धन्धों, कला-कौशल, ज्ञान विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी आदि क्षेत्रों में भी अग्रणी रहा। "प्राचीन भारतीयों ने गणित और विज्ञान की नींव रखी। उन्होंने काल, अवकाश दोनों को गणनाबद्ध किया और अन्तरिक्ष को भी नापा। उन्होंने जहाँ पदार्थ की रचना का विश्लेषण किया वहाँ आत्मतत्व के स्वरूप को भी समझा है। उन्होंने तर्क और व्याकरण शास्त्र की कल्पना की और उसका विकास किया, तो दूसरी ओर खगोल शास्त्र, दर्शन, तत्त्वज्ञान, औषधि विज्ञान, शरीर विज्ञान, रचना विज्ञान और गणित जैसे विविध क्षेत्रों में महती प्रगति की। अंकों, दशमलव एवं

 शून्य का आविष्कार भारत में हुआ।"" १. नानी पालखीवाला भारत की अनमोल विरासत, भारतीय विद्या भवन मुम्बई।

Role

 People ignorant of Sanskrit literature and Indian history are of the opinion that there was no science in India. All the inventions of science related to different fields happened in western countries. These countries have given science to the world. This belief is not completely true. European countries became familiar with science in the seventeenth century. While science in India was flourishing since thousands of years before Christ. India has not only led the world culturally for thousands of years, but has also been leading in the fields of industries, arts and crafts, knowledge, science and technology. "Ancient Indians laid the foundation of mathematics and science. They calculated both time and space and also measured space. Where they analyzed the composition of matter, they also understood the nature of self. They conceived logic and grammar. and developed it, on the other hand made great progress in various fields such as astronomy, philosophy, philosophy, medicine, anatomy, composition and mathematics.

 Zero was invented in India. Nani Palkhivala India's Precious Heritage, Bharatiya Vidya Bhavan Mumbai.

कपिल, कणाद, सुश्रुत, चरक, भास्कराचार्य, वराह मिहिर, नागार्जुन, भरद्वाज तथा आर्यभट्ट आदि प्राचीन भारत के वैज्ञानिकों से विश्व का प्रबुद्ध वर्ग सुपरिचित हो चुका है।

 मनोविज्ञान के विषय में भी कहा जाता है कि भारत में मनोविज्ञान था ही नहीं। जो कुछ मिलता भी है वह दर्शन के अन्तर्गत ही है। प्रथम तो भारतीय दर्शन पश्चिम के फिलॉसफी शब्द का समानार्थी नहीं है। पश्चिम में फिलॉसफी कल्पना की उड़ान मानी जाती है। जबकि भारतीय दर्शन जीवन के व्यवहार का आधार है। प्राचीन एवं महान संस्कृति के उत्तराधिकारी भारत ने जीवन की एक लम्बी यात्रा के पश्चात् जीवन के आधारभूत सत्यों का आविष्कार किया है। उन सत्यों के आधार पर भारतीय दर्शन का विकास हुआ है। भारतीय दृष्टिकोण से दर्शन और जीवन एक है। मनोविज्ञान के अध्ययन का विषय भी जीवन के सभी प्रकार के चेतन-अवचेतन व्यवहार एवं चेष्टायें हैं। यही कारण है कि भारतीय दर्शन एवं मनोविज्ञान अभिन्न विषय हैं। भारतीय मनोविज्ञान पश्चिम के समान केवल मन एवं व्यवहार के अध्ययन तक सीमित न रहकर मन से परे " आत्मतत्त्व" तक पहुँचा है। इसमें मानव जीवन सहित सभी प्राणी जगत के व्यवहार का अध्ययन एवं विकास समाहित है। पातंजल योग-सूत्र, श्रीमद्भगवद् गीता, उपनिषद् एवं आधुनिक काल में श्री अरविन्द के योग समन्वय, पुनर्जन्म एवं क्रमविकास ग्रंथ, कोलहटकर का भारतीय मानस शास्त्र एवं श्री रामकृष्ण मिशन के स्वामी निखिलानन्द द्वारा रचित "हिन्दू साइकोलॉजी" आदि सभी ग्रंथ मनोविज्ञान के प्रामाणिक ग्रंथ हैं ।

 भारतीय मनोविज्ञान के विषय में दूसरी भ्रान्ति यह है कि मनोविज्ञान एकदेशीय नहीं होता। मनोविज्ञान तो मनोविज्ञान है।

The enlightened class of the world has become familiar with the scientists of ancient India like Kapil, Kanad, Sushrut, Charak, Bhaskaracharya, Varah Mihir, Nagarjuna, Bhardwaj and Aryabhatta.

 It is also said about psychology that there was no psychology in India. Whatever is found is under philosophy only. Firstly, Indian philosophy is not synonymous with the term Philosophy of the West. Philosophy in the West is considered a flight of fancy. While Indian philosophy is the basis of the behavior of life. India, the inheritor of ancient and great culture, has invented the basic truths of life after a long journey of life. Indian philosophy has developed on the basis of those truths. From the Indian point of view philosophy and life are one. The subject of study of psychology is also all kinds of conscious-subconscious behavior and efforts in life. This is the reason why Indian philosophy and psychology are integral subjects. Unlike the West, Indian psychology has not confined itself to the study of mind and behavior and has reached beyond the mind to the "Self". It includes the study and development of the behavior of all living beings including human life. Patanjali Yoga-Sutras, Srimad Bhagavad Gita, Upanishads and Sri Aurobindo's Yoga Synergy, Reincarnation and Evolution in Modern Times, Kolhatkar's Bharatiya Manas Shastra and "Hindu Psychology" composed by Swami Nikhilananda of Sri Ramakrishna Mission, etc. are all authentic texts of psychology. .

 The second misconception about Indian psychology is that psychology is not monocentric. Psychology is psychology.


महिर,

 निकों

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 इसे भारतीय अथवा अन्य देशीय कहना उचित नहीं है। किन्तु इस प्रकार के विचार करने वाले यह भूल जाते हैं कि पश्चिम में विकसित मनोविज्ञान पूर्ण नहीं है। वहाँ पर भी मनोविज्ञान की परिभाषायें समयानुसार परिवर्तित होती रहती हैं। पश्चिमी जगत में मनोविज्ञान को पहले आत्मा (सोल) के विज्ञान के रूप में मान्यता थी। किन्तु कुछ शताब्दियों के पश्चात् आत्मा को एक दार्शनिक एवं धार्मिक प्रत्यय कहा गया और उसके स्थान पर मन (माइन्ड) को स्वीकार किया गया। परन्तु मन क्या है? उसका स्वरूप क्या है ? पश्चिम के मनोविज्ञानवेत्ता इसका निश्चित उत्तर नहीं दे सके। अतः भौतिकवादियों ने मनोविज्ञान के अध्ययन का विषय जीव का व्यवहार निश्चित किया है।

 आज भी पश्चिम के मनोवैज्ञानिकों में अनेक प्रकार के मतभेद हैं। उदाहरण के लिए व्यक्ति के विकास के सम्बन्ध में आनुवंशिकतावादी और पर्यावरणवादी अलग-अलग विचार रखते हैं। पर्यावरणवादी वाटसन आदि आनुवंशिकता को किंचित भी महत्व प्रदान नहीं करते हैं। उनका कहना है कि किसी भी वंश का बच्चा हो, उसे उपयुक्त वातावरण में रखकर उसका इच्छानुसार विकास किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में आधुनिक पाश्चात्य मनोविज्ञान पूर्णरूप से सभी को स्वीकार नहीं है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में भारत के योगदान एवं सिद्धान्तों को स्पष्ट करने के लिए मनोविज्ञान को "भारतीय मनोविज्ञान" की संज्ञा देने की आवश्यकता हुई।

 पाश्चात्य मनोविज्ञान को तथाकथित वैज्ञानिक रूप बहुत थोड़े

 1. "First psychology lost its soul, then its mind, then it lost consciousness, it still has behaviour of a kind"-Woodworth


adept,

 Nikon

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 It is not appropriate to call it Indian or other country. But those who think like this forget that the psychology developed in the West is not complete. Even there the definitions of psychology keep on changing according to time. In the Western world, psychology was first recognized as the science of the soul. But after a few centuries, the soul was called a philosophical and religious concept and the mind was accepted in its place. But what is mind? What is its form? Western psychologists could not give a definite answer to this. Therefore, the materialists have fixed the behavior of the organism as the subject of study of psychology.

 Even today there are many differences among the psychologists of the West. For example, geneticists and environmentalists hold different views regarding the development of an individual. Environmentalist Watson etc. do not give any importance to heredity. He says that a child of any lineage can be developed as per his wish by keeping him in a suitable environment. In such a situation, modern western psychology is not completely accepted by all. In order to explain India's contribution and principles in the field of psychology, there was a need to name psychology as "Indian psychology".

 The so-called scientific form of Western psychology has very little

 1. "First psychology lost its soul, then its mind, then it lost consciousness, it still has behavior of a kind"-Woodworth

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 समय से प्राप्त हुआ है। सत्रहवीं शताब्दी तक इसका कोई विशिष्ट रूप नहीं था। १८८९ में सर्वप्रथम वुण्ट (Wundt) ने जर्मनी में लीपजिंग विश्वविद्यालय में एक मनोविज्ञान प्रयोगशाला स्थापित की और मनोविज्ञान को एक स्वतन्त्र विज्ञान के रूप में विकसित करने का श्रेय प्राप्त किया। भारतीय मनोविज्ञान का इतिहास अति प्राचीन है। श्रीमद्भगवद् गीता का काल पांच हजार वर्ष पूर्व का है। पातंजल योग सूत्र भी दो हजार वर्ष पूर्व का ही ग्रंथ है। इन दोनों ग्रंथों में मन, बुद्धि, चित्त आदि का इतना सूक्ष्म विवरण मिलता है जिससे विश्व के सभी विद्वान प्रभावित हैं। मानवीय व्यक्तित्व के विकास हेतु योग की पद्धति बताई गई है। योग आज विश्व में विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। मुहूर्त चिन्तामणि ग्रंथ के संस्कार प्रकरण में निम्नलिखित श्लोक मिलता है जो बालक की अभिरुचि ज्ञात करने की शुद्ध मनोवैज्ञानिक विधि है- तस्मिन् काले स्थापयेत् तत्पुरस्ताद वस्त्रं शस्त्रं पुस्तकं लेखनीं च ।

 स्वर्ण रोप्यं यच्च गृहपाति बालः तैराजीवैस्तस्य वृतिः प्रविष्टा ॥ अर्थात्-बालक जब पृथ्वी पर बैठने लगे तब उसके सामने वस्त्र, शस्त्र, पुस्तक, लेखनी, स्वर्ण और चांदी रख देनी चाहिए। उनमें से बालक जो उठा ले, उसी से उसकी अभिरुचि को ज्ञात करना चाहिए।

 भारतीय मनोविज्ञान का आधार विशुद्ध आध्यात्मिक है। आत्मतत्व उसका अधिष्ठान है। आत्मतत्व को अवैज्ञानिक कहकर अमान्य नहीं किया जा सकता। आधुनिक भौतिक विज्ञान भी उसी सत्य के निकट पहुँच चुका है। अपने रे डे व्याख्यानमाला में सर जेम्स जीन्स का यह कथन बड़ा अविस्मरणीय रहेगा - " आज बड़े व्यापक तौर पर सहमति का वातावरण है। विज्ञान के अन्तर्गत भौतिकी के क्षेत्र में तो लोग इस बात पर लगभग एक मत दिखते

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 Received on time. It did not have any specific form till the seventeenth century. In 1889, Wundt first established a psychology laboratory at the University of Leipzig in Germany and received credit for developing psychology as an independent science. The history of Indian psychology is very ancient. The period of Srimad Bhagavad Gita dates back to five thousand years ago. Patanjala Yoga Sutra is also a book of two thousand years ago. In these two books, such a subtle description of mind, intellect, mind etc. is found, due to which all the scholars of the world are impressed. The method of yoga has been explained for the development of human personality. Yoga has been established as a science in the world today. The following verse is found in the Sanskar episode of Muhurta Chintamani Granth, which is a pure psychological method to find out the child's interest - Tasmin Kale Sthapayet Tatpurstad Vastram Shastram Pustakam Lekhanin Cha.

 Swarna Ropyam Yachcha Grihapati Bal: Tairajivaistasya Vriti: Entry ॥ Meaning- When the child starts sitting on the earth, then clothes, weapons, books, pen, gold and silver should be kept in front of him. Whatever the child picks up from among them, his interest should be known from that.

 The basis of Indian psychology is purely spiritual. Self is its establishment. Self-realization cannot be invalidated by calling it unscientific. Modern physics has also reached near the same truth. This statement of Sir James Jeans in his Red Day lecture will be very unforgettable - "Today there is an environment of widespread agreement. In the field of physics under science, people seem to be almost unanimous on this matter.

है कि ज्ञान का प्रवाह अभौतिक सत्य की ओर अगर है और जगत एक बड़ी मशीन-सा न दिखकर अब दिखने लगा है।

 कार्ल बी जुंग कहते हैं कि "६० वर्षों से अधिक कार्य करते उन्हें ऐसे एक भी रोगी से भेंट नहीं। जिसमें आध्यात्मिक श्रद्धा और शक्ति हो और फिर भी मनोचिकित्सक के पास आने की आवश्यकता उन्हें महसूस हुई हो। दबाव, तनाव, असन्तोष को झेलने और समाधान पाने हेतु किसी प्रकार की नींद की गोली अध्यात्म के अक्षय भण्डार से बढ़कर कारगर नहीं हो सकती।

 पाश्चात्य मनोविज्ञान संवेदना एवं चेतना को मस्तिष्क बल्कु (Cerebral Cortex) की क्रिया मानता है। यह मस्तिष्क के कार्य से भिन्न मन व आत्मा का अस्तित्व स्वीकार नहीं करता।

 यह मान्य करना होगा कि आधुनिक पाश्चात्य मनोविज्ञान ने पर्याप्त विकास किया है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष रूप से शिक्षा क्षेत्र में उसके योगदान को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। किन्तु फिर भी हमें इस तथ्य को भी मान्य करना होगा कि पाश्चात्य मनोविज्ञान से कहीं अधिक विस्तृत क्षेत्र भारतीय मनोविज्ञान तथा योग मनोविज्ञान का है। भारतीय मनोविज्ञान के अध्ययन से पाश्चात्य मनोविज्ञान की अपूर्णता की पूर्ति भी होगी और हम विश्व को एक सर्वांगपूर्ण मनोविज्ञान उपलब्ध करा सकेंगे।


It is believed that the flow of knowledge is towards the non-material truth and the world has started appearing instead of looking like a big machine.

 Carl B. Jung states that "In over 60 years of work, he has not come across a single patient who had spiritual faith and strength and yet felt the need to see a psychiatrist. No sleeping pill can be more effective than the inexhaustible storehouse of spirituality to get the solution.

 Western psychology considers sensation and consciousness to be the function of the cerebral cortex. It does not accept the existence of mind and soul apart from the functions of the brain.

 It has to be acknowledged that modern western psychology has made substantial progress. His contribution in various walks of life especially in the field of education cannot be denied. But still we have to accept the fact that Indian psychology and yoga psychology have a much wider area than western psychology. The study of Indian psychology will also fulfill the incompleteness of western psychology and we will be able to provide a holistic psychology to the world.

Wednesday, June 7, 2023

राष्ट्रीय चारित्र्य और व्यक्तिगत चारित्र्य

 युगाब्द ५१२५ ॐ वि. संवत्२०८०

 2023 विषय:- राष्ट्रीय चारित्र्य और व्यक्तिगत चारित्र्य

 (२७/०५/२०२३) 


• व्यक्तिगत चरित्र एवं राष्ट्रीय चरित्र एक सिक्के के दो पहलूहै, समाज जीवन को आगेबढ़ानेके लिए दोनों ही अति आवश्यक है। • जो व्यक्ति समाज मेंदिखाई देतेहैकई बार प्रश्न खड़ा होता है? गौशाला या मंदिर मेंदान देतेहैतो धन कहाँसेआया ? कालाबाजारी, भ्रष्टाचार से आया, बाहर सेदेखेतो अच्छा है, पर व्यक्तिगत देखा जाए तो व्यभिचार, मिलावट खोरी, कर चोरी, लम्पट इत्यादि है। • उदाहरण- असम सीमा सेअवैध घुसपैठ हो रही है, जाँच अधिकारी ने रिश्वत लेकर रिपोर्टको सही ठहराया, यह देश के साथ घातक है, दूसरा उदाहरण- कं धार मेंवायुयान अपहरण का। • पश्चिम की अवधारणा- साध्य हैवही साधन तय करेगा- मैकियावली। व्यक्ति के दुर्गुण को नहीं देखतेहै, परंतुराष्ट्रीय चरित्र अच्छा है। • हमारेयहाँमर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एवंछत्रपति शिवाजी महाराज का चरित्र हमारेसामनेहै। कल्याण के सूबेदार की पुत्रवधुका शिवाजी के सैनिकों द्वारा अपहरण और उनको शिवाजी महाराज के सामनेप्रस्तुत किया गया। शिवाजी नेकहा- मेरी माँसाहिबा इतनी सुंदर होती तो मैंभी सुंदर होता, उस महिला को सम्मानपूर्वक कल्याण भेजा, यह था व्यक्तिगत चारित्र्य। • श्री गुरुजी नेकहा- जब राष्ट्र पर संकट आता हैतो समाज को कितना सजग रहना पड़ता है, (माता हारी महिला का उदाहरण- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, मित्र देशों की खुफिया जानकारी जर्मनी को पता चल जाती था।) • हनुमान जी द्वारा लंका जलाकर वापस गए, श्रीराम की सेना समुद्र के उस पार आ गई, मंदोदरी रावण को समझाती है, रावण के मंत्री कहतेहैवानरों को हम ऐसेही कच्चा चबा जाएँ गे। राजा को सही सलाह देना मंत्री का कार्यहै। • चाटुकारिता सेदूर- स्वयंसेवकों नेराज गोपालाचारी जी को बताया की एक समिति बनाई है, इस समिति मेंश्रीगुरुजी भी हैतो उन्होंनेउस पर हस्ताक्षर कर दिए, श्री गुरुजी पर इतना विश्वास था । • अतिसज्जनता:- उदाहरण- सोमनाथ के मंदिर का रास्ता गजनी को एक पुजारी नेबताया, हमारे विदेशी मंत्री वहाँगए तो वहाँउसको कोई नहीं जानता। • मिर्जाराजा जयसिंह भगवान श्री राम का वंशज मानता था, घंटों पूजा पाठ भी करता था, परंतुवह औरंगजेब के साथ मिलकर शिवाजी महाराज सेयुद्ध करनेगया, शिवाजी महाराज उसको पत्र लिखतेहैयदि तूस्वयंआता तो तेरेघोड़ेकी रकाब पकड़कर सारा दक्षिण विजय करके देता। • १९४७ भारत का बँटवारा, बीकानेर एवं दो अन्य रजवाड़ा जिन्ना सेमिलकर पाकिस्तान मेंमिलने की योजना एवंसरदार पटेल सेमिलनेका उदाहरण। • गुजरात के राजा करण सिंह का उदाहरण। • सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस । राज धर्मतन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।। गोस्वामीजी कहतेहैंकि यदि मंत्री, वैद्य और गुरु भय या लाभ वश प्रिय बोलतेहैंतो इनमेंसेमंत्री का राज्य, वैद्य का शरीर एवं गुरु का धर्मशीघ्र ही नाश हो जाता है। • राष्ट्रीय चारित्र्य का अद्वितीय उदाहरण- १६८० मेंशिवाजी महाराज के बाद सँभाजी छत्रपति बने, अष्टप्रधान मेंआपस मेंएक राय नहीं बनी, सँभाजी नेखंडोंबहल्लाल के पिताजी की हत्या कर दी, बहन के साथ दुराचार किया, तो भी खंडों जी का कहना की स्वराज ईश्वरीय योजना सेहै, स्वराज का साथ दिया, राजाराम जी को जेल सेछुड़ाकर भी लाए। • स्वामी विवेकानंद कहतेहैकि तीन करोड़ जनसंख्या के देश नेतीस करोड़ वालेदेश पर राज्य किया, क्योंकि वेसंगठित थे। उनमेंदेशभक्ति का भाव था। • नेपोलियन को वाटरलूके युद्ध मेंहरानेवाला - डयूक ऑफ वेलिगटन। • संघ मेंसूचना के बाद सोचना नहीं, यह अनुशासन के लिए आवश्यक है, समय का पालन। यह सब कै सेहोगा- १. व्यक्ति निर्माण, २. परिवार मेंसंस्कार । • हमारा जीवन कै सा है, नागरिक कर्तव्य का पालन करतेहैक्या? पड़ोसी के साथ व्यवहार कै सा है। • उदाहरण- दादा धर्माधिकारी जी बुराई सेदूर रखना। • ध्येय प्रति समर्पित- द्रौपदी और धर्मराज युधिष्ठिर का संवाद। • शिक्षा- देश हमेदेता हैसब कु छ, हम भी तो कु छ देना सीखें। • इस विषय का अध्ययन करतेरहिये।

sangh geet

: मिलता है सच्चा सुख केवल,

हमको तो संघ की शाखा में। 

'हमको तो संघ की शाखा में..' 2

मिलता है .....

      यहाँ भगवा ध्वज लहराता है, 

      हमें त्याग का पाठ पढ़ाता है। 

      आनन्द बहुत ही आता है, हम को तो संघ की शाखा में 

      मिलता है ....

हमें हिन्दू-संगठन करना है, 

निज ध्येय-मार्ग बढ़ना है। 

मिलकर सब ही से चलना है, हमको तो संघ की शाखा में 

मिलता है ....

      सब देश-भक्त बन जाएंगे, 

      भारत को सुखी बनाएंगे। 

      हिन्दू को वीर बनाना है, हम को तो संघ की शाखा में 

      मिलता है ....

यह भारत देश हमारा है,

हमें प्राणों से भी प्यारा है। 

यह जीवन सफल बनाना ,है हमको तो संघ की शाखा में 

मिलता है ....

      केशव जी का सन्देश यही, 

      माधव जी का उपदेश यही।

      बस देश-भक्ति सिखलानी है, हम को संघ की शाखा में 

      मिलता है ....




 धरती की शान, तू है मनु की सन्तान 

तेरी मुट्ठियों में बन्द तूफान है रे, 

मनुष्य तू बड़ा महान् है, भूल मत।।धृ।।

         तू जो चाहे पर्वत, पहाड़ों को फोड़ दे, 

         तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे, 

         तू जो चाहे माटी से, अमृत निचोड़ दे, 

         तू जो चाहे धरती को अम्बर से जोड़ दे,

         अमर तेरे प्राण,

         अमर तेरे प्राण, मिला तुझको वरदान, 

        तेरी आत्मा में स्वयं भगवान है, रे।।1।। मनुष्य तू......

नयनों में ज्वाल तेरी गति में भूचाल, 

तेरी छाती में छिपा महाकाल है, 

पृथ्वी के लाल, तेरा हिमगिरि सा भाल, 

तेरी भृकुटि में ताण्डव का ताल है, 

निज को तू जान,

निज को तू जान, जरा शक्ति पहचान, 

तेरी वाणी में युग का आह्वान है रे।।2।। ।। मनुष्य तू....





: जलते जीवन के प्रकाश में, अपना जीवन तिमिर हटाएँ।

उस दधीचि की तप: ज्योति से, एक एककर दीप जलाएँ॥

        जल-जल दीप प्रखर तेजस्वी, अरुणाञ्चल माता का कर दें

        अमृतमय शोभामय मधुमय, भारत भू वैभव से भर दें

        निजादर्श रख निज जीवन को, हँसते-हँसते भेंट चढ़ाएँ॥1॥ जलते जीवन....

जगें जगाएँ मातृभूमि को, पुण्य भूमि को जन्मभूमि को 

अर्पित कर दें जीवन की, तरुणाई पावन देव-भूमि को 

तन में शक्ति हृदय में बल हो, प्रभु वह ज्योति पुनः प्रकटाएँ॥2॥ जलते जीवन....

         नहीं चाहिए पद-यश गरिमा, सभी चढ़ें माँ के चरणों में

         भारतमाता की जय केवल,  शब्द पड़ें जग के कर्णों में 

         आशा रख विश्वास बढ़ाकर, श्रद्धामय जीवन अपनाएं॥3॥ जलते जीवन....