*⛅दिनांक - 13 सितम्बर 2022*
*⛅दिन - मंगलवार*
*⛅विक्रम संवत् 28 भाद्रपद - 2079*
*⛅शक संवत् - 1944*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - आश्विन (गुजरात एवं महाराष्ट्र में भाद्रपद)*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - तृतीया सुबह 10:37 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
*⛅नक्षत्र - रेवती सुबह 06:36 तक तत्पश्चात अश्विनी*
*⛅योग - वृद्धि सुबह 07:37 तक तत्पश्चात व्याघात*
*⛅राहु काल - अपरान्ह 03:40 से 05:13 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:25*
*⛅सूर्यास्त - 06:45*
*⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:52 से 05:39 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:12 से 12:59 तक पंचक 13 सितम्बर प्रात 9.17तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - अंगारकी-मंगलवारी चतुर्थी, तृतीया एवं चतुर्थी का श्राद्ध*
*⛅ विशेष - तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है । चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है ।*
*(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🌹अंगारकी-मंगलवारी चतुर्थी 🌹*
*🌹13 सितम्बर सुबह 10:38 से 14 सितम्बर सुर्योदय तक ।*
*👉 अंगारकी चतुर्थी को सब काम छोड़ कर जप-ध्यान करना... जप, ध्यान, तप सूर्य-ग्रहण जितना फलदायी है ।*
*👉 बिना नमक का भोजन करें ।*
*👉 मंगल देव का मानसिक आह्वान करो*
*👉 चन्द्रमा में गणपति की भावना करके अर्घ्य दें ।*
*👉 कितना भी कर्जदार हो... काम धंधे से बेरोजगार हो... रोजी-रोटी तो मिलेगी और कर्जे से छुटकारा मिलेगा ।*
*🔹श्राद्ध : एक पुण्यदायी, भगवदीय कर्म🔹*
*(श्राद्ध पक्ष 10 सितम्बर से 25 सितम्बर)*
*🌹 गरुड़ पुराण (१०.५७-५९) में आता है कि समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता ।*
*🌹 ... आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम् । पशून सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात् ।...*
*🌹 पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, पशुधन, सुख, धन और धान्य प्राप्त करता है ।*
*🌹 देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्त्व है । देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है ।*
*🌹 जो लोग श्राद्ध नहीं करते उनके पितर असंतुष्ट रहते हैं तथा उनके घर में सुख शांति व समृद्धि की कमी, बीमारियाँ यह सब होता है । इसलिए अच्छी संतान व स्वास्थ्य के लिए भी पितृ श्राद्ध करना चाहिए । जो श्राद्ध करता है और दूसरों की भलाई करता है उसको दूसरे लोग कुछ देते हैं तो देनेवाले को पुण्य हो जाता है, आनंद हो जाता है ।*
*🌹 श्राद्ध में जब तुलसी के पत्तों का उपयोग होता है तो पितर तृप्त रहते हैं और 'विष्णुलोक' को चले जाते हैं । बड़े तृप्त होते हैं तो बड़ा आशीर्वाद हैं ! में तो तुलसी के प्रयोग से ही श्राद्ध करता हूँ ।*
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