8/3/2022*आपकी, हमारी, सबकी कहानी!*
_श्री रामकृष्ण द्वारा सुनाया गया एक किस्सा और उससे सीख_
*श्री रामकृष्ण द्वारा सुनाई गई एक कहानी:* एक बार रामकृष्ण नाटक देखने गए। उनके बगल में कोई उच्च अधिकारी अपने छोटे बच्चे के साथ आकर बैठ गया। वो भी नाटक ही देखने आया था। उस दिन लगातार वो व्यस्त रहा उस बच्चे की ही देखभाल करने में, नाटक वो ज़रा भी नहीं देख पाया। और बच्चा ऐसा जैसे नकबैठा बंदर। ये देख रामकृष्ण कहते हैं, _“ये होती है परिवारी की दशा, कि उसे जीवन में फिर कुछ दिखाई नहीं देता, वो बस परिवार की ही ख़ातिरदारी करता रह जाता है।”_
ये कहानी पढ़ एक साथी ने आचार्य जी से पूछा, *"आचार्य जी, श्री रामकृष्ण ने उस अधिकारी के बारे में जो कहा, वह मेरी और बाकि सभी की कहानी है। इस दुष्चक्र से कैसे मुक्त हों?"*
गुरुदीक्षा
"जिस व्यापारी को लग रहा हो कि अभी आठ बजे हैं और नौ बजे ग्राहक आ सकते हैं, मुनाफ़ा हो सकता है, क्या वो दुकान बंद करने को राज़ी होगा? तुम वही व्यापारी हो। तुम संसारी हो। तुम्हें हमेशा ये लगता रहता है कि अभी दुकान से मुक्त नहीं हो सकता मैं क्योंकि अगले ही घंटे बड़ा मुनाफ़ा होने वाला है। तो कैसे तुम दुकान से मुक्त होओगे?
तुम शटर गिरा ही नहीं पाते कभी भी। जब भी शटर गिराने को होते हो, कहते हो, “पाँच मिनट और! पक्का भरोसा है कि चंदू आ रहा है कम-से-कम छह सौ करोड़ लेकर। कैसे अभी शटर गिरा दूँ?” और शटर गिराने में दूसरी बाधा ये है कि तुमने शटर गिरा दिया और तभी माखन, साखन, दोनों सामने से गुज़र गए तो मुझे पता कैसे चलेगा? और माखन, साखन कौन हैं? जिन्होंने चेक बाउंस कराए थे, उनसे बकाया पैसे भी तो लेने हैं।
तो तुम दोनों ओर से फँसे हुए हो – न तुम अपने दुश्मनों को छोड़ पाते, न तुम अपने स्वजनों को छोड़ पाते।
काश! कि तुम देख पाओ कि तुम्हारे हाथ में कुछ नहीं है, तुम्हें वास्तव में कुछ नहीं मिला। तुम तत्काल कहोगे, “बंद करो ये दुकान, आग लगाओ इसमें। इसमें मिलता क्या है वादों के सिवा? और समय जितना बीतता जाता है, मैं उतना लज्जित अनुभव करता हूँ और उतना मेरे ऊपर अहंकार के कारण आंतरिक दबाव बढ़ता है कि कम-से-कम एक बार तो जीतकर दिखा दूँ।”
*देखो, ये जो तुम्हारा तराज़ू है, इसका इस्तेमाल करो, पर ज़रा अच्छे व्यापारी की तरह करो।*
*जो प्राप्य है, वो मत गिनो; जो हाथ में है, वो गिनो।*
देखो कि साल दर साल क्या पाया, कैसे जिए। डर में ही तो जिए, संदेह में ही तो जिए। पक्की नींद तक नहीं पाई। किसी संबंध में सुरक्षा नहीं पाई। हर किसी पर तुम्हें शक रहा।
कोई है जिस पर आँख मूँद करके भरोसा कर पाए हो?
और जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता, उसको तो दुश्मन कहते हैं। घर वालों पर भी कहाँ भरोसा है तुम्हें?
फिर पूछता हूँ, "क्या कमाया?"
असली कमाई से तो बरकत आती है। असली कमाई तो चेहरे का नूर बनती है। ज़रा अपना बुझा हुआ चेहरा देखो, ज़रा अपना शंकित, कम्पित मन देखो। क्या कमाया? शक, संदेह, शुबह। ये सबसे बड़ा प्रमाण होता है एक दरिद्र जीवन का।
*देखो अपने जीवन में श्रद्धा है या संदेह। जिसके पास संदेह-ही-संदेह हैं, उसका जीवन व्यर्थ गया। कुछ कमाया होता तुमने अपने जीवन में तो तुम्हारे पास श्रद्धा होती, अटूट श्रध्दा।*
रामकृष्ण ने जो कहानी सुनाई, उस कहानी में ये जो व्यक्ति है जो नाटक नहीं देख पा रहा, ये वास्तव में क्या पा रहा है उस क्षण में? जब तक नाटक चला, इसने क्या पाया? कुछ नहीं पाया। न सिर्फ़ ये नाटक नहीं देख पाया, बल्कि लगातार उपद्रव में उलझा रहा। "
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*ये एक झलक थी व्यावहारिक वेदांत की। सरल कहानियाँ और सटीक बात।*
*ये वही सीख है जिसने 'युवा नरेंद्र' को 'स्वामी विवेकानंद' बनाया।*
8/3/2022*Your, our, everyone's story!*
_Anecdote narrated by Shri Ramakrishna and learned from it_
*A story narrated by Sri Ramakrishna:* Once Ramakrishna went to see a play. A high official came and sat next to him with his small child. He too had come to see the play itself. That day he was constantly busy taking care of that child, he could not even see the drama. And the child is like a naked monkey. Seeing this, Ramakrishna says, "This is the condition of the family, that he does not see anything again in life, he just keeps on taking care of the family."
Reading this story, a fellow asked Acharya ji, "Acharya ji, what Shri Ramakrishna said about that officer is my story and everyone else's. How to get rid of this vicious circle?"
Let's see what Guruji said on this:*
"The trader who thinks that it is eight o'clock and the customers can come at nine o'clock, may be profitable, will he agree to close the shop? You are the same trader. You are worldly. You always feel that I cannot be free from the shop right now because in the very next hour there is going to be a big profit.So how will you be free from the shop?
You can never drop the shutter. Whenever you are about to drop the shutter, say, "Five more minutes! I am sure that Chandu is coming with at least six hundred crores. How do I drop the shutter now?" And the second obstacle in taking down the shutter is that you dropped the shutter and then both of the butter and sugar have passed in front, then how will I know? And who are Makhan, Sakhan? Those who bounced the checks, they also have to take the outstanding money.
So you are trapped on both sides – neither you could leave your enemies, nor could you leave your relatives.
If only! That you may see that you have nothing in your hands, you have not really got anything. You will immediately say, "Stop this shop, set it on fire. What is there in this other than promises? And the more time passes, the more ashamed I feel and the more internal pressure increases on me due to ego to show victory at least once.
*Look, this is your scale, use it, but just do it like a good businessman.*
*Do not count what is attainable; Count what is in hand.*
Look what you got year after year, how to live. Live only in fear, live only in doubt. Couldn't even get a solid sleep. There was no security in any respect. You were suspicious of everyone.
Is there anyone you can blindly trust?
And the one who cannot be trusted is called an enemy. Where do you trust the family members too?
Then I ask, "What did you earn?"
Real income brings prosperity. Real earnings become the light of the face. Just look at your extinguished face, just look at your worried, trembling mind. What did you earn? Doubt, doubt, good morning. This is the biggest proof of a poor life.
* See whether there is faith or doubt in your life. One who has doubts and doubts, his life is wasted. If you would have earned something in your life, you would have had faith, unwavering faith.
In the story that Ramakrishna narrated, what is this person who is unable to see the play, what is he actually able to see in that moment? What did it find as long as the play went on? Found nothing. Not only could he not watch this drama, but he was constantly involved in the riots. ,
* This was a glimpse of practical Vedanta. Simple stories and accurate talk.*
* This is the same learning that made 'Young Narendra' 'Swami Vivekananda'.
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