गुरु रविदास जी 15 वीं-16 वीं शताब्दी में एक महान संत, दार्शनिक, कवी, समाज सुधारक और भारत में भगवान के अनुयायी हुआ करते थे. निर्गुण सम्प्रदाय के ये बहुत प्रसिद्ध संत थे, जिन्होंने उत्तरी भारत में भक्ति आन्दोलन का नेतृत्व किया था. रविदास जी बहुत अच्छे कवितज्ञ थे, इन्होने अपनी रचनाओं के माध्यम से, अपने अनुयायीयों, समाज एवं देश के कई लोगों को धार्मिक एवं सामाजिक सन्देश दिया. रविदास जी की रचनाओं में, उनके अंदर भगवान् के प्रति प्रेम की झलक साफ़ दिखाई देती थी, वे अपनी रचनाओं के द्वारा दूसरों को भी परमेश्वर से प्रेम के बारे में बताते थे, और उनसे जुड़ने के लिए कहते थे. आम लोग उन्हें मसीहा मानते थे, क्यूंकि उन्होंने सामाजिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बड़े बड़े कार्य किये थे. कई लोग इन्हें भगवान् की तरह पूजते थे, और आज भी पूजते है.
गुरु रविदास का जीवन परिचय
क्रमांक जीवन परिचय बिंदु रविदास जी जीवन परिचय
1. पूरा नाम गुरु रविदास जी
2. अन्य नाम रैदास, रोहिदास, रूहिदास
3. जन्म 1377 AD
4. जन्म स्थान वाराणसी, उत्तरप्रदेश
5. पिता का नाम श्री संतोख दास जी
6. माता का नाम श्रीमती कलसा देवी की
7. दादा का नाम श्री कालू राम जी
8. दादी का नाम श्रीमती लखपति जी
9. पत्नी श्रीमती लोना जी
10. बेटा विजय दास जी
11. व्यवसाय -जूते बनाना
11. मृत्यु 1540 AD (वाराणसी)
रविदास जी की शिक्षा
बचपन में रविदास जी अपने गुरु पंडित शारदा नन्द की पाठशाला में शिक्षा लेने जाया करते थे. कुछ समय बाद ऊँची जाति वालों ने उनका पाठशाला में आना बंद करवा दिया था. पंडित शारदा नन्द जी ने रविदास जी की प्रतिभा को जान लिया था, वे समाज की उंच नीच बातों को नहीं मानते थे, उनका मानना था कि रविदास भगवान द्वारा भेजा हुआ एक बच्चा है. जिसके बाद पंडित शारदा नन्द जी ने रविदास जी को अपनी पर्सनल पाठशाला में शिक्षा देना शुरू कर दिया. वे एक बहुत प्रतिभाशाली और होनहार छात्र थे, उनके गुरु जितना उन्हें पढ़ाते थे, उससे ज्यादा वे अपनी समझ से शिक्षा गृहण कर लेते थे. पंडित शारदा नन्द जी रविदास जी से बहुत प्रभावित रहते थे, उनके आचरण और प्रतिभा को देख वे सोचा करते थे, कि रविदास एक अच्छा आध्यात्मिक गुरु और महान समाज सुधारक बनेगा.
रविदास जी के साथ पाठशाला में पंडित शारदा नन्द जी का बेटा भी पढ़ता था, वे दोनों अच्छे मित्र थे. एक बार वे दोनों छुपन छुपाई का खेल रहे थे, 1-2 बार खेलने के बाद रात हो गई, जिससे उन लोगों ने अगले दिन खेलने की बात कही. दुसरे दिन सुबह रविदास जी खेलने पहुँचते है, लेकिन वो मित्र नहीं आता है. तब वो उसके घर जाते है, वहां जाकर पता चलता है कि रात को उसके मित्र की मृत्यु हो गई है. ये सुन रविदास सुन्न पड़ जाते है, तब उनके गुरु शारदा नन्द जी उन्हें मृत मित्र के पास ले जाते है. रविदास जी को बचपन से ही अलौकिक शक्तियां मिली हुई थी, वे अपने मित्र से कहते है कि ये सोने का समय नहीं है, उठो और मेरे साथ खेलो. ये सुनते ही उनका मृत दोस्त खड़ा हो जाता है. ये देख वहां मौजूद हर कोई अचंभित हो जाते है.
संत रविदास का आगे का जीवन -
रविदास जी जैसे जैसे बड़े होते जाते है, भगवान राम के रूप के प्रति उनकी भक्ति बढ़ती जाती है. वे हमेशा राम, रघुनाथ, राजाराम चन्द्र, कृष्णा, हरी, गोविन्द आदि शब्द उपयोग करते थे, जिससे उनकी धार्मिक होने का प्रमाण मिलता था.
रविदास जी मीरा बाई के धार्मिक गुरु हुआ करते थे. मीरा बाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तोर की रानी थी. वे रविदास जी की शिक्षा से बहुत अधिक प्रभावित थी और वे उनकी एक बड़ी अनुयायी बन गई थी. मीरा बाई ने अपने गुरु के सम्मान में कुछ पक्तियां भी लिखी थी, जैसे – ‘गुरु मिलया रविदास जी..’ मीरा बाई अपने माँ बाप की एकलौती संतान थी, बचपन में इनकी माता के देहांत के बाद इनके दादा ‘दुदा जी’ ने इनको संभाला था. दुदा जी रविदास जी के बड़े अनुयाई थे, मीरा बाई अपने दादा जी के साथ हमेशा रविदास जी से मिलती रहती थी. जहाँ वे उनकी शिक्षा से बहुत प्रभावित हुई. शादी के बाद मीरा बाई ने अपनी परिवार की रजामंदी से रविदास जी को अपना गुरु बना लिया था. मीरा बाई जीवन परिचय दोहे रचनाएँ यहाँ पढ़ें.
मीरा बाई अपनी रचनाओं में लिखती है, उन्हें कई बार मृत्यु से उनके गुरु रविदास जी ने बचाया था.
रविदास जी सामाजिक काम -
लोगों का कहना है, भगवान् ने धर्म की रक्षा के लिए रविदास जी को धरती में भेजा था, क्यूंकि इस समय पाप बहुत बढ़ गया था, लोग धर्म के नाम पर जाति, रंगभेद करते थे. रविदास जी ने बहादुरी से सभी भेदभाव का सामना किया और विश्वास एवं जाति की सच्ची परिभाषा लोगों को समझाई. वे लोगों को समझाते थे कि इन्सान जाति, धर्म या भगवान् पर विश्वास के द्वारा नहीं जाना जाता है, बल्कि वो अपने कर्मो के द्वारा पहचाना जाता है. रविदास जी ने समाज में फैले छुआछूत के प्रचलन को भी ख़त्म करने के बहुत प्रयास किये. उस समय नीची जाति वालों को बहुत नाकारा जाता था. उनका मंदिर में पूजा करना, स्कूल में पढाई करना, गाँव में दिन के समय निकलना पूरी तरह वर्जित था, यहाँ तक कि उन्हें गाव में पक्के मकान की जगह कच्चे झोपड़े में ही रहने को मजबूर किया जाता था. समाज की ये दुर्दशा देख रविदास जी ने समाज से छुआछूत, भेदभाव को दूर करने की ठानी और समान के लोगों को सही सन्देश देना शुरू किया.
रविदास जी लोगों को सन्देश देते थे कि ‘भगवान् ने इन्सान को बनाया है, न की इन्सान ने भगवान् को’ इसका मतलब है, हर इन्सान भगवान द्वारा बनाया गया है और सबको धरती में समान अधिकार है. संत गुरु रविदास जी सार्वभौमिक भाईचारे और सहिष्णुता के बारे में लोगों को विभिन्न शिक्षायें दिया करते थे.
रविदास जी द्वारा लिखे गए पद, धार्मिक गाने एवं अन्य रचनाओं को सिख शास्त्र ‘गुरु गोविन्द ग्रन्थ साहिब’ में शामिल किया गया है. पांचवे सिख गुरु ‘अर्जन देव’ ने इसे ग्रन्थ में शामिल किया था. गुरु रविदास जी की शिक्षाओं के अनुयायियों को ‘रविदास्सिया’ और उनके उपदेशों के संग्रह को ‘रविदास्सिया पंथ’ कहते है.
रविदास दास जी का स्वाभाव –
रविदास जी को उनकी जाति वाले भी आगे बढ़ने से रोकते थे. शुद्र लोग रविदास जी को ब्रह्मण की तरह तिलक लगाने, कपड़े एवं जनेऊ पहनने से रोकते थे. गुरु रविदास जी इन सभी बात का खंडन करते थे, और कहते थे सभी इन्सान को धरती पर समान अधिकार है, वो अपनी मर्जी जो चाहे कर सकता है. उन्होंने हर वो चीज जो नीची जाति के लिए माना थी, करना शुरू कर दिया, जैसे जनेऊ, धोती पहनना, तिलक लगाना आदि. ब्राह्मण लोग उनकी इस गतिविधियों के सख्त खिलाफ थे. उन लोगों ने वहां के राजा से रविदास जी के खिलाफ शिकायत कर दी थी. रविदास जी सभी ब्राह्मण लोगों को बड़े प्यार और आराम से इसका जबाब देते थे. उन्होंने राजा के सामने कहा कि शुद्र के पास भी लाल खून है, दिल है, उन्हें बाकियों की तरह समान अधिकार है.
रविदास जी ने भरी सभा में सबके सामने अपनी छाती को चीर दिया और चार युग सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग की तरह, चार युग के लिए क्रमश: सोना, चांदी, तांबा और कपास से जनेऊ बना दिया. राजा सहित वहां मौजूद सभी लोग बहुत शर्मसार और चकित हुए और उनके पैर छूकर गुरु जी को सम्मानित किया. राजा को अपनी बचकानी हरकत पर बहुत पछतावा हुआ, उन्होंने गुरु से माफ़ी मांगी. संत रविदास जी ने सभी को माफ़ कर दिया और कहा जनेऊ पहनने से किसी को भगवान् नहीं मिल जाते है. उन्होंने कहा कि केवल आप सभी लोगों को वास्तविकता और सच्चाई को दिखाने के लिए इस गतिविधि में शामिल किया गया है. उन्होंने जनेऊ उतार कर राजा को दे दिया, और इसके बाद उन्होंने कभी भी न जनेऊ पहना, न तिलक लगाया.
Biography of Guru Ravidas
Guru Ravidas ji used to be a great saint, philosopher, poet, social reformer and follower of God in India in the 15th-16th century. He was a very famous saint of the Nirguna sect, who led the Bhakti movement in northern India. Ravidas ji was a very good poet, through his compositions, he gave religious and social message to his followers, society and many people of the country. In the compositions of Ravidas ji, the glimpse of love for God was clearly visible in him, he used to tell others about the love of God through his compositions, and asked to join them. Common people considered him as the Messiah, because he had done great things to fulfill the social and spiritual needs. Many people worshiped him like a god, and still worship him today.
Biography of Guru Ravidas
serial number life introduction point ravidas ji life introduction
1. Full Name Guru Ravidas Ji
2. Other names Raidas, Rohidas, Rohidas
3. Born in 1377 AD
4. Place of Birth Varanasi, Uttar Pradesh
5. Father's Name Shri Santokh Das Ji
6. Mother's Name Smt. Kalsa Devi
7. Grandfather's name Shri Kalu Ram ji
8. Grandmother's Name Smt. Lakhpati Ji
9. Wife Mrs. Lona
10. Son Vijay Das Ji
11. Business Shoe Making
11. Death 1540 AD (Varanasi)
Ravidas ji's teachings
As a child, Ravidas ji used to go to the school of his guru Pandit Sharda Nand for education. After some time the upper caste people stopped him from coming to the school. Pandit Sharda Nand ji had known the talent of Ravidas ji, he did not believe in the high and low things of the society, he believed that Ravidas was a child sent by God. After which Pandit Sharda Nand ji started teaching Ravidas ji in his personal school. He was a very talented and promising student, he used to study more with his own understanding than his mentor taught him. Pandit Sharda Nand ji was very much influenced by Ravidas ji, seeing his conduct and talent, he used to think that Ravidas would become a good spiritual teacher and a great social reformer.
Pandit Sharda Nand ji's son also used to study with Ravidas ji in the school, both of them were good friends. Once both of them were playing hide and seek, after playing 1-2 times it was night, due to which they talked about playing the next day. The next morning Ravidas ji reaches to play, but that friend does not come. Then he goes to his house, there he finds out that his friend has died in the night. Hearing this, Ravidas becomes numb, then his guru Sharda Nand ji takes him to the dead friend. Ravidas ji had got supernatural powers since childhood, he tells his friend that this is not the time to sleep, get up and play with me. On hearing this, his dead friend stands up. Everyone present there gets surprised to see this.
Further life of Sant Ravidas -
As Ravidas ji grows older, his devotion towards the form of Lord Rama increases. He always used the words Ram, Raghunath, Rajaram Chandra, Krishna, Hari, Govind etc., which gave evidence of his religiousness.
Ravidas ji used to be the religious guru of Meera Bai. Mira Bai was the daughter of the Raja of Rajasthan and the Queen of Chittor. She was very much influenced by the teachings of Ravidas ji and became a great follower of his. Meera Bai had also written some lines in the honor of her guru, such as - 'Guru Millaya Ravidas ji..' Meera Bai was the only child of her parents, after the death of her mother in childhood, her grandfather 'Duda ji' gave her was handled. Duda ji was a great follower of Ravidas ji, Meera Bai along with her grandfather always used to meet Ravidas ji. Where she was greatly influenced by his education. After marriage, Mira Bai had made Ravidas ji her guru with the consent of her family. Read the compositions of Mira Bai's life introduction couplets here.
Meera Bai writes in her compositions, she was saved from death many times by her guru Ravidas ji.
Ravidas ji social work -
People say, God had sent Ravidas ji to the earth to protect religion, because at this time sin had increased a lot, people used to discriminate caste, apartheid in the name of religion. Ravidas ji bravely faced all the discrimination and explained the true definition of faith and caste to the people. He used to explain to the people that man is not known by caste, religion or belief in God, but he is known by his deeds. Ravidas ji also made a lot of efforts to end the practice of untouchability spread in the society. At that time the low caste people were very rejected. They were completely forbidden to worship in the temple, study in school, go out in the village during the day, even they were forced to live in a kutcha hut instead of a pucca house in the village. Seeing this plight of the society, Ravidas ji was determined to remove untouchability, discrimination from the society and started giving the right message to the equal people.
Ravidas ji used to give a message to the people that 'God created man, not man made God', which means, every human being is created by God and everyone has equal rights in the earth. Sant Guru Ravidas ji used to give various teachings to the people about universal brotherhood and tolerance.
The verses, religious songs and other compositions written by Ravidas ji have been included in the Sikh scripture 'Guru Gobind Granth Sahib'. The fifth Sikh Guru 'Arjan Dev' included it in the Granth. The followers of Guru Ravidas ji's teachings are called 'Ravidassia' and the collection of his teachings is called 'Ravidassia Panth'.
Nature of Ravidas Das ji -
Even his caste people used to stop Ravidas ji from moving forward. Shudras used to stop Ravidas ji from applying tilak, wearing clothes and thread like a Brahmin. Guru Ravidas ji used to refute all these things, and used to say that all human beings have equal rights on earth, they can do whatever they want. He started doing everything that was considered for the lower caste, such as wearing janeu, dhoti, applying tilak etc. The Brahmin people were strictly against his activities. Those people had complained against Ravidas ji to the king there. Ravidas ji used to answer all the Brahmin people with great love and comfort. He said in front of the king that Shudras also have red blood, heart, they have equal rights like the rest.
Ravidas ji slit his chest in front of everyone in the full assembly and made a thread for the four yugas like Satyug, Treta, Dwapar and Kaliyug, from gold, silver, copper and cotton respectively. Everyone present there including the king was very embarrassed and amazed and honored Guru ji by touching his feet. The king was very sorry for his childish act, he apologized to the Guru. Sant Ravidas ji forgave everyone and said that one does not get God by wearing Janeu. He said that only all of you people have been involved in this activity to show the reality and truth. He took off the thread and gave it to the king, and after that he never wore the thread or tilak.
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