इन्कलाब जिन्दाबाद के उद्घोषक भगतसिंह,सुखदेव और राजगुरु
क्रान्तिवीर भगतसिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को ग्राम बंगा, (जिला लायलपुर, पंजाब) में हुआ था। उसके जन्म के कुछ समय पूर्व ही उसके पिता किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह जेल से छूटे थे। अतः उसे भागों वाला अर्थात भाग्यवान माना गया। घर में हर समय स्वाधीनता आन्दोलन की चर्चा होती रहती थी। इसका प्रभाव भगतसिंह के मन पर गहराई से पड़ा।
13 अपै्रल 1919 को जलियाँवाला बाग, अमृतसर में क्रूर पुलिस अधिकारी डायर ने गोली चलाकर हजारों नागरिकों को मार डाला। यह सुनकर बालक भगतसिंह वहाँ गया और खून में सनी मिट्टी को एक बोतल में भर लाया। वह प्रतिदिन उसकी पूजा कर उसे माथे से लगाता था।
भगतसिंह का विचार था कि धूर्त अंग्रेज अहिंसक आन्दोलन से नहीं भागेंगे। अतः उन्होंने आयरलैण्ड, इटली, रूस आदि के क्रान्तिकारी आन्दोलनों का गहन अध्ययन किया। वे भारत में भी ऐसा ही संगठन खड़ा करना चाहते थे। विवाह का दबाव पड़ने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और कानपुर में स्वतन्त्रता सेनानी गणेशशंकर विद्यार्थी के समाचार पत्र ‘प्रताप’ में काम करने लगे।
कुछ समय बाद वे लाहौर पहुँच गये और ‘नौजवान भारत सभा’ बनायी। भगतसिंह ने कई स्थानों का प्रवास भी किया। इसमें उनकी भेंट चन्द्रशेखर आजाद जैसे साथियों से हुई। उन्होंने कोलकाता जाकर बम बनाना भी सीखा।
1928 में ब्रिटेन से लार्ड साइमन के नेतृत्व में एक दल स्वतन्त्रता की स्थिति के अध्ययन के लिए भारत आया। लाहौर में लाला लाजपतराय के नेतृत्व में इसके विरुद्ध बड़ा प्रदर्शन हुआ। इससे बौखलाकर पुलिस अधिकारी स्काॅट तथा सांडर्स ने लाठीचार्ज करा दिया। वयोवृद्ध लाला जी के सिर पर इससे भारी चोट आयी और वे कुछ दिन बाद चल बसे।
इस घटना से क्रान्तिवीरों का खून खौल उठा। उन्होंने कुछ दिन बाद सांडर्स को पुलिस कार्यालय के सामने ही गोलियों से भून दिया। पुलिस ने बहुत प्रयास किया; पर सब क्रान्तिकारी वेश बदलकर लाहौर से बाहर निकल गये। कुछ समय बाद दिल्ली में केन्द्रीय धारासभा का अधिवेशन होने वाला था।
क्रान्तिवीरों ने वहाँ धमाका करने का निश्चय किया। इसके लिए भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त चुने गये।
निर्धारित दिन ये दोनों बम और पर्चे लेकर दर्शक दीर्घा में जा पहुँचे। भारत विरोधी प्रस्तावों पर चर्चा शुरू होते ही दोनों ने खड़े होकर सदन मे बम फेंक दिया। उन्होंने ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के नारे लगाते हुए पर्चे फेंके, जिन पर क्रान्तिकारी आन्दोलन का उद्देश्य लिखा था। पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया। न्यायालय में भगतसिंह ने जो बयान दिये, उससे सारे विश्व में उनकी प्रशंसा हुई। भगतसिंह पर सांडर्स की हत्या का भी आरोप था। उस काण्ड में कई अन्य क्रान्तिकारी भी शामिल थे; जिनमें से सुखदेव और राजगुरु को पुलिस पकड़ चुकी थी। इन तीनों को 24 मार्च, 1931 को फाँसी देने का आदेश जारी कर दिया गया।
भगतसिंह की फाँसी का देश भर में व्यापक विरोध हो रहा था। इससे डरकर धूर्त अंग्रेजों ने एक दिन पूर्व 23 मार्च की शाम को इन्हें फाँसी दे दी और इनके शवों को परिवारजनों की अनुपस्थिति में जला दिया; पर इस बलिदान ने देश में क्रान्ति की ज्वाला को और धधका दिया। उनका नारा ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ आज भी सभा-सम्मेलनों में ऊर्जा का संचार कर देता है।
********** *भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु* *******
*(23 मार्च,1931/ बलिदान दिवस)*
23 मार्च,1931 को अंग्रेज़ी सरकार ने भारत के तीन सपूतों - भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी पर लटका दिया था. स्वतंत्रता की लड़ाई में स्वयं को देश की वेदी पर चढ़ाने वाले यह नायक हमारे आदर्श हैं.
शहीद-ऐ-आज़म भगतसिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को हुआ था.14 वर्ष की आयु में ही भगतसिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिये थे.
महात्मा गाँधी ने जब चौरीचौरा काण्ड के बाद असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने की घोषणा की तो भगतसिंह का अहिंसावादी विचारधारा से मोहभंग हो गया. उन्होंने 1926 में देश की आज़ादी के लिए नौजवान भारत की स्थापना की.
हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिन्तक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे. भगतसिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे. उन्होंने *अकाली* और *कीर्ति* नामक दो अखबारों का सम्पादन भी किया.
जेल में भगतसिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की. उनके एक साथी यतीन्द्र नाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिये थे.
भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेम्बली में एक खाली स्थान पर बम फेंका था. इसके पश्चात् उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना सन्देश दुनिया के सामने रखा.
उनकी गिरफ्तारी के पश्चात् उन पर एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी साण्डर्स की हत्या का मुकदमा चला. लगभग दो वर्ष मुकदमा चलने के पश्चात् 23 मार्च 1931 को भगतसिंह, सुखदेव, तथा राजगुरु को फाँसी दे दी गई.
शहीद सुखदेव : सुखदेव का जन्म 15 मई,1907 को पंजाब के लायलपुर में हुआ जो अब पाकिस्तान में है. भगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहने से दोनों वीरों में गहरी दोस्ती थी तथा साथ ही दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे. साण्डर्स हत्याकाण्ड में भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव साथ थे.
शहीद राजगुरु : 24 अगस्त,1908 को पुणे जिले के खेड़ा में राजगुरु का जन्म हुआ. शिवाजी की छापामार शैली के प्रशंसक राजगुरु लाला लाजपत राय के विचारों से भी प्रभावित थे.
पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए राजगुरु ने 19 दिसम्बर,1928 को भगतसिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज़ सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी साण्डर्स को गोली मार दी थी और स्वयं ही गिरफ्तार हो गये थे.
ऐसे भारत माता के सपूत वीर क्रान्तिकारी शहीद-ऐ-आज़म भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान दिवस पर देश उन्हें कोटि-कोटि नमन् करता है.
23 March/Sacrifice-Day
Inquilab Zindabad announcer Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru
Krantiveer Bhagat Singh was born on 28 September 1907 in village Banga, (District Lyallpur, Punjab). Shortly before his birth, his father Kishan Singh and uncle Ajit Singh were released from jail. Therefore, he was considered to be of parts, that is, fortunate. There was talk of freedom movement in the house all the time. This had a profound effect on Bhagat Singh's mind.
On 13 April 1919, at Jallianwala Bagh, Amritsar, a brutal police officer Dyer opened fire and killed thousands of civilians. Hearing this, the boy Bhagat Singh went there and brought the blood soaked soil in a bottle. He used to worship her every day and put her on the forehead.
Bhagat Singh thought that the cunning British would not run away from the non-violent movement. Therefore, he made a deep study of the revolutionary movements of Ireland, Italy, Russia etc. He wanted to set up a similar organization in India as well.
Due to the pressure of marriage, he left home and started working in the newspaper 'Pratap' of freedom fighter Ganesh Shankar Vidyarthi in Kanpur.
After some time he reached Lahore and formed 'Naujawan Bharat Sabha'. Bhagat Singh also traveled to many places. In this he met friends like Chandrashekhar Azad. He also learned to make bombs by going to Kolkata.
In 1928, a team from Britain under the leadership of Lord Simon came to India to study the state of independence. There was a big demonstration against it in Lahore under the leadership of Lala Lajpat Rai. Enraged by this, police officers Scott and Saunders resorted to lathi-charge. Veteran Lala ji suffered a severe head injury and he passed away a few days later.
The blood of the revolutionaries boiled due to this incident. He gunned down Saunders a few days later in front of the police office. The police put in a lot of effort; But all the revolutionaries came out of Lahore in disguise. After some time the session of the Central Legislative Assembly was going to be held in Delhi. The revolutionaries decided to explode there. Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt were elected for this.
On the appointed day, both of them reached the audience gallery with bombs and pamphlets. As soon as the discussion on anti-India proposals started, both of them stood up and threw bombs in the house. They threw pamphlets raising slogans of 'Inquilab Zindabad', on which the objective of the revolutionary movement was written. The police caught both of them. The statement given by Bhagat Singh in the court earned him praise all over the world. Bhagat Singh was also accused of killing Saunders. Many other revolutionaries were also involved in that scandal; Out of which Sukhdev and Rajguru were caught by the police. All three were ordered to be hanged on March 24, 1931.
There was widespread protest across the country against the execution of Bhagat Singh. Fearing this, the cunning British hanged them a day earlier on the evening of 23 March and burnt their dead bodies in the absence of family members; But this sacrifice further ignited the flame of revolution in the country. His slogan 'Inquilab Zindabad' still infuses energy in meetings and conferences.
*(23 March, 1931/ Sacrifice Day)*
On 23 March 1931, the British government hanged three sons of India - Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru. These heroes, who offered themselves on the altar of the country in the fight for freedom, are our idols.
Shaheed-e-Azam Bhagat Singh was born on 28 September 1907. At the age of 14, Bhagat Singh burnt the books and clothes of government schools.
When Mahatma Gandhi announced the end of the non-cooperation movement after the Chauri Chaura incident, Bhagat Singh was disillusioned with the non-violent ideology. He founded Naujawan India in 1926 for the independence of the country.
Bhagat Singh, a thinker and thinker of Hindi, Urdu, English, Sanskrit, Punjabi, Bengali and Irish languages, was the first lecturer of socialism in India. Bhagat Singh was also a good speaker, reader and writer. He also edited two newspapers named * Akali * and * Kirti *.
In jail, Bhagat Singh and his associates went on hunger strike for 64 days. One of his companions, Yatindra Nath Das, had given up his life in the hunger strike.
Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt threw a bomb at an empty place in the Central Assembly on 8 April 1929. After this, he himself put his message in front of the world by arresting him.
After his arrest, he was tried for the murder of a British police officer JP Saunders. After nearly two years of trial, Bhagat Singh, Sukhdev, and Rajguru were hanged on 23 March 1931.
Martyr Sukhdev: Sukhdev was born on May 15, 1907 in Lyallpur, Punjab, which is now in Pakistan. Bhagat Singh and Sukhdev's families lived close together in Lyallpur, the two heroes had a close friendship and both were students of Lahore National College. Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev were together in the Saunders murder case.
Shaheed Rajguru: Rajguru was born on August 24, 1908 in Kheda, Pune district. Admirers of Shivaji's guerrilla style were also influenced by the ideas of Rajguru Lala Lajpat Rai.
In order to avenge the death of Lala Lajpat Rai due to the brutal beating of the police, Rajguru, along with Bhagat Singh, shot the British Assistant Superintendent of Police JP Saunders in Lahore on December 19, 1928 and himself was arrested.
On the martyrdom day of brave revolutionary Shaheed-e-Azam Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru, the sons of Mother India, the nation salutes them.
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