Sunday, March 6, 2022

2022/5/9 aatm gyan ki mahima kahani moral story for all


🌹आत्मज्ञान की महिमा :🌹
🌹आत्मज्ञान की बड़ी महिमा है। एक व्यक्ति को दुनियाभर का धन दे दो, दुनियाभर का सौन्दर्य दे दो लेकिन आत्मज्ञान से अगर वचिंत रखा तो वह अभागा रह जायेगा। उसके हृदय में अशांति जरूर रहेगी, खटकाव जरूर रहेगा और जन्म-मरण का चक्र उसके सिर पर मँडराता ही रहेगा। फिर किसी-न-किसी माता के गर्भ में उलटा लटकता ही रहेगा। यदि उसे आप और कुछ भी न दो, परन्तु किसी ब्रह्मज्ञानी गुरु की मधुर निगाहों की माधुर्यता की एक झलक दिला दो, उसकी रूचि ईश्वराभिमुख कर दो तो महाराज ! आपने उसे ऐसा दे डाला, ऐसा दे डाला कि हजारों जन्मों के माँ-बाप तक न दे सकें। हजारों-हजारों जन्म कों के दोस्त रिश्ते-नाते न दे सकें, ऐसी चीज आपने उसको हँसते-हँसते दिला दी। आप उसके परम हितैषी हो गये।


🌹आत्मज्ञान की ऐसी महिमा है। भगवान श्रीकृष्ण युद्ध के मैदान में मुस्कुराते हुए अर्जुन को आत्मज्ञान दे रहे हैं। श्रीकृष्ण आये हैं तो कैसे ? विषम परिस्थितियों में आये हैं। गीता का भगवान कैसा अनूठा है ! किसी का भगवान सातवें अर्श पर रहता है, किसी का खुदा कहीं होता है, किसी का भगवान कहीं होता है लेकिन भारत का भगवान ! जीव को रथ पर बिठाता है और खुद सारथि होकर, छोटा होकर भी जीव को ब्रह्म का साक्षात्कार कराने में संकोच नहीं करता। श्रीकृष्ण तो यह भी नहीं कहते कि ʹइतना नियम करो, इतना व्रत करो, इतना तप करो, फिर मैं मिलूँगा।ʹ नहीं ! वे तो कहते हैं-
🌹अपि चेदसी पापेभ्यः सर्वेभ्य पापकृत्तमः।
🌹सर्व ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सतंरिष्यसि।।
🌹ʹयदि तू सब पापियों से भी अधिक ताप करने वाला है तो भी ज्ञानरूप नौका द्वारा निःसन्देह संपूर्ण पापों को अच्छी प्रकार तर जायेगा।ʹ गीताः 4.36
🌹भगवान कहते हैं ʹपापकृत्तमʹ। जैसे प्रिय, प्रियतर, प्रियतम होता है ऐसे ही कृत, कृत्तर और कृत्तम अर्थात् पापियों में भी आखिरी पंक्ति का हो, वह भी यदि इस ब्रह्मज्ञान की, आत्मज्ञान की नाव में बैठेगा तो तर जायेगा।
🌹भगवदगीता जिस देश में हो, उसे देश के वासी जरा-जरा सी बात में चिढ़ जायें, दुःखी हो जायें, भयभीत हो जायें, ईर्ष्या करने लगें तो यह गीता से विमुखता के ही दर्शन हो रहे हैं। यदि हम गीता के ज्ञान के सन्मुख हो जायें तो हमारा यह दुर्भाग्य नहीं रह सकता।
🌹जरा-जरा सी बात में जर्मन टॉय जैसा बन जाना, कोई दो शब्द बोल जाये तो आग बबूला हो जाना अथवा किसी ने जरा सी बड़ाई कर दी, दो शब्द मीठे कह दिये तो फूल जाना, इतना तो लालिया, मोतिया और कालिया कुत्ता भी जानता है। जलेबी देखकर पूँछ हिलाना और डण्डा देखकर दुम दबा देना, इतनी अक्ल तो उसके पास भी है। अगर इतना ही ज्ञान आपके पास है तो इतनी पढ़ाई-लिखाई का फल क्या ? मनुष्य होने का फल क्या ? फिर तो हम लोग भी द्विपाद पशु हो गये।
🌹भगवान कहते हैं कि तुम कितने भी ठगे गये हो लेकिन अब गीता की शरण आ जाओ। अभी-अभी तुमको हम राजमार्ग दिखा देते हैं। जैसे हवाई जहाज छः घण्टों में दरिया पार पहुँचा देता है किन्तु बैलगाड़ी वाला छः साल चलता रहे फिर भी दरिया-पार करना उसके लिए संभव नहीं। मनमानी सुख की बैलगाड़ी को छोड़कर अब तुम आत्म-परमात्मसुख के जहाज में बैठ जाओ तो भवसागर से भी तर जाओगे।
🌹ज्ञान भिडई ज्ञानडी ज्ञान तो ब्रह्मज्ञान।
🌹जैसे गोला तोप का सोलह सो मैदान।।
🌹जगत के और ज्ञान, छोटे-मोटे ज्ञान तो हैं लेकिन ब्रह्मज्ञान तोप का गोला है, जो सारी मुसीबतों को मार भगाता है। उस ज्ञान को पाने का तरीका भी भगवान सहज, सरल बता रहे हैं और वह तुम कर सकते हो। उसमें जो अड़चनें आती हैं उनका कारण भी भगवान बता रहे हैं और उन अड़चनों को कुचलने का उपाय भी भगवान बता रहे हैं। केवल तुमको गाँठ बाँधनी है कि ʹईश्वरप्राप्ति करके ही रहेंगे। हमको इस संसारभट्ठी में पच-पचकर नहीं मरना है बल्कि हमको शहंशाह होकर जीना है और शहंशाह होकर ही परम शहंशाह से मिलना है।ʹ



🌹राजा से मिलने जब जाते हैं तो भीखमंगों के कपड़े पहनकर नहीं जाते। किसी मिनिस्टर, कलेक्टर से मिलने जब व्यक्ति जाता है तो उस दिन कपड़े जरा ठीकठाक करके जाता है। जब मिनिस्टर, चीफ मिनिस्टर से मिलना है तो सज-धजकर जाते हैं तो उस ब्रह्मांडनायक परमेश्वर से मिलना हो तो शहंशाह होकर जाओ। दीनता, हीनता, वासना, चिंता, मुसीबतें, काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, मात्सर्य, यह कचरा लेकर कहाँ मुलाकात करने जाते हो ? इन विकारों से बचने का उपाय, संसार में सुगमता से स्वर्गीय जीवन जीने का उपाय और परमसुखस्वरूप उस परमेश्वर को पाने का उपाय, ये सब बातें श्रीमदभागवत में व भगवदगीता में बतायी गयी हैं। कोई भी व्यक्ति गीता के अध्ययन, मनन और निदिध्यासन से अपने जीवन-पुष्प को महका सकता है।
जय सियाराम



Om Jai Satgurudev Maharaj Shree Ji
 Glory of Self-knowledge:🌹
 Self-knowledge has great glory. Give a person the wealth of the world, the beauty of the world, but if he keeps away from self-knowledge, he will be left unlucky. There will definitely be unrest in his heart, there will definitely be bitterness and the cycle of birth and death will keep on hovering over his head. Then it will continue to hang upside down in some mother's womb. If you do not give him anything else, but give him a glimpse of the melodiousness of the sweet eyes of a theologian, turn his interest towards God, then sir! You gave it to him in such a way that even the parents of thousands of births could not give it. Friends of thousands and thousands of births could not give relationships, you gave him such a thing with laughter. You have become his best friend.

 Such is the glory of self-knowledge. Lord Krishna is giving enlightenment to Arjuna smiling on the battlefield. How has Shri Krishna come? Arrived in difficult circumstances. How unique is the God of Gita! Somebody's God lives on the seventh house, some's God is somewhere, some's God is somewhere but the God of India! He makes the soul sit on the chariot and, being a charioteer himself, does not hesitate to make the soul realize the Brahman even though he is small. Shri Krishna doesn't even say that "Do so many rules, fast so much, do so much penance, then I'll meet you." No! They say-
 Api chedsi papebhayah sarvebhya papakrittamah.
 Om Sarva Gyanplevenava Vrajinam Satarishyasi.
 Even if you are the one who heats more than all sinners, then by the boat of knowledge, without doubt, all the sins will be well quenched. Gita: 4.36

 God says 'Sapkrittam'. Just as the beloved, the dearest, the beloved is, in the same way, he is also of the last line among the sinners, that too, if he sits in the boat of this knowledge of Brahman, then he will be engrossed.
 In the country where Bhagavad Gita is located, if the people of that country get irritated at the slightest thing, become sad, get scared, start getting jealous, then these are the visions of detachment from the Gita. If we become in front of the knowledge of Gita, then this misfortune cannot remain for us.
 To become like a German toy in the slightest of words, if you utter any two words, you become enraged or if someone makes a little brag, if you say two words sweet, then you get bloated, so much redness, cataract and Kaliya dog also knows. Seeing the jalebi, waving the tail and seeing the stick and pressing the tail, he also has so much wisdom. If you have this much knowledge, then what is the fruit of studying so much? What is the result of being human? Then we also became bipedal animals.
 God says that no matter how much you have been cheated, but now take refuge in the Gita. We will show you the highway now. Just like an airplane crosses a river in six hours, but a bullock cart keeps running for six years, yet it is not possible for him to cross the river. Leaving the bullock cart of arbitrary happiness and now you sit in the vessel of self-permanent happiness, then you will be engrossed in the ocean of the universe.
 Gyan Bhidai Gyanadi Knowledge is Brahma Gyan.
 Like a sixteen-foot field of a cannon.
 There is more knowledge of the world, minor knowledge, but Brahmagyan is a cannon ball, which kills all the troubles. God is also telling you the easy, easy way to get that knowledge and you can do that. God is also telling the reason for the obstacles that come in him and God is also telling the way to overcome those obstacles. Only you have to tie the knot that you will remain only after attaining God. We do not have to die in this world-furnace, but we have to live as a emperor and meet the supreme emperor only after becoming a emperor.
 When you go to meet the king, do not go wearing beggar's clothes. When a person goes to meet a minister, collector, he goes with clothes on that day. When the minister wants to meet the chief minister, he goes with his clothes, then if you want to meet that universe leader, then go as a emperor. Humility, inferiority, lust, worry, troubles, lust, anger, greed, attachment, fear, fishery, where do you go to meet with this garbage? The way to avoid these vices, the way to live a heavenly life easily in the world and the way to attain that Supreme God in the form of supreme happiness, all these things have been told in Shrimad Bhagwat and Bhagavad Gita. Any person can brighten the flower of his life by the study, contemplation and Nididhyasan of the Gita.
 Jai Siya Ram

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