अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बैठक
11-13 मार्च 2022, कर्णावती, गुजरात
स्वाधीनता का अमृत महोत्सव - स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर
भारत इस वर्ष स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है। यह अवसर शताब्दियों से चले ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम का प्रतिफल और हमारे वीर सेनानियों के त्याग एवं समर्पण का उज्ज्वल प्रतीक है। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की सबसे बड़ी विशेषता थी कि यह केवल राजनैतिक नहीं, अपितु राष्ट्रजीवन के सभी आयामों तथा समाज के सभी वर्गों के सहभाग से हुआ सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन था। इस स्वतंत्रता आन्दोलन को राष्ट्र के मूल अधिष्ठान यानि राष्ट्रीय “स्व” को उजागर करने के निरंतर प्रयास के रूप में देखना प्रासंगिक होगा।
इस उपनिवेशवादी आक्रमण का व्यापारिक हितों के साथ भारत को राजनैतिक- साम्राज्यवादी और धार्मिक रूप से गुलाम बनाने का निश्चित उद्देश्य था। अंग्रेजों ने भारतीयों के एकत्व की मूल भावना पर आघात करके मातृभूमि के साथ उनके भावनात्मक एवं आध्यात्मिक संबंधों को दुर्बल करने का षड्यंत्र किया। उन्होंने हमारी स्वदेशी अर्थव्यवस्था, राजनैतिक व्यवस्था, आस्था-विश्वास और शिक्षा प्रणाली पर प्रहार कर स्व-आधारित तंत्र को सदा के लिए विनष्ट करने का भी प्रयास किया।
यह राष्ट्रीय आन्दोलन सार्वदेशिक और सर्वसमावेशी था। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद आदि आध्यात्मिक नेतृत्व ने देश के जन और जननायकों को ब्रिटिश अधिसत्ता के विरुद्ध सुदीर्घ प्रतिरोध हेतु प्रेरित किया। इस आन्दोलन से महिलाओं, जनजातीय समाज तथा कला, संस्कृति, साहित्य, विज्ञान सहित राष्ट्रजीवन के सभी आयामों में स्वाधीनता की चेतना जागृत हुई। लाल-बाल-पाल, महात्मा गाँधी, वीर सावरकर, नेताजी-सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, वेळू नाचियार, रानी गाईदिन्ल्यू आदि ज्ञात-अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों ने आत्म-सम्मान और राष्ट्र-भाव की भावना को और प्रबल किया। प्रखर देशभक्त डॉ. हेडगेवार के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने भी अपनी भूमिका का निर्वहन किया।
भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में कतिपय कारणों से ‘स्व’ की प्रेरणा क्रमशः क्षीण होते जाने से देश को विभाजन की विभीषिका झेलनी पडी। स्वतन्त्रता के पश्चात् इस स्व की भावना को राष्ट्र-जीवन के सभी क्षेत्रों में अभिव्यक्त करने का हमें मिला हुआ सुअवसर कितना साध्य हो पाया, इसका आकलन करने का भी यह उचित समय है।
भारतीय समाज को एक राष्ट्र के रूप में सूत्रबद्ध रखने और राष्ट्र को भविष्य के संकटों से सुरक्षित रखने के लिए ‘स्व’ पर आधारित जीवनदृष्टि को ढृढ़ संकल्प के साथ पुनः स्थापित करना आवश्यक है। स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ हमें इस दिशा में पूर्ण प्रतिबद्ध होने का अवसर उपलब्ध कराती है।
यह संतोष का विषय है कि अनेकानेक अवरोध रहते हुए भी भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय प्रगति की है, लेकिन यह भी सत्य है कि भारत को पूर्णरूपेण आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य अभी शेष है। तथापि अब एक दूरदर्शी सोच के साथ आत्मनिर्भर भारत का संकल्प लेकर देश एक सही दिशा में बढ़ने के लिए तत्पर हो रहा है। यह आवश्यक है कि छात्रों और युवाओं को इस महाप्रयास में जोड़ते हुए, भारत-केन्द्रित शिक्षा नीति का प्रभावी क्रियान्वयन करते हुए भारत को एक ज्ञानसम्पन्न समाज के रूप में विकसित और स्थापित किया जाए तथा भारत को विश्वगुरु की भूमिका निभाने के लिए समर्थ बनाया जाए। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अवसर पर हमें अपने ‘स्व’ के पुनरानुसंधान का संकल्प लेना चाहिए, जो हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और राष्ट्रीय एकात्मता की भावना को परिपुष्ट करने का अवसर उपलब्ध कराता है।
Rashtriya Swayamsevak Sangh
All India Representative Assembly meeting
11-13 March 2022, Karnavati, Gujarat
Freedom's Amrit Festival - From Freedom to Freedom
India is celebrating the Amrit Mahotsav of Independence this year. This occasion is a reward for the centuries-long historical freedom struggle and a bright symbol of the sacrifice and dedication of our brave fighters. The biggest feature of the Indian independence movement was that it was not only political, but also a socio-cultural movement with the participation of all aspects of national life and all sections of the society. It would be relevant to see this freedom movement as a continuous effort to uncover the basic foundation of the nation, that is, the national self.
This colonial invasion had the definite objective of making India politico-imperialist and religiously enslaved along with commercial interests. The British conspired to undermine the emotional and spiritual ties of Indians with their motherland by attacking the basic sense of unity. He also tried to destroy the self-based system forever by attacking our indigenous economy, political system, faith-belief and education system.
This national movement was universal and all inclusive. The spiritual leadership of Swami Dayanand Saraswati, Swami Vivekananda, Maharishi Aurobindo etc. inspired the people and the Jannayaks of the country for a long resistance against the British authority. This movement awakened the consciousness of women, tribal society and freedom in all aspects of national life including art, culture, literature, science. Known and unknown freedom fighters like Lal-Bal-Pal, Mahatma Gandhi, Veer Savarkar, Netaji-Subhaschandra Bose, Chandrashekhar Azad, Bhagat Singh, Velu Nachiyar, Rani Gaidinliu, etc., strengthened the spirit of self-respect and nationalism. Volunteers also performed their role under the leadership of ardent patriot Dr. Hedgewar.
In the freedom movement of India, the country had to face the horrors of partition due to the gradual weakening of the inspiration of 'self' due to certain reasons. After independence, it is also an appropriate time to assess how feasible we got the opportunity to express the spirit of this self in all spheres of national life.
In order to keep the Indian society as a nation structured and to keep the nation safe from future crises, it is necessary to re-establish the life vision based on 'Self' with determination. The 75th anniversary of independence gives us an opportunity to be fully committed in this direction.
It is a matter of satisfaction that despite many obstacles, India has made commendable progress in various fields, but it is also true that the goal of making India completely self-reliant is yet to come. However, now the country is getting ready to move in a right direction by taking the resolution of self-reliant India with a visionary thinking. It is necessary that by engaging students and youth in this great effort, India should be developed and established as a knowledge society by effective implementation of India-centred education policy and India should be enabled to play the role of world leader. On the occasion of the elixir of freedom, we should take a pledge to re-research our 'self', which provides us an opportunity to connect with our roots and to nurture the spirit of national integration.
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