Thursday, June 18, 2020

18/6/2020Acquire of virtue पुण्यों का मोल

*पुण्यों का मोल*

एक व्यापारी जितना अमीर था उतना ही दान-पुण्य करने वाला, वह सदैव यज्ञ-पूजा आदि कराता रहता था।

एक यज्ञ में उसने अपना सबकुछ दान कर दिया। अब उसके पास परिवार चलाने लायक भी पैसे नहीं बचे थे।

व्यापारी की पत्नी ने सुझाव दिया कि पड़ोस के नगर में एक बड़े सेठ रहते हैं। वह दूसरों के पुण्य खरीदते हैं।

आप उनके पास जाइए और अपने कुछ पुण्य बेचकर थोड़े पैसे ले आइए, जिससे फिर से काम-धंधा शुरू हो सके।

पुण्य बेचने की व्यापारी की बिलकुल इच्छा नहीं थी, लेकिन पत्नी के दबाव और बच्चों की चिंता में वह पुण्य बेचने को तैयार हुआ। पत्नी ने रास्ते में खाने के लिए चार रोटियां बनाकर दे दीं।

व्यापारी चलता-चलता उस नगर के पास पहुंचा जहां पुण्य के खरीदार सेठ रहते थे। उसे भूख लगी थी।

नगर में प्रवेश करने से पहले उसने सोचा भोजन कर लिया जाए। उसने जैसे ही रोटियां निकालीं एक कुतिया तुरंत के जन्मे अपने तीन बच्चों के साथ आ खड़ी हुई।

कुतिया ने बच्चे जंगल में जन्म दिए थे। बारिश के दिन थे और बच्चे छोटे थे, इसलिए वह उन्हें छोड़कर नगर में नहीं जा सकती थी। 
व्यापारी को दया आ गई। उसने एक रोटी कुतिया को खाने के लिए दे दिया।
कुतिया पलक झपकते रोटी चट कर गई लेकिन वह अब भी भूख से हांफ रही थी।

व्यापारी ने दूसरी रोटी, फिर तीसरी और फिर चारो रोटियां कुतिया को खिला दीं। खुद केवल पानी पीकर सेठ के पास पहुंचा।

व्यापारी ने सेठ से कहा कि वह अपना पुण्य बेचने आया है। सेठ व्यस्त था। उसने कहा कि शाम को आओ।

दोपहर में सेठ भोजन के लिए घर गया और उसने अपनी पत्नी को बताया कि एक व्यापारी अपने पुण्य बेचने आया है। उसका कौन सा पुण्य खरीदूं।

सेठ की पत्नी बहुत पतिव्रता और सिद्ध थी। उसने ध्यान लगाकर देख लिया कि आज व्यापारी ने कुतिया को रोटी खिलाई है।

उसने अपने पति से कहा कि उसका आज का पुण्य खरीदना जो उसने एक जानवर को रोटी खिलाकर कमाया है। वह उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ पुण्य है।

व्यापारी शाम को फिर अपना पुण्य बेचने आया। सेठ ने कहा- आज आपने जो यज्ञ किया है मैं उसका पुण्य लेना चाहता हूं।
व्यापारी हंसने लगा। उसने कहा कि अगर मेरे पास यज्ञ के लिए पैसे होते तो क्या मैं आपके पास पुण्य बेचने आता!

सेठ ने कहा कि आज आपने किसी भूखे जानवर को भोजन कराकर उसके और उसके बच्चों के प्राणों की रक्षा की है। मुझे वही पुण्य चाहिए।
व्यापारी वह पुण्य बेचने को तैयार हुआ। सेठ ने कहा कि उस पुण्य के बदले वह व्यापारी को चार रोटियों के वजन के बराबर हीरे-मोती देगा।

चार रोटियां बनाई गईं और उसे तराजू के एक पलड़े में रखा गया। दूसरे पलड़े में सेठ ने एक पोटली में भरकर हीरे-जवाहरात रखे।
पलड़ा हिला तक नहीं। दूसरी पोटली मंगाई गई। फिर भी पलड़ा नहीं हिला।

कई पोटलियों के रखने पर भी जब पलड़ा नहीं हिला तो व्यापारी ने कहा- सेठजी, मैंने विचार बदल दिया है. मैं अब पुण्य नहीं बेचना चाहता।

व्यापारी खाली हाथ अपने घर की ओर चल पड़ा। उसे डर हुआ कि कहीं घर में घुसते ही पत्नी के साथ कलह न शुरू हो जाए।

जहां उसने कुतिया को रोटियां डाली थी, वहां से कुछ कंकड़-पत्थर उठाए और साथ में रखकर गांठ बांध दी।

घर पहुंचने पर पत्नी ने पूछा कि पुण्य बेचकर कितने पैसे मिले तो उसने थैली दिखाई और कहा इसे भोजन के बाद रात को ही खोलेंगे। इसके बाद गांव में कुछ उधार मांगने चला गया।

इधर उसकी पत्नी ने जबसे थैली देखी थी उसे सब्र नहीं हो रहा था। पति के जाते ही उसने थैली खोली।
उसकी आंखे फटी रह गईं। थैली हीरे-जवाहरातों से भरी थी।

व्यापारी घर लौटा तो उसकी पत्नी ने पूछा कि पुण्यों का इतना अच्छा मोल किसने दिया ? इतने हीरे-जवाहरात कहां से आए ??
व्यापारी को अंदेशा हुआ कि पत्नी सारा भेद जानकर ताने तो नहीं मार रही लेकिन, उसके चेहरे की चमक से ऐसा लग नहीं रहा था।

व्यापारी ने कहा- दिखाओ कहां हैं हीरे-जवाहरात। पत्नी ने लाकर पोटली उसके सामने उलट दी। उसमें से बेशकीमती रत्न गिरे। व्यापारी हैरान रह गया।
फिर उसने पत्नी को सारी बात बता दी। पत्नी को पछतावा हुआ कि उसने अपने पति को विपत्ति में पुण्य बेचने को विवश किया।

दोनों ने तय किया कि वह इसमें से कुछ अंश निकालकर व्यापार शुरू करेंगे। व्यापार से प्राप्त धन को इसमें मिलाकर जनकल्याण में लगा देंगे।

ईश्वर आपकी परीक्षा लेता है। परीक्षा में वह सबसे ज्यादा आपके उसी गुण को परखता है जिस पर आपको गर्व हो।
अगर आप परीक्षा में खरे उतर जाते हैं तो ईश्वर वह गुण आपमें हमेशा के लिए वरदान स्वरूप दे देते हैं।

अगर परीक्षा में उतीर्ण न हुए तो ईश्वर उस गुण के लिए योग्य किसी अन्य व्यक्ति की तलाश में लग जाते हैं।

इसलिए विपत्तिकाल में भी भगवान पर भरोसा रखकर सही राह चलनी चाहिए। आपके कंकड़-पत्थर भी अनमोल रत्न हो सकते हैं।

   *न डर रे मन दुनिया से*
   *यहाँ किसी के चाहने से नहीं*
   *किसी का बुरा होता है,*
   *मिलता है वही, जो हमने बोया होता है,*
   *कर पुकार उस प्रभु के आगे.. क्योकि सब कुछ उसी के बस में*
.  *होता है।।*


* Acquire of virtue *

 The richer a businessman was, the more he would do charity and charity, he would always perform yajna-puja etc.

 In one yajna, he donated everything.  Now he had no money left to run a family.

 The merchant's wife suggested that a large Seth live in the neighboring town.  He buys the virtue of others.

 Go to them and sell some of your virtues and get some money, so that business can start again.

 The merchant had no desire to sell virtue, but under pressure from the wife and concern of the children, he agreed to sell the virtue.  The wife gave four loaves to eat on the way.

 The merchant walked near the town where Seth, the buyer of virtue, lived.  He was hungry.

 Before entering the city he thought to have food.  As soon as she took out the loaves, a bitch immediately stood with her three children born.

 The bitch gave birth to children in the forest.  It was rainy days and the children were small, so she could not leave them and go to the city.
 The merchant felt pity.  He gave a bread bitch to eat.
 The bitch licked the bread in the blink of an eye, but she was still gasping with hunger.

 The trader fed the second bread, then the third and then the four loaves to the bitch.  Drinking water only, he reached Seth.

 The merchant told Seth that he had come to sell his virtue.  Seth was busy.  He said come in the evening.

 In the afternoon, Seth went home for food and told his wife that a businessman had come to sell his virtues.  Which virtue should I buy?

 Seth's wife was very virtuous and perfect.  He noticed carefully that today the businessman has fed bread to the bitch.

 She told her husband to buy her today's virtue which she earned by feeding bread to an animal.  He is her best virtue ever.

 The merchant came again in the evening to sell his virtue.  Seth said- I want to take the virtue of the sacrifice you have done today.
 The businessman started laughing.  He said that if I had money for the yagya, would I have come to sell the virtue to you!

 Seth said that today by feeding a hungry animal you have protected the life of him and his children.  I want the same merit.
 The merchant agreed to sell that virtue.  In exchange for that virtue, Seth said that he would give diamonds and pearls equal to the weight of four loaves to the merchant.

 Four loaves were made and placed in a pan of scales.  In the second pan, Seth filled a bundle and placed diamonds and jewels.
 The pan has not moved.  The second bundle was called.  Still the pan did not move.

 When the pan was not moved even after keeping several bottles, the businessman said - Sethji, I have changed my mind.  I no longer want to sell virtue.

 The merchant walked towards his house empty-handed.  He was afraid that there would be no discord with the wife as soon as she entered the house.

 From where he had put the loaves to the loins, pick up some pebbles and stones and tie the knots together.

 On reaching home, the wife asked how much money she got by selling virtue, she showed her a bag and said that she will open it at night only after meals.  After this he went to the village to ask for some loan.

 Here, his wife was not patient since he saw the bag.  She opened the bag as soon as her husband left.
 His eyes were torn.  The bag was filled with diamonds and jewels.

 When the merchant returned home, his wife asked who gave such a good price for the virtues?  Where did so many diamonds and jewels come from ??
 The trader feared that the wife was not taunting knowing all the difference but, it did not seem so with the glow of her face.

 The merchant said - show where are the diamonds and jewels.  The wife reversed the bundle in front of her.  Precious jewels fell from it.  The businessman was surprised.
 Then he told the wife everything.  The wife regrets that she forced her husband to sell virtue in the disaster.

 Both of them decided that they would take out a part of it and start trading.  We will put the money received from the business by mixing it in public welfare.

 God tests you.  In the exam, he examines your qualities which you are proud of.
 If you pass the test, then God gives that quality as a blessing to you forever.

 If you do not pass the exam, then God starts looking for someone else who is qualified for that quality.

 Therefore, in distress too, by trusting in God, the right path should be walked.  Your pebbles and stones can also be precious gems.

    * Don't be afraid of the mind world *
    * Not wanting anyone here *
    * Someone is bad, *
    * Gets what we sow, *
    * Call out to the Lord .. because everything is under his control *
 .  *it happens..*

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