10 जून/विजय-दिवस
पराक्रमी राजा सुहेलदेव
मुस्लिम आक्रमणकारी सालार मसूद को बहराइच (उत्तर प्रदेश) में उसकी एक लाख बीस हजार सेना सहित जहन्नुम पहुंचाने वाले राजा सुहेलदेव का जन्म श्रावस्ती के राजा त्रिलोकचंद के वंशज पासी मंगलध्वज (मोरध्वज) के घर में माघ कृष्ण 4, विक्रम संवत 1053 (सकट चतुर्थी) को हुआ था। अत्यन्त तेजस्वी होने के कारण इनका नाम सुहेलदेव (चमकदार सितारा) रखा गया।
विक्रम संवत 1078 में इनका विवाह हुआ तथा पिता के देहांत के बाद वसंत पंचमी विक्रम संवत 1084 को ये राजा बने। इनके राज्य में आज के बहराइच, गोंडा, बलरामपुर, बाराबंकी, फैजाबाद तथा श्रावस्ती के अधिकांश भाग आते थे। बहराइच में बालार्क (बाल+अर्क = बाल सूर्य) मंदिर था, जिस पर सूर्य की प्रातःकालीन किरणें पड़ती थीं। मंदिर में स्थित तालाब का जल गंधकयुक्त होने के कारण कुष्ठ व चर्म रोग में लाभ करता था। अतः दूर-दूर से लोग उस कुंड में स्नान करने आते थेे।
महमूद गजनवी ने भारत में अनेक राज्यांे को लूटा तथा सोमनाथ सहित अनेक मंदिरों का विध्वंस किया। उसकी मृत्यु के बाद उसका बहनोई सालार साहू अपने पुत्र सालार मसूद, सैयद हुसेन गाजी, सैयद हुसेन खातिम, सैयद हुसेन हातिम, सुल्तानुल सलाहीन महमी, बढ़वानिया,सालार, सैफुद्दीन, मीर इजाउद्दीन उर्फ मीर सैयद दौलतशाह, मियां रज्जब उर्फ हठीले, सैयद इब्राहिम बारह हजारी तथा मलिक फैसल जैसे क्रूर साथियों को लेकर भारत आया। बाराबंकी के सतरिख (सप्तऋषि आश्रम) पर कब्जा कर उसने अपनी छावनी बनायी।
यहां से पिता सेना का एक भाग लेकर काशी की ओर चला; पर हिन्दू वीरों ने उसे प्रारम्भ में ही मार गिराया। पुत्र मसूद अनेक क्षेत्रों को रौंदते हुए बहराइच पहुंचा। उसका इरादा बालार्क मंदिर को तोड़ना था; पर राजा सुहेलदेव भी पहले से तैयार थे। उन्होंने निकट के अनेक राजाओं के साथ उससे लोहा लिया।
कुटिला नदी के तट पर हुए राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में हुए इस धर्मयुद्ध में उनका साथ देने वाले राजाओं में प्रमुख थे रायब, रायसायब, अर्जुन, भग्गन, गंग, मकरन, शंकर, वीरबल, अजयपाल, श्रीपाल, हरकरन, हरपाल, हर, नरहर, भाखमर, रजुन्धारी, नरायन, दल्ला, नरसिंह, कल्यान आदि। वि.संवत 1091 के ज्येष्ठ मास के पहले गुरुवार के बाद पड़ने वाले रविवार (10.6.1034 ई.) को राजा सुहेलदेव ने उस आततायी का सिर धड़ से अलग कर दिया। तब से ही क्षेत्रीय जनता इस दिन चित्तौरा (बहराइच) में विजयोत्सव मनाने लगी।
इस विजय के परिणामस्वरूप अगले 200 साल तक मुस्लिम हमलावरों का इस ओर आने का साहस नहीं हुआ। पिता और पुत्र के वध के लगभग 300 साल बाद दिल्ली के शासक फीरोज तुगलक ने बहराइच के बालार्क मंदिर व कुंड को नष्ट कर वहां मजार बना दी। अज्ञानवश हिन्दू लोग उसे सालार मसूद गाजी की दरगाह कहकर विजयोत्सव वाले दिन ही पूजने लगे, जबकि उसका वध स्थल चित्तौरा वहां से पांच कि.मी दूर है।
कालान्तर में इसके साथ कई अंधविश्वास जुड़ गये। वह चमत्कारी तालाब तो नष्ट हो गया था; पर एक छोटे पोखर में ही लोग चर्म रोगों से मुक्ति के लिए डुबकी लगाने लगे। ऐसे ही अंधों को आंख और निःसंतानों को संतान मिलने की बातें होने लगीं। हिन्दुओं की इसी मूर्खता को देखकर तुलसी बाबा ने कहा था -
लही आंख कब आंधरो, बांझ पूत कब जाय।
कब कोढ़ी काया लही, जग बहराइच जाय।।
उ0प्र0 की राजधानी लखनऊ में राजा सुहेलदेव की वीर वेष में घोड़े पर सवार मनमोहक प्रतिमा स्थापित है।
#हरदिनपावन
10 जून/विजय-दिवस
पराक्रमी राजा सुहेलदेव
मुस्लिम आक्रमणकारी सालार मसूद को बहराइच (उत्तर प्रदेश) में उसकी एक लाख बीस हजार सेना सहित जहन्नुम पहुंचाने वाले राजा सुहेलदेव का जन्म श्रावस्ती के राजा त्रिलोकचंद के वंशज पासी मंगलध्वज (मोरध्वज) के घर में माघ कृष्ण 4, विक्रम संवत 1053 (सकट चतुर्थी) को हुआ था। अत्यन्त तेजस्वी होने के कारण इनका नाम सुहेलदेव (चमकदार सितारा) रखा गया।
विक्रम संवत 1078 में इनका विवाह हुआ तथा पिता के देहांत के बाद वसंत पंचमी विक्रम संवत 1084 को ये राजा बने। इनके राज्य में आज के बहराइच, गोंडा, बलरामपुर, बाराबंकी, फैजाबाद तथा श्रावस्ती के अधिकांश भाग आते थे। बहराइच में बालार्क (बाल+अर्क = बाल सूर्य) मंदिर था, जिस पर सूर्य की प्रातःकालीन किरणें पड़ती थीं। मंदिर में स्थित तालाब का जल गंधकयुक्त होने के कारण कुष्ठ व चर्म रोग में लाभ करता था। अतः दूर-दूर से लोग उस कुंड में स्नान करने आते थेे।
महमूद गजनवी ने भारत में अनेक राज्यांे को लूटा तथा सोमनाथ सहित अनेक मंदिरों का विध्वंस किया। उसकी मृत्यु के बाद उसका बहनोई सालार साहू अपने पुत्र सालार मसूद, सैयद हुसेन गाजी, सैयद हुसेन खातिम, सैयद हुसेन हातिम, सुल्तानुल सलाहीन महमी, बढ़वानिया,सालार, सैफुद्दीन, मीर इजाउद्दीन उर्फ मीर सैयद दौलतशाह, मियां रज्जब उर्फ हठीले, सैयद इब्राहिम बारह हजारी तथा मलिक फैसल जैसे क्रूर साथियों को लेकर भारत आया। बाराबंकी के सतरिख (सप्तऋषि आश्रम) पर कब्जा कर उसने अपनी छावनी बनायी।
यहां से पिता सेना का एक भाग लेकर काशी की ओर चला; पर हिन्दू वीरों ने उसे प्रारम्भ में ही मार गिराया। पुत्र मसूद अनेक क्षेत्रों को रौंदते हुए बहराइच पहुंचा। उसका इरादा बालार्क मंदिर को तोड़ना था; पर राजा सुहेलदेव भी पहले से तैयार थे। उन्होंने निकट के अनेक राजाओं के साथ उससे लोहा लिया।
कुटिला नदी के तट पर हुए राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में हुए इस धर्मयुद्ध में उनका साथ देने वाले राजाओं में प्रमुख थे रायब, रायसायब, अर्जुन, भग्गन, गंग, मकरन, शंकर, वीरबल, अजयपाल, श्रीपाल, हरकरन, हरपाल, हर, नरहर, भाखमर, रजुन्धारी, नरायन, दल्ला, नरसिंह, कल्यान आदि। वि.संवत 1091 के ज्येष्ठ मास के पहले गुरुवार के बाद पड़ने वाले रविवार (10.6.1034 ई.) को राजा सुहेलदेव ने उस आततायी का सिर धड़ से अलग कर दिया। तब से ही क्षेत्रीय जनता इस दिन चित्तौरा (बहराइच) में विजयोत्सव मनाने लगी।
इस विजय के परिणामस्वरूप अगले 200 साल तक मुस्लिम हमलावरों का इस ओर आने का साहस नहीं हुआ। पिता और पुत्र के वध के लगभग 300 साल बाद दिल्ली के शासक फीरोज तुगलक ने बहराइच के बालार्क मंदिर व कुंड को नष्ट कर वहां मजार बना दी। अज्ञानवश हिन्दू लोग उसे सालार मसूद गाजी की दरगाह कहकर विजयोत्सव वाले दिन ही पूजने लगे, जबकि उसका वध स्थल चित्तौरा वहां से पांच कि.मी दूर है।
कालान्तर में इसके साथ कई अंधविश्वास जुड़ गये। वह चमत्कारी तालाब तो नष्ट हो गया था; पर एक छोटे पोखर में ही लोग चर्म रोगों से मुक्ति के लिए डुबकी लगाने लगे। ऐसे ही अंधों को आंख और निःसंतानों को संतान मिलने की बातें होने लगीं। हिन्दुओं की इसी मूर्खता को देखकर तुलसी बाबा ने कहा था -
लही आंख कब आंधरो, बांझ पूत कब जाय।
कब कोढ़ी काया लही, जग बहराइच जाय।।
उ0प्र0 की राजधानी लखनऊ में राजा सुहेलदेव की वीर वेष में घोड़े पर सवार मनमोहक प्रतिमा स्थापित है।
#हरदिनपावन
10 June / Vijay-Day Perfire King Suhldev Muslim Invader Salar Masood, who is the descendant of Raja Trilokchand of Shravasti, who was born in Khalakhasta, including one lakh twenty thousand army in Bahraich (Uttar Pradesh). Due to being very stunning, their name was kept Suhaledev (shiny star). Vikram was married to 1078 and after the father's death, Vasant Panchami Vikram Samvat 1084 became the king. In their state, most of the parties of Bahraich, Gonda, Balrampur, Barabanki, Faizabad and Shravasti were run. Bahraich had Balak (Bal + Ank = Hair Sun) temple, on which there was sunshine rays. Due to the water of the pond located in the temple, it used to benefit in leprosy and skin diseases. So far away people used to take a bath in that trunk. Mahmud Ghajnavi has demolished many temples including Loota and Somnath. After his death, his brother-in-law Salar Sahu his son Salar Masood, Syed Husen Gaji, Syed Hussein Khatim, Syed Hussein Hatim, Sultanul Talan Mahami, Belaria, Salar, Saifuddin Capturing Barabanki's vertical (Saptarshi Ashram), he made his camp. From here the father took a part of the army towards Kashi; But Hindu heroes killed him in the beginning. Son Masood reached many areas while trying out. His intention was to break the Balak Temple; But King Suhalev was also ready beforehand. He took him iron with many nearby kings. King was headed by King Suhalevdev under the leadership of the Kutila River, the kings who were with them were the chief in Raib, Raoskib, Arjun, Bhaggan, Gang, Makalan, Shankar, Veerabal, Ajaypal, Shripal, Harakan, Harpal, Sunday (10.6.1034 AD), who falls after the first Thursday of the eldest month of V. Santa 1091, separated the head of that terrorist from the torso. Since then the regional people started to celebrate the victory in Chittora (Bahraich) on this day. As a result of this victory, Muslim attackers did not have the courage to come to this. After nearly 300 years of father and son, Delhi's ruler Firoj Tughlaq destroyed Balark temple and Kund of Bahraich and made the mazar. Ignorant Hindu people began to worship only the day with the victory by saying Salar Masood Gaji's Dargah, while his slaughter is five km away from Chittora. Many superstitions were added in the longest. That miraculous pond was then destroyed; But in a small puddle, people started plunge for salvation from skin diseases. Such blinds started talking about getting children and children. Looking at this foolishness of Hindus, Tulsi Baba had said - When the eyes should be broken, when the inferiority. When the leper kiya lahi, the world should be bahraich. The capital of King Suhaleva in Lucknow is established in the Veer Speak of Raja in Lucknow. # हरदिनपावन
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