Monday, May 25, 2020

johar jharkhand :Budhu Bhagat

   बुधु भगत पूरा नाम बुधु भगत जन्म 17 फ़रवरी, 1792 ई. जन्म भूमि राँची, झारखण्ड नागरिकता भारतीय प्रसिद्धि क्रांतिकारी आंदोलन लरका आंदोलन अन्य जानकारी बुधु भगत ने अपने दस्ते को गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था। उन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने एक हज़ार रुपये इनाम की घोषणा कर दी थी। बुधु भगत अथवा 'बुदु भगत' (अंग्रेज़ी: Budhu Bhagat, जन्म- 17 फ़रवरी, 1792 ई., राँची, झारखण्ड; मृत्यु- 14 फ़रवरी, 1832 ई.) भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते हैं। इनकी लड़ाई अंग्रेज़ों, ज़मींदारों तथा साहूकारों द्वारा किए जा रहे अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध थी। जन्म बुधु भगत का जन्म आज के झारखण्ड राज्य में राँची ज़िले के सिलागाई नामक ग्राम में 17 फ़रवरी, सन 1792 ई. को हुआ था। कहा जाता है कि उन्हें दैवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं, जिसके प्रतीकस्वरूप वे एक कुल्हाड़ी सदा अपने साथ रखते थे।[1] बाल्यकाल आमतौर पर 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम समर माना जाता है। लेकिन इससे इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया।[2] छोटा नागपुर के आदिवासी इलाकों में अंग्रेज़ हुकूमत के दौरान बर्बरता चरम पर थी। मुण्डाओं ने ज़मींदारों, साहूकारों के विरुद्ध पहले से ही भीषण विद्रोह छेड़ रखा था। उरांवों ने भी बागी तेवर अपना लिये। बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता देखते आये थे। उन्होंने देखा था कि किस तरह तैयार फ़सल ज़मींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे। ग़रीब गांव वालों के घर कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था। बालक बुधु भगत सिलागाई की कोयल नदी के किनारे घंटों बैठकर अंग्रेज़ों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे।

बुधु भगत सन् 1831-1832 के झारखण्ड विद्रोह सिली गांव के नायक थे l बुधु भगत का जन्म आज के झारखण्ड राज्य में राँची ज़िले के सिलागाई नामक ग्राम में 17 फ़रवरी, सन 1792 ई. को हुआ था। कहा जाता है कि उन्हें दैवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं, जिसके प्रतीकस्वरूप वे एक कुल्हाड़ी सदा अपने साथ रखते थे।बाल्यकाल आमतौर पर 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम समर माना जाता है। लेकिन इससे इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया। छोटा नागपुर के आदिवासी इलाकों में अंग्रेज़ हुकूमत के दौरान बर्बरता चरम पर थी। मुण्डाओं ने ज़मींदारों, साहूकारों के विरुद्ध पहले से ही भीषण विद्रोह छेड़ रखा था। उरांवों ने भी बागी तेवर अपना लिये। बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता देखते आये थे। उन्होंने देखा था कि किस तरह तैयार फ़सल ज़मींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे। ग़रीब गांव वालों के घर कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था। बालक बुधु भगत सिलागाई की कोयल नदी के किनारे घंटों बैठकर अंग्रेज़ों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे l इनके तलवार और धनुष-बाण चलाने में पारंगत होने के कारण लोगों ने बुधु को देवदूत समझ लिया l कैप्टन इंपे द्वारा बंदी बनाए गए सैकड़ों ग्रामीणों को विद्रोहियों ने लड़कर मुक्त करा लिया जिसका नेतृत्व बुधु ने किया । अपने दस्ते को बुधु ने गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों का फायदा उठाकर कई बार अंग्रेज़ी सेना को परास्त किया। बुधु को पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने एक हज़ार रुपये इनाम की घोषणा कर दी थी। हज़ारों लोगों के हथियारबंद विद्रोह से अंग्रेज़ सरकार और ज़मींदार कांप उठे। बुधु भगत को पकड़ने का काम कैप्टन इंपे को सौंपा गया l

14 फ़रवरी, सन 1832 ई. को बुधु और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने घेर लिया l कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। बुधु भगत तथा परिवार के सदस्यों एवं अपने हजारो अनुयायीयों के साथ शहिद हो गए।

   बुधु भगत पूरा नाम बुधु भगत जन्म 17 फ़रवरी, 1792 ई. जन्म भूमि राँची, झारखण्ड नागरिकता भारतीय प्रसिद्धि क्रांतिकारी आंदोलन लरका आंदोलन अन्य जानकारी बुधु भगत ने अपने दस्ते को गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था। उन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने एक हज़ार रुपये इनाम की घोषणा कर दी थी। बुधु भगत अथवा 'बुदु भगत' (अंग्रेज़ी: Budhu Bhagat, जन्म- 17 फ़रवरी, 1792 ई., राँची, झारखण्ड; मृत्यु- 14 फ़रवरी, 1832 ई.) भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते हैं। इनकी लड़ाई अंग्रेज़ों, ज़मींदारों तथा साहूकारों द्वारा किए जा रहे अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध थी। जन्म बुधु भगत का जन्म आज के झारखण्ड राज्य में राँची ज़िले के सिलागाई नामक ग्राम में 17 फ़रवरी, सन 1792 ई. को हुआ था। कहा जाता है कि उन्हें दैवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं, जिसके प्रतीकस्वरूप वे एक कुल्हाड़ी सदा अपने साथ रखते थे।[1] बाल्यकाल आमतौर पर 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम समर माना जाता है। लेकिन इससे इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया।[2] छोटा नागपुर के आदिवासी इलाकों में अंग्रेज़ हुकूमत के दौरान बर्बरता चरम पर थी। मुण्डाओं ने ज़मींदारों, साहूकारों के विरुद्ध पहले से ही भीषण विद्रोह छेड़ रखा था। उरांवों ने भी बागी तेवर अपना लिये। बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता देखते आये थे। उन्होंने देखा था कि किस तरह तैयार फ़सल ज़मींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे। ग़रीब गांव वालों के घर कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था। बालक बुधु भगत सिलागाई की कोयल नदी के किनारे घंटों बैठकर अंग्रेज़ों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे।




बुधु भगत सन् 1831-1832 के झारखण्ड विद्रोह सिली गांव के नायक थे l बुधु भगत का जन्म आज के झारखण्ड राज्य में राँची ज़िले के सिलागाई नामक ग्राम में 17 फ़रवरी, सन 1792 ई. को हुआ था। कहा जाता है कि उन्हें दैवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं, जिसके प्रतीकस्वरूप वे एक कुल्हाड़ी सदा अपने साथ रखते थे।बाल्यकाल आमतौर पर 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम समर माना जाता है। लेकिन इससे इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया। छोटा नागपुर के आदिवासी इलाकों में अंग्रेज़ हुकूमत के दौरान बर्बरता चरम पर थी। मुण्डाओं ने ज़मींदारों, साहूकारों के विरुद्ध पहले से ही भीषण विद्रोह छेड़ रखा था। उरांवों ने भी बागी तेवर अपना लिये। बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता देखते आये थे। उन्होंने देखा था कि किस तरह तैयार फ़सल ज़मींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे। ग़रीब गांव वालों के घर कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था। बालक बुधु भगत सिलागाई की कोयल नदी के किनारे घंटों बैठकर अंग्रेज़ों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे l इनके तलवार और धनुष-बाण चलाने में पारंगत होने के कारण लोगों ने बुधु को देवदूत समझ लिया l कैप्टन इंपे द्वारा बंदी बनाए गए सैकड़ों ग्रामीणों को विद्रोहियों ने लड़कर मुक्त करा लिया जिसका नेतृत्व बुधु ने किया । अपने दस्ते को बुधु ने गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों का फायदा उठाकर कई बार अंग्रेज़ी सेना को परास्त किया। बुधु को पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने एक हज़ार रुपये इनाम की घोषणा कर दी थी। हज़ारों लोगों के हथियारबंद विद्रोह से अंग्रेज़ सरकार और ज़मींदार कांप उठे। बुधु भगत को पकड़ने का काम कैप्टन इंपे को सौंपा गया l

14 फ़रवरी, सन 1832 ई. को बुधु और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने घेर लिया l कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। बुधु भगत तथा परिवार के सदस्यों एवं अपने हजारो अनुयायीयों के साथ शहिद हो गए।

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