Friday, May 29, 2020

29/5/2020 a hindu samrajya diwas अफजल खां और शिवाजी Afzal Khan and Shivaji

अफजल खां और शिवाजी 
1 नवम्बर 1656 को बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु हो गई . इससे बीजापुर में अराजकता का माहौल पैदा हो गया . इस स्थिति का लाभ उठाकर औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया और शिवाजी ने औरंगजेब का साथ देने की बजाय उस पर धावा बोल दिया . फलस्वरूप औरंगजेब शिवाजी से खफ़ा हो गये , और शाहजहाँ के आदेश पर औरंगजेब ने बीजापुर के साथ संधि कर ली . इस दौरान शाहजहाँ बीमार पड़ गये . इसलिये औरंगजेब वापस उत्तर भारत चले गये औरंगजेब के आगरा लौटने के बाद बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह द्वितीय ने भी राहत की सांस ली . अब शिवाजी ही बीजापुर के सबसे प्रबल शत्रु रह गये थे . सुल्तान ने शाहजी को अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने को कहा था . पर शाहजी ने इसमें अपनी असमर्थता जाहिर कर दी थी . शिवाजी को समाप्त के लिए बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की विधवा बेगम ने अफ़ज़ल खाँ ( अब्दुल्लाह भटारी ) को शिवाजी के विरुद्ध भेजा . अफ़जल खाँ ने बारुद असले व घुड़सवारों से सुसजित विशाल सेना के साथ 1659 में कूच किया . अफ़जल रास्ते में लूटपाट करता हुआ प्रतापगढ़ पहुंचे . शिवा जी का खून खौल उठा पर वो जानते थे कि , उनकी सैन्य क्षमता सीमित है . अत : उन्होंने कूटनीति का परिचय दिया और मौन साधे रखा . अफजल खाँ ही उनके पिता को बंदी बनाने तथा भाई संभाजी की मौत का सूत्रधार था . अफजल खाँ जे शिवाजी के पास सन्धि - वार्ता के लिए अपने दूत कृष्णाजी भास्कर के साथ मैत्री का सन्देश भेजा . उसने उसके मार्फत ये संदेश भिजवाया कि , अगर शिवाजी बीजापुर की अधीनता स्वीकार कर ले , तो सुल्तान उसे उन सभी क्षेत्रों का अधिकार दे देंगे जो शिवाजी के नियंत्रण में थे . साथ ही शिवाजी को बीजापुर के दरबार में एक सम्मानित पद प्राप्त होगा.शिवाजी के मंत्री व सलाहकार इस संधि के पक्ष में थे . पर शिवाजी को ये बात रास नहीं आरही थी .  उन्होंने कृष्णाजी भास्कर को उचित सम्मान देकर अपने दरबार में रख लिया और अपने दूत गोपीनाथ को वस्तुस्थिति का जायजा लेने अफजल खाँ के पास भेजा . गोपीनाथ और कृष्णाजी भास्कर से शिवाजी को लगा कि सन्धि का घडयंत्र रचकर अफजल खाँ शिवाजी को बन्दी बनाना चाहता है . शिवाजी ने भी कूटनीति का उत्तर कूटनीति से देते हुए अफजल खाँ को एक बहुमूल्य उपहार भेजे . और इस तरह अफजल खाँ से सन्धि वार्ता के लिए तैयार हो गये .10 नवमबर 1659 को अफ़जल खाँ अपनी सेना के साथ वार्ता स्थल पर पहुँच गये , शिवाजी से प्रेम करने वाले उनके देशभक्त साथी अन्य सेनापति आदि शिवाजी की सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित थे . परन्तु शिवाजी के हृदय में तो स्वराज्य को सुदृढ़ करने का निश्चय था . शिवाजी ने अपना जिरह वरतर , कुर्ता और अंगरखा धारण किये . तथा सर पर बरतर धारण कर टोपी पहनी , अपने एक हाथ में बघनखा धारण किया और अफजल खाँ से मिलने चल दिये.धूर्त अफजल खाँ ने शिवाजी को गले मिलने का न्यौता दिया . लम्चे भीमकाय शारीर वाले अफजल खाँ ने कंधे तक पहुँचने वाले शिवाजी की गर्दन अपनी बगल में दबाकर पेट में कटार मारने वाला ही थे कि , पलभर में शिवाजी ने बांये हाथ में छुपाए बाघनख से खान का पैट फाड़ दिया और मार दिया . अफजल खाँ की मौत का इशारा मिलते ही तैयार खड़ी मावली सेना ने मोरोपन्त पिंगले और नेताजी पालकर के नेतृत्व में खान की फौज पर आक्रमण कर दिया . और बौखलायी हुई सेना को खुले युद्ध में परास्त किया . और जो सामान अफजल खाँ ने प्रतापगढ़ आते हुए लूटा था , वो अपने क जे में कर लिया.शिवाजी महाराज ने अदम्य साहस , अचूक योजना , अनूठी सूझ - बूझ से एक कपटी सरदार और उसकी फ़ौज का अंत कर दिया .

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Afzal Khan and Shivaji 
Sultan of Bijapur Adilshah died on 1 November 1656,  .  This created an atmosphere of anarchy in Bijapur.  Taking advantage of this situation, Aurangzeb attacked Bijapur and Shivaji attacked him instead of supporting Aurangzeb.  As a result, Aurangzeb became angry with Shivaji, and on the orders of Shah Jahan, Aurangzeb made a treaty with Bijapur.  During this time Shah Jahan fell ill.  Therefore, Aurangzeb went back to North India. After Aurangzeb returned to Agra, Sultan Adilshah II of Bijapur also breathed a sigh of relief.  Now Shivaji was the most powerful enemy of Bijapur.  The Sultan asked Shahaji to keep his son under control.  But Shahaji had expressed his inability to do this.  To eliminate Shivaji, Begum, widow of Sultan Adilshah of Bijapur sent Afzal Khan (Abdullah Bhatari) against Shivaji.  Afzal Khan traveled in 1659 with a huge army equipped with gunpowder and horsemen.  Afzal reached Pratapgad looting on the way.  Shiva ji's blood boiled but he knew that his military capability was limited.  Therefore, he introduced diplomacy and kept silent.  Afzal Khan was the architect of the arrest of his father and the death of brother Sambhaji.  Afzal Khan sent a message of friendship to Shivaji with his messenger Krishnaji Bhaskar for a negotiation.  Through this he sent the message that, if Shivaji accepts the subjugation of Bijapur, the Sultan will give him the right to all the areas which were under Shivaji's control.  At the same time, Shivaji will get an honored position in the court of Bijapur. Shivaji's ministers and advisors were in favor of this treaty.  But Shivaji did not like this thing.  He gave proper respect to Krishnaji Bhaskar and kept it in his court and sent his messenger Gopinath to Afzal Khan to take stock of the situation.  Shivaji felt from Gopinath and Krishnaji Bhaskar that Afzal Khan wanted to imprison Shivaji by building a sandwiches.  Shivaji also sent a valuable gift to Afzal Khan, giving a reply to diplomacy.  And thus the treaty with Afzal Khan was ready for negotiation. On November 10, 1659, Afzal Khan reached the negotiating ground with his army, his patriotic comrades who loved Shivaji were very concerned about the safety of the other commander, Adi Shivaji.  But in the heart of Shivaji, it was decided to strengthen Swarajya.  Shivaji wore his cross-dressing, kurta and tunic.  And wearing a cap on his head, wearing a baghankha in one hand and went to meet Afzal Khan. The scolded Afzal Khan invited Shivaji to hug him.  Afzal Khan, who had a lofty body, was about to hit the stomach by pressing the neck of Shivaji, who reached the shoulder, in his armpit, in a moment, Shivaji tore and killed Khan's pat with a hide in his left hand.  As soon as the hint of the death of Afzal Khan was ready, the standing Mavali army attacked Khan's army under the leadership of Moropant Pingale and Netaji Palkar.  And defeated the disoriented army in open war.  And the stuff that Afzal Khan looted while coming to Pratapgarh, he did it in his possession. Shivaji Maharaj put an end to an insidious chieftain and his army with indomitable courage, unmistakable plan, unique wisdom.

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