Friday, May 29, 2020

29/5/2020 शिवाजी का सन्यास. 🔅Retirement of Shivaji.

शिवाजी का सन्यास. 

छत्रपति शिवाजी अक्सर अपने गुरु समर्थ गुरु रामदास से मिलने जाया करते थे । समर्थ गुरु की मस्ती और आनंद को देखकर शिवाजी का मन भी कभी - कभी इस परेशानियों से भरे राजकाज से छुटकारा पाने को करता था । दिन दुगुनी रात चौगुनी समस्याओं से लड़ते - लड़ते शिवाजी बुरी तरह से परेशान हो चुके थे । अब तो वह भी किसी तरह सन्यास लेकर राजकाज के झंझाट से बचना चाहते थे । एक दिन ऐसा ही विचार लेकर शिवाजी समर्थ गुरु के पास गये और बोले - " गुरुदेव ! राजकाज की जिम्मेदारियों से बहुत परेशान हो चूका हूँ सोच रहा हूँ सन्यास ले लूँ ? " समर्थ गुरु बड़े ही सहजभाव से बोले - " अवश्य सन्यास ले लो । यह सबसे उत्तम राह है , सुखशांति पूर्वक जीवन व्यतीत करने की । " शिवाजी सोच रहे थे कि गुरुजी आसानी से अनुमति नहीं देंगे किन्तु समर्थ गुरु तो झट से मान गये । यह देख शिवाजी खुश हो गये शिवाजी बोले - " तो गुरुदेव आपकी दृष्टि में ऐसा कोई व्यक्ति है , जो राजकाज संभाल सके । कोई ऐसा जो कर्तव्य पूर्वक सम्पूर्ण राज्य का पालन - पोषण कर सके । " समर्थ गुरु बोले ' मुझे दे दे और निश्चिन्त होकर सन्यासी बन । मैं किसी योग्य व्यक्ति को नियुक्त करके सारा राजकाज संभाल लूँगा । हाथों में जल लेकर शिवाजी ने अपना सम्पूर्ण राज्य समर्थ गुरु रामदास को दान कर दिया । इसके बाद शिवाजी महल में गये और कुछ मुद्राएँ भावी खर्च के लिए लेकर जाने लगे । शिवाजी जा ही रहे थे कि समर्थ गुरु बोले - " अरे शिवा रुक ! राज दान कर दिया तो राज के धन पर तेरा कोई अधिकार नहीं । अत : राज्य की मुद्राएँ तू अपने साथ नहीं ले जा सकता " गुरुदेव की तर्कपूर्ण बात सुनकर शिवाजी ने मुद्रा वही रख दी और चल दिए ।शिवाजी थोड़ी ही दूर गये थे कि समर्थ गुरु बोले- " अरे शिवा ! अब तो तू सन्यासी हो गया है । ।। अत : राजसी वस्त्रों में जाना सन्यास के अनुकूल नहीं । " इतना कहकर समर्थ गुरु ने शिवाजी के लिए भगवे वस्त्रों की व्यवस्था करवा दी । भगवे वस्त्र पहनकर शिवाजी चल दिए कि पीछे से समर्थ गुरु बोले - “ ध्यान रहे ! तुम इस राज्य की सीमा में भी नहीं रह सकते । शिवाजी बोले- " हाँ ठीक है गुरुदेव ! शिवाजी थोड़ी दूर गये थे कि फिर समर्थ गुरु बोले - " भई । तुम जा तो रहे हो , लेकिन भविष्य के बारे में भी कुछ सोचा है या नहीं ? शिवाजी बोले " भगवान भरोसे है ! गुरुदेव ! " गुरुदेव बोले - " अरे फिर भी कुछ तो सोचा ही होगा , बिना परिश्रम के पारितोषिक तो नहीं मिलता । " शिवाजी बोले - " मेहनत - मजदूरी और नौकरी करके अपना गुजारा चला लूँगा गुरुदेव ! समर्थ गुरु बोले - " अच्छा ! तो यहाँ आ , मेरे पास है तेरे लिए सबसे बढ़िया नौकरी ! " शिवाजी बोले- " जी गुरुदेव ! बताइए आपकी बड़ी कृपा होगी ? समर्थ गुरु बोले - “ देख ! तूने यह राज्य मुझे दे दिया है । अब में जिसे चाहू , इसकी देखभाल के लिए रख सकता हूँ । इसलिए मुझे किसी योग्य व्यक्ति की खोज करनी पड़ेगी । अत : मैं सोचता हूँ कि तुम इसके लिए सबसे अधिक योग्य व्यक्ति हो । आजसे तू मेरा राज्य संभालना ! इस भाव से नहीं कि तू इसका स्वामी है , बल्कि इस भाव से कि तू इसका सेवक मात्र है । तेरे पास मेरी यह अमानत है । इस तरह सेवाभाव से राज्य सञ्चालन करने में शिवाजी को फिर कभी कोई झंझट मालूम नहीं हुआ शिक्षा - असल में समस्या मालिक बनने में होती है , सेवक बनने में नहीं । अगर हम भी अपने कर्तव्यों का निर्वाह सेवक की तरह करे तो कोई कारण नहीं कि हमें परेशान होना पड़े । अत : आज ही इस कहानी से शिक्षा लेकर स्वयं को एक सेवक की तरह गड़िये ।🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅
Retirement of Shivaji.  

Chhatrapati Shivaji often used to visit his Guru Samarth Guru Ramdas.  Seeing the fun and enjoyment of the able Guru, Shivaji's mind sometimes used to get rid of this troublesome rule.  Shivaji was badly disturbed while fighting quadruple problems day and night.  Now he too wanted to avoid the mess of royalty by taking retirement.  One day, Shivaji went to Samarth Guru with the same thought and said - "Gurudev! I am very upset with the responsibilities of the royal government, I am thinking to take retirement?" Samarth Guru said very easily - "Must take sannyas.  The best way is to lead a life of happiness. "Shivaji was thinking that Guruji would not give permission easily, but the able Guru readily agreed.  Seeing this, Shivaji became happy, Shivaji said - "So Gurudev is someone in your eyes who can handle the government. Someone who can maintain the entire state with duty."  Become a monk.  I will handle all the affairs by appointing a qualified person.  Taking water in his hands, Shivaji donated his entire kingdom to the able Guru Ramdas.  After this Shivaji went to the palace and started taking some currencies for future expenses.  While Shivaji was going, Samarth Guru said - "Hey Shiva, stop! If you donate the kingdom, you have no right over the wealth of the kingdom. Therefore you cannot take the currency of the kingdom with you".  He kept it and walked away. Shivaji had gone a little far that Samarth Guru said - "Hey Shiva! Now you have become a monk. So, going in royal clothes is not favorable for sannyasa." Saying this, Samarth Guru Shivaji  Arranged for saffron clothes.  Wearing saffron clothes, Shivaji went on to say that the able Guru from behind said - “Take care!  You cannot live within the boundary of this state.  Shivaji said- "Yes, okay Gurudev! Shivaji had gone a little far that then Samarth Guru said -" Brother.  You are going, but have you thought about the future or not?  Shivaji said, "God is trust! Gurudev!" Gurudev said - "Oh, you must have thought anything, you do not get reward without hard work."  He said - "Good!  So come here, I have the best job for you!  "Shivaji said-" Ji Gurudev!  Tell me, would you be so kind?  Samarth Guru said - "Look!  You have given me this kingdom.  Now I can keep it for whoever I want.  So I have to find someone worthy.  So I think you are the most qualified person for this.  From today onwards, you take over my kingdom!  Not with the sense that you own it, but with the sense that you are its servant.  I have this with you  In this way, Shivaji never knew any problem in running the state with service, education - in fact the problem is in becoming a master, not in becoming a servant.  If we also perform our duties like a servant, then there is no reason for us to be upset.  So, today, take education from this story and cast yourself as a servant.

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