Wednesday, December 14, 2022

है हिंदू वीर जवान ये देश हमारा हैइस देश पर मर मिटाना कर्तव्य हमारा है

है हिंदू वीर जवान ये देश हमारा है
इस देश पर मर मिटाना कर्तव्य हमारा है
है हिंदू वीर जवान ये देश हमारा है

https://youtu.be/sm1cnQ9qwco


हमे अपने भारत की तकदीर बनानी है 
जो बन के न बिगड़े तसवीर बनानी है 
है दूर अभी मंजिल और दूर किनारा है 
है हिंदू वीर जवान ये देश हमारा है



हम अपने वीरों का एहसान ना भूलेंगे  
आजाद भगत सिंह का बलिदान न भूलेंगे
है देश अमर भारत हर दिल ने पुकारा है
है हिंदू वीर जवान ये देश हमारा है

हम अपने वीरों का एहसान न भूलेंगे 
आजाद भगत सिंह का बलिदान न भूलेंगे
है देह अमर भारत हर दिल ने पुकारा है
इस देश पर मर मिटाना कर्तव्य हमारा है
है हिंदू वीर जवान ये देश हमारा हैहै

https://youtu.be/sm1cnQ9qwco


Sunday, December 11, 2022

kavita 2022

मेरा सब कुछ अर्पित तुझको , देश आज मैं प्रण करता हूँ!
मेरा क्षण- क्षण कण- कण  तुझको , तेरे हेतु आज रखता हूँ!

जीवन में जीतनी आशाएं , जो मैंने जीवन भर पाली!
आज मैंने सब तुझसे जोड़ी , अपनी झोली कर दी खाली!
मेरा वैभव तब ही रहेगा , जब तू होगा वैभवशाली!

सब अर्पित मेरी तकनीकी , जीवन ज्ञान की सभी प्रणाली !
जीवन का सब अर्जन- खर्चन , तेरे चरणों में रखता हूँ!
             देश आज मैं प्रण करता हूँ!..........................
..................
चाहे इस पथ पर हों कंटक , चाहे जितनी भी उठक पटक !

चाहे बाधाओं के हों झंझट ,हो अपमानो के  घूट घटक!
बाधाएं अंगारे वर्षक , गैसों की गर्मी उत्सर्जक !
रासायनिक क्रियाओं के , चाहे जितने हो उत्प्रेरक!
हर क्रिया को प्रति क्रिया से शांत , सही में करता हूँ!
                 देश आज मैं प्रण करता हूँ!..............................

मेरा शैशव माँ की ममता , आज है जो मेरी तरुणाई !
अपनी स्वर्णिम जीवन गाथा , मैंने तुझसे ही पाई!
अन्न, वस्त्र , रहने  की खातिर , मैंने तुझसे करी कमाई!
तेरा है तुझको ही अर्पित , सब तेरी  है, नहीं पराई !
देश प्रथम की प्रबल भावना अपने जीवन में भरता हूँ!

देश आज मैं प्रण करता हूँ!..............................
मेरा सब कुछ अर्पित तुझको , देश आज मैं प्रण करता हूँ!

मेरा क्षण- क्षण कण- कण  तुझको , तेरे हेतु आज रखता हूँ!

kavita

आज समस्या और चुनौती दिन दिन बढ़ती जाती है। 
नशा और बीमार गाय की संख्या बढ़ती जाती है । 
धड़क रही है धर ताप से बारिश घटती जाती है ,
लम्पी बीमारी से गौ की चमड़ सड़ती जाती है। 

चूर नशे में युवा भटकता रिश्तो का संसार तोड़ता ,
हर दिन घर में खटपट करता कभी-कभी घर तक भी बिकता। 
कुछ नहीं मिलता चोरी करता पत्नी के आभूषण छिनता, 
और इसी के गृह क्लेश में समय से पहले ही  बसता। 
   
युवाभ्रष्ट और मस्त नशे में बर्बाद करता जवानी है, 
नशा माफिया जाल बिछाकर करता अब मनमानी है। 

आंगन की किलकारी खोती सूनी  माथे की बिंदिया ,
मां बहिना, बनिता,पितु, भाई की खो गई आंखों की निंदिया। 

सैनिक बनाना काम युवा बनता आज नशेड़ी है, 
संस्कारी समृद्ध गाँव बनते मद्य बसेड़ी हैं । 
यही चुनौती देश के सम्मुख सीना ताने रोज खड़ी है ,
भारत के वैभव को डँसती समस्या जस की तस पड़ी है। 

गायों को हम माँ कहते हैं लेकिन स्थिति बहुत बुरी है ,
सड़कों पर कचरा खाती है देश दुग्ध की वही धुरी है । 
लम्पी बीमारी फैली है देश के कोने कोने में, 
सड़ती चमड़ी घाव हैं एक गाय लगी है रोने में । 

कोरोना के समय देश भी लड़खड़ा बीमारी से ,
लम्पी बीमारी के कारण क्यों पड़ा रहा लाचारी से । 
सम्मुख आज चुनौती है लड़ना है और डटना है ,
इस बीमारी से हमको उवरना  है उवरना है। 

गाय रंभाति बछड़ा रोता बीमारी से जीवन छूटा, 
तप्त शरीर और घाव रिस रहा होता जाता सूना खूँटा। 
कल तक जिस को हाथ से पाला घास फूस और दिया निवाला, 
तड़प तड़प मरती जाती है कौन बने इसका रखवाला । 

जग के पालनहार जिसे माता कहकर पूजते हैं 
गाय की हो गई हो दुर्गति प्रभु से ऐसे क्यों रूठते हैं । 
हे ईश्वर अब तुम्ही सहारा जग के पालनहार हो,
सुख-दुख तुम से पैदा होते तुम जीवन आधार हो।

Kavita Surendra ji

आज समस्या और चुनौती दिन दिन बढ़ती जाती है। 
नशा और बीमार गाय की संख्या बढ़ती जाती है । 
धड़क रही है धर ताप से बारिश घटती जाती है ,
लम्पी बीमारी से गौ की चमड़ सड़ती जाती है। 

चूर नशे में युवा भटकता रिश्तो का संसार तोड़ता ,
हर दिन घर में खटपट करता कभी-कभी घर तक भी बिकता। 
कुछ नहीं मिलता चोरी करता पत्नी के आभूषण छिनता, 
और इसी के गृह क्लेश में समय से पहले ही  बसता। 
   
युवाभ्रष्ट और मस्त नशे में बर्बाद करता जवानी है, 
नशा माफिया जाल बिछाकर करता अब मनमानी है। 

आंगन की किलकारी खोती सूनी  माथे की बिंदिया ,
मां बहिना, बनिता,पितु, भाई की खो गई आंखों की निंदिया। 

सैनिक बनाना काम युवा बनता आज नशेड़ी है, 
संस्कारी समृद्ध गाँव बनते मद्य बसेड़ी हैं । 
यही चुनौती देश के सम्मुख सीना ताने रोज खड़ी है ,
भारत के वैभव को डँसती समस्या जस की तस पड़ी है। 

गायों को हम माँ कहते हैं लेकिन स्थिति बहुत बुरी है ,
सड़कों पर कचरा खाती है देश दुग्ध की वही धुरी है । 
लम्पी बीमारी फैली है देश के कोने कोने में, 
सड़ती चमड़ी घाव हैं एक गाय लगी है रोने में । 

कोरोना के समय देश भी लड़खड़ा बीमारी से ,
लम्पी बीमारी के कारण क्यों पड़ा रहा लाचारी से । 
सम्मुख आज चुनौती है लड़ना है और डटना है ,
इस बीमारी से हमको उवरना  है उवरना है। 

गाय रंभाति बछड़ा रोता बीमारी से जीवन छूटा, 
तप्त शरीर और घाव रिस रहा होता जाता सूना खूँटा। 
कल तक जिस को हाथ से पाला घास फूस और दिया निवाला, 
तड़प तड़प मरती जाती है कौन बने इसका रखवाला । 

जग के पालनहार जिसे माता कहकर पूजते हैं 
गाय की हो गई हो दुर्गति प्रभु से ऐसे क्यों रूठते हैं । 
हे ईश्वर अब तुम्ही सहारा जग के पालनहार हो,
सुख-दुख तुम से पैदा होते तुम जीवन आधार हो।

Saturday, December 3, 2022

sangh shakti.

संघ शक्तेरो करनो पेलो, घरे घरे प्रचार हो 
तदे भोलो इशी हिन्दु जेतेरो  बेड़ो पार हो ।
                डेरी डेरी धरती पुड़ जिनु, तेस जिने केराखरू नज़िनों,
               कमजोरन तां बजती ओरी (२) जेड़ी हेरा तेड़ी मार हो
               तदे भोलो इशी.....
प्रेम एकता जेनन मां भोए, दुनिया तेनन जो जितो जोए,
भाईचारो नहीं जेन लोकन माँ, (२) तेना जेरे मुरदार हो,
तदे भोलो इसी.....
                असन शिखेई जेए अक गुरु मंत्र, हेडगेवार तां वीर सावरकर
                संघ शक्ति कलयुगे माँ (2), बस ऐसेशे विस्तार हो।
               दे भोली इशी....
              संघ शक्तेरो.....

Friday, December 2, 2022

2/12/2022

🙏 ये 15 मंत्र  जो....हर हिंदू को सीखना और बच्चों को सिखाना चाहिए,

1. Mahadev
          ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, 
           सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ,
           उर्वारुकमिव बन्धनान्,
           मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !!

2. Shri Ganesha
              वक्रतुंड महाकाय, 
              सूर्य कोटि समप्रभ 
              निर्विघ्नम कुरू मे देव,
              सर्वकार्येषु सर्वदा !!

3. Shri hari Vishnu
           मङ्गलम् भगवान विष्णुः,
           मङ्गलम् गरुणध्वजः।
           मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः,
           मङ्गलाय तनो हरिः॥

4. Shri Brahma ji
             ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा,
              नमस्ते परमात्ने ।
              निर्गुणाय नमस्तुभ्यं,
              सदुयाय नमो नम:।।

5. Shri Krishna
               वसुदेवसुतं देवं,
               कंसचाणूरमर्दनम्।
               देवकी परमानन्दं,
               कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।

6. Shri Ram
              श्री रामाय रामभद्राय,
               रामचन्द्राय वेधसे ।
               रघुनाथाय नाथाय,
               सीताया पतये नमः !

7. Maa Durga
            ॐ जयंती मंगला काली,
            भद्रकाली कपालिनी ।
            दुर्गा क्षमा शिवा धात्री,
            स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।

8. Maa Mahalakshmi
            ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो,
            धन धान्यः सुतान्वितः ।
            मनुष्यो मत्प्रसादेन,
            भविष्यति न संशयःॐ ।

9. Maa Saraswathi
            ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं,
             वरदे कामरूपिणि।
             विद्यारम्भं करिष्यामि,
             सिद्धिर्भवतु मे सदा ।।

10. Maa Mahakali
             ॐ क्रीं क्रीं क्रीं,
             हलीं ह्रीं खं स्फोटय,
             क्रीं क्रीं क्रीं फट !!

11. Hanuman ji
          मनोजवं मारुततुल्यवेगं,
          जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
          वातात्मजं वानरयूथमुख्यं,
          श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥

12. Shri Shanidev
             ॐ नीलांजनसमाभासं,
              रविपुत्रं यमाग्रजम ।
              छायामार्तण्डसम्भूतं, 
              तं नमामि शनैश्चरम् ||

13. Shri Kartikeya
        ॐ शारवाना-भावाया नम:,
         ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा ,
         वल्लीईकल्याणा सुंदरा।
          देवसेना मन: कांता,
          कार्तिकेया नामोस्तुते ।

14. Kaal Bhairav ji
          ॐ ह्रीं वां बटुकाये,
          क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये,
          कुरु कुरु बटुकाये,
          ह्रीं बटुकाये स्वाहा।

15. Gayatri Mantra
            ॐ भूर्भुवः स्वः,
            तत्सवितुर्वरेण्यम् 
            भर्गो देवस्य धीमहि 
            धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

 खुद भी सीखे और परिवार / बच्चों को भी सिखायें🙏
आशीष सक्सेना

Thursday, November 17, 2022

17/11/2022 panchang

🌞आज का हिन्दु पंचाग 🌞
*⛅दिनांक - 17 नवम्बर 2022*
*⛅दिन - गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् 02 मार्गशीर्ष- 2079*
*⛅शक संवत् - 1944*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - हेमंत*
*⛅मास - मार्गशीर्ष ( गुजरात एवं महाराष्ट्र में कार्तिक मास )*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - अष्टमी सुबह 07:57 तक तत्पश्चात नवमी*
*⛅नक्षत्र - मघा रात्रि 09:21 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
*⛅योग - इन्द्र रात्रि 01:24 तक तत्पश्चात वैधृति*
*⛅राहु काल - दोपहर 01:47 से 03:10 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:54*
*⛅सूर्यास्त - 05:55*
*⛅दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:10 से 06:02 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 11:59 से 12:51 तक पंचक नहीं है*
*⛅व्रत पर्व विवरण -*
*⛅विशेष - अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है । नवमी को लौकी खाना त्याज्य है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड : 27.29-34)*
*🔹दरिद्रता दूर, रोजी-रोटी में बरकत भरपूर🔹*
*🔹दरिद्रता भगानी हो तो व्यर्थ खर्च न करो । ब्याज पर कर्ज ले के गाड़ियाँ न खरीदो एवं मकान न बनाओ । आवक बढ़ानी हो अथवा बरकत लानी हो तो मंत्र है : 'ॐ अच्युताय नमः' जिसका पद कभी च्युत नहीं होता... इन्द्रपद भी च्युत हो जाता है, ब्रह्माजी का पद भी च्युत हो जाता है फिर भी जो च्युत नहीं होते अपने स्वभाव से, अपने-आपसे, उन परमेश्वर 'अच्युत' को हम नमस्कार करते हैं । अच्युतं केशवं रामनारायणं... ।*
*🔹'ॐ अच्युताय नमः' मंत्र की गुरुवार से गुरुवार २ सप्ताह या ४ सप्ताह तक ११ मालाएँ रोज जप करे । कुछ ही दिनों में यह मंत्र सिद्ध ह जायेगा। फिर जो काम-धंधा या नौकरी करता है वह जल में देखते हुए २१ बार जप करे और दायाँ नथुना बंद करके बायाँ स्वर चलाकर वह जल पिये । इससे रोजी-रोटी में बरकत होती है और दरिद्रता मिटती है ।*
*👉🏻 श्रद्धा से करके देख लें । आजमायेगा तो श्रद्धा नहीं रहेगी । श्रद्धा से करेगा तो दरिद्रता नहीं रहेगी ।*
*🔹नारी कल्याण पाक🔹* 
*🔹यह पाक युवतियों, गर्भिणी, नवप्रसूता माताएँ तथा महिलाएँ – सभी के लिए लाभदायी है ।*
*🔹लाभ : यह बल व रक्तवर्धक, प्रजनन – अंगों को सशक्त बनानेवाला, गर्भपोषक, गर्भस्थापक (गर्भ को स्थिर – पुष्ट करनेवाला), श्रमहारक (श्रम से होनेवाली थकावट को मिटानेवाला) व उत्तम पित्तनाशक है । एक – दो माह तक इसका सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया, अत्यधिक मासिक रक्तस्राव व उसके कारण होनेवाले कमरदर्द, रक्त की कमी, कमजोरी, निस्तेजता आदि दूर होकर शक्ति व स्फूर्ति आती है । जिन माताओं को बार-बार गर्भपात होता हो उनके लिए यह विशेष हितकर है । सगर्भावस्था में छठे महिने से पाक का सेवन शुरू करने से बालक हृष्ट-पुष्ट होता है, दूध भी खुलकर आता है ।*
*🔹धातु की दुर्बलता में पुरुष भी इसका उपयोग कर सकते हैं ।*
*🔹सामग्री : सिंघाड़े का आटा, गेंहू का आटा व देशी घी प्रत्येक २५० ग्राम, खजूर १०० ग्राम, बबूल का पिसा हुआ गोंद १०० ग्राम, पिसी मिश्री ५०० ग्राम ।*
*🔹विधि : घी को गर्म कर गोंद को घी में भून लें । फिर उसमें सिंघाड़े व गेंहू का आटा मिलाकर धीमी आँच पर सेंकें । जब मंद सुगंध आने लगे तब पिसा हुआ खजूर व मिश्री मिला दें । पाक बनने पर थाली में फैलाकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर रखें ।*
*🔹सेवन-विधि : २ टुकड़े ( लगभग २० ग्राम ) सुबह शाम खायें । ऊपर से दूध पी सकते हैं ।*
*🔹सावधानी : खट्टे, मिर्च-मसालेदार व तेल में तले हुए तथा ब्रेड-बिस्कुट आदि बासी पदार्थ न खायें ।*
*🌹 शनिवार के दिन विशेष प्रयोग 🌹*
*🌹 शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है । (ब्रह्म पुराण)*
*🌹 हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है । (पद्म पुराण)*
*🔹आर्थिक कष्ट निवारण हेतु🔹*
*🔹एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिलाकर हर शनिवार को पीपल के मूल में चढ़ाने तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र जपते हुए पीपल की ७ बार परिक्रमा करने से आर्थिक कष्ट दूर होता है
*🌞🚩🕉️🌹🌲🌲🌹🕉️🚩🌞*

Sunday, November 13, 2022

Apekshante na cha sneham na patram na dashaantaram.Sadaa lokahitaasaktaa ratnadeepa

अपेक्षन्ते न च स्नेहं न  पात्रं  न दशान्तरं |
सदा लोकहितासक्ता रत्नदीप इवोत्तमा ||

अर्थ -      जिस प्रकार एक रत्नदीप को किसी स्थान को प्रकाशित  करने के लिये  न तो तेल ,
 न तेलपात्र (दिया) और न बाती की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार सदैव लोकहित के कार्यों
 को संपन्न करने में समर्पित  श्रेष्ठ व्यक्ति भी इन कार्यों के प्रतिफल के रूप में  न आदर की
अपेक्षा करते  है और न  सहायता करने में  कोई भेद भाव करते हैं और न  अपनी (आर्थिक)
स्थिति का विचार करते हैं  और समाज को लाभान्वित करते हैं |

( इस सुभाषित में स्नेह, पात्र, दशान्त इस शब्दों के दो अर्थों  (क्रमशः तेल/आदर, दिया/व्यक्ति,
बाती/ आर्थिक साधन )को चतुरता पूर्वक प्रयुक्त कर एक रत्नदीप की उपमा एक श्रेष्ठ समाजसेवी
व्यक्ति से की गयी है | जिस प्रकार एक रत्नदीप को प्रकाश देने के लिये तेल, पात्र और बाती की
 आवश्यकता नहीं होती उसी  प्रकार एक समाजसेवी भी अपने ही संसाधनों से बिना किसी प्रतिफल
के समाजसेवा के कार्य में सदैव तत्पर रहता है |

 Apekshante na cha sneham na patram na dashaantaram.
Sadaa lokahitaasaktaa ratnadeepa ivottamaa.

Apekshante =  expect, require.     Na = not.    Sneham = (i) love, respect.
(ii) oil.      Paatram = (i) a pot  (ii) a deserving person.    Dashantaram =
(i)  end of a wick of an oil lamp  (ii) supply line of funds for charity.
Sadaa = always.    Lokahitaasaktaa = lokahita +aasaktaa.   Likahit = welfare
of common people.    Aasaktaa = involved, devoted to.    Ratnadeepaa = self
illuminating jeweled lamp.    Ivottamaa = iva +uttamaa.    Iva = like, similar to.
Uttamaa = honourable and righteous persons.

i. e.    Just as a self illuminating jeweled lamp does not require oil, a lamp and a wick
to brighten a place, in the same manner honourable and righteous persons devoted to
the welfare of the society do their philanthropic work without expecting any respect
in return of such work and  do not differentiate between the deserving persons, as
also do not depend upon others to finance their such activities.

(  The author of this Subhashita has skillfully used the two meanings of the words 'sneha',
 'patra' and 'dashantar' and used a simile of a jewel lamp for a philanthropic person, who
uses his wealth for such work without expecting anything in return.) 

Thursday, November 10, 2022

VAKTA


*💕अनमोल सीख💕*

*जब मैं छोटा था, तो मेरी मां एक प्रौढ़ सब्ज़ीवाली से हमेशा घर के लिए सब्जियां लिया करती थीं।*

*जो लगभग रोज ही हमारे घर एक बड़े टोकरे में ढेर सारी सब्जियां लेकर आया करती थी,इस रविवार को वह पालक के बंडल भी लेकर आयी, और दरवाज़े पर बैठ गई।*
 
*मां ने पालक के दो चार बंडल हाथ में लेकर सब्ज़ीवाली से पूछा:-पालक कैसे दी?"*
 
 *"सस्ता है दीदी, एक रुपया बंडल।" सब्ज़ीवाली ने कहा:*
 
  *माँ ने कहा "ठीक है, दो रुपये में चार बंडल दे दे।"*

*इसके बाद कुछ देर तक दोनों अपने-अपने ऑफर पर झिकझिक खिटपिट करते रहे।*
 
*सब्ज़ीवाली कुछ नाराज़गी जताते हुए बोली-इतनी तो मेरी खरीदी भी नहीं है, दीदी, फिर उसने एक झटके के साथ अपना टोकरा उठाया और उठ कर जाने लगी।*

*लेकिन चार कदम आगे बढ़ने के साथ ही पीछे मुड़ी और चिल्लायी*

*चलो चार बंडल के 3 रु दे देना दीदी, आप से ज़्यादा क्या कमाऊंगी ,मेरी माँ ने अपना सिर "नहीं" में हिलाया।*

*2 रु में 4 बंडल मैं बिल्कुल ठीक बोल रही हूं, क्योंकि तू हमेशा की पुरानी सब्जीवाली है। चल अब दे भी दे,परंतु सब्जीवाली रुकी नहीं आगे बढ़ गई।*

 *शायद वे दोनों एक-दूसरे की रणनीतियों को भली-भांति जानते थे। और यह खरीदने और बेचने वालों के बीच रोज ही होता होगा ।*
 
 *8-10 कदम जाकर सब्ज़ीवाली मुड़ी और हमारे दरवाजे पर वापस आ गई,माँ दरवाजे पर ही इंतज़ार कर रही थी ।*

*सब्ज़ीवाली अपना टोकरा सामने रख कर कुछ ऐसे बैठ गयी, जैसे कि वह किसी सम्मोहन की समाधि में हो।*

 *मेरी माँ ने अपने दाहिने हाथ से प्रत्येक बंडल को टोकरे से निकाल-निकाल कर कर दूसरे हाथ की खुली हथेली पर हल्के से मारा।*
 
 *और इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी के सीखे हुए मात्रात्मक, गुणात्मक और आलोचनात्मक मानदंडों से प्रत्येक बंडल की जाँच करके अपनी संतुष्टि से चार बंडलों का चयन किया।*

*सब्जी वाली ने पालक के बाकी बंडलों को फिर से अपने टोकरे में सजाया और भुगतान लेकर अपने बटुए में डाल लिए ।*

*सब्जीवाली ने बैठे ही बैठे टोकरा अपने सर पर रखा और उठने लगी, लेकिन टोकरा सिर पर रखकर जैसे ही वह उठने लगी, वह उठ न सकी और धप से नीचे बैठ गई।*

 *मेरी माँ ने उसका हाथ थाम लिया और पूछा -क्या हुआ? चक्कर आ गया क्या? क्या सुबह कुछ नहीं खाया था?"*
 
*सब्जी-वाली ने कहा, "नहीं दीदी। चावल कल खत्म हो गया था। आज की कमाई से ही मुझे कुछ चावल खरीदना है, घर जाकर पकाना है। उसके बाद ही हम सब खाना खाएंगे।*

*मेरी माँ ने उसे बैठने के लिए कहा। फिर फुर्ती से अंदर चली गई,चपाती व सब्ज़ी के साथ तेजी से वापस आई,और सब्ज़ीवाली को दी।*
 
*एक गिलास में पानी उसके सामने रखा। और सब्जीवाली से कहा "धीरे-धीरे खाना, मैं तेरे लिए चाय बना रही हूं।*

 *सब्जी वाली भूखी थी। उसने कृतज्ञतापूर्वक रोटी खायी, पानी पिया और चाय समाप्त की।* 
   
*मेरी माँ को बार-बार दुआएं देने लगी। मां ने टोकरा उनके सिर पर रखने में उसकी सहायता की। फिर वह सब्ज़ीवाली चली गई।*

 *मैं हैरान था,मैंने माँ से कहा:*

 *मां, आप ने दो रुपये की पालक की भाजी के लिए मोलभाव करने में इतनी कठोरता दिखाई, लेकिन उस सब्जीवाली को इतने अधिक मूल्य का भोजन देने में कई गुना अधिक उदार बन गयीं। यह मेरे समझ में नहीं आया!*

 *मेरी माँ मुस्कुराई और बोली:*

     *बेटा ध्यान रखना व्यापार में कोई दया नहीं होती और दया में कोई व्यापार नही होता।"*

*मंगलमय प्रभात*
       *प्रणाम*

kavita

*💕अनमोल सीख💕*

*जब मैं छोटा था, तो मेरी मां एक प्रौढ़ सब्ज़ीवाली से हमेशा घर के लिए सब्जियां लिया करती थीं।*

*जो लगभग रोज ही हमारे घर एक बड़े टोकरे में ढेर सारी सब्जियां लेकर आया करती थी,इस रविवार को वह पालक के बंडल भी लेकर आयी, और दरवाज़े पर बैठ गई।*
 
*मां ने पालक के दो चार बंडल हाथ में लेकर सब्ज़ीवाली से पूछा:-पालक कैसे दी?"*
 
 *"सस्ता है दीदी, एक रुपया बंडल।" सब्ज़ीवाली ने कहा:*
 
  *माँ ने कहा "ठीक है, दो रुपये में चार बंडल दे दे।"*

*इसके बाद कुछ देर तक दोनों अपने-अपने ऑफर पर झिकझिक खिटपिट करते रहे।*
 
*सब्ज़ीवाली कुछ नाराज़गी जताते हुए बोली-इतनी तो मेरी खरीदी भी नहीं है, दीदी, फिर उसने एक झटके के साथ अपना टोकरा उठाया और उठ कर जाने लगी।*

*लेकिन चार कदम आगे बढ़ने के साथ ही पीछे मुड़ी और चिल्लायी*

*चलो चार बंडल के 3 रु दे देना दीदी, आप से ज़्यादा क्या कमाऊंगी ,मेरी माँ ने अपना सिर "नहीं" में हिलाया।*

*2 रु में 4 बंडल मैं बिल्कुल ठीक बोल रही हूं, क्योंकि तू हमेशा की पुरानी सब्जीवाली है। चल अब दे भी दे,परंतु सब्जीवाली रुकी नहीं आगे बढ़ गई।*

 *शायद वे दोनों एक-दूसरे की रणनीतियों को भली-भांति जानते थे। और यह खरीदने और बेचने वालों के बीच रोज ही होता होगा ।*
 
 *8-10 कदम जाकर सब्ज़ीवाली मुड़ी और हमारे दरवाजे पर वापस आ गई,माँ दरवाजे पर ही इंतज़ार कर रही थी ।*

*सब्ज़ीवाली अपना टोकरा सामने रख कर कुछ ऐसे बैठ गयी, जैसे कि वह किसी सम्मोहन की समाधि में हो।*

 *मेरी माँ ने अपने दाहिने हाथ से प्रत्येक बंडल को टोकरे से निकाल-निकाल कर कर दूसरे हाथ की खुली हथेली पर हल्के से मारा।*
 
 *और इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी के सीखे हुए मात्रात्मक, गुणात्मक और आलोचनात्मक मानदंडों से प्रत्येक बंडल की जाँच करके अपनी संतुष्टि से चार बंडलों का चयन किया।*

*सब्जी वाली ने पालक के बाकी बंडलों को फिर से अपने टोकरे में सजाया और भुगतान लेकर अपने बटुए में डाल लिए ।*

*सब्जीवाली ने बैठे ही बैठे टोकरा अपने सर पर रखा और उठने लगी, लेकिन टोकरा सिर पर रखकर जैसे ही वह उठने लगी, वह उठ न सकी और धप से नीचे बैठ गई।*

 *मेरी माँ ने उसका हाथ थाम लिया और पूछा -क्या हुआ? चक्कर आ गया क्या? क्या सुबह कुछ नहीं खाया था?"*
 
*सब्जी-वाली ने कहा, "नहीं दीदी। चावल कल खत्म हो गया था। आज की कमाई से ही मुझे कुछ चावल खरीदना है, घर जाकर पकाना है। उसके बाद ही हम सब खाना खाएंगे।*

*मेरी माँ ने उसे बैठने के लिए कहा। फिर फुर्ती से अंदर चली गई,चपाती व सब्ज़ी के साथ तेजी से वापस आई,और सब्ज़ीवाली को दी।*
 
*एक गिलास में पानी उसके सामने रखा। और सब्जीवाली से कहा "धीरे-धीरे खाना, मैं तेरे लिए चाय बना रही हूं।*

 *सब्जी वाली भूखी थी। उसने कृतज्ञतापूर्वक रोटी खायी, पानी पिया और चाय समाप्त की।* 
   
*मेरी माँ को बार-बार दुआएं देने लगी। मां ने टोकरा उनके सिर पर रखने में उसकी सहायता की। फिर वह सब्ज़ीवाली चली गई।*

 *मैं हैरान था,मैंने माँ से कहा:*

 *मां, आप ने दो रुपये की पालक की भाजी के लिए मोलभाव करने में इतनी कठोरता दिखाई, लेकिन उस सब्जीवाली को इतने अधिक मूल्य का भोजन देने में कई गुना अधिक उदार बन गयीं। यह मेरे समझ में नहीं आया!*

 *मेरी माँ मुस्कुराई और बोली:*

     *बेटा ध्यान रखना व्यापार में कोई दया नहीं होती और दया में कोई व्यापार नही होता।"*

*मंगलमय प्रभात*
       *प्रणाम*