Thursday, February 2, 2023

संघ गीत RSS SONG LYRICS

भारतमाता तेरी सेवा करदे जावांगे ..2
इक्क जनम नहीं बार बार तेरे सोहले गावांगे।
भारतमाता तेरी सेवा ...
               पिछले इक्क हजार साल तां ‘संघर्षा विच बीते ..2’
               हस्स-हस्स जाम शहीदी वाले ,‘तेरे बच्चयाँ पीते..2’
   तैनूं फेर अखण्ड करांगे , जानां लावांगे।
   भारतमाता तेरी सेवा ...
तेरी शान शौकत नूं  माता ,‘फिर तों है चमकाउणा..2’
राम जन्मभूमि ते सुन्दर, ‘मन्दिर फेर बनाउणा..2’
विश्वगुरु दा तेरा दर्जा,  फेर दिलावांगे।
भारतमाता तेरी सेवा ...
             केशव हेडगेवार बीजिया,‘समरसता दा पौधा..2’
             निस्वारथ एके दी खुशबू,‘जोड़े भारती जोधा..2’
             भगवा झण्डा पिण्ड शहर लै, शाखा लावांगे ।
भारतमाता तेरी सेवा ...
प्रकृति भले विपरीत खड़ी हो, 
कालचक्र भी पड़े थामना। 
संकट के तूफानी सागर, 
चीर करेंगे सफल सामना॥ 
सतत हमारी यही योजना, 
नित्य हमारी यही साधना.....3 ॥धृ॥ 
          हिन्दु धर्म की श्रेष्ठ आन पर, 
          है प्रहार अब छल-असत्य का। 
          किन्तु सजग निर्भय सधैर्य हो, 
          रखना सम्बल धर्म-कृत्य का ॥ 
          अविरल जीवन चले जगत् में, 
          सृष्टि धर्म की यही कल्पना..2 ॥1॥      
नए-नए ढंग विकसित होंगे,     
नई-नई पद्धति आएंगी। 
संस्कृति वही पुरानी अपनी, 
जन-जीवन को सरसाएगी॥ 
चक्र-अखण्डित यही सृष्टि का, 
यही सृजन की सहज धारणा ..2  ॥2॥ 
नित्य हमारी यही साधना .......
           विघ्नों के गिरि अचल अनामिक,
           कदम-कदम हर पग रोकेंगे।
           भरी दुपहरी का रवि ग्रस ले,
           ऐसे राहु-केतु डोलेंगे ॥
           किन्तु अटल निर्बाध बढ़ें हम,
           जीवन की गति सहज भावना..2 ॥3॥ 
           नित्य हमारी यही साधना .......
सुख-दुख-विपदा-बाधा-सुविधा, 
यही मार्ग मीलों के पत्थर। 
किन्तु इसी में आनन्दित हो, 
खोजें हम उन्नति के अवसर॥ 
विजय सुनिश्चित भरतभूमि की, 
चाहे सागर पड़े बाँधना ..2 ॥4॥ 
नित्य हमारी यही साधना........
            संघ सृष्टि इस कण्टक पथ की, 
            बीहड़ता की भी अभ्यासी। 
            दिखी लालिमा ध्येय-सूर्य की, 
            धैर्य परीक्षा अब है बाकी ॥ 
            लाँघ चलें यत्नों की सीमा, 
            निश्चित होगी सफल कामना ॥5॥ 
            नित्य हमारी यही साधना........
धन्य धन्य है, धन्य धन्य है, भारत भू की धूल।
यह भारत भू की धूल॥
        इसी धूल में खेल-खेलकर, हुए थे वीर महान
        इसी धूल में खेल बने थे, राम-कृष्ण भगवान
        मल-मलकर मस्तक पर इसको, पाया रूप-अनूप।
        यह भारत भू की धूल॥ धन्य धन्य है....
स्वर्ग में रहने वाले इसमें, खेलन को ललचाते
तीन लोक में इसकी महिमा, के गुण गाए जाते
पाकर इसको स्वर्गलोक के, सब सुख जाते भूल
यह भारत भू की धूल॥ धन्य धन्य है....
        एक-एक कण इस धूली का, है अपने को प्यारा
        एक-एक कण इस धूली का, है नयनों का तारा
        मिट जाए यह और जिएं हम, यह न होगी भूल॥
        यह भारत भू की धूल॥ धन्य धन्य है....
मिल-जुलकर नित शाम-सवेरे, हम इसके गुण गाते
और प्रेम के अमर-सूत्र में, हैं हम बंधते जाते
इसी धूल में हमें हमारे, सब दुख जाते भूल॥
यह भारत भू की धूल॥ धन्य धन्य है...
संस्कृति सबकी एक चिरंतन, खून रगों में हिन्दू है। 
विराट सागर समाज अपना, हम सब इसके बिन्दू हैं ॥ 
संस्कृति सबकी...... 
     राम कृष्ण गौतम की धरती, महावीर का ज्ञान यहाँ।
     वाणी खंडन मंडन करती, शंकर के चारों धाम जहाँ ॥ 
     जितने दर्शन राहें उतनी, चिन्तन का चैतन्य भरा। 
     पंथ खालसा गुरु पुत्रों की, बलिदानी यह पुण्य धरा ॥ 
     अक्षयवट अगणित शाखाएं, जड़ में जीवन हिन्दू है। 
     संस्कृति सबकी...... 
कोटि हृदय हैं भाव एक है, इसी भूमि पर जन्म लिए। 
मातृभूमि यह कर्मभूमि यह, पुण्यभूमि हित मरे जिए॥ 
हारे जीते संघर्षों में, साथ लड़े बलिदान हुए। 
कालचक्र की मजबूरी में, रिश्ते-नाते बिखर गए। 
एक बड़ा परिवार हमारा, पुरखे सबके हिन्दू हैं। 
संस्कृति सबकी...... 
    सबकी रक्षा धर्म करेगा, उसकी रक्षा आज करें। 
    वर्ग भेद मतभेद मिटाकर, नव रचना निर्माण करें ॥ 
    धर्म हमारा जग में अभिनव, अक्षय है अविनाशी है। 
    इसी कड़ी से जुड़े हुए हम, युग से भारतवासी हैं ॥ 
    थाह अथाह जहाँ की महिमा, गहरा जैसा सिन्धु है ॥ 
    संस्कृति सबकी...... 
हरिजन गिरिजन-वासी वन के, नगर ग्राम सब साथ चलें। 
ऊँच-नीच का भाव मिटाकर, समता के सद्भाव बढ़ें॥ 
ऊपर दिखते भेद भले हों, ज्यों बगिया के फूल खिले। 
रंग-बिरंगी मुस्कानों को, जीवन रस पर एक मिले ॥ 
संजीवनी रस अमृत पीकर, मृत्युंजय हम हिन्दू हैं। 
संस्कृति सबकी......
शत नमन माधव चरण में, शत नमन माधव चरण में,
शत नमन माधव चरण में, शत नमन माधव चरण में ॥
          आपकी पीयूष वाणी, शब्द को भी धन्य करती
          आपकी आत्मीयता थी, युगल नयनों से बरसती
         और वह निश्चल हंसी जो, गूंज उठती थी गगन में ॥ शत नमन ....
ज्ञान में तो आप ऋषिवर, दीखते थे आद्य शंकर
और भोला भाव शिशु सा, खेलता मुख पर निरन्तर
दीन दुखियों के लिए थी, द्रवित करुणा धार मन में ॥ शत नमन ....
           दु:ख सुख निन्दा प्रशंसा,    आपको सब एक ही थे
            दिव्य गीता ज्ञान से युत, आप तो स्थित प्रज्ञा ही थे
            भरत भू के पुत्र उत्तम, आप थे युगपुरुष जन में ॥ शत नमन ....
मेरु गिरि सा मन अडिग था, आपने पाया महात्मन
त्याग कैसा आपका वह,   तेज साहस शील पावन
मात्र दर्शन भस्म कर दे,   घोर षडरिपु एक क्षण में ॥ शत नमन ....
           सिन्धु सा गंभीर मानस, थाह कब पाई किसी ने
           आ गया सम्पर्क में जो,   धन्यता पाई  उसी ने
           आप योगेश्वर नए थे, छल भरे कुरुक्षेत्र रण में ॥ शत नमन ....
आँधी क्या है तूफान मिलें, चाहे जितने व्यवधान मिलें, 
बढ़ना ही अपना काम है, बढ़ना ही अपना काम है ।। 
   हम नई चेतना की धारा, हम अंधियारे में उजियारा, 
   हम उस बयार के झोंके हैं, जो हर ले जग का दुःख सारा। 
   चलना है शूल मिलें तो क्या, पथ में अंगार जलें तो क्या, 
   जीवन में कहाँ विराम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥1॥
   आँधी क्या है.... 
हम अनुगामी उन पाँवों के, आदर्श लिए जो बढ़े चले, 
बाधाएँ जिन्हें डिगा न सकीं, जो संघर्षों में अड़े रहे। 
सिर पर मंडरता काल रहे, करवट लेता भूचाल रहे, 
पर अमिट हमारा नाम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥2॥
आँधी क्या है.... 
 वह देखो पास खड़ी मंजिल, इंगित से हमें बुलाती है, 
 साहस से बढ़ने वालों के, माथे पर तिलक लगाती है। 
 साधना न व्यर्थ कभी जाती, चलकर ही मंजिल मिल पाती,
 फिर क्या बदली क्या धाम है, बढ़ना ही अपना काम है ॥3॥
 आँधी क्या है....
रक्त शिराओं में राणा का,      रह रह आज हिलोरे लेता। 
मातृभूमि का कण-कण तृण-तृण, हमको आज निमंत्रण देता॥
      वीर प्रसूता भारत माँ की, हम सब हिन्दू हैं सन्तानें
      हर विपदा जो माँ पर आती, सहते हैं हम सीना ताने
      युग-युग की निद्रा को तजकर, फिर है अपना गौरव चेता ॥1॥ 
      मातृभूमि का....
यह वह भूमि जहाँ पर नित नित, लगता बलिदानों का मेला
इस धरती के पुत्रों ने ही, हँस-हँस महामृत्यु को झेला
हमको डिगा न पाया कोई, अगणित आए विश्व-विजेता ॥2॥ 
मातृभूमि का....
          आज पुनः आक्रान्त हुई है, मातृभूमि हम सबकी प्यारी
          उठो चुनौती को स्वीकारें, युवकों आज हमारी बारी 
          सीमाओं पर अरिदल देखो, हमको पुनः चुनौती देता ॥3॥                                                                         
          मातृभूमि का....
          रक्त शिराओं में ........
सब देशों से न्यारा है, प्यारा देश हमारा देश। 
सब देशों से न्यारा है, प्यारा देश हमारा देश। 
      जहाँ पर बहती पावन- नीरा, ब्रह्मपुत्र की प्रचण्ड धारा। 
      गंगा का तो जन्म-स्थल, प्यारा देश, हमारा देश ।।
      सब देशों से......
जिस धरती पर जन्म लिया, जिस पर पलकर बड़े हुए। 
जननी से भी है बढ़ कर, प्यारा देश हमारा देश॥
सब देशों देशो से......
       जहाँ राम ने जन्म लिया, जहाँ कृष्ण ने खेल किये,
       अवतारों का जन्म स्थल, प्यारा देश हमारा देश ॥
       सब देशों से......
भगवा ध्वज है गुरु हमारा, संगठना है ध्येय हमारा,
जीवन से भी है बढ़कर प्यारा देश, हमारा देश ॥
सब देशों से......
भारत माँ तेरी जय हो, विजय हो। 
भारत माँ तेरी जय हो, विजय हो। 
         तू शुद्ध तू बुद्ध तू प्रेम आगार,
         तेरा विजय सूर्य माता उदय हो।
         भारत माँ.....
आवें पुनः कृष्ण देखें दशा तेरी,
अरविंद गोविन्द बन्दा की जय हो। भारत माँ.....
          तेरे लिए मृत्यु हो स्वर्ग का द्वार,
         शस्त्रों की झन-झन में वीणा की लय हो ।
         भारत माँ.....
मेरा यह संकल्प पूरा करें ईश, 
राणा शिवाजी का फिर से उदय हो।
भारत माँ.....
         भगवे तले आज हम राष्ट्र बन्धु, 
         गाएं सभी मिल के माँ तेरी जय हो।
         भारत माँ.....
इह धरती है अवतारां दी, इह धरती देश प्यारां दी
इह महिकां भरी कियारी ए, ए जननी वीर हजारां दी॥ इह धरती है....
        हार गले दा गंग कवेरी, मुकुट हिमालय पर्वत दा
        इस धरती दा हर इक बन्दा, भला मंगदा सरबत दा
        पोण सुगंधित चले निरन्तर, थोड़ न कदे बहारां दी। 
        इह महिकां भरी....
सरहद्दां दी करदे राखी, अणखीले ने वीर सिपाही
ऊघे लेखकां साईंसदाना, दी माता है धरत प्यारी
भीमराव ते वीर सावरकर, भगतसिंह सरदारां दी॥ इह महिकां भरी....
        रल मिलके रहिंदे ने सारे, विच दिलां दे भेद नहीं
        जाति भाषा नाम दे उत्ते, ऊंच नीच दा गेड़ नहीं
        अपना एका शक्ति अपनी, परवाह नहीं वंगारां दी॥
        इह महिकां भरी....
हिम्मत दुशमन करे न कोई, इस धरती दे लाल बथेरे
उस दुश्मन दे काल ने जेहड़े, इस धरती दी ढाल ने जेहड़े 
हुण न उगेगी फसल कदे वी, जैचन्द जहे गद्दारां दी॥ 
इह महिकां भरी....

No comments:

Post a Comment