Thursday, February 16, 2023

पुराने देसी अनाजों के संबंध बहुत ही सुन्दर कविता* 17/2/2023

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*पुराने देसी अनाजों के संबंध बहुत ही सुन्दर कविता* 

*यह 'रागी' हुई अभागी क्यों?*
चावल की किस्मत जागी क्यों?
*जो 'ज्वार' जमी जन-मानस में,*
गेहूँ के डर से भागी क्यों?

*यूँ होता श्वेत 'झंगोरा' है।*
यह धान सरीखा गोरा है।
*पर यह भी हारा गेहूँ से,*
जिसका हर कहीं ढिंढ़ोरा है!

*जाने कितने थे अन्न यहाँ?*
एक-दूजे से प्रसन्न यहाँ।
*जब आया दौर सफेदी का,*
हो गए मगर सब खिन्न यहाँ।

*अब कहाँ वो 'कोदो'-'कुटकी' है?*
'साँवाँ' की काया भटकी है।
*संन्यासी हुआ 'बाजरा' अब,*
गुम हुई 'काँगणी' छुटकी है।

*अब जिसका रंग सुनहरा है।*
सब तरफ उन्हीं का पहरा है।
*अब कौन सुने मटमैलों की,*
गेहूँ का साया गहरा है।

*यह देता सबसे कम पोषण।*
और करता है ज्यादा शोषण।
*तोहफे में दिए रसायन अर*
माटी-पानी का अवशोषण।

*यह गेहूँ धनिया-सेठ बना।*
उपभोगी मोटा पेट बना।
*जो हज़म नहीं कर पाए हैं,*
उनकी चमड़ी का फेट बना।

*अब आएँगे दिन 'रागी' के।*
उस 'कुरी', 'बटी', बैरागी के।
*जब 'राजगिरा' फिर आएगा*
और ताज गिरें बड़भागी के।

*जब हमला हो 'हमलाई' का।*
छँट जाए भरम मलाई का।
*चीनी पर भारी 'चीना' हो,*
टूटेगा बंध कलाई का।

*बीतेगा दौर गुलामी का।*
गोरों की और सलामी का।
*जो बची धरोहर अपनी है,*
गुज़रा अब वक्त नीलामी का।

 *नोट :-* रागी, ज्वार, झंगोरा, कोदो, कुटकी, साँवाँ, बाजरा, काँगणी, कुरी, बटी, राजगिरा, हमलाई, चीना ये सब विभिन्न प्रकार के अन्न (millets) हैं, जो *गेहूँ और चावल की साज़िश के शिकार हुए हैं।* 
*कविता प्रतीकात्मक है,* जो मात्र अनाजों तक सीमित नहीं है।
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