आज समस्या और चुनौती दिन दिन बढ़ती जाती है।
नशा और बीमार गाय की संख्या बढ़ती जाती है ।
धड़क रही है धर ताप से बारिश घटती जाती है ,
लम्पी बीमारी से गौ की चमड़ सड़ती जाती है।
चूर नशे में युवा भटकता रिश्तो का संसार तोड़ता ,
हर दिन घर में खटपट करता कभी-कभी घर तक भी बिकता।
कुछ नहीं मिलता चोरी करता पत्नी के आभूषण छिनता,
और इसी के गृह क्लेश में समय से पहले ही बसता।
युवाभ्रष्ट और मस्त नशे में बर्बाद करता जवानी है,
नशा माफिया जाल बिछाकर करता अब मनमानी है।
आंगन की किलकारी खोती सूनी माथे की बिंदिया ,
मां बहिना, बनिता,पितु, भाई की खो गई आंखों की निंदिया।
सैनिक बनाना काम युवा बनता आज नशेड़ी है,
संस्कारी समृद्ध गाँव बनते मद्य बसेड़ी हैं ।
यही चुनौती देश के सम्मुख सीना ताने रोज खड़ी है ,
भारत के वैभव को डँसती समस्या जस की तस पड़ी है।
गायों को हम माँ कहते हैं लेकिन स्थिति बहुत बुरी है ,
सड़कों पर कचरा खाती है देश दुग्ध की वही धुरी है ।
लम्पी बीमारी फैली है देश के कोने कोने में,
सड़ती चमड़ी घाव हैं एक गाय लगी है रोने में ।
कोरोना के समय देश भी लड़खड़ा बीमारी से ,
लम्पी बीमारी के कारण क्यों पड़ा रहा लाचारी से ।
सम्मुख आज चुनौती है लड़ना है और डटना है ,
इस बीमारी से हमको उवरना है उवरना है।
गाय रंभाति बछड़ा रोता बीमारी से जीवन छूटा,
तप्त शरीर और घाव रिस रहा होता जाता सूना खूँटा।
कल तक जिस को हाथ से पाला घास फूस और दिया निवाला,
तड़प तड़प मरती जाती है कौन बने इसका रखवाला ।
जग के पालनहार जिसे माता कहकर पूजते हैं
गाय की हो गई हो दुर्गति प्रभु से ऐसे क्यों रूठते हैं ।
हे ईश्वर अब तुम्ही सहारा जग के पालनहार हो,
सुख-दुख तुम से पैदा होते तुम जीवन आधार हो।