⛅ *दिनांक - 17 मार्च 2022*
⛅ *दिन - गुरुवार*
⛅ *विक्रम संवत 04 चैत्र - 2078*
⛅ *शक संवत -1943*
⛅ *अयन - उत्तरायण*
⛅ *ऋतु - वसंत ऋतु*
⛅ *मास - फाल्गुन*
⛅ *पक्ष - शुक्ल*
⛅ *तिथि - चतुर्दशी दोपहर 01:29 तक तत्पश्चात पूर्णिमा*
⛅ *नक्षत्र - पूर्वाफाल्गुनी रात्रि 12:34 तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुनी*
⛅ *योग - शूल 18 मार्च रात्रि 01:09 तक तत्पश्चात गण्ड*
⛅ *राहुकाल - दोपहर 02:18 से शाम 03:48 तक*
⛅ *सूर्योदय - 06:46*
⛅ *सूर्यास्त - 18:47*
⛅ *दिशाशूल - दक्षिण दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण - व्रत पूर्णिमा, होली पूर्णिमा, हुताशनी पूर्णिमा, होलिका दहन, श्री हरि बाबा जयंती (ति. अ.)*
💥 *विशेष - चतुर्दशी और पूर्णिमा एवं व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
🌷 *होली - धुलेंडी* 🌷
➡️ *17 मार्च 2022 गुरुवार को व्रत पूर्णिमा, होली पूर्णिमा, हुताशनी पूर्णिमा, होलीका दहन*
➡️ *18 मार्च 2022 शुक्रवार को फाल्गुन पूर्णिमा, धुलेंडी, धूलिवंदन, होलाष्टक समाप्त*
🌷 *होली कैसे मनायें* 🌷
🙏🏻 *होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व है, भेदभाव मिटाकर पारस्परिक प्रेम व सदभाव प्रकट करने का एक अवसर है |अपने दुर्गुणों तथा कुसंस्कारों की आहुति देने का एक यज्ञ है तथा परस्पर छुपे हुए प्रभुत्व को, आनंद को, सहजता को , निरहंकारिता और सरल सहजता के सुख को उभारने का उत्सव है |*
➡ *यह रंगोत्सव हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता है जो अनेक विषमताओं के बीच भी समाज में एकत्व का संचार करता है | होली के रंग-बिरंगे रंगों की बौछार जहाँ मन में एक सुखद अनुभूति प्रकट कराती है वहीं यदि सावधानी, संयम तथा विवेक न रक्खा जाये तो ये ही रंग दुखद भी हो जाते हैं | अतः इस पर्व पर कुछ सावधानियाँ रखना भी अत्यंत आवश्यक है |*
➡ *प्राचीन समय में लोग पलाश के फूलों से बने रंग अथवा अबीर-गुलाल, कुम -कुम- हल्दी से होली खेलते थे |किन्तु वर्त्तमान समय में रासायनिक तत्त्वों से बने रंगोंका उपयोग किया जाता है | ये रंग त्वचा पे चक्तों के रूप में जम जाते हैं | अतः ऐसे रंगों से बचना चाहिये | यदि किसी ने आप पर ऐसा रंग लगा दिया हो तो तुरन्त ही बेसन, आटा, दूध, हल्दी व तेल के मिश्रण से बना उबटन रंगे हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिये |यदि उबटन करने से पूर्व उस स्थान को निंबू से रगड़कर साफ कर लिया जाए तो रंग छूटने में और अधिक सुगमता आ जाती है |*
➡ *रंग खेलने से पहले अपने शरीर को नारियल अथवा सरसों के तेल से अच्छी प्रकार मल लेना चाहिए | ताकि तेलयुक्त त्वचा पर रंग का दुष्प्रभाव न पड़े और साबुन लगाने मात्र से ही शरीर पर से रंग छूट जाये | रंग आंखों में या मुँह में न जाये इसकी विशेष सावधानी रखनी चाहिए | इससे आँखों तथा फेफड़ों को नुकसान हो सकता है |*
➡ *जो लोग कीचड़ व पशुओं के मलमूत्र से होली खेलते हैं वे स्वयं तो अपवित्र बनते ही हैं दूसरों को भी अपवित्र करने का पाप करते हैं | अतः ऐसे दुष्ट कार्य करने वालों से दूर ही रहें तो अच्छा है |*
➡ *वर्त्तमान समय में होली के दिन शराब अथवा भंग पीने की कुप्रथा है | नशे से चूर व्यक्ति विवेकहीन होकर घटिया से घटिया कुकृत्य कर बैठते हैं | अतः नशीले पदार्थ से तथा नशा करने वाले व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिये |आजकल सर्वत्र उन्न्मुक्तता का दौर चल पड़ा है | पाश्चात्य जगत के अंधानुकरण में भारतीय समाज अपने भले बुरे का विवेक भी खोता चला जा रहा है | जो साधक है, संस्कृति का आदर करने वाले हैं, ईश्वर व गुरु में श्रद्धा रखते हैं ऐसे लोगो में शिष्टता व संयम विशेषरूप से होना चाहिये | पुरुष सिर्फ पुरुषों से तथा स्त्रियाँ सिर्फ स्त्रियों के संग ही होली मनायें | स्त्रियाँ यदि अपने घर में ही होली मनायें तो अच्छा है ताकि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों कि कुदृष्टि से बच सकें |*
➡ *होली मात्र लकड़ी के ढ़ेर जलाने का त्योहार नहीँ है |यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करनेका, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है | अपने दुर्गुणों, व्यसनों व बुराईओं को जलाने का पर्व है होली .......अच्छाईयाँ ग्रहण करने का पर्व है होली .........समाज में स्नेह का संदेश फैलाने का पर्व है होली..... .....*
➡ *आज के दिन से विलासी वासनाओं का त्याग करके परमात्म प्रेम, सदभावना, सहानुभूति, इष्टनिष्ठा, जपनिष्ठा, स्मरणनिष्ठा, सत्संगनिष्ठा, स्वधर्म पालन , करुणा दया आदि दैवी गुणों का अपने जीवन में विकास करना चाहिये | भक्त प्रह्लाद जैसी दृढ़ ईश्वर निष्ठा, प्रभुप्रेम, सहनशीलता, व समता का आह्वान करना चाहिये |*
➡ *सत्य, शान्ति, प्रेम, दृढ़ता की विजय होती है इसकी याद दिलाता है आज का दिन | हिरण्यकश्यपु रूपी आसुरी वृत्ति तथा होलिका रूपी कपट की पराजय का दिन है होली, यह पवित्र पर्व परमात्मा में दृढ़ निष्ठावान के आगे प्रकृति द्वारा अपने नियमों को बदल देने की याद दिलाता है | मानव को भक्त प्रह्लाद की तरह विघ्न बाधाओं के बीच भी भगवदनिष्ठा टिकाए रखकर संसार सागर से पार होने का संदेश देने वाला पर्व है 'होली' !*
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~ * Today's Hindu Panchang * ~
*Date - 17 March 2022*
*Day - Thursday*
*Vikram Samvat 04 Chaitra - 2078*
*Shaka Samvat-1943*
*Ayan - Uttarayan*
* season - spring season *
* month - falgun *
*Paksha - Shukla*
* date - Chaturdashi till 01:29 after that full moon *
* Nakshatra - Poorva Phalguni till 12:34 after that Uttara Phalguni *
*Yoga-Shool till 01:09 on March 18, then Gand*
*Rahukal - 02:18 pm to 03:48 pm*
*sunrise - 06:46*
*sunset - 18:47*
*Dishashul - in the south direction*
* Vrat festival details - Vrat Purnima, Holi Purnima, Hutashni Purnima, Holika Dahan, Shri Hari Baba Jayanti (T.A.)*
* Special - On the day of Chaturdashi and full moon and fasting, it is prohibited to eat and apply female-cohabitation and sesame oil. (Brahmavaivarta Purana, Brahma Khand: 27.29-38)*
* Holi - Dhulendi *
️ * Thursday 17th March 2022 Vrat Purnima, Holi Purnima, Hutashni Purnima, Holika Dahan*
️ *Falgun Purnima, Dhulendi, Dhulivandan, Holashtak ends on Friday 18 March 2022*
*how to celebrate holi*
🙏🏻 * Holi is a sacred festival of identity of Indian culture, it is an opportunity to express mutual love and harmony by eradicating discrimination. It is a celebration of evoking the happiness of egolessness and simple spontaneity.
* this festival of colors is the foresight of our ancestors, which communicates unity in the society even in the midst of many disparities. While the splash of colorful colors of Holi gives a pleasant feeling in the mind, if caution, restraint and discretion are not maintained then these colors also become sad. Therefore it is very important to take some precautions on this festival.
* In ancient times people used to play Holi with colors made from Palash flowers or Abir-Gulal, Kum-Kum-Haldi. But in present times colors made from chemical elements are used. These colors get deposited on the skin in the form of patches. Hence such colors should be avoided. If someone has applied such a color on you, then immediately after applying ubtan made from a mixture of gram flour, flour, milk, turmeric and oil, the color should be washed off. If done, it becomes more easy to get rid of the color.
* Before playing the color, your body should be thoroughly rubbed with coconut or mustard oil. So that the oily skin is not affected by the color and only by applying soap, the color gets removed from the body. Special care should be taken that the color does not get in the eyes or in the mouth. This can cause damage to the eyes and lungs.
* Those who play Holi with mud and animal excreta, they not only become impure themselves, they also commit the sin of polluting others. Therefore, it is better to stay away from those who do such evil deeds.
* At present, there is a bad practice of drinking alcohol or Bhang on the day of Holi. A drunken person becomes irrational and commits lousy to lousy misdeeds. Therefore, one should be careful from intoxicants and people who are intoxicated. Nowadays, the era of freedom has started everywhere. In the blind imitation of western world, Indian society is also losing its conscience of good and bad. Those who are a seeker, have respect for culture, have faith in God and Guru, such people should have chivalry and restraint in particular. Men celebrate Holi only with men and women only with women. It is good if women celebrate Holi in their own home so that they can be saved from the evil eye of the people of evil tendencies.
* Holi is not just a festival of burning heaps of wood. It is a holy day to remove the weaknesses of the mind, to burn the dirty desires of the mind. Holi is the festival of burning your vices, addictions and evils. .....*
* From today onwards, by sacrificing luxuriant desires, divine qualities like love, goodwill, sympathy, fidelity, japanishtha, remembrance, integrity, self-righteousness, compassion, mercy etc. should be developed in your life. Devotee Prahlad's firm devotion to God, love of God, tolerance, and equanimity should be invoked.
*Truth, peace, love, perseverance triumph, this day reminds me of this. Holi is the day of defeat of the demonic instincts of Hiranyakashipu and the deceit of Holika, this holy festival reminds the nature to change its laws in front of a firm believer in God. Like the devotee Prahlad, 'Holi' is a festival giving the message of crossing the ocean of the world by maintaining devotion to God even in the midst of obstacles.
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