लोग उन्हीं के कंधों पर पाव रख बढ़ते जाते है
नीव की इट बनते बनते अपना घर बना ना भूल गए
लोग यश प्रतिष्ठा दांव पेंच के चक्कर में नीव की ईट को भूलते जाते है
समय आ गया चक्रव्यूह रचने का
देखे कौन अभिमन्यु इसे तोड़ पता है
अपने परायों के चक्कर में अर्जुन पीसा जाता है
प्रतिज्ञा करते करते चक्रवात के घावों का
अपने सगे संबंधी मित्र छूट गए
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