Friday, March 4, 2022

कविता 2022/3/5शनिवार

राष्ट्र का हित करने वाले यूंही खपते जाते है 
लोग उन्हीं के कंधों पर पाव रख बढ़ते जाते है
नीव की इट बनते बनते अपना घर बना ना भूल गए
लोग यश प्रतिष्ठा दांव पेंच के चक्कर में नीव की ईट को भूलते जाते है

समय आ गया चक्रव्यूह रचने का 
देखे कौन अभिमन्यु इसे तोड़ पता है
अपने परायों के चक्कर में अर्जुन पीसा जाता है
प्रतिज्ञा करते करते चक्रवात के घावों का
अपने सगे संबंधी मित्र छूट गए

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