समाज निर्माण में मातृ शक्ति का योगदान
अथर्ववेद :माता भूमि : पुत्र और अहम् पृथिव्या (भूमि मेरी माता है हम इसके पुत्र हैं )
विवेकानंद जी ने कहा जिस राष्ट्र की स्त्रियां शिक्षित सक्षम और संपन्न है वही राष्ट्र समृद्धशाली हो सकता है ।
नेपोलियन बोनापार्ट :तुम मुझे एक योग्य माता दे दो मैं तुमको एक योग्य राष्ट्र दूंगा ।
माता जीजा , रानी हाडी ,पन्नाधाय ,जैसे माताओं ने सदा धर्म परायण हो कर रही ।
नतमस्तक मृत्यु भी इनके आगे रही सदा है
घुटने टेकता रहा सदैव समक्ष इनके काल है”
भारतीय जनजीवन की मूल दूरी नारी अर्थात माताएं है
संस्कृति परंपरा या धरोहर पीढ़ी दर पीढ़ी नारी से ही हस्तांतरित होती रही है
समाज में सजगता या जड़ता को उखाड़ फेंकने संतान निर्माण शिक्षा-दीक्षा नारी हो मातृशक्ति ने ही किया
माता जीजाबाई ने बाल शिवा को छत्रपति शिवाजी जैसा देश भक्त और कुशल योद्धा बनाया
पन्नाधाय के उत्कृष्ट त्याग, बलिदान से स्वर्णिम भारतीय इतिहास सुसज्जित है
हाड़ी रानी द्वारा पत्नीमोह भंग करने की मिशाल ,त्याग और बलिदान की परंपरा के गीत आज भारत के घर घर गाई जाती है
रानी लक्ष्मीबाई ,रजिया सुल्तान, पद्मिनी, मीरा मध्यकाल में शौर्य ,जोहर, भक्ति ,सुकीर्ति का परचम फहराया
विद्यावती का जिसका पुत्र फाँसी के तख्ते पर खड़ा था और माँ की आँख में आंसू देखकर जब पत्रकार ने पूछा की आप शहीद की माँ होकर भी रो रही है तो उस वीर माँ विद्यावती का उत्तर था कि “मैं अपने पुत्र कि शहीदी पर नहीं रो रही ,मैं तो अपनी कोख पर रो रही हूँ कि काश मेरी कोख ने एक और भगत सिंह पैदा किया होता ,तो मैं उसे भी भगवती भारत माता की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर देती”
परिवार में नारी केंद्र रूपी सारे घटक चतुर्दिक घूमते पोषक पाते और विश्राम पाते
सब को एक माला में पिरो ही रखती है
परिवार समाज राष्ट्र की स्थिति नारी पर निर्भर
सुद्रण सम्मानजनक सुदृढ़ मजबूत समाज हेतु
महिलाएं सृष्टि के आरंभ से अनंत गुणों तक आगार रही है
बाल्यावस्था से मृत्यु पर्यंत परिवार की संरक्षिका बनी रहती है
दया ,करुणा ,ममता ,सहिष्णुता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है| नारी का त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है !
पृथ्वी सी सहनशीलता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की गंभीरता, पुष्पों सा मोहक सौंदर्य व कोमलता और चंद्रमा जैसी शीतलता महिलाओ में विद्यमान है
सीता ,सावित्री ,गार्गी,मैत्रेयी जैसी महान नारियों ने इस देश को अलंकृत किया है|
मातृ शक्ति गृहस्वामिनी, अर्धांगिनी के सौभाग्य श्रृंगारित ,शिशु की प्रथम शिक्षिका ,गुरु की गरिमा से गौरवान्वित, सनातन शक्ति की आधारशिला
मातृशक्ति घर समाज और राष्ट्र का आदर्श
पुण्य कार्य के अनुष्ठान निर्माण महिला के बिना पूर्ण नहीं होते
पुरातन काल में महिलाओं को पुरुषों के समान ही सामाजिक राजनीतिक व धार्मिक अधिकार प्राप्त थे
रण क्षेत्र में पतियों का सहयोग देती थी कैकयी ने अपने अद्वितीय रन कौशल से दशरथ को चकित कर दिया था
यज्ञवल्क् की सहधर्मिणी गार्गी ने आध्यात्मिक धन के समक्ष सांसारिक धन तुच्छ है यह सिद्ध कर समाज में आदरणीय स्थान प्रस्तुत किया
विध्धोतमा ने कालिदास को संस्कृत का प्रकांड विद्वान बनाने में सहायता प्रदान की
तुलसीदास को आध्यात्मिक चेतना उसके पत्नी रत्नावली का ही बुद्धि का चातुर्य था
मिथिला के महापंडित मंडन मिश्र की धर्मपत्नी विदुषी भारती से शंकराचार्य से शास्त्रार्थ में पराजित किया था
80% भारत के तथाकथित विद्वान गौतम बुद्धोत्तरकालीन भारत को ही जानते हैं या पहचानते हैं ,अंग्रेजी के ही ग्रंथों से ही भारत का अनुभव मूल्यांकन करते हैं
इस्लामिक आक्रमणकारी मलिक काफूर अलाउद्दीन खिलजी औरंगजेब आतातावियों के साथ अपरिमित अत्याचार किए विजेता भोग्यवस्तु की भांति
बचने के लिए आत्मघात कर लेने के अतिरिक्त और कोई उपाय ही क्या था?
भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में मातृशक्ति ने पूर्ण सहयोग दिया
लक्ष्मीबाई ,सरोजिनी नायडू ,भगिनी निवेदिता ,सुचेता कृपलानी ,कैप्टन लक्ष्मी सहगल ,दुर्गा भाभी एवं क्रांतिकारियों को सहयोग देने वाली अनेक मातृशक्तियां भारत में अवतरित हुई जिन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया
"इतिहास साक्षी है जब-जब समाज या राष्ट्र ने नारी को अवसर तथा अधिकार दिया है , तब-तब नारी ने विश्व के समक्ष श्रेष्ठ उदाहरण ही प्रस्तुत किया है !"
मैत्रेयी,गार्गी ,घोषा, अपाला , विदुषी भारती आदि विदुषियां शिक्षा के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए आज भी पूजनीय है
आधुनिक काल में महादेवी वर्मा ,सुभद्रा कुमारी चौहान , महाश्वेता देवी ,अमृता प्रीतम आदि स्त्रियों ने साहित्य तथा राष्ट्र की प्रगति में विशेष योगदान है
कला के क्षेत्र में लता मंगेशकर ,देविका रानी, वैजयंती माला ,सोनल मानसिंह आदि का योगदान
वर्तमान में महिलाये समाजसेवा, राष्ट्र निर्माण और राष्ट्रोत्थान के अनेक कार्यो में लगी है
“तन और मन की कोमलता को, कमजोरी कोई समझे न इनकी ठान लेती जो प्रण मन में तो, झुक जाती ब्रम्हांड की शक्ति||”
अत्यंत ही हर्ष का विषय है कि अब महिला जगत का बहुत बड़ा भाग अपनी संवाद हीनता, भीरुता एवं संकोचशीलता से मुक्त होकर सुद्रण समाज के सृजन में अपनी भागीदारी के लिए प्रस्तुत है|
समस्त सामाजिक संदर्भो से जुडी महिलाओ कि सक्रियता को अब न केवल पुरुष वरन परिवार, समाज एवं राष्ट्र ने भी स्वीकारा है|
वर्तमान में मातृशक्ति के कार्यक्षेत्र का विस्तार इतना घनीभूत हो गया है कि कोई भी क्षेत्र इनके संपर्क से अछूता नहीं है|
आज मातृशक्ति भी पुरुषो के सामान सुशिक्षित ,सक्षम एवं सफल है| चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, साहित्य, चिकित्सा, सेना, पुलिस, प्रशासन, व्यापार, समाज सुधार, पत्रकारिता या कला क्षेत्र हो मातृशक्ति कि उपस्थिति,योग्यता एवं उपलब्धियां स्वयं अपना प्रत्यक्ष परिचय प्रस्तुत कर रही है
| घर -परिवार से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक उसकी कीर्ती पताका लहरा रही है|
दोहरे दायित्वों से लदी महिलाओ ने अपनी दोगुनी शक्ति का प्रदर्शन कर सिद्ध कर दिया की समाज की उन्नति आज केवल पुरुषो के कंधो पर नहीं ,अपितु उनके हाथो का सहारा लेकर भी उचाईयो की और अग्रसर होती है|
उन्नत राष्ट्र की कल्पना तभी यतार्थ रूप धारण कर सकती है जब मातृशक्ति सशक्त होकर राष्ट्र को सशक्त करे| मातृशक्ति तो स्वयं सिद्धा है, वह गुणों की सम्पदा है, आवश्यकता है