Friday, May 29, 2020

27 May / Sacrifice Day * Pratap Singh Barhatha Sacrifice *. 27 मई/बलिदान-दिवस*प्रताप सिंह बारहठ का बलिदान*

27 मई/बलिदान-दिवस
*प्रताप सिंह बारहठ का बलिदान*

एक पुलिस अधिकारी और कुछ सिपाही उत्तर प्रदेश की बरेली जेल में हथकडि़यों और बेडि़यों से जकड़े एक तेजस्वी युवक को समझा रहे थे, ‘‘कुँअर साहब, हमने आपको बहुत समय दे दिया है। अच्छा है कि अब आप अपने क्रान्तिकारी साथियों के नाम हमें बता दें। इससे सरकार आपको न केवल छोड़ देगी, अपितु पुरस्कार भी देगी। इससे आपका शेष जीवन सुख से बीतेगा।’’

उस युवक का नाम था प्रताप सिंह बारहठ। वे राजस्थान की शाहपुरा रियासत के प्रख्यात क्रान्तिकारी केसरी सिंह बारहठ के पुत्र थे। प्रताप के चाचा जोरावर सिंह भी क्रान्तिकारी गतिविधियों में सक्रिय थे।वे रासबिहारी बोस की योजना से राजस्थान में क्रान्तिकार्य कर रहे थे। इस प्रकार उनका पूरा परिवार ही देश की स्वाधीनता के लिए समर्पित था।

पुलिस अधिकारी की बात सुनकर प्रताप सिंह हँसे और बोले, ‘‘मौत भी मेरी जुबान नहीं खुलवा सकती। हम सरकारी फैक्ट्री में ढले हुए सामान्य मशीन के पुर्जे नहीं हैं। यदि आप मुझसे यह आशा कर रहे हैं कि मैं मौत से बचने के लिए अपने साथियों के गले में फन्दा डलवा दूँगा, तो आपकी यह आशा व्यर्थ है। सरकार के गुलाम होने के कारण आप सरकार का हित ही चाहंेगे; पर हम क्रान्तिकारी तो उसकी जड़ उखाड़कर ही दम लेंगे।’’

पुलिस अधिकारी ने फिर समझाया, ‘‘हम आपकी वीरता के प्रशंसक हैं; पर यदि आप अपने साथियों के नाम बता देंगे, तो हम आपके आजन्म कालेपानी की सजा पाये पिता को भी मुक्त करा देंगे और आपके चाचा के विरुद्ध चल रहे सब मुकदमे भी उठा लेंगे।  सोचिये, इससे आपकी माता और परिवारजनों को कितना सुख मिलेगा ?’’

प्रताप ने सीना चैड़ाकर उच्च स्वर में कहा, ‘‘वीर की मुक्ति समरभूमि में होती है। यदि आप सचमुच मुझे मुक्त करना चाहते हैं, तो मेरे हाथ में एक तलवार दीजिये। फिर चाहे जितने लोग आ जायें। आप देखेंगे कि मेरी तलवार कैसे काई की तरह अंग्रेजी नौकरशाहों को फाड़ती है। जहाँ तक मेरी माँ की बात है, अभी तो वह अकेले ही दुःख भोग रही हैं; पर यदि मैं अपने साथियों के नाम बता दूँगा, तो उन सबकी माताएँ भी ऐसा ही दुख पायेंगी।’’

प्रताप सिंह लार्ड हार्डिंग की शोभायात्रा पर फंेके गये बमकांड में पकड़े गये थे। इस कांड में उनके साथ कुछ अन्य क्रान्तिकारी भी थे। पहले उन्हें आजीवन कालेपानी की सजा दी गयी; पर फिर उसे मृत्युदंड में बदल दिया गया। फाँसी के लिए उन्हें बरेली जेल में लाया गया था। वहाँ दबाव डालकर उनसे अन्य साथियों के बारे में जानने का प्रयास पुलिस अधिकारी कर रहे थे।

जब जेल अधिकारियों ने देखा कि प्रताप सिंह किसी भी तरह मुँह खोलने को तैयार नहीं हैं, तो उन पर दमनचक्र चलने लगा। उन्हें बर्फ की सिल्ली पर लिटाया गया। मिर्चों की धूनी उनकी नाक और आँखों में दी गयी। बेहोश होने तक कोड़ों के निर्मम प्रहार किये गये। होश में आते ही फिर यह सिलसिला शुरू हो जाता।लगातार कई दिन पर उन्हें भूखा-प्यासा रखा गया। उनकी खाल को जगह-जगह से जलाया गया। फिर उसमें नमक भरा गया; पर आन के धनी प्रताप सिंह ने मुँह नहीं खोला।

लेकिन 25 वर्षीय उस युवक का शरीर यह अमानवीय यातनाएँ कब तक सहता ? 27 मई, 1918 को उनके प्राण इस देहरूपी पिंजरे को छोड़कर अनन्त में विलीन हो गये।

(प्रताप सिंह बारहठ सेवा संस्थान, शाहपुरा (भीलवाड़ा) के अनुसार जन्मतिथि 24.5.1893 तथा बलिदान दिवस 24.5.1918 है।)

#हरदिनपावन

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27 May / Sacrifice Day
 * Pratap Singh Barhatha Sacrifice *

 A police officer and some soldiers were explaining to a stunning young man in Uttar Pradesh's Bareilly Jail with handcuffs and fetters, "Kunwar sir, we have given you a lot of time."  It is good that you tell us the names of your revolutionary colleagues.  With this, the government will not only leave you, but also give rewards.  This will make the rest of your life happy. "

 The name of that young man was Pratap Singh Baruth.  He was the son of eminent revolutionary Kesari Singh Barhat of the princely state of Shahpura in Rajasthan.  Pratap's uncle Zorawar Singh was also active in revolutionary activities. He was doing revolution in Rajasthan under the plan of Rasbihari Bose.  Thus his entire family was devoted to the independence of the country.

 Listening to the police officer, Pratap Singh laughed and said, "Even death cannot open my tongue."  We are not parts of common machine molded in a government factory.  If you are expecting me to put a trap in the neck of my colleagues to avoid death, then this hope of yours is futile.  Because of being a slave of the government, you will only want the interest of the government;  But if we are revolutionary, we will die only by uprooting it. "

 The police officer then explained, "We admire your valor;  But if you will tell the names of your colleagues, then we will also free your father who has been sentenced for his black birth and will take all the cases against your uncle.  Think, how much happiness your mother and family will get from this? "

 Pratap chanted Sina and said in a loud voice, "The salvation of the hero is in the Samarbhoomi.  If you really want to free me, then give me a sword.  Then as many people may come.  You will see how my sword tore up English bureaucrats like Kai.  As far as my mother is concerned, she is alone suffering now;  But if I tell the names of my companions, then their mothers will also get the same sorrow. "

 Pratap Singh was caught in a bombing on Lord Hardinge's procession.  He was accompanied by some other revolutionaries in this scandal.  At first he was sentenced to life in black;  But he was then commuted to the death penalty.  He was brought to Bareilly jail for execution.  Police officers were trying to find out about other colleagues by pressuring them there.

 When the jail officials noticed that Pratap Singh was not ready to open his face in any way, he started running a repression cycle.  They were laid on ice blocks.  Chilli fumigation was given to his nose and eyes.  The ruthless blows of the whips were done until he fainted.  This process would start again as soon as he came to his senses. For many days, he was kept hungry and thirsty.  Their skins were burnt from place to place.  Then salt was filled in it;  But Aan's rich Pratap Singh did not open his mouth.

 But how long did the body of the 25-year-old bear this inhuman torture?  On 27 May 1918, his soul left this dehrupi cage and merged into eternal life.

 (According to Pratap Singh Barhatha Seva Sansthan, Shahpura (Bhilwara), the date of birth is 24.5.1893 and sacrifice day is 24.5.1918.)

 #Hardinpavan

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